Saturday, September 5, 2020

मीडिया की विश्वसनीयता का सवाल----सन्दर्भ :सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु



शेष नारायण सिंह

अपराधों के राष्ट्रीय रिकार्ड ब्यूरो ( एन सी आर बी ) के ताज़ा आंकड़े आ गए हैं .2019 में देश में 140,000 लोगों ने आत्महत्या की थी . इनमें से एक तिहाई लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के दबाव में यह क़दम उठाया. करीब 23 प्रतिशत लोगों ने बीमारी या नशाखोरी के कारण आत्महत्या की .आठ प्रतिशत लोगों ने गरीबी, क़र्ज़, बेरोज़गारी और दिवालियापन से परेशान होकर अपनी जान ले ली. आत्महत्या करने वालों में दक्षिणी राज्यों के लोग सबसे ज़्यादा थे . इनमें आधे से ज़्यादा संख्या महाराष्ट्र ,तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के थे . उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे कम आत्महत्याएं होती हैं . खेती किसानी के काम में लगे लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति में भारी कमी आई है . दुर्घटना और आत्महत्या के आंकड़ों केअनुसार 2016 में करीब 11 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने की मृत्यु हुई थी जबकि 2019 में यह संख्या 10 से थोडा ज्यादा रह गयी है . इस तरह 2019 में आत्महत्या से मरने वालों की संख्या में 10 प्रतिशत की कमी आयी है . आत्महत्या वास्तव में सभ्यता , मानवीय जिजीविषा , सामाजिक समरसता की हार है . अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का फैसला करता है तो उसके लिए वह खुद तो ज़िम्मेदार है ही ,उसका परिवार ,उसके यार दोस्त ,उसके आसपास के लोग और समाज भी कम ज़िम्मेदार नहीं है .

आत्महत्या के कारणों पर दुनिया भर में बात होती रहती है . आम तौर पर वे लोग ही आत्महत्या करते हैं जिनको अपना जीवन बेमतलब लगने लगता है . काल्पनिक या वास्तविक दुःख को बहुत बड़ा बनाकर आंकना ,अपनों से निराशा मिलना , अपनों की उम्मीदों पर खरा न उतरने का डर ,अपनी महत्वाकांक्षा को हासिल न कर सकने का भय ,प्यार में धोखा , आर्थिक तंगी आदि कुछ बातें हैं जिनके कारण लोग आत्महत्या करते हैं . कुछ आत्महत्याएं बीमारी के कारण भी होती हैं . अवसाद के मरीजों में यह प्रवृत्ति ज्यादा पाई जाती है . अवसाद के मरीजों के रिश्तेदारों को चाहिए कि अपने प्रिय जन को यह विश्वास दिलाते रहें कि उनका जीवन महत्वपूर्ण है उसकी समाज को आवश्यकता है .

पिछले दिनों मुंबई में एक फिल्म अभिनेता की मृत्यु के बाद उसकी आत्महत्या या हत्या राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी हुई है . अभिनेता नौजवान था, कुछ सफल फिल्मों में काम कर चुका था , भविष्य में भी उससे सिनेमा उद्योग और दर्शकों को उम्मीदें थीं . मुंबई के उपनगर बांद्रा के उसके घर में एक दिन उसका शव फांसी पर लटकता हुआ मिला . पुलिस ने उसको आत्महत्या मानकर जांच करना शुरू कर दिया . बड़े अभिनेता की मृत्यु का मामला था इसलिए मीडिया में भी खबर आयी . टीवी चैनल भी सक्रिय हो गए .उसी बीच कुछ टीवी चैनलों ने उनकी मृत्यु को अपना कारोबार बढाने के लिए इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया . सुबह शाम वही खबर, दिन भर वही खबर , उसी पर बहस , उसी का विश्लेषण यानी टीवी पत्रकारिता के जितने भी पक्ष हैं सब उसी पर केन्द्रित हो गए. अपने देश में सिनेमा से जुड़े लोगों के बारे में बड़ी आबादी में उत्सुकता रहती है . जबसे सिनेमा शुरू हुआ है तब से ही फ़िल्मी चटखारेदार ख़बरें महत्व पाती रही हैं . फ़िल्मी गपबाजी को केंद्र में रख कर कई पत्रिकाएँ भी निकाली गयीं और बहुत बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया .ज़ाहिर है फ़िल्मी लोगों के निजी जीवन को चटखारे लेकर सुनाना एक बड़ा कारोबार है . टीवी पत्रकारिता के कुछ स्वनामधन्य संपादकों ने मुंबई के फ़िल्मी अभिनेता स्व सुशांत सिंह राजपूत के जीवन और उनकी मृत्यु से जुडी खबरों को जिस मुकाम पर लाकर छोड़ दिया है ,वह पत्रकारिता तो किसी तरह से नहीं कही जा सकती . देश तरह तरह के संकट से जूझ रहा है . कोरोना की महामारी पूरी दुनिया को चपेट में लिए हुए है . उसके कारण दुनिया भर में आर्थिक मंदी है , लोगों की नौकारियाँ जा रही हैं . अपनी अर्थव्यवस्था भारी संकट के भंवर में है. शहरों में लोग भीख मांगने के लिए अभिशप्त हैं . शहरों से भागकर गावों में गए लोगों को सरकारी वायदों के बावजूद कहीं कोई काम नहीं मिल रहा है . लदाख में चीन की कारस्तानी राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई है . इन सारे विषयों पर देश की जनता को सही खबर और विश्लेषण पंहुचाना मीडिया का कर्तव्य है लेकिन यह सब पीछे चला गया है . सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की खबरों को कई टीवी चैनलों ने स्थाई खबर बना दिया है .पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए यह चिंता की बात है .

