Monday, January 3, 2011

हिन्दू धर्म में आतंकवाद की कोई जगह नहीं,आर एस एस सभी हिन्दुओं का संगठन नहीं

शेष नारायण सिंह

दिसंबर में हुई कांग्रेस की सालाना बैठक में जब से तय हुआ कि आर एस एस के उस रूप को उजागर किया जाए जिसमें वह आतंकवादी गतिविधियों के प्रायोजक के रूप में पहचाना जाता है ,तब से ही आर एस एस के अधीन काम करने वाले संगठनों और नेताओं में परेशानी का आलम है .जब से आर एस एस के ऊपर आतंकवादी जमातों के शुभचिंतक होने का ठप्पा लगा है वहां अजीबोगरीब हलचल है . आर एस एस ने अपने लोगों को दो भाग में बाँट दिया है. एक वर्ग तो इस बात में जुट गया है कि वह संघ को बहुत पाकसाफ़ संगठन के रूप में प्रस्तुत करे जबकि दूसरे वर्ग को यह ड्यूटी दी गयी है कि वह आर एस एस को सभी हिन्दुओं का संगठन बनाने की कोशिश करे.आर एस एस के पे रोल पर कुछ ऐसे लोग हैं जो पत्रकार के रूप में अभिनय करते हैं . ऐसे लोगों की ड्यूटी लगा दी गयी है कि वे हर उस व्यक्ति को हिन्दू विरोधी साबित करने में जुट जाएँ जो आर एस एस या उस से जुड़े किसी व्यक्ति या संगठन को आतंकवादी कहता हो .लगता है कि कांग्रेस ने आर एस एस की पोल खोलने की योजना की कमान दिग्विजय सिंह को थमा दी है . दिग्विजय सिंह ने भी पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देना शुरू कर दिया है . देश के सबसे बड़े अखबार में उन्होंने एक इंटरव्यू देकर साफ़ किया कि वे हिन्दू आतंकवाद की बात नहीं कर रहे हैं , वे तो संघी आतंकवाद का विरोध कर रहे हैं . यह अलग बात है कि आर एस एस वाले उनका विरोध यह कह कर करते पाए जा रहे हैं कि दिग्विजय सिंह हिन्दुओं के खिलाफ हैं . लेकिन इस मुहिम में आर एस एस को कोई सफलता नहीं मिल रही है . दुनिया जानती है कि आर एस एस ने अपना तामझाम मीडिया में मौजूद अपने मित्रों का इस्तेमाल करके बनाया है. लगता है कि दिग्विजय सिंह भी मीडिया का इस्तेमाल करके आर एस एस के ताश के महल को ज़मींदोज़ करने के मन बना चुके हैं . उनके इंटरव्यू को आधार बनाकर जो खबर अखबारों में छापी गयी उसमें संघी आतंकवाद को हिन्दू आतंकवाद लिखकर बात को आर एस एस के मन मुताबिक बनाने की कोशिश की गयी . बीजेपी के कुछ नेताओं ने दिग्विजय के हिन्दू विरोधी होने पर बयान भी देना शुरू कर दिया . लेकिन लगता है कि दिग्विजय ने भी खेल को भांप लिया और देश की सबसे बड़ी न्यूज़ एजेंसी , पी टी आई के मार्फ़त अपनी बात को पूरे देश के अखबारों में पंहुचा दिया. ज़्यादातर अखबारों में छपा है कि दिग्विजय सिंह ने इस बात का खंडन किया है कि कि वे हिन्दू धर्म के खिलाफ हैं .देश के सबसे प्रतिष्ठित अखबार , द हिन्दू में पी टी आई के हवाले से जो बयान छपा है वह आर एस एस के खेल में बहुत बड़ा रोड़ा साबित होने की क्षमता रखता है . दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उन्होंने कभी भी आतंकवाद को किसी धर्म से नहीं जोड़ा . उनका दावा है कि आतंकवाद बहुत गलत चीज़ है . वह चाहे जिस धर्म के लोगों की तरफ से किया जाए. उन्होंने कहा कि हर हिन्दू आतंकवादी नहीं होता लेकिन पिछले दिनों जो भी हिन्दू आतंकवादी घटनाओं में शामिल पाए गए हैं, वे सभी आर एस एस या उस से संबद्ध संगठनों के सदस्य हैं . यानी वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हिन्दू नहीं आर एस एस वाला आदमी आतंकवादी होता है . उन्होंने बीजेपी और आर एस एस से अपील भी की है कि वे आत्मनिरीक्षण करें और इस बात का पता लगाएं कि हर आदमी जो भी आतंकवादी घटनाओं में पकड़ा जा रहा है ,उसका सम्बन्ध आर एस एस से ही क्यों होता है . उन्होंने कहा कि वे हिन्दू धर्म का विरोध कभी नहीं करेगें क्योंकि वे खुद हिन्दू धर्म का बहुत सम्मान करते हैं . उनके माता पिता हिन्दू हैं और उनके सभी बच्चे हिन्दू हैं . लेकिन वे सभी आर एस एस के घोर विरोधी हैं . ज़ाहिर है दिग्विजय सिंह एक ऐसे अभियान पर काम कर रहे हैं जिसमें यह सिद्ध कर दिया जाएगा कि आर एस एस एक राजनीतिक जमात है और उसका विराट हिन्दू समाज से कुछ लेना देना नहीं है . इसका मतलब यह हुआ कि हिन्दुओं का ठेकेदार बनने की आर एस एस और उसके मातहत संगठनों की कोशिश को गंभीर चुनौती मिल रही है. भगवान् राम के नाम पर राजनीति खेल कर सत्ता तक पंहुचने वाली बी जे पी के लिए और कोई तरकीब तलाशनी पड़ सकती है क्योंकि कांग्रेस की नयी लीडरशिप हिन्दू धर्म के प्रतीकों पर बी जे पी के एकाधिकार को मंज़ूर करने को तैयार नहीं है . कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने साफ़ कहा है कि हिन्दू धर्म पर किसी राजनीतिक पार्टी के एकाधिकार के सिद्धांत को वे बिलकुल नहीं स्वीकार करते. लेकिन आर एस एस को भगवा या हिंदू धर्म का पर्याय वाची भी नहीं बनने दिया जाएगा . दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक रूप से भी कहा है कि भगवा रंग बहुत ही पवित्र रंग है और उसे किसी के पार्टी की संपत्ति मानने की बात का मैं विरोध करता हूँ . उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्था के बल पर मैं राजनीतिक फसल काटने के पक्ष में नहीं हूँ और न ही किसी पार्टी को यह अवसर देना चाहता हूँ . उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म पर हर हिन्दू का बराबर का अधिकार है और उसके नाम पर आर एस एस और बी जे पी वालों को राजनीति नहीं करने दी जायेगी . और अगर कांग्रेस अपनी इस योजना में सफल हो गयी तो और बी जे पी की उस कोशिश को जिसके तहत वह हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में अपने को स्लाट कर रही थी , नाकाम कर दिया तो इस देश की राजनीति का बहुत भला होगा

