Wednesday, October 8, 2014

कांग्रेस की हताशा के चलते महाराष्ट्र में बीजेपी को बढ़त



शेष नारायण सिंह
महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के पहले और लोकसभा चुनाव २०१४  के तीन महीने बाद राज्य में साफ़ नज़र आ रहा था कि वहां अब लोग नरेंद्र मोदी को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं जैसा लोकसभा चुनाव के समय ले रहे थे . कांग्रेस एन और सी पी मुगालते के शिकार हो गए .गठबंधन तोड़ने पर आमादा हो गए और जब गठबंधन टूट गया तो कांग्रेस ने हार मान ली, बीजेपी को उसी तरह से वाक् ओवर देने का मन बना लिया जैसे लोकसभा चुनाव के दौरान बनाया था नतीजा यह हुआ कि    महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव एक बहुत ही दिलचस्प दौर में पंहुंच गया है. शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद  लगने लगा था कि कांग्रेस और एन सी पी को लाभ होगा लेकिन वह गठबंधन भी लगभग साथ साथ ही टूट गया. बीजेपी की हालत कमज़ोर हो गयी लेकिन पार्टी ने तुरंत अपने सबसे बड़े आकर्षण और प्रचारक नरेंद्र मोदी को प्रचार कार्य में उतार दिया . अब नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र में धुआंधार प्रचार कर रहे हैं और कई बार तो ऐसा लगता है कि वे प्रधानमंत्री नहीं ,अपनी पार्टी के मुख्य प्रचारक ही हैं और उसके सिवा कुछ नहीं हैं . उनके प्रचार का असर पड़ा है और लोकसभा चुनाव में मोदी के पक्ष में जो माहौल बना था उसको कैश करने का अभियान तेज़ी से चल पड़ा है.  अगर बीजेपी के प्रवक्ता और सेफोलाजिस्ट जी वी एल नरसिम्हा राव की मानें तो बीजेपी को अपने बल बूते पर महाराष्ट्र में स्पष्ट बहुमत मिल रहा है .
शिवसेना से रिश्ता खत्म हो जाने के बाद बीजेपी के सामने . सभी सीटों पर उम्मीदवार लड़ाने की भी दिक्कत थी . शिवसेना बीजेपी गठबंधन में जो  छोटी पार्टियां थीं, उनको बीजेपी ने शिवसेना के साथ नहीं जाने दिया ,अपने साथ ही रखा .उनको करीब ३१ सीटें देकर बीजेपी ने २५७ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया .  जी वी एल नरसिम्हा राव का  दावा है कि उनके गठबंधन को १५२ सीटें मिलेगीं . हालांकि गठबंधन में शामिल अन्य छोटी पार्टियों की राजनीतिक हैस्किया जीतने की नहीं हैं लेकिन वे तीनों पार्टियां अगर अपनी जातियों के वोट बीजेपी के पक्ष में  ट्रांसफर कर सकीं तो बीजेपी की जीत का संभावना बढ़ जायेगी .
बीजेपी का दावा है कि कांग्रेस और शिवसेना में दूसरे नंबर पर आने के लिए मुकाबला  है . बीजेपी के प्रवक्ता , जी वी एल नरसिम्हा राव ,जो चुनाव सर्वे के जानकार भी हैं , बताते हैं कि कांग्रेस को ४४ और शिवसेना को ३८ सीटें मिलेगीं . महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और एन सी पी चौथे नंबर पर आने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं . जानकार बता रहे हैं कि महाराष्ट्र में जिस पार्टी को भी २७ प्रतिशत  सीटें मिलेगीं वह स्पष्ट बहुमत पाने में सफल हो जाएगा. बीजेपी के सेफोलाजिस्ट का दावा है कि उनकी पार्टी की अगुवाई वाले गठबंधन को २८ प्रतिशत  वोट मिलेगा जबकि कांग्रेस को २२ प्रतिशत ,शिवसेना को १७ प्रतिशत और एन सी पी को १५ प्रतिशत वोटों से संतुष्ट होना पडेगा . महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को करीब ६ प्रतिशत वोट मिलेगें .
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन बहुत बड़ी सफलता के साथ मैदान मारने में सफल रहा था . उसी से उत्साहित हो कर बीजेपी वालों ने वहाँ शिवसेना का बड़ा भाई होने का मन बनाया लेकिन शिवसेना ने दबाव की राजनीति का विरोध किया और गठबंधन ही तोड़ दिया . नई राजनीतिक सच्चाई को देखकर लगता है कि १९ अक्टूबर को जब नतीजे आयेगें तो  शिवसेना को अपने फैसले के लिए अफ़सोस होगा . इस बात में दो राय नहीं है कि  महाराष्ट्र के ग्रामीण  इलाकों में मोदी के पक्ष में माहौल है और मुंबई, थाणे , नवी मुंबई और पालघर में उत्तर भारतीय मतदाता भी शिवसेना से अलग होने के बाद बीजेपी की तरफ खिंच रहे हैं . बीजेपी के पास कार्यकर्ताओं की कमी थी लेकिन अब आर एस एस ने महाराष्ट्र में कार्यकर्ताओं की फौज झोंक दिया है  जिसके कारण कार्यकर्ताओं की कमी की बात भी खत्म हो गयी है . ऐसे माहौल में जी वी एल नरसिम्हा राव के सर्वे  पर विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण हैं . हालांकि यह भी सच है कि उनकी बहुत सारी भविष्यवाणियां पिछले कई वर्षों से गलत साबित होती रहीं हैं लेकिन आज कांग्रेस के अंदर जिस तरह से हताशा का माहौल है , वह लग्न्हाग हार मान चुकी है और किसी भी तरह से बीजेपी को चुनौती  देने के लिए तैयार नहीं हैं . इस कठोर सच्चाई के मद्दे नज़र लगता है कि महाराष्ट्र में बीजेपी की खासी बढ़त है .यह सर्वे १ और ६ अक्टूबर के बीच किए गया और इसमें ३९ विधासभा क्षेत्रों में ३२८० लोगों से सवाल पूछे गए. 

