Wednesday, September 5, 2018

जातियों के संघर्ष को न रोका गया तो बात बहुत बिगड़ सकती है .



शेष नारायण सिंह

आज देश जातियों के मध्य बुरी तरह से बंटा हुआ  है . सवर्ण और  अनुसूचित जातियों के भंवर में देश पड़ा हुआ है . ताज़ा विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के इर्द गिर्द मंडरा रहा है . इसी साल मार्च में सुभाष काशीनाथ महाजन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने जब  अनुसूचित जातियों  पर होने वाले अत्याचार पर काबू पाने के लिए बनाए गए कानून  में  कुछ परिवर्तन  कर दिया तो २ अप्रैल को  अनुसूचित जातियों के संगठनों ने बंद का आयोजन किया जो कई जगह हिंसक हो गया था . उसके बाद केंद्र सरकार दबाव  में आ गयी और  सुप्रीमकोर्ट द्वारा लाये गए कुछ सुधारों को मौजूदा सरकार ने  जल्दी जल्दी में बदल दिया . गैर अनुसूचित  जातियों का आरोप रहा है कि एस सी /एस टी एक्ट के नाम पर उनको परेशान किया जाता रहा है .उसी के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दी गयी थी . सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया था  .अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी ऐक्ट  में केस दर्ज होते ही जो गिरफ्तारी का प्रावधान है वह सही नहीं है . गिरफ्तारी के पहले जाँच कर लेनी चाहिए . ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी गयी थी . कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी ऐक्ट  में दर्ज एफ आई आर के बाद पुलिस को चाहिये कि शुरुआती जांच करके  अगर केस में दम हो तो सात दिन के अन्दर गिरफ्तारी करे . मूल एससी/एसटी ऐक्ट में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था . अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस ए के गोयल और यू यू ललित की बेंच ने अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ने का आदेश दे दिया था । इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के मुताबिक इसके तहत दर्ज केसों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था. फैसले में लिखा था कि बेगुनाह लोगों के सम्मान और उनके हितों की रक्षा के लिए यह  व्यवस्था जरूरी थी. एससी/एसटी ऐक्ट के दुरुपयोग के मामलों को देखते हुए यह जरूरी है कि सक्षम अधिकारी से मंजूरी लेकर ही किसी सरकारी कर्मचारी को गिरफ्तार किया जाए। इसके अलावा गैर-सरकारी कर्मी को अरेस्ट करने के लिए जिले के सक्षम पुलिस अधिकारी से मंजूरी ली जाए . एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज कराए गए मामलों में उप पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी से जाँच के बाद ही आगे की कारर्वाई हो. . हुआ यह  था  कि एससी/एसटी ऐक्ट  का बड़े पैमाने पर  दुरुपयोग हो रहा था. किसी एससी/एसटी के व्यक्ति को आगे करके गाँवों में लोग अपने पड़ोसी से निजी दुश्मनी का बदला ले रहे थे . दफ्तरों में भी एससी/एसटी ऐक्ट  का ब्लैकमेल के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा जा रहा  था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था  कि अब यह पता लगा कर कि आरोप की सच्चाई क्या है , जांच को आगे बढाया  जाएगा .
लेकिन जब सरकार ने संसद में नया कानून पास कर दिया तो सवर्ण जातियों में बहुत नाराजगी देखी गयी .कुछ मामले  भी ऐसे  मीडिया में आये जिससे साफ़ पता चलता है कि एस सी एक्ट का दुरुपयोग हुआ . नोयडा में एक दलित ए डी एम  ने एक रिटायर्ड फौजी कर्नल को मारा पीटा और उसके खिलाफ  नए एक्ट के तहत कार्रवाई भी करवा दिया . हल्ला गुल्ला हुआ और  सरकार के हस्तक्षेप के बाद कर्नल को रिहा किया गया लेकिन अगर यह मामला हाई प्रोफाइल कर्नल का न होता तो वह  निर्दोष कर्नल कम से कम दस महीने के लिए जेल जा चुका था . बहरहाल सवर्ण वार्गों में नाराज़गी  है , सभी पार्टियां वोट बैंक की राजनीति खेल रही हैं और छहः सितम्बर को सवर्णों का भारत बंद कर दिया गया है .
