शेष नारायण सिंह
उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के रहने वाले,विवेक तिवारी को उत्तर प्रदेश
पुलिस के एक कांस्टेबल ने गोली मार दी और
उनकी मौत हो गयी. विवेक २८-२९ की रात में
अपने दफ्तर में काम करने वाली एक महिला के साथ लखनऊ के गोमतीनगर में कार से जा रहे
थे .पुलिस ने दावा किया है कि कांस्टेबल ने उनको रोकने की कोशिश की ,वे रुके नहीं और पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली मार दी. जब बहुत ही चर्चा हो गयी तो राज्य के मुख्यमंत्री
योगी आदित्य नाथ ने कहा कि यह घटना एनकाउंटर नहीं है। अगर जरुरत पड़ी को तो इस
घटना की सीबीआई जांच होगी। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया जो दोषी थे वो गिरफ्तार
हो चुके हैं। मुख्यमंत्री के इस बयान के पहले उत्तर प्रदेश पुलिस के
सभी आला अधिकारी उस कांस्टेबल के काम को
सही ठहरा रहे थे जिसने विवेक तिवारी की ह्त्या की . एक बड़े अखबार को राज्य के पुलिस
महानिदेशक ने बताया कि ," लखनऊ में कल रात एक घटना हुई है। उस घटना में विवेक
तिवारी नाम के व्यक्ति की मौत हुई है। विवेक तिवारी के साथ उनकी एक महिला अधिकारी भी
थी। दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे। एक जगह जब गाड़ी खड़ी थी तो यूपी पुलिस के
दो सिपाही चेतक पर खड़े थे, उन्होंने गाड़ी को इंटरसेप्ट
किया और कहा कि गाड़ी से बाहर आइए उन्होंने गाड़ी से निकलने की मना कर दिया और
गाड़ी को चेतक पर चढ़ाने की कोशिश की ।" एक अन्य पुलिस अधिकारी ने विवेक के
साथ महिला की मौजूदगी को विवेक तिवारी के चरित्रहनन के लिए भी प्रयोग कर दिया
लेकिन जब मुख्यमंत्री का बयान आ गया तो सब बदल गया . जिस एडीजी ने चरित्रहनन की
कोशिश की थी उसने साफ़ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं थी .पुलिस महानिदेशक ने कहा
की," पुलिस कांस्टेबल ने जो किया है वह अपराध है. हत्या का मुक़दमा कायम कर
लिया गया है और अब तो सिपाहियों को बर्खास्त भी कर दिया गया है . उनके ऊपर बाकायदा दफा ३०२ के तहत केस
चलेगा. " जो पुलिस आलाकमान अब तक पुलिस के सेल्फ डिफेन्स की कहानी बता रही थी
अब वही कह रही है कि सेल्फ डिफेन्स में ह्त्या करने का अधिकार पुलिस को नहीं मिल
जाता ." लेकिन यह सब तब हुआ जब मुख्यमंत्री ने कडा रुख अपनाया और सी बी आई जाँच
की संभावना की बात कर दी .
पुलिस ने
लीपापोती की सारी तैयारी कर ली थी. विवेक तिवारी के साथ कार में जो लडकी थी उसको
अपने कब्जे में कर रखा था. बाद में मीडिया को उस लडकी ने बताया कि विवेक को पुलिस
ने गोली मारी लेकिन एफ आई आर में जो लिखवा गया वह
अलग है. एफ आई आर में लिखा है कि उसने गोली चलने की आवाज़ सुनी उसके बाद कार कंट्रोल के बाहर हो गयी और टकरा गयी . विवेक के
सर से बहुत खून निकला . लेकिन मीडिया और पूरे सोशल मीडिया में हल्ला मच जाने के
बाद अब सब कुछ बदल गया है . लगता है कि
पुलिस की आबरू बचाने के लिए उन दो पुलिस कार्मियों की कुर्बानी पेश कर दी गयी है .