छत्तीसगढ़ सरकार से ऊबकर विदेशों में पनाह ले सकती हैं डॉ बिनायक सेन की पत्नी

शेष नारायण सिंह

नयी दिल्ली ,३ जनवरी .. छत्तीसगढ़ पुलिस की साज़िश के शिकार हुए डॉ बिनायक सेन की पत्नी, श्रीमती इलीना सेन ने आज दिल्ली में कहा कि छत्तीस गढ़ की न्यायव्यवस्था से वे इतना ऊब गयी हैं कि मन कहता है कि किसी ऐसे देश में पनाह ले लें जहां मानवाधिकारों की कद्र की जाती हो . उन्होंने कहा कि कुछ मुसलमानों की तरफ से उनको और उनके पति को लिखे गए पत्रों को पुलिस ने पाकिस्र्त्तान की आई एस आई द्वारा लिखे गए पत्र मान कर उनके खिलाफ फर्जी आरोप गढे . जबकि सच्चाई यह है कि वे पत्र उनके पास आई एस आई ( इंडियन सोशल इंस्टीटयूट ) के तरफ से भेजे गए थे जो दिल्ली में है और सामाजिक मुद्दों पर शोध का काम करवाता है . उनका कहना है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की न्याय प्रियता पर उन्हें भरोसा है इसलिए अभी न्याय की गुहार करने वे ऊंची अदालतों में जायेगीं . प्रेस क्लब में पत्रकारों से बात करते हुए उनके साथ मौजूद सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील , प्रशांत भूषण ने कहा कि बिनायक सेन को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाने वाला फैसला कानून पर आधारित नहीं है . उसमें इवीडेंस एक्ट और संविधान का उन्ल्लंघन किया गया है . प्रशांत भूषण ने कहा कि जिस जज ने फैसला सुनाया है उसके खिलाफ हाई कोर्ट को अपने आप कार्रवाई करना चाहिए और नियमों के अनुसार उसे दण्डित किया जाना चाहिए .

