Thursday, September 27, 2018

अमरीकी जिद के चलते पेट्रोल और महंगा हो सकता है




शेष नारायण सिंह  


जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं तो अपनी हर असफलता के लिए विदेशी हाथ को ज़िम्मेदार ठहरा देती थीं और संसद में बहुत  सक्षम  सदस्य उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे . उसी तर्ज़ पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी दावा किया है कि उनकी राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा लड़ने और जीतने की इच्छा है लेकिन चीन नहीं चाहता कि वे दोबारा अमरीका के राष्ट्रपति का चुनाव जीतें . यह प्रलाप श्री ट्रंप ने किसी चंडूखाने में नहीं, संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के एक सत्र में कही. यानी डोनाल्ड ट्रंप वास्तव में विश्वास करते हैं कि चीन उनको हराना चाहता है . अपने इस बयान के एक दिन पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में  भाषण दिया था और कहा था कि इरान एक ऐसा देश है जो अराजकतामौत और तबाही के बीज बोता रहता है . अपने भाषण में उन्होंने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन,OPEC की भी निंदा की थी . उसी भाषण में उन्होंने भारत की बहुत तारीफ़ की थी और कहा था कि भारत एक स्वतंत्र समाज है और वहां की सरकार  लाखों लोगों को  ग़रीबी से बाहर निकालकर मध्यवर्ग में शामिल करने के लिए काम कर रही है .  भारत के प्रति उनकी इस मुहब्बत का कारण शायद यह है कि इरान पर दोबारा पाबंदी लगाने के उनके तुगलकी फरमान को लागू करने में भारत उनको सहयोग करने वाला  है . अमरीकी राष्ट्रपति की योजना है कि अगर ईरान उनकी बात नहीं मानता तो उसकी  अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगें . उन्होंने दुनिया भर के देशों को हिदयात दे रखी है कि नवम्बर के महीने ईरान से पेट्रोलियम पदार्थों और कच्चे तेल की खरीदारी दुनिया का कोई देश न करे . अमरीका के करीबी सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया तो पहले ही कह चुके हैं कि वे अमरीकी पाबंदी के बाद इरान से कच्चा तेल नहीं लेगें लेकिन भारत के बारे में कहा जा रहा था कि  वह ईरान से कच्चा तेल खरीदता रहेगा क्योंकि भारत में कुछ ऐसी रिफाइनरी हैं जो केवल इरानी तेल के लिए ही उपयुक्त हैं लेकिन लगता है कि भारत भी अमरीका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में आ गया है . और शायद  इसीलिये  डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र के सार्वजनिक मंच से भारत की तारीफ की . भारत में कच्चा तेल आयात करने वाली मुख्य कम्पनियां इन्डियन आयल और  भारत पेट्रोलियम  हैं. खबर है कि इन दोनों ही कंपनियों ने किसी भी मालवाहक कंपनी को नवम्बर में इरान से तेल लाने का ठेका नहीं दिया है .मंगलौर रिफाइनरी ने भी नवम्बर के लिए इरान से  ढुलाई की कोई योजना नहीं बनाई है   . ईरान से नवम्बर की खरीद के लिए आर्डर फाइनल करने के लिए अभी करीब दो हफ्ते का समय  है लेकिन आम तौर पर आख़िरी तारिख का इंतज़ार किये बिना तेल शोधक कम्पनियां अपने आर्डर फाइनल करती रही हैं . अगर भारत ने ट्रंप की बात मान ली तो ईरान के तेल निर्यात पर  बहुत ही उलटा सारा पडेगा क्योंकि इरान की प्रतिदिन की बिक्री दस लाख बैरेल से भी कम हो जायेगी. अगर इरान से आने वाला क्रूड अंतर्राष्ट्रीय  बाज़ार से गायब हो गया तो ब्रेंट क्रूड का दाम बहुत तेज़ी से बढेगा . आशंका है कि वह अस्सी डालर प्रति बैरल के मौजूदा रेट को जल्दी ही पार कर जाएगा .अगर ऐसा हुआ तो दुनिया की तेल कम्पनियां साउदी अरब संयुक्त अरब अमीरात और रूस पर लगभग पूरी तरह से निर्भर हो जायेंगीं .यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा संकेत नहीं है .

