शेष नारायण सिंह
अयोध्या
की बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मुक़दमे में सी बी आई की विशेष अदालत ने सभी
अभियुक्तों को बाइज्ज़त बरी कर दिया है . अपने रिटायर होने के एक दिन पहले दिए गए
फैसले में जज साहब ने लिखा है कि अभियुक्तों पर साज़िश के जो आरोप लगे थे वे गलत पाए गए क्योंकि उनको सही साबित करने के
लिए जज साहब की नज़र में ज़रूरी साक्ष्य नहीं मिल सके . इसलिए बरी कर
दिया गया . जज साहब ने कहा कि इस मुक़द्दमे के अभियुक्त तो लोगों को मस्जिद
गिराने से रोक रहे थे . जज साहब को यह इलहाम
कहाँ से हुआ यह पता नहीं है . इस केस में कुल 48 अभियुक्त थे उनमें से 17 की तो
मौत हो चुकी है . लाल कृष्ण आडवानी ,मुरली मनोहर जोशी ,उमा भारती सहित बाकी लोग आरोप मुक्त हो गए हैं . उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्याय की जीत बताया है. उन्होंने
सी बी आई की विशेष अदालत द्वारा फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सत्यमेव जयते के
अनुरूप सत्य की जीत हुई है. उनके बयान में यह भी
कहा गया कि ,” यह फैसला स्पष्ट करता है कि तत्कालीन कांग्रेस
सरकार द्वारा राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर वोट बैंक की राजनीति के लिए देश
के पूज्य संतों भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, विश्व
हिंदू परिषद से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं समाज से जुड़े विभिन्न संगठनों के
पदाधिकारियों को बदनाम करने की नीयत से से उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर बदनाम
किया गया.” मुख्यमंत्री योगी ने कहा, इस षड्यंत्र के लिए जिम्मेदार देश की जनता से माफी मांगे. मुक़दमे के सभी
अभियुक्तों ने भी फैसले का स्वागत किया है .
इस
बात में दो राय नहीं है कि बाबरी मस्जिद का
विध्वंस राजनीतिक कारणों से किया गया था . धर्म के नाम पर हिन्दुओं को वोट बैंक बनाने की आर एस एस की राजनीति में
अयोध्या की पांच सौ साल पुरानी मस्जिद को ढहाना के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा था.
जिसके नतीजे भी साफ़ नज़र आ रहे हैं . जब बाबरी मस्जिद के खिलाफ आन्दोलन शुरू
हुआ था तो बीजेपी की लोकसभा में दो सीटें थीं .आज देश में उनके स्पष्ट बहुमत से
बनी हुई सरकार है . हिंदुत्व की राजनीति के पैरोकारों के लिए उस मस्जिद को
मुसलमानों के सम्मान से जोड़कर उसको ज़मींदोज़ करने का कार्यक्रम हिंदू मात्र को सर्वोपरि साबित करना
था जिसका राजनीतिक लाभ मिला. सी बी आई के
विशेष जज के इस
फैसले के साथ ही रामजन्मभूमि के लिए 35 साल से चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो
गया है .हालांकि इस केस की अभियोक्ता सी बी आई के पास
ऊपरी अदालत में अपील करने का रास्ता है . देखना यह होगा कि वह अपील करते हैं कि
नहीं .फैसले पर टीका टिप्पणी करने का कोई मतलब नहीं है लेकिन उसके बाद की राजनीति
को समझना राजनीतिशास्त्र के किसी विद्यार्थी के लिए ज़रूरी है .
इस
विवाद की शुरुआत तब हुयी थी जब १९९२ में अयोध्या की मध्ययुगीन मसजिद को ज़मींदोज़ किया गया था . ६ दिसंबर १९९२ के दिन वहां बहुत बड़ी संख्या में पूरे देश से कारसेवक
आये थे . उनके नेताओं और विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने वचन दिया था कि जो लोग वहां आ रहे थे उनका उद्देश्य केवल कारसेवा
करना था. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री
कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि अयोध्या के विवादित ढाँचे को
कोई नुक्सान नहीं होने दिया जाएगा लेकिन वहां आई भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ज़मींदोज़
कर दिया . 30 सितम्बर को आये फैसले में सी बी आई की विशेष अदालत में कहा गया है कि
उस ढाँचे को ढहाने के लिए कोई योजना नहीं बनी थी और किसी ने कोई साज़िश नहीं की थी
.वहां आई हुयी भीड़ ने एकाएक उसको गिरा दिया .