मानवाधिकार कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ के नामी डाक्टर , बिनायक सेन को २१ दिसंबर को राय पुर की एक अदालत ने देश द्रोह का दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी थी . उसी दिन से पूरे देश में बिनायक सेन को दी गयी सज़ा के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं . डॉ बिनायक सेन की पत्नी आज पहली बार दिल्ली आयीं और उन्होंने प्रेस के सामने अपनी बात रखी . उन्होंने कहा कि मुक़दमे के दौरान जिन दो पत्रों , ए-३१ और ए.३७ को आधार बनाकर उनके पति को देशद्रोह का दोषी करार दिया गया है उन पत्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है . उनका आरोप है कि सरकार ने पहले दिन से ही तय कर लिया था कि उनके पति को दंड देना है और उसी आधार पर उनके खिलाफ केस बनाया गया . उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने डॉ बिनायक सेन के खिलाफ इसलिए भी केस बनाया कि राज्य में आतंक फैलाने के लिए सलवा जुडूम नाम की जिस सरकारी मिलिशिया का सरकार की कृपा से गठन किया गया था , डॉ बिनायक सेन ने उसका पुरजोर विरोध किया था . . . उन्होंने कहा कि उन्हें मालूम है कि उन पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाकर उन्हें भी दण्डित किया जा सकता है लेकिन उन्हें यह कहने में संकोच नहीं है कि निचली अदालत ने सबूत को नज़रंदाज़ करके अपना फैसला सुनाया है . उन्होंने जोर देकर कहा कि करीब तीन साल चले मुक़दमे के दौरान पुलिस ने जो भी आरोप तैयार किया था सब को बचाव पक्ष के वकीलों ने ध्वस्त कर दिया था लेकिन अदालत ने पुलिस की मर्ज़ी का फैसला सुनाया . उन्होंने कहा कि बहुत सारे दोस्तों ने सलाह दी थी कि दरखास्त देकर मुक़दमे को छत्तीस गढ़ के बाहर ले जाओ लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि पुलिस तो राज्य सरकार की गुलाम है लेकिन न्याय पालिका से उन्हें न्याय मिलेगा . आज उस बात के गलत साबित होने पर निराशा हो रही है .

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि रायपुर की जिला अदालत का फैसला अब्सर्ड है . आई पी सी की जिस धारा को आधार बनाकर यह फैसला किया गया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ बनाम बिहार सरकार के केस में १९६२ में रद्द कार दिया था . सुप्रीम कोर्ट ने अपने १९६२ के आदेश में कहा था कि यह धारा आज़ादी के पहले की है . जब आजादी के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार मिल गया है तो इस धारा का कोई मतलब नहीं है लेकिन जिला अदालत के जज ने सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण नज़ीर को नज़र अंदाज़ किया जो कि उन्हें नहीं करना चाहिए था.