दलित एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के मामले की भूमिका में जाना ज़रूरी है . एससी समुदाय के एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र में सरकारी अफसर सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ एफ आई आर कराया दर्ज था . आरोप था कि महाजन ने  अपने अधीन काम करने वाले एस सी कर्मचारियों के ऊपर जातिसूचक टिप्पणी की थी. लेकिन सुभाष काशीनाथ महाजन का कहना  था  कि ऐसा नहीं था . वास्तव में ड्यूटी पर  सही काम न करने के कारण कार्रवाई की गयी थी. उन्होंने कोर्ट से कहा कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने  एफआईआर खारिज कराने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दी लेकिन मुंबई हाई कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुभाष काशीनाथ महाजन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।महाजन की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था जिस पर बहुत बड़ा विवाद खड़ा हो गया  है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने महाजन के खिलाफ लिखी गयी एफ आई आर को तो खारिज कर ही दिया  एस सी /एस  टी ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी। इस फैसले के खिलाफ  प्रदर्शन शुरू हो गए। अनुसूचित जाति के संगठनों  और  राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार से इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की गई।  सरकार ने इस केस में  पुनर्विचार याचिका दाखिल किया लेकिन दो अप्रैल के बंद से डरी हुयी सरकार ने संसद के  मानसून सत्र में  एक नया एक्ट पारित करवा लिया . नए एक्ट में पुराने कानून से भी सख्त प्रावधान कर दिए गए .अब  नए कानून के खिलाफ  सवर्ण जातियों के लोग मैदान में हैं . उनक आरोप है कि सरकार एस सी /एस टी समुदाय के वोटों की लालच में इस तरह का का काम कर रही है . छः  सितम्बर का भारत बंद  सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही बुलाया गया .
अपने देश में जाति से सम्बंधित झगड़े अब बहुत ही अधिक होने लगे हैं .  कहीं किसी के घोडी पर चढ़ने पर विवाद हो जाता  है तो  कहीं किसी की मूंछ पर  झगड़ा हो जाता है. शादी ब्याह में जाति के आधार पर झगड़े और क़त्ल की ख़बरें तो अक्सर ही आती रहती हैं. इस समस्या में रोज़ ही वृद्धि हो रही . लगता  है कि इसको कानून व्यवस्था की समस्या मानकर चलने वाली सरकारें  अंधेरे में टामकटोइयां मार रही हैं . यह समस्या कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है . यह वास्तव में सामाजिक समस्या  है और इसका हल राजनीतिक तरीके ही  निकलेगा . जिसके लिए कहीं जाने की ज़रूरत भी नहीं है . संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष डॉ बी आर आंबेडकर की महत्वपूर्ण किताब The Annihilation of caste में  बहुत ही साफ शब्दों में कह दिया है कि जब तक जाति प्रथा का विनाश नहीं हो जाता समतान्याय और भाईचारे की शासन व्यवस्था नहीं कायम हो सकती। जाहिर है कि जाति व्यवस्था का विनाश हर उस आदमी का लक्ष्य होना चाहिए जो डॉ अंबेडकर के दर्शन में विश्वास रखता हो। The Annihilation of caste के बारे में यह जानना दिलचस्प होगा कि वह एक ऐसा भाषण है जिसको पढ़ने का मौका उन्हें नहीं मिला था लाहौर के जात पात तोड़क मंडल की और से उनको मुख्य भाषण करने के लिए न्यौता मिला था . जब डाक्टर साहब ने अपने प्रस्तावित भाषण को लिखकर भेजा तो ब्राहमणों के प्रभुत्व वाले जात-पात तोड़क मंडल के कर्ताधर्ताकाफी बहस मुबाहसे के बाद भी इतना क्रांतिकारी भाषण सुनने कौ तैयार नहीं हुए। शर्त लगा दी कि अगर भाषण में आयोजकों की मर्जी के हिसाब से बदलाव न किया गया तो भाषण हो नहीं पायेगा। डॉ अंबेडकर ने भाषण बदलने से मना कर दिया। और उस सामग्री को पुस्तक के रूप में छपवा दिया जो आज हमारी ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है।  पुस्तक में जाति के विनाश की राजनीति और दर्शन के बारे में गंभीर चिंतन है. इस देश का दुर्भाग्य है कि आर्थिकसामाजिक और राजनीतिक विकास का इतना नायाब तरीका हमारे पास हैलेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। डा अंबेडकर के समर्थन का दम ठोंकने वाले लोग ही जाति प्रथा को बनाए रखने में रूचि रखते  हैं और उसको बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। जाति के विनाश के लिए डाक्टर अंबेडकर ने सबसे कारगर तरीका जो बताया था वह अंर्तजातीय विवाह का थालेकिन उसके लिए राजनीतिक स्तर पर कोई कोशिश नहीं की जा रही हैलोग स्वयं ही जाति के बाहर निकल कर शादी ब्याह कर रहे हैयह अलग बात है।

