Thursday, September 10, 2020

राज्यसभा के उपसभापति पद का चुनाव : बिहार के दो समाजवादियों के बीच मुकाबला


शेष नारायण सिंह

 

राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव के लिए तलवारें खिंच गयी हैं .पूर्व उपसभापति हरिवंश को एन डी ए ने फिर अपना उम्मीदवार बना दिया है . आम तौर माना जा रहा है कि एन डी ए के स्पष्ट बहुमत के मद्देनज़र उनकी जीत  निश्चित है लेकिन विपक्ष ने बीजेपी को वाकओवर न देने के इरादे से  विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार आगे लाने का  फैसला किया है  .खबर है कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी के नेता और दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्वान प्रोफेसर  डॉ मनोज  झा को विपक्ष का साझा उमीदवार बनाया जाएगा . अगर  डॉ मनोज झा मैदान में उतरे तो 14 सितम्बर को मतदान होगा और मामला फरिया जाएगा.

 सदन के नेता थावरचंद  गहलौत  और नरेश गुजराल के साथ जाकर हरिवंश ने अपना पर्चा भर दिया  है  . उनके  प्रस्तावकों में  लोक जनशक्ति पार्टी के  सांसद राम विलास पासवान भी हैं जबकि उनके   पुत्र और पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान बिहार में जे डी ( यू ) से नाराज़ हैं और आगामी विधानसभा चुनावों में जे डी ( यू ) के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं .

245 सदस्यों के सदन में बीजेपी के 87 सदस्य हैं  जबकि एन डी ए के  सदस्यों की संख्या 113 है .245 सदस्यों के सदन में जीत के लिए एन डी ए को 123 वोट चाहिए .एन डी ए कि नेताओं को उम्मीद है कि वे आराम से 140 सदस्यों का समर्थन हासिल कर लेंगें .इस  ज़मीनी  सच्चाई की रोशनी में  बीजेपी को मालूम  है कि उसके उम्मीदवार को विपक्ष शिकस्त देने की सोच ही नहीं रहा है .विपक्ष डॉ मनोज झा को आगे करके कुछ ऐसी पार्टियों को साथ लेने की कोशिश कर रहा है जो औपचारिक रूप से एन डी ए के सदस्य नहीं है लेकिन हर मौके पर वोट बीजेपी के पक्ष में ही देते हैं . विपक्ष के निशाने पर बीजू जनता दल वाई एस आर कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसी पार्टियां हैं  . कांग्रेस के एक  नेता ने बताया कि बीजू जनता दल के नौ राज्यसभा सदस्य हैं .अगर उनको  अपने साथ लिया  जा सका तो मुकाबला बहुत ही दिलचस्प हो जाएगा  लेकिन इन पार्टियों का अब तक जो इतिहास है उसपर नज़र डालने से तस्वीर साफ़ हो जायेगी . हालांकि यह सभी पार्टियां  लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार उतारती हैं लेकिन जब किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद में वोट देने की बात आती है तो यह सब बीजेपी के  पक्ष में वोट करती हैं .

 ऐसे माहौल में लगता है कि विपक्ष के उम्मीदवार डॉ मनोज झा  को भी नतीजे मालूम है . वे विद्वान हैं , अच्छे वक्ता  हैं , टीवी की  बहसों में अपना निश्चित स्थान बना चुके  हैं लेकिन उनका हाल भी वही हो सकता है जो  1974 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में आर एस पी के नेता त्रिदिब कुमार  चौधरी का हुआ था .  त्रिदिब  दा बहुत ही गंभीर  सांसद थे , विद्वान थे, कलकत्ता विश्वविद्यालय के बहुत   ही कुशाग्रबुद्धि  छात्र रह चुके थे . वे मधु लिमये, इन्द्रजीत गुप्ता, ज्योतिर्मय बसु, अटल बिहारी वाजपेयी, पीलू मोदी , जार्ज फर्नांडीज़ जैसे दिग्गजों के उम्मीदवार थे . लेकिन सच्चाई यह थी कि कांग्रेस के पास लोकसभा और  बहुत सारी विधानसभाओं में हाहाकार बहुमत था . उन दौर  में कांग्रेस में भी बहुत ही ऊंचे स्तर के नेताओं का जमावड़ा था . विपक्ष में भी बहुत बड़े लोग थे . सत्ता पक्ष और विपक्ष ,दोनों तरफ आज़ादी की लड़ाई में शामिल नेताओं का प्रभाव था. लेकिन संख्या बल कांग्रेस के पक्ष में और  त्रिदिब कुमार चौधरी की हार निश्चित थी लेकिन उन्होंने विपक्षी  एकता के नाम पर बलि का बकरा  बनना स्वीकार कर लिया था .नतीजा वही हुआ जो होना था. विपक्ष की एकता बनी लेकिन जीत सत्तापक्ष के उम्मीदवार फखरुद्दीन अली अहमद की ही  हुई.