Friday, December 31, 2010

भ्रष्टाचार को समर्पित एक साल और राजनीति की उतरती आबरू

शेष नारायण सिंह

देश की राजनीति स्थिति बहुत ही गड़बड़झाले से गुज़र रही है.कांग्रेस की ढिलाई और हालात पर पकड़ के कमज़ोर होने की वजह से अगर आज चुनाव हो जाएँ तो उनकी हार लगभग पक्की मानी जा रही है .यह बात बहुत सारे कांग्रेसियों को भी पता है . बीजेपी वालों को यह बात सबसे ज्यादा मालूम है . शायद इसी वजह से जेपीसी के नाम पर वे सरकार को घेरे में लेना चाहते हैं . वैसे इस बात में दो राय नहीं है कि 2010 मेंअपने देश में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़े गए हैं . भ्रष्टाचार और घूस की रक़म को इनकम मानने का रिवाज़ तो बहुत पहले से शुरू हो चुका है लेकिन घूसखोर थोडा संभलकर रहता था, भले आदमियों की नज़र बचाकर रहता था . लेकिन जब से संजय गाँधी ने अपराधियों को राजनीति में इज्ज़त देना शुरू किया, घूस को गाली मानने वालों की संख्या में भारी कमी आई थी . लेकिन भ्रष्टाचार को सम्मान का दर्ज़ा कभी नहीं मिला. पिछले बीस वर्षों में जब से केंद्र में गठबंधन सरकार की परंपरा शुरू हुई है , भ्रष्टाचार और घूस को इज्ज़त हासिल होने लगी है . घूसखोर आदमी अपने आप को सम्मान का हक़दार मानने लगा है. राजनीति में शामिल लोगों की आमदनी कई गुना बढ़ गयी है और भ्रष्ट होना अपमानजनक नहीं रह गया है . जब तक बीजेपी वाले विपक्ष में थे , माना जाता था कि यह ईमानदार लोगों की जमात है . लेकिन कई राज्यों में और केंद्र में 6 साल तक सरकार में रह चुकी बीजेपी भी अब बाकायदा भ्रष्ट मानी जाने लगी है. बीजेपी में फैले भ्रष्टाचार को उनके बड़े नेता कांग्रेसीकरण कहते हैं और उपदेश देते हैं कि पार्टी को कांग्रेसीकरण की बीमारी से बचायें .यह अलग बात है कि बीजेपी को भ्रष्टाचार की आदत से बचा पाने की हैसियत अब किसी की नहीं है . वह अब विधिवत भ्रष्ट हो चुकी है और वह जब भी सत्ता में होगी भ्रष्टाचार में लिप्त पायी जायेगी . लेकिन भ्रष्टाचार की इस भूलभुलैया में भी सन 2010 का मुकाम बहुत ऊंचा है . इस साल देश में आर्थिक भ्रष्टाचार के सारे पुराने रिकार्ड टूट गए हैं . कामनवेल्थ खेलों में सुरेश कलमाड़ी के नेतृत्व में जमकर लूट मची है . शुरू में बीजेपी ने जांच के लिए बहुत जोर भी मारा लेकिन जब जांच के शुरुआती दौर में ही बीजेपी के कुछ नेताओं का गला फंसने लगा तो मामला ढीला पड़ गया . अब तो लगता है कि कांग्रेस ही कामनवेल्थ के घूस को उघाड़ने में ज्यादा रूचि ले रही है .ऐसा शायद इसलिए कि उनका तो केवल एक मोहरा ,सुरेश कलमाड़ी मारा जाएगा जबकि बीजेपी के कई बड़े नेता कामनवेल्थ के घूस की ज़द में आ जायेगें. सुरेश कलमाड़ी को राजनीतिक रूप से ख़त्म करके देश के सत्ताधारी वंश का कुछ नहीं बिगड़ेगा . २जी स्पेक्ट्रम के घोटाले की जांच में अब बीजेपी और कांग्रेस के शामिल होने की जांच का काम शुरू हो गया है . ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही इस जांच से जो भी दोषी होगा ,दुनिया के सामने आ जाएगा. शायद इसीलिये मध्यवाधि चुनाव को लक्ष्य बनाकर बीजेपी वाले जेपीसी जांच की बात को आगे बढ़ा रहे हैं .उन्हें उम्मीद है कि जेपीसी जांच के दौरान रोज़ ही मीडिया में अपने लोगों की मदद से कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाया जा सकेगा .और उसका असर सीधे चुनाव प्रचार पर पड़ेगा. कुल मिलाकर हालात ऐसे बन रहे हैं कि देश की सत्ता की राजनीति रसातल की तरफ बढ़ रही है. दोनों ही मुख्य पार्टियां बुरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं .
कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सारी ताक़त राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में झोंकी जा रही है . महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की कांग्रेस के परखचे उड़ रहे हैं . समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत पता नहीं कहाँ दफन हो गए हैं . आलाकमान कल्चर हावी है और सुप्रीम नेता से असहमत होने का रिवाज़ ही ख़त्म हो गया है . राजनीतिक जागरूकता के बुनियादी ढाँचे में कहीं कुछ भी निवेश नहीं हो रहा है . ठोस बातों की कहीं भी कोई बात नहीं हो रही है . पार्टी के बड़े नेता चापलूसी के सारे रिकार्ड तोड़ रहे हैं और आजादी के बुनियादी सिद्धातों की कोई परवाह न करते हुए अमरीकी पूंजीवाद के कारिंदे के रूप में देश की छवि बन रही है . बीजेपी में भी हालात बहुत खराब हैं . कई गुटों में बंटी हुई पार्टी में किसी तरह का अनुशासन नहीं है . नागपुर की ताक़त से पार्टी के अध्यक्ष बने एक मामूली नेता को कोई भी इज्ज़त देने को तैयार नहीं है . वह नेता भी अपने अधिकार को बढाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है . एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू देकर पार्टी अध्यक्ष ने अपनी ताक़त को दिखाने की कोशिश की है . उन्होंने साफ कह दिया है कि लाल कृष्ण आडवाणी अब उनकी पार्टी की तरफ से प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नहीं रहेगें . भला बताइये ,2009 के लोकसभा चुनावों में पूरे देश में भावी प्रधानमंत्री का अभिनय करते हुए व्यक्ति को एक इंटरव्यू देकर खारिज कर देना कहाँ का राजनीतिक इंसाफ़ है . दिलचस्प बात यह है कि अपने आपको प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से दूर रख कर अध्यक्ष ने आडवाणी गुट के की कई नेताओं का नाम आगे कर दिया है. ज़ाहिर है उनके दिमाग में भी आडवानी गुट में फूट डालकर उनकी ताक़त को कमज़ोर करने की रणनीति काम कर रही है .ऐसी हालात में देश की राजनीति में तिकड़मबाजों और जुगाड़बाजों का बोलबाला चारों तरफ बढ़ चुका है . अब तक बीजेपी वाले नीरा राडिया के हवाले से कांग्रेस को खींचने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अब लगता है कि नीरा राडिया के बीजेपी के बड़े नेताओं से ज्यादा करीबी संबंध रह चुके हैं . कुल मिलाकर हालात ऐसे बन गए हैं कि अब कोई चमत्कार ही देश की राजनीति की आबरू बचा सकता है