इस पुस्तक में डॉ अंबेडकर ने अपने आदर्शों का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि जातिवाद के विनाश के बाद जो स्थिति पैदा होगी उसमें स्वतंत्रताबराबरी और भाईचारा होगा। एक आदर्श समाज के लिए दे आबेडकर का यही सपना था। एक आदर्श समाज को गतिशील रहना चाहिए और बेहतरी के लिए होने वाले किसी भी परिवर्तन का हमेशा स्वागत करना चाहिए। एक आदर्श समाज में विचारों का आदान-प्रदान होता रहना चाहिए।डॉ अंबेडकर का कहना था कि स्वतंत्रता की अवधारणा भी जाति प्रथा को नकारती है। उनका कहना है कि जाति प्रथा को जारी रखने के पक्षधर लोग राजनीतिक आजादी की बात तो करते हैं लेकिन वे लोगों को अपना पेशा चुनने की आजादी नहीं देना चाहते . इस अधिकार को अंबेडकर की कृपा से ही संविधान के मौलिक अधिकारों में शुमार कर लिया गया है और आज इसकी मांग करना उतना अजीब नहीं लगेगा लेकिन जब उन्होंने  यह बात कही थी तो उसका महत्व बहुत अधिक था। अंबेडकर के आदर्श समाज में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैबराबरी ब्राहमणों के आधिपत्य वाले समाज ने उनके इस विचार के कारण उन्हें बार-बार अपमानित किया लेकिन अंबेडकर ने अपने विचारों में कहीं भी ढील नहीं होने दी।
एससी/एसटी ऐक्ट  और उससे जुड़े विवाद को हल करना सरकार का कर्तव्य है लेकिन सरकार का यह भी कर्तव्य है कि वह  जाति के संघर्ष का स्थाई हल निकालने की कोशिश भी करे . संविधान लागू होने के अडसठ साल बाद भी हम देखते हैं कि हमारा समाज जातियों के बंटवारे में पूरी तरह से जकड़ा हुआ है . अगर जाति के विनाश की दिशा में प्रभावी क़दम उठाये  गए होते तो आज यह दुर्दशा न हो रही होती . इसलिए ज़रूरी है कि मौजूदा संघर्ष की स्थिति को तो फौरान काबू किया ही जाये लेकिन दूरगामी हल के  लिए भी प्रयास किया जाय.  यह दूरगामी समाधान तभी संभव होगा जब  जाति की संस्था का  विनाश  सुनिश्चित किया जा सकेगा . 




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