Wednesday, October 1, 2014

महात्मा गांधी के स्वराज्य में सत्य और अहिंसा स्थाई भाव थे


शेष नारायण सिंह 

अपनी अमरीका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाया।  महात्मा गांधी का दुनिया भर में सम्मान है।  आज उनकी जन्मतिथि है जिसे  नई सरकार ने बहुत बड़े उत्सव  के रूप में मनाने का फैसला किया है।  सारे सरकारी अफसर और मंत्री महात्मा गांधी की याद में सफाई अभियान शुरू करेगें, झाड़ू लेकर फोटो खिंचाएगें ।  अमरीका में अपनी सबसे बड़ी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल  किया था कि  जिन महात्मा गांधी ने देश को आज़ादी दी ,उन  गांधी को हम कुछ नहीं दे रहे हैं।  उन्होंने वहीं ऐलान किया था की वह महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर एक स्वच्छ भारत देगें। यह बहुत खुशी की बात है कि  कांग्रेस  पार्टी के नेता रह चुके महात्मा गांधी को बीजेपी सरकार भी वही सम्मान दे रही है जो किसी राष्ट्रीय नेता को दिया जाना चाहिए।  प्रधानमंत्री ने अमरीका में घोषणा की थी कि  वे छोटे छोटे आदमियों के लिए बहुत बड़े  काम करना चाहते हैं।  महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन के प्रति वर्तमान प्रधानमंत्री की यह सोच अहम है।  सरदार पटेल को  वे पहले से ही बहुत सम्मान करते हैं।  उम्मीद की जानी चाहिए कि  वे महत्मा गांधी के राजनीतिक वारिस जवाहरलाल नेहरू को भी वही सम्मान देगें जो आज़ादी की लड़ाई के शामिल रहे कांग्रेस के महान नेताओं के  प्रति आजकल करते नज़र  रहे हैं। महात्मा गांधी ने एक बहुत ही काम पृष्ठों वाली किताब , हिन्द स्वराज १९०९ में  लिखी थी जो हमारी आज़ादी की लड़ाई का बुनियादी दस्तावेज़ माना जाता है।   जयंती पर उसी किताब के बारे में कुछ मूलभूत मुद्दों पर चर्चा करना समीचीन होगा. 