Wednesday, December 29, 2010

सरकार बचाने के लिए समझौते कहाँ तक जायज़ हैं

शेष नारायण सिंह

एम जे अकबर हमारे दौर के बेहतरीन पत्रकार हैं. उन्होंने जब से एक बड़े ग्रुप को मुखिया के तौर पार ज्वाइन किया है ,उस मीडिया ग्रुप की विश्वसनीयता बढ़ गयी है .उनके पहले उस मीडिया संगठन को मूलरूप से राडियाबाज़ी के काम में लिप्त माना जाता था. उसके पुराने मुखिया का नाम दिल्ली के सत्ता के गलियारों में एक ऐसे महारथी के रूप में जाना जाता था जो सरकार से कोई भी काम करवा सकता था .सरकार चाहे जिस पार्टी की हो .उन्होंने सोनिया गाँधी और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अभद्र और अमर्यादित टिप्पणी करके अपनी नौकरी बचाने में सफलता पायी थी. उन्हें अजेय माना जाता ता . उनका बेटा देश का नामी वकील माना जाता था और उसकी आमदनी बहुत ज्यादा थी. बताते हैं कि वह जिसपर खुश हो जाता है उसे करोड़ों की कार आदि उपहार स्वरुप दे देता है . लेकिन उसके पिता की ख्याति पत्रकार के रूप में नहीं , सत्ता के प्रबंधक के रूप में ज्यादा हो गयी थी . लोगों की समझ में नहीं आता था कि इतने बड़े ग्रूप के मालिक के सामने क्या मजबूरी थी कि इस तरह के एक गैरपत्रकार को ढो रहे थे हालांकि अरुण पुरी की ख्याति एक खरे पत्रकार की है . जो भी हो,देर आयद दुरुस्त आयद. अब एम जे अकबर मैदान में हैं और इंडिया टुडे में वही पुरानी पत्रकारिता की हनक नज़र आने लगी है .अब लोगों की समझ में आने लगा है कि इस मीडिया ग्रुप में अभी भी बहुत धार बाकी है .मेरी समझ में तो यही नहीं आता था कि अंग्रेज़ी के जो तीन चैनल साथ साथ आये थे,उसमें इस ग्रुप का चैनल सबसे पीछे क्यों था . अब जब एक बार फिर इस ग्रुप के अंग्रेज़ी चैनल ने विश्वसनीयता हासिल करना शुरू किया है तो समझ में आता है कि वही मुख्य अधिकारी और उसकी ख्याति ही ज़िम्मेदार रहे होगें. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि नए नए शब्द इंडिया टुडे के ज़खीरे से निकल कर आयेगें क्योंकि अकबर के दौर में सन्डे मैगजीन में बहुत सारे शब्द प्रयोग होते थे जिनका राजनीतिक अर्थ होता था और वे समकालीन राजनीतिक माहौल को काफी हद तक परिभाषित करते थे. इस बार इंडिया टुडे के नए अंक में वह काम हुआ है . radialougue शब्द अंग्रेज़ी राजनीतिक शब्दावली के हाथ लगा है जो आज के राजनीतिक आचरण के सन्दर्भ में बहुत सारी बातों को स्पष्ट करता है . अपने इसी सम्पादकीय में अकबर ने मनमोहन सिंह को मोबाइल फोन से लगी चोट का ज़िक्र किया है जिसने उनकी अच्छी प्रसिद्धि को बुरी तरह से प्रभावित किया है .इस सम्पादकीय में बहुत ही सफाई से कह दिया गया है कि अपनी सरकार बचाए रखने के चक्कर में डॉ मनमोहन सिंह ए राजा और उसके आकाओं , करूणानिधि परिवार द्वारा की जा रही सरकारी खजाने की लूट को नज़रंदाज़ करते रहे. जबकि प्रधानमंत्री इसे रोक सकते थे और उन्हें इस लूट को रोकना चाहिए था .लेकिन उन्होंने नहीं रोका . ज़ाहिर है इस गलती का खामियाजा डॉ मनमोहन सिंह को बहुत दिन तक भोगना पड़ेगा . हमें मालूम है कि जब कांगेस के कुछ बड़े नेताओं को नीरा राडिया और करूणानिधि परिवार की ए राजा की मार्फत चल रही लूट का जिक्र किया गया था तो उन लोगों ने बताया था कि गठबंधन सरकार चलाने के लिए कुछ समझौते करने पड़ते हैं . यही बात बीजेपी वाले कहते थे जब उनकी सरकार में शामिल लोगों की बे-ईमानी और भ्रष्टाचार के बारे में कहीं जाती थी . उस दौरान तो इसे एक नाम भी दे दिया गया था. बीजेपी के बड़े नेता इसे तब आपद्धर्म कहते थे. चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी , सत्ता में बने रहने के लिए जनहित और राष्ट्रहित से समझौता करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाना चाहिये . दुर्भाग्य यह है कि सत्ता में बने रहने की लालच में बड़े नेता यह गलती करते रहते हैं . ताज़ा मामला पश्चिम बंगाल का है जहां 33 वर्षों की कम्युनिस्ट सरकार अपनी अंतिम साँसे ले रही है . वहां उन लोगों की सत्ता आने वाली है जो इमरजेंसी के दौरान छात्र परिषद् के नेता हुआ करते थे . इस बात से किसी राजनीतिक विश्लेषक को कोई एतराज़ नहीं हो सकता है लेकिन तृणमूल काग्रेस की गाली गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल करके जब देश का गृहमंत्री किसी राज्य के मुख्यमंत्री की पार्टी को संबोधित करता है तो साफ़ नज़र आने लगता है कि सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस एक बार फिर वैसे ही समझौते कर रही है जिस तरह के समझौते करूणानिधि की पारिवारिक पार्टी की मनमानी के दौरान किया गया था . पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री ने कांग्रेस के नेता और गृहमंत्री को हर्मद शब्द का अर्थ बताकर अच्छा काम किया है क्योंकि हो सकता है कि गृहमंत्री को मालूम ही न रहा हो कि जिस हर्मद शब्द को उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की चिट्ठी से नक़ल किया है वह वास्ताव में गाली है . और अगर नामी पत्रकार एम जे अकबर की बात मानें तो कह सकते हैं कि गृहमंत्री गाली देने से बच सकते थे और उन्हें बचना चाहिए था . वरना वे भी वही गलती करते पकडे जायेगें जो अपनी सरकार बचाने के लिए मनमोहन सिंह ने की थी

