शेष नारायण सिंह
भारत और अमरीका के बीच दोस्ती बढ़ रही है . दोस्ती बढ़ने का कारण एक ही है . भारत और अमरीका चीन की बढ़ती ताक़त से चिंता में हैं . भारत के पड़ोस में चीन का प्रभाव रोज़ ही बढ़ रहा है . दक्षिण एशिया के कई देशों में चीन ने बंदरगाह बनाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है . नेपाल भारत का पुराना और पारंपरिक दोस्त हुआ करता था लेकिन अब वहां भी ऐसी विचारधारा की सरकार बन गयी है जिसके बाद नेपाल की चीन से दोस्ती बढ़ गयी है .मालदीव एक ऐसा देश था जो भारत का बहुत ही अपना माना जाता था , वहां से भी जो ख़बरें आ रही हैं उसके अनुसार अब मालदीव भी चीन का ज़्यादा करीबी हो गया है. बंगलादेश और भूटान से भारत के अच्छे सम्बन्ध अभी भी बने हुए हैं लेकिन वे भी ऐलानियाँ चीन के खिलाफ भारत के साथ नहीं आयेंगे. डोकलाम विवाद पर भूटान की तरफ से कुछ एडजस्टमेंट के संकेत पहले से ही मिल चुके हैं . पाकिस्तान अब चीन का सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गया है . कश्मीर में जिस हिस्से पर पाकिस्तान का गैर कानूनी क़ब्ज़ा है , उसमें उसने चीन को सड़क बनाने की अनुमति देकर भारत को कमज़ोर करने की कोशिश की है. पाकिस्तान के कब्जे वाले बलोचिस्तान में चीन बहुत बड़ा बंदरगाह बना रहा है . पाकिस्तान और मालदीव में बन रहे चीनी बंदरगाह घोषित रूप से व्यापारिक उद्देश्य से बनाए जा रहे हैं लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो उनको सैनिक इस्तेमाल में लेने से कौन रोक सकता है . जिन देशों में भी चीन के बंदरगाह बन रहे हैं उनको उसने बहुत ही ज़्यादा क़र्ज़ दे रखा है . अफ्रीका के ज्यादातर देशों में भी चीन के बहुत सारे प्रोजेक्ट हैं . कुछ देशों की तो पूरी अर्थव्यवस्था ही चीन की मदद से चल रही है . रवांडा आदि कुछ ऐसे देश हैं जिनकी सरकार के बहुत से दफ्तर तक चीन द्वारा बनाई हुयी और चीन की मालिकाना अधिकार वाली इमारतों में है . आज चीन हिन्द महासागर क्षेत्र के बहुत सारे देशों को आर्थिक सहायता देकर उनको अपने प्रभाव क्षेत्र में ले चुका है .
भारत से चीन के रिश्ते १९६२ के युद्ध के बाद बहुत ज़्यादा बिगड़ गए थे. १९८८ में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व के समय थोड़ा बहुत आवाजाही शुरू हुई लेकिन अभी भी दोस्ती के सम्बन्ध नहीं हैं . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार चीन की यात्रा आदि करके रिश्तों को सुधारने की कोशिश की है लेकिन दो देशों के बीच रिश्ते निजी संबंधों से नहीं सुधरते ,वहां तो सभी देश अपने अपने राष्ट्रहित के हिसाब से काम करते हैं . एशिया प्रशांत और हिन्द महासगार के क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत तो चिंतित है ही, अमरीका में भी बहुत चिंता है . अमरीका की कोशिश है कि इस इलाके में चीन के प्रभाव पर लगाम लगाने के लिए भारत को इस्तेमाल किया जाए . उसको मालूम है कि चीन के दबदबे को कम करने के लिए भारत भी अमरीका से दोस्ती को और अधिक बढ़ाएगा , व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बढ़ाएगा और इस इलाके में अमरीकी हितों की रक्षा करने के लिए भी तैयार हो सकता है .
इसी सोच के तहत कई महीनों से भारत और अमरीका के बीच विदेशमंत्री और रक्षामंत्री के स्तर पर बातचीत की कोशिश चल रही है. दो+दो नाम से चर्चित यह बैठक पहले अमरीकी राजधानी वाशिंगटन में होने वाली थी लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं हो पाई थी . अब जाकर सितम्बर के पहले हफ्ते में यह बैठक दिल्ली में हुयी जिसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री शामिल हुए .बैठक का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सैनिक संबंधों को मजबूती देना था . समझौते पर दस्तखत भी हो गए .Communication Compatibility and Security Agreement नाम के समझौते के तहत अमरीका भारत के लिए हाईटेक संचार प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगा. अभी तक दोनों देशों के बीच रेडियो चैनलों के ज़रिये ही संवाद होता था . भारत की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने अमरीका के रक्षामंत्री और विदेशमंत्री की मौजूदगी में बताया कि रक्षा के क्षेत्र में सहयोग दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी का ऐसा मंच है जिसके सहारे आपसी सहयोग बढेगा और रक्षा समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों का मुख्य ड्राइवर बनेगा . यह भी वायदा किया गया है कि दोनों देशों की नेवी, एयर फ़ोर्स और आर्मी के बीच अगले साल दोस्ताना सैनिक आभ्यास भी किये जायेंगें .