बिहार के एक संपन्न परिवार का बेटा , मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में अपनी क़िस्मत आजमाने के उद्देश्य से गया था .उच्च शिक्षा प्राप्त इस नवयुवक के सामने रोजी रोटी के बहुत सारे अवसर थे लेकिन उसने फिल्म का रास्ता चुना और उसें सफलता भी पाई . किन्हीं कारणों से उनकी मृत्यु हो गयी .शव लटका हुआ मिला था अकाल मृत्यु की घटना पुलिस की जांच का विषय होती है . मुंबई की पुलिस ने जांच शुरू की लेकिन बाद में पता चला कि पुलिस ने कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफ आई आर )दर्ज किये बिना ही जांच शुरू कर दिया था . यह बहुत ही गैरजिम्मेदार काम है . एफ आई आर दर्ज किये बिना जांच का कोई मतलब नहीं है . मुंबई पुलिस ने एक इन्क्वेस्ट लिखकर जांच शुरू कर दिया था . इन्क्वेस्ट का शब्दकोशी मतलब भी “अप्रत्याशित मृत्यु के कारणों की जाँच “ ही है लेकिन मुक़दमा चलाने के लिए तो एफ आई आर ज़रूरी होता है . मुंबई पुलिस की जांच पर शक तब शुरू हुआ जब उसने उन लोगों को पकड़ पकड़ कर पूछताछ शुरू कर दिया जिन्होंने कभी सुशांत सिंह राजपूत को फिल्म में काम करने का वायदा किया था लेकिन बाद में मुकर गए थे . यह भी जांच शुरू हो गयी कि मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में परिवारवाद बहुत ज़यादा है . साधारण व्यक्ति को भी लगने लगा कि जांच को भटकाया जा रहा है . परिवार को लगा कि मुंबई पुलिस जांच को सही दिशा में नहीं ले जा रही है . सुशांत के एक जीजा बहुत बड़े पुलिस अधिकारी हैं , एक अन्य जीजा बहुत ही बड़े वकील हैं . जाहिर है बिना एफ आई आर की जाँच का हश्र उन लोगों को मालूम था . परिवार ने स्व सुशांत के राज्य बिहार की राजधानी पटना में एक एफ आई आर दर्ज करवा दिया . उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई पुलिस की जांच सही दिशा में नहीं जा रही है इसलिए उनको पटना में एफ आई आर लिखवाना पड़ा .इस बीच यह भी चर्चा शुरू हो गयी कि महाराष्ट्र के एक राजनीतिक परिवार का भी उनकी मृत्यु से कुछ लेना देना हो सकता है .अब तक पूरे देश के कल्याण का ठेका ले चुके कुछ टीवी चैनल मैदान ले चुके थे .उनको एक विलेन की ज़रूरत थी तो उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के साथ कुछ महीनों तक लिव-इन के रूप में रह चुकी एक अभिनेत्री को विलेन बनाया और मीडिया ट्रायल शुरू हो गया . मुंबई के राजनीतिक परिवार की मिलीभगत के मद्देनज़र उस परिवार की पार्टी के विरोधी राजनेता भी आग में घी डालने लगे .बात बहुत आगे तक बढ़ गयी और सुशांत की दोस्त अभिनेत्री की मौजूदगी के कारण स्त्री विरोधी मानसिकता वाले कुंठित लोगों को रोज़ की खुराक मिलने लगी. इस बीच सुशांत सिंह के पिताजी ने पुलिस को बताया कि उनके बेटे से उस की लिव-इन दोस्त ने करीब पन्द्रह करोड़ रूपये ठग लिए हैं. सुशांत सिंह के बैंक खातों में इस रक़म का कोई उल्लेख नहीं था . ज़ाहिर है यह धन नम्बर दो का रहा होगा. सीधा सीधा कालेधन का केस बनता है . लिहाजा ई डी ( प्रवर्तन निदेशालय ) ने भी जांच शुरू कर दी. कहीं से पता चला कि कुछ नशीली दवाओं का भी इस्तेमाल हुआ था . यह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का विषय है , वह भी जांच में जुट गए . विपक्ष ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि बिहार के इसी साल होने वाले चुनावों के मद्दे नज़र बिहार के लोगों की सहानुभूति बटोरने के चक्कर में केंद्र सरकार ने सभी एजेंसियों को लगा रखा है . महाराष्ट्र में इस समय जिस पार्टी की सरकार है उसपर आरोप है कि उसने केंद्र सरकार में राज करने वाली पार्टी को धोखा दिया है .आरोप लगने लगे कि सरकार से बदला लेने के लिए केंद्र सरकार ने अभियान चला रखा है और एक हत्या या आत्महत्या के मामले को राजनीतिक कारणों से अपने वफादार टीवी चनैलों की मार्फ़त हवा दी जा रही है .