Tuesday, December 28, 2010

तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था

मार्टिन नीमोलर (1892-1984

पहले वो आए साम्यवादियों के लिए

और मैं चुप रहा क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था



फिर वो आए मजदूर संघियों के लिए

और मैं चुप रहा क्योंकि मैं मजदूर संघी नहीं था



फिर वो यहूदियों के लिए आए

और मैं चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी नहीं था



फिर वो आए मेरे लिए

और तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था

राडिया के जाल में फंसी बीजेपी को बचाने के लिए तैयार नहीं हैं मुरली मनोहर जोशी

शेष नारायण सिंह

राडिया की कृपा से २ जी स्पेक्ट्रम के इंद्रधनुष में रोज़ ही नए रंग हावी होने लगे हैं . राडिया के ताज़ा शिकार पूर्व उड्डयन मंत्री ,अनंत कुमार बन गए हैं .यह अलग बात है कि राडिया जी के मूल मित्र वही हैं लेकिन उनके कारनामों के बारे में जानकारी बाद में पब्लिक के सामने आई. खैर अब तो सारा मामला खुल चुका है . जब राडिया के एक पूर्व मित्र का दावा सार्वजनिक हुआ कि अनंत कुमार जी ने राडिया देवी को मंत्रिमंडल के गुप्त दस्तावेज़ भी थमा दिए थे, तो बीजेपी में उनके मित्रों की हालात देखने लायक थी. बेचारों ने घबडाहट में ऐसे बयान दे दिए जो अनंत कुमार पर लगे आरोपों को पुष्ट करते थे. मसलन , अनंत जी के मित्र और बीजेपी के एक आला नेता ने कहा कि अनंत कुमार ने राडिया को कोई ज़मीन नहीं अलाट की . हम भी जानते हैं कि पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री ,ज़मीन अलाट नहीं करता ,वह तो ज़मीन को अलाट करवाने में मदद करता है . उन नेता जी बताया कि गृहमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी ने किसी ऐसे ट्रस्ट की बिल्डिंग का शिलान्यास नहीं किया जिसकी अध्यक्ष नीरा राडिया हैं . हाँ किसी स्वामी के किसी मठ का शिलान्यास करने वे ज़रूर गए थे . ठीक है. बहुत सारे संगठन ऐसे होते हैं जिसका मालिक उसका अध्यक्ष नहीं होता. उन नेता जी से जनता की अपील यह है कि बस इतना बता दें कि इन स्वामी जी से अनंत जी और राडिया जी के क्या सम्बन्ध हैं . कुल मिलाकर राडिया जी के सारे खेल के केंद्र में अब अनंत कुमार जी ही मौजूद पाए जा रहे हैं . २ जी स्पेक्ट्रम का पूरा केस राडिया के इर्द गिर्द ही बुना गया था . अब जब ए राजा और अनंत कुमार एक ही अखाड़े के पहलवान के रूप में पहचाने जाने लगे हैं तो जो हमला ए राजा पर होगा ,वह निश्चित रूप से अनंत कुमार को लपेटे में लेगा . कुल मिलाकर बीजेपी की उस कोशिश में ब्रेक लग गया है जिसके तहत वे यू पी ए को घेरने के चक्कर में थे .जो कुछ कसर बाकी रह गयी थी उसे संसद भवन के अन्दर एक प्रेस कानफरेंस करके डॉ मुरली मनोहर जोशी ने पूरी कर दी और जेपीसी की मांग की हवा निकाल दी. उन्होंने बीजेपी को जो सबसे बड़ी चोट दी ,वह थी एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ रूपये के २ स्पेक्ट्रम घोटाले की हेडलाइन ही बदल दी. उन्होंने बाआवाज़ेबुलंद बताया कि यह घाटा एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ रूपये का भी हो सकता है और सत्तावन हज़ार करोड़ रूपये का भी हो सकता है . उसकी जांच की जायेगी और जांच पी ए सी ही करेगी. दूसरी बात जो सबसे दिलचस्प है वह यह कि पी ए सी का काम केवल हिसाब किताब की जांच करना नहीं है ,डॉ जोशी ने बताया कि पी ए सी के पास पूरी टेलीकाम पालिसी की जांच करने का अधिकार है .