 गुजरात के सौराष्ट्र इलाक़े के एक उच्चवर्गीय परिवार में उनका जन्म हुआ था और परिवार की महत्वाकांक्षाएं भी वही थीं जो तत्कालीन गुजरात के संपन्न परिवारों में होती थीं। वकालत की शिक्षा के लिए इंगलैंड गए और जब लौटकर आए तो अच्छे पैसे की उम्मीद में घर वालों ने दक्षिण अफ्रीका में बसे गुजराती व्यापारियों का मुकदमा लडऩे के लिए भेज दिया। अब तक उनकी जिंदगी में सब कुछ सामान्य था जैसा एक महत्वाकांक्षी परिवार के होनहार नौजवान के मामले में होता है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसकी वजह से सब कुछ बदल गया। एटार्नी एम.के. गांधी की अजेय यात्रा की शुरूआत हुई और उनका पाथेय था सत्याग्रह। सत्याग्रह के इस महान योद्घा ने निहत्थे ही अपनी यात्रा शुरू की। इस यात्रा में उनके जीवन में बहुत सारे मुकाम आए। गांधीजी का हर पड़ाव भावी इतिहास को दिशा देने की क्षमता रखता है।
चालीस साल की उम्र में मोहनदास करमचंद गांधी ने 'हिंद स्वराज' की रचना की। 1909 में लिखे गए इस बीजक में भारत के भविष्य को संवारने के सारे मंत्र निहित हैं। अपनी रचना के सौ साल बाद भी यह उतना ही उपयोगी है जितना कि आजादी की लड़ाई के दौरान था। इसी किताब में महात्मा गांधी ने अपनी बाकी जिंदगी की योजना को सूत्र रूप में लिख दिया था। उनका उद्देश्य सिर्फ देश की सेवा करने का और सत्य की खोज करने का था। उन्होंने भूमिका में ही लिख दिया था कि अगर उनके विचार गलत साबित हों, तो उन्हें पकड़ कर रखना जरूरी नहीं है। लेकिन अगर वे सच साबित हों तो दूसरे लोग भी उनके मुताबिक आचरण करें। उनकी भावना थी कि ऐसा करना देश के भले के लिए होगा।
अपने प्रकाशन के समय से ही हिंद स्वराज की देश निर्माण और सामाजिक उत्थान के कार्यकर्ताओं के लिए एक बीजक की तरह इस्तेमाल हो रही है। इसमें बताए गए सिद्घांतों को विकसित करके ही 1920 और 1930 के स्वतंत्रता के आंदोलनों का संचालन किया गया। 1921 में यह सिद्घांत सफल नहीं हुए थे लेकिन 1930 में पूरी तरह सफल रहे। हिंद स्वराज के आलोचक भी बहुत सारे थे। उनमें सबसे आदरणीय नाम गोपाल कृष्ण गोखले का है। गोखले जी 1912 में जब दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्होंने मूल गुजराती किताब का अंग्रेजी अनुवाद देखा था। उन्हें उसका मजमून इतना अनगढ़ लगा कि उन्होंने भविष्यवाणी की कि गांधी जी एक साल भारत में रहने के बाद खुद ही उस पुस्तक का नाश कर देंगे। महादेव भाई देसाई ने लिखा है कि गोखले जी की वह भविष्यवाणी सही नहीं निकली। 1921 में किताब फिर छपी और महात्मागांधी ने पुस्तक के बारे में लिखा कि "वह द्वेष धर्म की जगह प्रेम धर्म सिखाती है, हिंसा की जगह आत्म बलिदान को रखती है, पशुबल से टक्कर लेने के लिए आत्मबल को खड़ा करती है। उसमें से मैंने सिर्फ एक शब्द रद्द किया है। उसे छोड़कर कुछ भी फेरबदल नहीं किया है। यह किताब 1909 में लिखी गई थी। इसमें जो मैंने मान्यता प्रकट की है, वह आज पहले से ज्यादा मजबूत बनी है।"
महादेव भाई देसाई ने किताब की 1938 की भूमिका में लिखा है कि '1938 में भी गांधी जी को कुछ जगहों पर भाषा बदलने के सिवा और कुछ फेरबदल करने जैसा नहीं लगाÓ। हिंद स्वराज एक ऐसे ईमानदार व्यक्ति की शुरुआती रचना है जिसे आगे चलकर भारत की आजादी को सुनिश्चित करना था और सत्य और अहिंसा जैसे दो औजार मानवता को देना था जो भविष्य की सभ्यताओं को संभाल सकेंगे। किताब की 1921 की प्रस्तावना में महात्मा गांधी ने साफ लिख दिया था कि 'ऐसा न मान लें कि इस किताब में जिस स्वराज की तस्वीर मैंने खड़ी की है, वैसा स्वराज्य कायम करने के लिए मेरी कोशिशें चल रही हैं, मैं जानता हूं कि अभी हिंदुस्तान उसके लिए तैयार नहीं है।..... लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि आज की मेरी सामूहिक प्रवृत्ति का ध्येय तो हिंदुस्तान की प्रजा की इच्छा के मुताबिक पालियामेंटरी ढंग का स्वराज्य पाना है।"