दोनों बर्खास्त कर दिए गए हैं और सबसे छोटे पद पर हैं इसलिए उनकी बहाली की परवाह
किसी को नहीं रहेगी लेकिन बुनियादी सवाल
पर बहस टालने की कोशिश शुरू हो गयी है . जिस पुलिस वाले ने
विवेक तिवारी की ह्त्या की उसके साथी पुलिस वाले उसको बहुत ही सम्मान के साथ मीडिया के सामने लाये और उसका बयान करवाया . उसने कहा कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई जिससे मकतूल की मौत हो
गयी . एफ आई आर तो कमज़ोर कर ही दी गयी है
और अब अगर पुलिस का यही रवैया रहा तो इस
बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस के हत्यारे सिपाही को बाइज्ज़त बरी करा
लिया दिया जाएगा .
बुनियादी
सवाल यह है कि पुलिस में बन्दूक की
संस्कृति क्यों शुरू हुयी और उसका अंत कहाँ होगा. उत्तर प्रदेश पुलिस में मेरे एक
एक बालसखा बहुत बड़े अधिकारी पद से रिटायर
हुए . वे कहा करते थे कि उत्तर
प्रदेश पुलिस के थानेदार से वे डर कर रहते थे क्योंकि बाद में तो उसके खिलाफ सख्त से सख्त
एक्शन लिया जा सकता है लेकिन मौके पर वह किसी की भी सेवा लाठियों से कर सकता है
लेकिन यह बीस साल पहले की बात है . अब तो दरोगा
की बात छोड़िये , पुलिस का कांस्टेबल किसी को भी लाठी नहीं गोली मार सकता है . उत्तर प्रदेश
पुलिस में आई जी पद से रिटायर हुए विजय शंकर सिंह ने लिखा है
कि इनकाउंटर की जो परिपाटी शुरू हुयी है वह बहुत ही खतरनाक है .वे कहते हैं कि पुलिस की शब्दावली में एक नया शब्द, एनकाउंटर
स्पेशलिस्ट ,जुड़ गया है. कुछ मुठभेड़ों की
वास्तविकता जानने के बाद, यह शब्द हत्या का अपराध करने की मानसिकता का पर्याय बन गया है। अगर सभी
मुठभेड़ों की जांच सीआईडी से हो जाय तो बहुत कम पुलिस मुठभेड़ें कानूनन और सत्य
साबित होंगी अन्यथा अधिकतर मुठभेड़ें हत्या में तब्दील हों जाएंगी और जो भी पुलिस
कर्मी इनमें लिप्त होंगे वे जेल में हत्या के अपराध में या तो सज़ा काट रहे होंगे
या अदालतों में बहैसियत मुल्ज़िम ट्रायल झेल रहे होंगे । जब पुलिस के एसआई, इंस्पेक्टर ऐसी मुठभेड़ों में जेल में होते हैं तो उनकी पीठ थपथपाने वाले
अफसर और उनकी विरुदावली गाने वाले चौराहे के अड्डेबाज़ नेता, इनमें
से एक भी मदद करने सामने नहीं आता है। पुलिस का काम हत्या रोकना है, हत्यारे को पकड़ना है, सुबूत इकट्ठा कर अदालत में
देना है, न कि फ़र्ज़ी कहानी गढ़ कर के किसी को गोली मार देना
है। "
देश और
समाज का दुर्भाग्य है कि आज पुलिस का यह गन कल्चर एक सच्चाई बन चुका है . सरकारों ने अगर
फ़ौरन इस पर काबू नहीं पा लिया तो देश की स्थिति बन्दूक की संस्कृति की गुलाम बन
जायेगी और कोई भी सुरक्षित नहीं बचेगा . उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ को स्वीकृति
प्रदान करके सरकार ने बहुत बड़ी गलती की है
. उस गलती को अगर फौरान दुरुस्त न किया गया तो बहुत देर हो जायेगी .
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