उन्होंने साफ़ कहा कि अगर ज़रूरी हुआ तो एन डी ए के शासन काल के दौरान हुए काम की जांच भी की जा सकती है. ज़ाहिर है कि इस लपेट में अरुण शोरी और प्रमोद महाजन का काम भी आ जाएगा और जब राडिया वहां भी सक्रिय थीं, तो हेराफेरी ज़रूर हुई होगी.जेपीसी के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे थे उनमें एक यह भी था कि प्रधान मंत्री और मंत्रियों से पूछ ताछ करने का वही सबसे अच्छा फोरम है . डॉ जोशी ने साफ़ कह दिया कि प्रधान मंत्री ने तो चिट्ठी लिख कर पी ए सी के सामने हाज़िर होने का अपना प्रस्ताव भेज ही दिया है ,पी ए सी के अधिकार में है कि अगर वह चाहे तो मंत्रियों को भी तलब कर सकती है . डॉ जोशी की पत्रकार वार्ता में मौजूद कुछ पत्रकारों ने जब पूछा कि क्या वे प्रधान मंत्री को समन करने जा रहे हैं तो उन्होंने लगभग झिडकते हुए कहा कि समन करने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि अब तो प्रधान मंत्री ने खुद ही हाज़िर होने की पेशकश कर दी है . यानी बीजेपी की वह इच्छा बी पूरी नहीं होने वाली है जिसमें वे प्रधान मंत्री को समन भेजकर तलब करने वाले थे. डॉ जोशी के बयानों से साफ़ है कि पी ए सी उन सभी बिन्दुओं की जांच कर सकती है जिनके लिए पी ए सी के गठन की बात की जा रही है . जानकार बताते हैं कि पी ए सी के पास जेपीसी से ज्यादा ताक़त है क्योंकि उसका अध्यक्ष विपक्ष का होता है जबकि जेपीसी का अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी का ही होगा.
बीजेपी के सिर राडिया के चक्कर में दूसरी मुसीबत भी आने वाली है .केंद्र में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने ने कहा कि " केंद्र सरकार इस बात की जांच करेगी कि क्या अनंत कुमार ने एन डी ए के शासनकाल के दौरान नागर उड्डयन मंत्री रहते हुए नीरा राडिया को किसी फैसले के बारे में जानकारी दी थी. अगर ऐसा किया है तो सरकारी जानकारियों को इस तरह सार्वजनिक कार्य राजद्रोह की श्रेणी में आता है."यानी अब मामला उलट कर बीजेपी के ही दरवाज़े पर पंहुच गया है और राडिया के चक्कर में फंस चुकी बीजेपी की कोशिश है कि किसी तरह इन राडिया जी से जान छूटे . इन कोशिशों को भारी झटका लगा है . जहां तक प्रोफ़ेसर मुरली मनोहर जोशी का सवाल है ,उनको वह दर्द नहीं भूला होगा जब आडवाणी गुट के लोगों ने डॉ जोशी को बीजेपी अध्यक्ष के रूप में चैन से नहीं बैठने दिया था. आज भी अगर बीजेपी को राजनीतिक फायदा होगा तो उसका लाभ दिल्ली में बैठे बीजेपी वालों को होगा जो आडवाणी गुट के बड़े नेता हैं . ज़ाहिर है जोशी जी भी इन लोगों के फायदे के लिए कोई भी गलत काम नहीं करेगें .वैसे भी वे आम तौर पर राजनीति लाभ के लिए उलटे सीधे काम नहीं करते.