ब्लूमबर्ग के टैंकर आंकड़ों के अनुसार भारत इरानी खनिज तेल का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण आयातक है . इस साल  भारत का प्रतिदिन का इरानी आयात का औसत 577,000 बैरल का है . अभी तक इरान को उम्मीद थी कि चीन और भारत अमरीकी ब्लैकमेल में नहीं आयेंगें लेकिन भारत के कमज़ोर पड़ने की वजह से इरान पर ज़बरदस्त असर  पड़ने वाला  है . अभी चार महीने पहले भारत की विदेश मंत्री ने भरोसा दिया था कि इरान से तेल की खरीद जारी रहेगी और भारत किसी भी दबाव में नहीं आने वाला  है . लेकिन नए घटनाक्रम को देखकर लगता है कि विदेशमंत्री का बयान  राजनयिक वार्ता की बारीकी का एक नमूना मात्र था .  अमरीकी अखबार न्यू यार्क टाइम्स की खबर है कि जब करीब तीन महीने पहले अमरीकी राष्ट्रपति ने ईरान के खिलाफ पाबंदियों का ऐलान किया था तो  उन्होंने  दावा किया था कि ईरान को  इसलिए सज़ा देने की योजना बनाई गयी है कि उसकी सीरिया उर यमन में  कथित दखलन्दाजी से डोनाल्ड ट्रंप परेशान हैं . लेकिन  उनकी इस जिद का खामियाजा दुनिया की  अर्थव्यवस्था को भोगना पड़ सकता है .अगर वे अपने मंसूबे में सफल हुए तो  पेट्रोल की कीमतें बहुत बढ़ जायेंगी और अमरीकी अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान पंहुचेगा .  अगर उनकी योजना सफल न हुयी और पेट्रोलियम कम्पनियां  इरान से क्रूड आयल खरीदती रहीं तो इरान  का कुछ नहीं बिगड़ेगा और यह भी संभावना है कि  पूर्व  राष्ट्रपति बराक ओबामा से समझौते के अनुसार जिस  परमाणु कार्यक्रम को ईरान ने रोक दिया था ,उसको फिर से शुरू कर दे. अगर ऐसा हुआ तो   अपनी सख्त   छवि का प्रचार करके चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे ट्रंप को लेने के देने पड़ जायेंगें . सही बात यह  है कि अमरीका अब कच्चे तेल का निर्यातक देश है इसलिए अमरीकी  राष्ट्रपति के जिद्दी और अड़ियल रुख के कारण ज़्यादा नुकसान उन देशों का होगा  जिनके अमरीका से अच्छे सम्बन्ध हैं और जो   डोनाल्ड  ट्रंप के दबाव में ईरान से तेल लेना बंद करके अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित   बनाये रखने की कोशिश करेंगें .
अमरीकी पाबंदियों के कारण ईरान को भी भारी नुक्सान होने वाला है . अभी पन्द्रह बीस साल पहले ईरान की हैसियत यह थी कि वह अपने क्रूड आयल की कीमतों में उतार चढ़ाव करके यूरोप और एशिया के देशों की बांह उमेठ सकता था लेकिन अब वह बात नहीं  है . टेक्नालोजी के विकास की दौड़ में ईरान बहुत पीछे रह गया है . अब ईरान का वह स्वर्ण युग ख़त्म हो चुका है .  