समझौता वगैरह तो ठीक है लेकिन दोनों ही देश अभी एक दूसरे पर पूरा विश्वास नहीं कर पा रहे हैं . अमरीका को यह चिंता है कि भारत इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने में अमरीका के कितने काम आयेगा . अमरीका में इस बात से भी नाराज़गी है कि भारत की इरान से जो व्यापारिक दोस्ती है उसको कितना कम करेगा . भारत में भी अमरीका को हमेशा शक की नज़र से देखा जाता है. अमरीका की समस्या यह है कि वह जिस देश से भी दोस्ती करता है उसको अपने ऊपर पूरी तरह से निर्भर बनाना चाहता है . पड़ोस के पाकिस्तान का उदाहरण सबके सामने है . अमरीका को भारत से उम्मीद है कि उसने रूस से जो मिसाइल और हवाई डिफेंस सिस्टम की खरीद का एस-४०० नाम का सौदा किया है उसको भी ख़त्म कर दे . अमरीका की संसद ने उन देशों पर आर्थिक पाबंदी लगा रखी है जो रूस से सैनिक साजो-सामान खरीदते हैं . भारत ने साफ़ कर दिया है कि वह सौदा तो हो चुका है और उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा . ज़ाहिर है कि अमरीका को भारत से दोस्ती बढ़ाना है तो इस पाबंदी को अमरीकी राष्ट्रपति को माफ़ करना पडेगा . अमरीका की यह भी मांग है कि भारत आगे से इरान से पेट्रोलियम की खरीद बंद कर दे . अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इरान से एक परमाणु समझौता कर रखा था . डोनाल्ड ट्रम्प ने उसको रद्द कर दिया . अब नाराज़ ट्रंप इरान की आर्थिक नाकेबंदी करना चाहते हैं . उन्होंने ऐलान का रखा है कि जो इरान से कच्चा तेल खरीदेगा उस देश पर पाबंदी लगा दी जायेगी . लेकिन भारत ने साफ़ कर दिया है कि हमारे यहाँ कुछ ऐसी रिफाइनरी हैं जिनमें केवल इरान से आया हुआ तेल ही इस्तेमाल किया जा सकता है . दर असल भारत के डिप्लोमैट बहुत ही कुशल अधिकारी हैं . उनको मालूम है कि पकिस्तान से अमरीका के रिश्ते खराब होने के बाद इस इलाके में उसको भारत के अलावा और किसी का सहयोग नहीं मिलेगा . इसलिए वह अमरीका की उन कोशिशों को ज़्यादा महत्व नहीं देगा जिसके तहत अमरीका भारत को उसी तरह अपने ऊपर निर्भर करना चाहता है जिस तरह से उसने पाकिस्तान को अपने अधीन ही कर लिया था.
नई दिल्ली आने के पहले अमरीकी विदेश मंत्री पाम्पियो पांच घंटे के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद भी गए थे. अभी कुछ दिन पहले अमरीका ने ऐलान किया था कि वह पाकिस्तान को मिलने वाले ३० करोड़ डालर के सैनिक सहयोग को मुल्तवी कर रहा है. पाकिस्तान में इस बात को लेकर बहुत गुस्सा है क्योंकि इसी साल अमरीका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली एक अन्य मदद को भी रोक दिया था . वहां के नेता और पत्रकार इस बात को खूब तूल दे रहे हैं और आम तौर पर अमरीका के खिलाफ माहौल बना रहे हैं लेकिन अमरीकी विदेशमंत्री की यात्रा के दौरान इस विषय पर कोई चर्चा नहीं हुयी .अब पाकिस्तान में माना जाता है कि अमरीका एक तरह से दादागीरी करता है और अब वह भारत को ज़्यादा महत्व देता है . पाकिस्तान में अमरीका के प्रति नाराज़गी है लेकिन प्रधानमंत्री इमरान खान ने ऐसा माहौल बनाया कि विदेशमंत्री पोम्पियो की यात्रा के दौरान कोई भी अप्रिय माहौल न बनने पाए .
पाकिस्तान कभी अमरीका का एक तरह से गुलाम देश हुआ करता था लेकिन अब वह चीन के खेमे में हैं . अमरीका को इस इलाके में एक वफादार मुल्क की ज़रूरत है जो पाकिस्तान से रिश्ते खराब होने की भरपाई कर सके. भारत को बहुत ही सावधान रहना पडेगा कि कहीं वह अमरीका का वैसा दोस्त न बन जाये जैसा कभी पाकिस्तान हुआ करता है . हमारे हुक्मरानों पर लाजिम है कि वे भारत की हैसियत अमरीका के चेला जैसी न होने दें .
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