उसके लिए किसी से कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया था. यह बात आज फैसला आने के बाद
साफ हो गयी है लेकिन 6 दिसंबर के बाद की भारत की
राजनीति दोबारा वही नहीं रही ,वह बिलकुल बदल गयी .
अयोध्या
के उस दिन के विध्वंस के साथ साथ भारतीय राजनीति को एक नई दिशा में डाल दिया गया
था . तब तक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की बात सभी राजनीतिक पार्टियाँ करती थीं लेकिन
उसके बाद हिन्दुत्ववादियों ने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ भी अभियान शुरू कर
दिया था . हालांकि वे लोग महात्मा गांधी को सम्मान देने की बात करते रहे थे लेकिन
महात्मा गांधी के आन्दोलन के केंद्रीय भाव,धर्मनिरपेक्षता का
विरोध बड़े पैमाने पर शुरू हो गया था .महात्मा गांधी ने धर्मनिरपेक्षता को आज़ादी के
आंदोलन में बहुत ही अधिक महत्व दिया था .धर्मनिरपेक्षता भारत की आज़ादी के संघर्ष का इथास थी. बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद की राजनीति और पत्रकारिता दोनों ही बदल गए थे .हिंदी मीडिया में पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग आर एस एस की राजनीति
के प्रचारक के रूप में काम करने लगा था . वे मसजिद ढहाने के काम को वीरता बता रहे
थे . उस वक़्त के प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को अर्जुन सिंह की चुनौती मिल
रही थी लेकिन कुछ भी करने के पहले १०० बार सोचने के लिए विख्यात अर्जुन सिंह ने
मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा नहीं दिया . अटल बिहारी
वाजपेयी दुखी होने की बात की थी लेकिन ढहाने वालों के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया था
. लाल कृष्ण आडवानी, कल्याण सिंह , उमा भारती , साध्वी ऋतंभरा , अशोक सिंघल आदि जश्न मना
रहे थे . कांग्रेस में हताशा का माहौल था. २४ घंटे का टेलिविज़न नहीं था. ख़बरें
बहुत धीरे धीरे आ रही थीं लेकिन जो भी ख़बरें आ रही थीं वे अपने सर्वधर्म समभाव की बुनियाद को हिला देने वाली थीं .
दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि पर जब मदर टेरेसा के साथ देश भर से आये धर्मनिरपेक्ष लोगों ने माथा टेका तो लगता था कि अब अपना देश तबाह होने से बच जाएगा . बिना किसी
तैयारी के शांतिप्रेमी लोग वहाँ इकठ्ठा हुए और
समवेत स्वर में रघुपति राघव राजाराम की टेर लगाते रहे. मेरी
नज़र में महात्मा गांधी के दर्शन की उपयोगिता का
यह प्रैक्टिकल सबूत था .
बाबरी
मसजिद को ढहाने के बाद आर एस एस ने कट्टर हिन्दूवाद को एक राजनीतिक विचारधारा के
रूपमें स्थापित कर दिया था . आर एस एस के लोग इस योजना पर बहुत पहले से काम कर रहे थे .दुनिया जानती है कि
आज़ादी की लड़ाई में आर एस एस के लोग शामिल नहीं हुए थे . आज़ादी के बाद जब महात्मा गांधी की हत्या
हुई तो आर एस एस के सरसंघचालक एम एस गोवलकर भी गिरफ्तार गये थे और उनके संगठन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक के ऊपर प्रतिबन्ध लगा था .बाद में १९७५ में भी इन पर पाबंदी
लगी थी लेकिन इनका काम कभी रुका नहीं . आर एस एस के लोग पूरी तरह से अपने मिशन में लगे रहे. डॉ लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के सहारे इन लोगों को राजनीतिक सम्मान दिलवाया था. जब १९६७ में संविद सरकारों का प्रयोग हुआ तो आर एस एस की पार्टी भारतीय जनसंघ थी . उस पार्टी
के लोग कई राज्य सरकारों में मंत्री बने . बाद में जब जनता पार्टी बनी तो जनसंघ
घटक के लोग उसमें सबसे ज्यादा संख्या में थे. उसके साथ ही आर एस एस की राजनीति
मुख्यधारा में आ चुकी थी . १९७७ में जब लाल कृष्ण आडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री
बने तो बड़े पैमाने पर संघ के कार्यकर्ताओं को
अखबारों में भर्ती करवाया गया . १९९२ में बाबरी
मसजिद के विध्वंस के बाद उत्तर भारत के अधिकतर
अखबारों में आर एस एस के लोग भरे हुए थे . उन्हीं लोगों ने ऐसा माहौल बनाया जैसे
कि जैसे बाबरी मसजिद को ढहाने वालों ने कोई बहुत भारी वीरता का काम किया हो . कुल मिलाकर माहौल ऐसा बन गया कि देश में धर्मनिरपेक्ष होना किसी अपराध जैसा लगने लगा
था.
