Monday, September 17, 2018

मौजूदा कानूनों से चुनाव में कालेधन को रोक पाना बहुत मुश्किल है : मुख्य चुनाव आयुक्त



शेष नारायण सिंह  


जब से आशुतोष  वार्ष्णेय की किताब" भारत का अप्रत्याशित लोकतंत्र : अधूरी जीत " प्रकाशित हुई है ,  अपने देश में लोकतंत्र पर कहीं न कहीं  लोकतंत्र पर बहस होती ही रहती है .  प्रोफ़ेसर वार्ष्णेय की यह किताब १९४७ से अब तक के महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम का  विश्लेषण है . इस दौर में जो चुनौतियां आयी हैं उन सबको बहुत ही गंभीरता से  समझाने की कोशिश की गयी है और पश्चिमी देशों के उस तर्क को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है जिसमें वे भारत  की आज़ादी के बाद यह दावे करते पाए जाते थे कि भारत अपने लोकतंत्र को संभाल नहीं पायेगा. किताब में यह सिद्ध कर दिया गया है कि सत्तर साल में समस्याएं तो बहुत आयीं  लेकिन भारत का लोकत्रंत्र पूरी तरह से सफल है और आने वाले समय में भी रहेगा..इस विषय पर अमरीका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में अकादमिक चर्चा होती रहती है  . भारत में भी  अपने लोकतंत्र के बारे में चर्चा आम है . इसी विषय पर एक  सम्मलेन नई दिल्ली में भी आयोजित हुआ. जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त , ओ पी रावत शामिल हुए. उन्होंने साफ़ कहा कि  लोकतंत्र भावनाओं पर नहीं चलता ,किसी एक इंसान की पसंद नापसंद को कभी भी लोकशाही की बुनियाद नहीं बनाया  सकता . लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए साहस, चरित्र , ईमानदारी और ज्ञान की ज़रूरत होती है .यह ऐसे सद्गुण  हैं जो धीरे  धीरे कम होते जा रहे हैं . उन्होंने साफ़ कहा कि मौजूदा कानूनों के बल पर चुनाव में काला धन को रोक पाना संभव नहीं है. चुनाव प्रक्रिया में आ गयी अन्य बीमारियों  को रोकने के लिए भी मौजूदा कानून नाकाफी हैं .  चुनावों को साफ़ सुथरे तरीके से संपन्न कर  पाना बहुत ही कठिन होता जा रहा है. हालांकि अभी चुनाव प्रक्रिया को साफ रखने में चुनाव  आयोग सफल रहा है . लेकिन फेक न्यूज़, जैसी नई परेशानियों के कारण चुनाव  को सही सलामत करवा पाना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा  है. सोशल  मीडिया के ज़रिये उलटे सीधे और गलत प्रचार के कारण जनता के निर्णय को प्रभावित करने की  कोशिश भी अब आम बात हो चली  है. अगर जनता नक़ली तर्क के आधार पर  हुए प्रचार के कारणों से गलत नेता चुन लेगी तो लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण नहीं माना जाएगा . क्योंकि अगर इस तरह के लोग चुन लिए गए तो उनसे स्वस्थ छवि और प्रशासन की उम्मीद नहीं रहेगी और यह खतरा दुनिया के हरेक लोकतंत्र के सामने है . अभी तक तो चुनाव आयोग इससे चौकन्ना है और हर तरह की मुसीबत से निपटने के लिए सक्षम है .
संतोष की बात यह   है  कि भारत का चुनाव आयोग इस तरह के खतरों से सावधान है . मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि हम अपने डेटा को पूरी तरह से सुरक्षित  रखने में पूरी तरह से सफल रहे हैं क्योंकि हमको मालूम है कैम्ब्रिज एनालिटिका  जैसे संगठन गोपनीय  आंकड़े चुराकर लाभ में लिए उसको बेचने के लिए हरदम प्रयास करते रहते हैं .

चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है . मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कालेधन को रोकने के लिए कुछ और  कानून बनाने पड़ेंगे क्योंकि अभी जो कानून हैं , उनके सहारे काले धन पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सकता .  अपने  देश में  चुनाव बहुत ही  खर्चीले  हो गये हैं और यह  सभी के लिए चिंता का विषय है .चुनावों  में जनमत प्रभावित करने के लिए भी धन का दुरुपयोग हो रहा है और चुनाव आयोग इस समस्या से पूरी तरह से वाकिफ है .  चुनावी चंदे को लेकर भी चुनाव आयोग चिंतित है . कई बार तो  उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए सरकारी धन की व्यवस्था की बात की जाती है लेकिन जब चौतरफा धन का इस्तेमाल करने के अवसर  रहेंगे तो  सरकारी पैसे को राजनीतिक पार्टियों या उम्मीदवारों के प्रचार के लिए देने का कोई औचित्य नहीं  है .. चुनाव सुधार  अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब बहुत ही  ज़रूरी ही गए  हैं .  
लोकतंत्र के सामने  एक बहुत बड़ी चुनौती संचार क्रान्ति के बाद आ गयी है . जहां सूचना अब कहीं भी कभी भी उपलब्ध है ,वहीं यह भी देखा  जा रहा है कि सूचना को तोड़ मरोड़ कर जन भावनाएं भड़काने के लिए भी  इस्तेमाल किया जा  रहा  है . मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि प्रेस की आजादी के नाम पर बहुत सारे मीडिया  संगठन  दृष्टिकोण को समाचार बनाकर पेश कर रहे  हैं . आज जो मीडिया का स्पेस है वह बहुत ही संकुचित हो गया  है . मुख्य चुनाव आयुक्त ने मीडिया के स्वामित्व के सवाल पर भी चर्चा की और कहा कि हमारी प्रेस की आज़ादी की अवधारणा को मीडिया की मिलकियत  के सवाल के संदर्भ में देखने की ज़रूरत है .  आज सारे मीडिया को एक ही तरह से समझने की ज़रूरत  नहीं है . मीडिया में जो  असली तत्व हैं उनको तो प्रेस की आज़ादी की श्रेणी में रखा जाना  चाहिए लेकिन मीडिया के जो तरह तरह के आयाम हैं  उनसे संभल कर रहने की ज़रूरत है .मुख्य चुनाव  आयुक्त ने वोटर लिस्ट के बारे में एक बात कही जो सभी जानते हैं .   बहुत सारे ऐसे लोग  भी  हैं जो एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में नाम लिखवा लेते हैं.  इस तरह की वोटर लिस्ट चुनाव प्रक्रिया में बाधा पंहुचाती है . उन्होंने बंगलूरू का  उदाहरण दिया कि वहां मतदान का प्रतिशत बहुत कम था . आयोग ने जांच किया तो पता लगा  कि ऐसे बहुत सारे लोग थे जिनके नाम तो वोटर लिस्ट में मौजूद थे  लेकिन वे बहुत पहले शहर छोड़कर जा चुके थे . इस तरह की  समस्याओं को भी चुनाव सुधार के बुनियादी सवालों के साथ जोड़कर देखना होगा .
अपना लोकतंत्र सजीव  है , सक्रिय है और उर्ध्वगामी है लेकिन अब वक़्त आ  गया है कि चुनाव सुधारों को  गंभीरता से लिया जाए और अपने लोकतंत्र पर भावी पीढ़ियों के लिए एक मज़बूत विरासत के रूप में गर्व करने के अवसर दिए जाएँ .

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