 

 इस बात में तो राय  नहीं है कि आज के राजनेताओं के लिहाज से मनोज झा का स्तर बहुत ऊंचा है . वे एक गंभीर शोधकर्ता के रूप में  भी जाने जाते  हैं. राजनीतिक अर्थशास्त्र , सामाजिक आन्दोलन, साम्प्रदायिक सम्बन्ध और तनाव जैसे विषयों के वे अधिकारी विद्वान हैं . उनका मुकाबला जे डी ( यू )  के  नेता हरिवंश से है .  जो एक मूर्धन्य पत्रकार होने के साथ साथ एक प्रबुद्ध बुद्धिजीवी भी हैं .सही बात यह है कि इन दोनों ही नेताओं का जन्म  राजनीति में जाने के लिए नहीं हुआ था . पत्रकार के रूप में हरिवंश  तो जीवन  भर पार्टियों के  नेताओं की नुक्ताचीनी करते रहे  हैं. दोनों समाजवादी हैं . मनोज झा लालू प्रसाद यादव के विश्वास भाजन हैं तो किसी ज़माने में हरिवंश भी लालू जी की नज़र में बहुत ही  आदरणीय  पत्रकार के रूप में  जाने जाते थे . उनका जन्म उसी  गाँव में हुआ था जहां लोकनायक जयप्रकाश नारायण का  जन्म हुआ था .यह सिताब दियारा गंगा और घाघरा के बीच टापू के शक्ल  में है

 

उन्होंने वाराणसी के  उदयप्रताप कॉलेज से  इंटर पास किया उसके बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र में एम ए किया और वहीं से पत्रकारिता में भी पढ़ाई की .बीएचयू में जब पढ़ाई के दौरान ही जेपी  आंदोलन शुरू हो गया था उसमें शामिल हो गये और इमरजेंसी लगने पर  भूमिगत हो गए . पोस्टर चिपकानेबांटने का काम भी किया. जेपी आंदोलन के दौरान छात्र राजनीति का असरपढ़नेलिखने की ऐसी आदत लगी कि उसी से प्रेरित व प्रभावित होकर पत्रकारिता में जाने का मन बना लिया .पत्रकारिता के अपने करीब चार दशक तक सक्रिय रहे .उन्होंने जयप्रकाश नारायण के अलावा गणेश  मंत्री धर्मवीर भारती जैसे पत्रकारों के साथ काम किया टाइम्स आफ इंडिया समूह में ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में चुने गए और हिंदी पत्रिका ‘धर्मयुग’ में उप-संपादक के रूप में 1977 में काम शुरू किया बाद में हिंदी पत्रिका ‘रविवार’ में सहायक संपादक रहे 1989 में रांची से प्रकाशित अखबार ‘प्रभात खबर’ में गए और वहीं रहते हुए पत्रकारिता के बहुत सारे प्रतिमान स्थापित किये

हरिवंश ने 2014 में राजनीति में दाखिला लिया और जनता दल यू की ओर से बिहार से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए . बाद में राज्यसभा के उपसभापति बन गए .पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की नज़र में हरिवंश के बेहतरीन पत्रकार थे . हालांकि उनको यह इमकान बिलकुल नहीं था कि एक दिन वे भी राजनीति की उसी मंजिल की तलाश में चल पड़ेंगें जिसके शिखर पर  चन्द्र शेखर विराजते थे .चंद्रशेखर जी के बारे में उन्होंने कई किताबें भी लिखी  हैं.

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