इस सारी प्रक्रिया में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उसके परिवार वालों को ठेकदार टाइप चैनलों ने सूली पर चढाने का पूरा बंदोबस्त कर रखा था . नेटवर्क 18 के चैनलों ने संतुलित खबर देने का फैसला ले रखा था तो इस पूरे प्रकरण के दौरान उनकी टी आर पी गिर रही थी . ज़ाहिर है देश की जनता चटखारेदार खबरों को पसंद कर रही थी . लेकिन इस बीच ठेकेदार चैनल की योजना में एक बड़ा खलल पैदा हो गया . एक प्रतिद्वंदी चैनल ने विलेन के रूप में स्थापित की जा चुकी रिया चक्रवर्ती का पौने दो घंटे का इंटरव्यू प्रसारित कर दिया . उस इंटरव्यू में अभिनेत्री ने कुछ ऐसे सवाल पूछे जिनका जवाब जांच एजेंसियों को अपनी जांच आगे बढाने के लिए ज़रूरी होगा .मसलन उसने पूछा कि सुशांत की मृत्यु के छः दिन पहले उसने उनका घर छोड़ दिया था . जो लोग उन छः दिनों तक उसके साथ रहे उनसे सवाल क्यों नहीं पूछे जा रहे हैं . उसने परिवार के लोगों के व्यवहार पर बहुत सारे सवाल उछाल दिए . उसको विलेन बनाकर जांच के पहले ही उसको अपराधी साबित करने वाली बिरादरी के हाथ से तोते उड़ गए . परिवार के लिए भी मुश्किल पैदा हो गयी क्योंकि रिया चक्रवर्ती के सुशांत का घर छोड़ने के बाद उनकी एक बहन उनके साथ उनकी देखभाल करने के लिए रही थी . शिकारी टीवी चैनलों और परिवार वालों ने माहौल बना रखा था कि रिया के कारण की सुशांत को अवसाद की बीमारी हुयी थी लेकिन एक अन्य बड़े अखबार ने उनकी बहनों का वह बयान छाप दिया जिससे पता चलता है कि परिवार को मालूम था कि सुशांत को अवसाद ( डिप्रेशन ) 2013 से ही था और वे बाकायदा दवा ले रहे थे .यह सारी जानकारी अब सी बी आई के पास है . उम्मीद की जानी चाहिए कि न्याय होगा , सही और निष्पक्ष जांच होगी और किसी के लाभ के लिए किसी निर्दोष को सूली पर नहीं चढ़ा दिया जाएगा

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