इसका मतलब यह हुआ कि 1921 तक महात्मागांधी इस बात के लिए मन बना चुके थे कि भारत को संसदीय ढंग का स्वराज्य हासिल करना है। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि आजकल देश में एक नई तरह की तानाशाही सोच के कुछ राजनेता यह साबित करने के चक्कर में हैं कि महात्मा गांधी तो संसदीय जनतंत्र की अवधारणा के खिलाफ थे। इसमें दो राय नहीं कि 1909 वाली किताब में महात्मा गांधी ने ब्रिटेन की पार्लियामेंट की बांझ और बेसवा कहा था (हिंद स्वराज पृष्ठ 13)। लेकिन यह संदर्भ ब्रिटेन की पार्लियामेंट के उस वक्त के नकारापन के हवाले से कहा गया था। बाद के पृष्ठों में पार्लियामेंट के असली कर्तव्य के बारे में बात करके महात्मा जी ने बात को सही परिप्रेक्ष्य में रख दिया था और 1921 में तो साफ कह दिया था कि उनका प्रयास संसदीय लोकतंत्र की तर्ज पर आजादी हासिल करने का है। यहां महात्मा गांधी के 30 अप्रैल 1933 के हरिजन बंधु के अंक में लिखे गए लेख का उल्लेख करना जरूरी है। लिखा है, ''सत्य की अपनी खोज में मैंने बहुत से विचारों को छोड़ा है और अनेक नई बातें सीखा भी हूं। उमर में भले ही मैं बूढ़ा हो गया हूं, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता कि मेरा आतंरिक विकास होना बंद हो गया है।.... इसलिए जब किसी पाठक को मेरे दो लेखों में विरोध जैसा लगे, तब अगर उसे मेरी समझदारी में विश्वास हो तो वह एक ही विषय पर लिखे हुए दो लेखों में से मेरे बाद के लेख को प्रमाणभूत माने।" इसका मतलब यह हुआ कि महात्मा जी ने अपने विचार में किसी सांचाबद्घ सोच को स्थान देने की सारी संभावनाओं को शुरू में ही समाप्त कर दिया था।
उन्होंने सुनिश्चित कर लिया था कि उनका दर्शन एक सतत विकासमान विचार है और उसे हमेशा मानवता के हित में संदर्भ के साथ विकसित किया जाता रहेगा।
महात्मा गांधी के पूरे दर्शन में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। सत्य के प्रति आग्रह और अहिंसा में पूर्ण विश्वास। चौरी चौरा की हिंसक घटनाओं के बाद गांधी ने असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया था। इस फैसले का विरोध हर स्तर पर हुआ लेकिन गांधी जी किसी भी कीमत पर अपने आंदोलन को हिंसक नहीं होने देना चाहते थें। उनका कहना था कि अनुचित साधन का इस्तेमाल करके जो कुछ भी हासिल होगा, वह सही नहीं है। महात्मा गांधी के दर्शन में साधन की पवित्रता को बहुत महत्व दिया गया है और यहां हिंद स्वराज का स्थाई भाव है। लिखते हैं कि अगर कोई यह कहता है कि साध्य और साधन के बीच में कोई संबंध नहीं है तो यह बहुत बड़ी भूल है। यह तो धतूरे का पौधा लगाकर मोगरे के फूल की इच्छा करने जैसा हुआ। हिंद स्वराज में लिखा है कि साधन बीज है और साध्य पेड़ है इसलिए जितना संबंध बीज और पेड़ के बीच में है, उतना ही साधन और साध्य के बीच में है। हिंद स्वराज में गांधी जी ने साधन की पवित्रता को बहुत ही विस्तार से समझाया है। उनका हर काम जीवन भर इसी बुनियादी सोच पर चलता रहा है और बिना खडूग, बिना ढाल भारत की आजादी को सुनिश्चित करने में सफल रहे।
हिंद स्वराज में महात्मा गांधी ने भारत की भावी राजनीति की बुनियाद के रूप में हिंदू और मुसलमान की एकता को स्थापित कर दिया था। उन्होंने साफ कह दिया कि, ''अगर हिंदू माने कि सारा हिंदुस्तान सिर्फ हिंदुओं से भरा होना चाहिए, तो यह एक निरा सपना है। मुसलमान अगर ऐसा मानें कि उसमें सिर्फ मुसलमान ही रहें तो उसे भी सपना ही समझिए।.... मुझे झगड़ा न करना हो, तो मुसलमान क्या करेगा? और मुसलमान को झगड़ा न करना हो, तो मैं क्या कर सकता हूं? हवा में हाथ उठाने वाले का हाथ उखड़ जाता है। सब अपने धर्म का स्वरूप समझकर उससे चिपके रहें और शास्त्रियों व मुल्लाओं को बीच में न आने दें, तो झगड़े का मुंह हमेशा के लिए काला रहेगा।ÓÓ (हिंद स्वराज, पृष्ठ 31 और 35) यानी अगर स्वार्थी तत्वों की बात न मानकर इस देश के हिंदू मुसलमान अपने धर्म की मूल भावनाओं को समझें और पालन करें तो आज भी देश में अमन चैन कायम रह सकता है और प्रगति का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
इस तरह हम देखते है कि आज से ठीक सौ वर्ष पहले राजनीतिक और सामाजिक आचरण का जो बीजक महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज के रूप में लिखा था, वह आने वाली सभ्यताओं को अमन चैन की जिंदगी जीने की प्रेरणा देता रहेगा।