इस बीच अमरीका तो क्रूड का  निर्यातक हो ही गया है, कनाडा और ब्राजील भी अब कच्चे तेल के निर्यातक देश बन गए हैं. रूस, साउदी अरब और  खाड़ी के उसके सहयोगी अपना अपना उत्पादन बढ़ा कर ईरान के तेल की कमी से होने वाली मूल्यवृद्धि को संतुलित करने का प्रयास करेंगे . साउदी अरब  और उसके मित्र देश तो ईरान पर प्रतिबन्ध  लगने से खुशी मना रहे हैं और अपनी निर्यात क्षमता बढ़ाकर तेल की कमी को पूरा करने की तैयारी में जुट गए हैं . दक्षिण कोरिया ने ईरान से खरीद बंद करने की अपनी योजना को सार्वजनिक कर दिया है. फ्रांस, जापान ,स्पेन, यूनान और इटली ने भी ईरान से कारोबार न करने का मन बना लिया है .   फाउंडेशन फार डिफेंस आफ डेमोक्रेसीज़ नाम के अमरीकी संगठन ने दावा किया है कि  पेट्रोलियम का कारोबार करने वाली ७१ विदेशी कंपनियों ने ईरान से व्यापार बंद करने के फैसला कर लिया है  जबकि १४२ कम्पनियां अभी दुविधा में हैं . अगर यह भी  अलग हो गयीं तो ईरान को भारी नुक्सान होगा .
ऐसा लगता है कि ईरान पर पाबंदी लगने पर अमरीकी अर्थव्यवस्था में पेट्रोलियम पदार्थों की कमी तो नहीं पड़ेगी लेकिन भारत जैसे देशों को बड़ा नुक्सान होगा. जहाँ तक भारत का सवाल है .यहाँ चुनावी साल है और पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती कीमतें चुनावी मुद्दा बन चुकी हैं . ऐसी स्थिति में अगर ईरान से आपूर्ति रुकी तो अमरीका के सहयोगी देशों,साउदी अरब आदि  से तेल की ज़रूरत तो पूरी होगी लेकिन कीमतें निश्चित रूप से बढ़ जायेंगी और उसके  कारण उपभोक्ता परेशान होगा और सरकारी पार्टी के लिए बहुत  ही मुश्किल पेश आयेगी .लेकिन अब यह तय है कि भारत ईरान से तेल लेना बंद करने में संकोच नहीं करेगा . देश की बड़ी तेल शोधक   कंपनी  रिलायंस ने साफ कह दिया है कि जब भी अमरीकी प्रतिबन्ध  लागू  होंगे वह ईरान से क्रूड लेना बंद कर देगा और स्टेट बैंक  का कहना है कि प्रतिबंध लागू होने के बाद ईरान से  आने वाले सामान का भुगतान नहीं किया जाएगा  .  
एक दूसरी संभावना भी है और वह यह कि अमरीकी  पाबंदी से ईरान की अर्थव्यवस्था तबाह नहीं तो नहीं होगी लेकिन  चीन पर उसकी निर्भरता बहुत बढ़ जायेगी .सबको मालूम है कि चीन पर किसी भी अमरीकी धौंस का असर नहीं पडेगा  . यह भी हो सकता है कि अमरीकी दबाव में जो कम्पनियां ईरान से कारोबार करना बंद करें उस काम को  चीन और रूस की कंपनियां पकड़ लें  और डोनाल्ड ट्रंप के चक्कर में ईरान का तो कुछ न बिगड़े लेकिन अमरीका और उसके  सहयोगियों को भारी नुक्सान हो जाए  .ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने दावा किया है कि क्रूड के निर्यात का उनके देश का काम    रोका नहीं जायेगा, वह जारी रहेगा .. चीन ईरान से रोज़ ही पांच लाख बैरल क्रूड का आयात करता है .वह और भी बढ़ सकता है . अमरीकी जिद के चलते फ्रांस की कमपनियों ने कुछ ईरानी तेल क्षेत्रों को छोड़ दिया है नतीजा यह हुआ कि  चीन की कंपनी CNPC ने वह काम ले लिया है .  यह ट्रेंड जारी रह सकता है. चीन और रूस मिलकर अमरीका को मनमानी करने से रोक तो सकते हैं लेकिन अमरीका  के मित्र देशों की अर्थव्यवस्था को नुक्सान होने से कोई नहीं बचा सकता .

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