Monday, December 27, 2010

कर्नाटक में पंचायतों के चुनाव दादाओं के शक्तिपरीक्षण के मंच नहीं हैं

शेष नारायण सिंह

कर्नाटक में पंचायत चुनाव चल रहे हैं . दो दौर में पूरे राज्य में चुनाव होने हैं .पहले दौर का चुनाव् 26 दिसंबर को पूरा हो गया . अनुमान है कि करीब 70 प्रतिशत वोट पड़े हैं . अगला दौर 31 दिसंबर के लिए तय है . बंगलोर ,चित्रदुर्ग, रामनगरम, कोलार,चिकबल्लापुर शिमोगा,टुन्कूर,बीदर,बेल्लारी,रायचूर और यादगिर जिलो में चुनाव का काम पूरा हो गया है . छिटपुट हिंसा की खबरें हैं. कुछ जिलों में दो चार जगहों पर फिर से वोट डाले जायेगें ,चिकबल्लापुर के सोरब तालुका के दो गावों में लोगों ने चुनाव का बहिष्कार किया और कहा कि विकास के काम में उनके इलाके की उपेक्षा की गयी है ,इसलिए वे लोग वोट नहीं देगें, और चुनाव का बहिष्कार करेगें. कर्नाटक में पंचायत चुनाव देखना एक अलग तरह का अनुभव है . उत्तर प्रदेश में जिस दादागीरी के दर्शन होते हैं , वह इस राज्य में कहीं नहीं नज़र आता .बंगलोर के पड़ोसी जिले,रामनगरम के मगडी तालुक के कुछ गाँवों में चुनाव प्रक्रिया को करीब से देखने का मौका मिला. उत्तर प्रदेश या अन्य उत्तरी राज्यों में चुनाव की रिपोर्टिंग करने वाले इंसान के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था . जब बंगलोर शहर से निकल कर ग्रामीण इलाकों में जाने का मन बनाया तो लोगों से पूछा कि कार में जाने के लिए सरकारी परमिशन लेने का क्या तरीका है . किसी की समझ में ही नहीं आया कि परमिशन का क्या मतलब है . लोगों ने बताया कि आप जाइए और जहां भी मन कहे कार पार्क कीजिये और चुनाव का फर्स्ट हैण्ड अनुभव लीजिये .तुरंत समझ में आ गया कि कर्नाटक में पंचायत चुनाव की रंगत अपने यू पी से बिलकुल अलग है . देहाती इलाकों में कार ले जाने के लिए किसी तरह की परमीशन के निजाम का न होना अपने आप में एक बड़ा संकेत करता है . समझ में आ गया कि यहाँ अभी बूथ कैप्चरिंग की कला का विकास नहीं हुआ है . बंगलोर शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर रामनगरम जिले के कुछ बूथों पर जाकर देखने से पता चला कि यहाँ चुनाव बूथ पर किसी तरह की बदमाशी नहीं होती. इस मौके पर भी अपना उत्तर प्रदेश याद आया. गाँवों में जाकर देखा तो पता चला कि ज़्यादातर लोग वोट डालने गए हुए हैं . घर पर बहुत कम लोग हैं . अधिकारियों से बात की तो पता चला कि चुनाव के दौरान वाहनों पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं होता . सत्तर के दशक तक तो अपने राज्यों में भी यही होता था. लेकिन अब वहां सब कुछ बदल गया है . इसका मतलब यह नहीं है कि चुनाव को यहाँ की जनता कम गंभीरता से लेती है . बंगलोर और रामनगरम के जिन इलाकों में जाने का मौक़ा लगा वहां चुनाव में कांटे का मुकाबला है .बीजेपी के मुकाबले ,जनता दल एस और कांग्रेस पार्टी की ताक़त है . कई गाँवों में साफ़ नज़र आया कि जाति या धर्म का प्रभाव यहाँ उतना नहीं है जितना कि उत्तर भारत के राज्यों में साफ़ नज़र आता है . हाँ मतदाता को घूस देने की परम्परा वही उत्तर भारत वाली है . सरजापुर के डी मुनियालप्पा ने आरोप लगाया कि पुलिस के लोग इस तरह से काम कर रहे हैं कि लगता है कि वे सत्ताधारी पार्टी के एजेंट हैं .दलित नेता , अदूर प्रकाश ने बताय कि मतदान के पहले वाली रात को कांग्रेस और बीजेपी वालों ने गाँवों में जाकर मतदाताओं को घूस देने की कोशिश की ,उन्हें रूपये, शराब और गोश्त देकर वोट खरीदने की कोशिश की .इसका मतलब यह हुआ कि जनता जागरूक है और कर्नाटक में पंचायत चुनावों में अभी उत्तर भारतीय सामंती सोच के हावी होने का उतना ख़तरा नहीं . इसका कारण शायद यह है कि इन क्षेत्रों में शिक्षा का विकास ग्रामीण अंचल में बहुत पहले से है. मैसूर के इलाके में शुक्रवार को चुनाव होने हैं और वहां के प्रचार पर नज़र डालने से पता चलता है कि यहाँ पंचायत चुनावों में भी बाकायदा मुद्दों पर चर्चा हो रही है . मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा खुद बीजेपी के चुनाव अभियान की अगुवाई कर रहे हैं . 23 दिसंबर को मुंबई से बंगलोर जाने वाली उद्यान एक्सप्रेस में उनसे मुलाक़ात हो गयी. शायद यादगीर जिले में प्रचार कर के लौट रहे थे. ट्रेन में किसी मुख्यमंत्री को यात्रा करते देखे मुझे 36 साल से ज्यादा हो गए थे . थोडा अजीब लगा लेकिन जब बात हुई तो दिल्ली में उनको लेकर चल रही राजनीति को उन्होंने चर्चा की ज़द में आने के पहले ही टाल दिया जबकि पंचायत चुनावों की बारीकियों पर बात चीत करने को उत्सुक दिखे. कांग्रेस और जनता दल एस की तरफ से भी बड़े नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं और राज्य को प्रभावी नेतृत्व दे पाने में नाकाम रहने के कारण बीजेपी को हराने की अपील कर रहे हैं . कुल मिलाकर कर्नाटक का पंचायत चुनाव लोकतंत्र की जीवन्तता का नमूना है , अपने उत्तर प्रदेश की तरह मुकामी दादाओं की शक्ति परीक्षण का मंच नहीं है .