1980
में जनता पार्टी को तोड़कर भारतीय जनता पार्टी बनी थी .शुरू में इस पार्टी ने
उदारतावादी राजनीतिक सोच को अपनाने की कोशिश की . दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म
मानववाद और गांधीवादी समाजवाद जैसे राजनीतिक शब्दों को अपनी बुनियादी सोच का आधार
बनाने की कोशिश की . लेकिन जब १९८४ के लोकसभा चुनाव में ५४२ सीटों वाली लोकसभा में
बीजेपी को केवल दो सीटें मिलीं तो उदार राजनीतिक संगठन बनने का विचार हमेशा के लिए
दफन कर दिया गया . जनवरी १९८५ में कलकत्ता में आर एस एस के टाप नेताओं की बैठक हुई
जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी बुलाया गया और साफ़ बता दिया
गया कि अब हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को चलाया जाएगा . वहीं तय कर लिया गया कि
अयोध्या की बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि के पुराने विवाद को एक बार ज़िंदा करके
उसके इर्दगिर्द बीजेपी की चुनावी राजनीति को केन्द्रित किया जाय . आर एस एस के दो
संगठनों, विश्व
हिन्दू परिषद् और बजरंग दल को इस प्रोजेक्ट को चलाने का जिम्मा दिया गया. विश्व
हिन्दू परिषद् की स्थापना १९६६ में हो चुकी थी लेकिन वह सक्रिय नहीं था. १९८५ के
बाद उसे सक्रिय किया गया और कई बार तो यह भी लगने लगा कि आर एस एस वाले बीजेपी को
पीछे धकेल कर वी एच पी से ही राजनीतिक काम करवाने की सोच रहे थे . लेकिन ऐसा नहीं
हुआ और चुनाव लड़ने का काम बीजेपी के जिम्मे ही रहा . १९८५ से अब तक बीजेपी हिन्दू
राष्ट्रवाद की राजनीति को ही अपना स्थायी भाव मानकर चल रही है ..कांग्रेस और अन्य
सेकुलर पार्टियों ने अपना राजनीतिक काम ठीक से नहीं किया इसलिए देश में हिन्दू राष्ट्रवाद का खूब प्रचार प्रसार हो गया . जब बीजेपी
ने हिन्दू राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक दर्शन के रूप में प्रचारित करना शुरू कर
दिया तो उस विचारधारा को मानने वाले बड़ी संख्या में उसके साथ जुड़ गए .वही लोग
१९९१ में अयोध्या आये थे जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी .
बाबरी मस्जिद को तबाह करने पर आमादा इन लोगों के ऊपर गोलियां भी चली थीं .वही लोग
१९९२ में अयोध्या आये थे जिनकी मौजूदगी में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ , वही लोग साबरमती एक्सप्रेस में सवार थे जब गोधरा रेलवे स्टेशन पर उन्हें
जिंदा जला दिया गया . जिसके बाद गुजरात में बहुत बड़ा दंगा हुआ था.
उसके बाद से लगभग हर चुनाव में बीजेपी के लोग रामजन्मभूमि के मुद्दे को केंद्र
में रखते रहे.
आज
केंद्र सहित बहुत सारे राज्यों में आर एस एस के सहयोगी संगठन बीजेपी की सरकारें
हैं . `1984
में जिस बीजेपी को लोकसभा में दो सीटें मिली थीं आज वह देश के अधिकतर हिस्सों में
सत्ता के केंद्र में है . आज बीजेपी की राजनीति की बुलंदी में बाबरी मस्जिद और
रामजन्मभूमि के विवाद का बड़ा योगदान है .
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