Monday, March 15, 2021

बांगलादेश के पचास साल और बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान


शेष नारायण सिंह

50 साल पहले बंगलादेश का जन्म हुआ था. 26 मार्च को उसकी पचासवीं जयन्ती मनाई जायेगी . उसके पहले सात मार्च को शेख मुजीब ने पाकिस्तान से  बांगलादेश की आज़ादी का नारा दिया था और 26 मार्च को आज़ादी के जंग का इअलान कर दिया था . उसी दिन से पूर्वी  पाकिस्तान ख़त्म और बंगलादेश अस्तिव में आ गया  . इस साल 26 मार्च के  कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. कोरोना की महामारी आने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा होगी . बांग्लादेश के जन्म के साथ ही असंभव भौगोलिक बंटवारे का एक अध्याय ख़त्म हो गया था. नए राष्ट्र के संस्थापक ,शेख मुजीबुर्रहमान को तत्कालीन पाकिस्तानी शासकों ने जेल में बंद कर रखा था लेकिन उनकी प्रेरणा से शुरू हुआ बंगलादेश की आज़ादी का आन्दोलन भारत की मदद से परवान चढ़ा और एक नए देश का जन्म हो गया.. बंगलादेश का जन्म वास्तव में दादागीरी की राजनीति के खिलाफ इतिहास का एक तमाचा था जो शेख मुजीब के माध्यम से पाकिस्तान के मुंह पर वक़्त ने जड़ दिया था. आज पाकिस्तान जिस अस्थिरता के दौर में पंहुच चुका है उसकी बुनियाद तो उसकी स्थापना के साथ ही १९४७ में रख दी गयी थी लेकिन इस उप महाद्वीप की ६० के दशक की घटनाओं ने उसे बहुत तेज़ रफ़्तार दे दी थी.. यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य था कि उसकी स्थापना के तुरंत बाद ही मुहम्मद अली जिन्नाह की मौत हो गयी. प्रधानमंत्री लियाक़त अली को पंजाबी आधिपत्य वाली पाकिस्तानी फौज और व्यवस्था के लोग अपना बंदा मानने को तैयार नहीं थे और उनको हिन्दुस्तान से आया हुआ मोहाजिर मानते थे . उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. जब जनरल अय्यूब खां ने पाकिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया तो वहां गैर ज़िम्मेदार हुकूमतों के दौर का आगाज़ हो गया.. याह्या खां की हुकूमत पाकिस्तानी इतिहास में सबसे गैर ज़िम्मेदार सत्ता मानी जाती है. ऐशो आराम की दुनिया में डूबते उतराते जनरल याहया खां ने पाकिस्तान की सत्ता को अपने फौजी अफसरों के क्लब का ही विस्तार समझ लिया  था . मानसिक रूप से कुंद ,याहया खान किसी न किसी की सलाह पर ही निर्भर करते थे उन्हें अपने तईं राज करने की तमीज नहीं थी. कभी प्रसिद्ध गायिका नूरजहां की राय मानते ,तो कभी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की. सच्ची बात यह है कि सत्ता हथियाने की अपनी मुहिम के चलते ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने याहया खान से थोक में मूर्खतापूर्ण फैसले करवाए..ऐसा ही एक मूर्खतापूर्ण फैसला था कि जब संयुक्त पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेम्बली ( संसद) में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टीअवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिल गया तो भी उन्हें सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया गया..पश्चिमी पाकिस्तान की मनमानी के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में पहले से ही गुस्सा था और जब उनके अधिकारों को साफ़ नकार दिया गया तो पूर्वी बंगाल के लोग सडकों पर आ गए. . मुक्ति का युद्ध शुरू हो गयामुक्तिबाहिनी का गठन हुआ और स्वतंत्र बंगलादेश की स्थापना हो गयी.. इस तरह १६ दिसंबर १९७१ का दिन बंगलादेश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया.उसी दिन  पाकिस्तान की फौज के करीब १ लाख सैनिको ने घुटने टेक दिए और भारतीय सेना के सामने समर्पण किया था . बाद में बंगलादेश ने भी बहुत परेशानियां देखीं १५ अगस्त १९७५  के दिन शेख मुजीब की उनकी फ़ौज के कुछ अफसरों ने धानमंडी स्थित उनके मकान में मार डाला . फ़ौजी अफसरों ने उस हमले में उनके पूरे परिवार को मार डाला था.  शेख मुजीब की पत्नी ,उनके तीन बेटे  और भी  कुछ रिश्तेदार जो उनके घर में टिके हुए थे , सबको मार डाला गया था . उनकी दो बेटियाँ जर्मनी में थीं लिहाजा उनकी जान बच गयी. उनमें से एक  शेख हसीना आजकल बंगलादेश की प्रधानमंत्री हैं .शेख साहब को मारकर बांग्लादेश में भी  फौज ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया . यह वही लोग थे जो पाकिस्तानी फौज के अफसर थे  लेकिन बंगालदेश की स्थापना के बाद बंगलादेश की सेना में बंटवारे के तहत आ गए थे . उसके बाद फ़ौज ने बार बार बांग्लादेश की सत्ता पर आधिपत्य जमाया और कई बार ऐसे लोग सत्ता पर काबिज़ हो गए जो पाकिस्तानी आततायीजनरल टिक्का खान के सहयोगी रह चुके थे.  जनरल टिक्का खान को   बूचर ऑफ़ बलोचिस्तान कहा जाता था . बाद में उसको ढाका की तैनाती दी गयी. जब बंगलादेश की आज़ादी के लिए मुक्ति बाहिनी का आन्दोलन चल रहा था तो ले.जनरल टिक्का खान ही ढाका में पाकिस्तानी फौज का कमांडर था . उसी की सरपरस्ती में  बंगलादेश में नागरिकों का क़त्ले-आम हुआ था . उसी ने  अपने फौजियों को आदेश दिया था कि बाग्लादेश को तबाह करो. इतिहास का सबसे बड़ा  बलात्कार भी उसी के हुक्म से बंगलादेश में हुआ था . बलात्कार करने वाले सभी पाकिस्तानी फौज के लोग ही थी . बलात्कार की घटनाएं उस दौर में पूर्वी पाकिस्तान में जितना हुईं उतनी शायद ज्ञात इतिहास में कहीं भी ,कभी न हुई हों ..बाद में जब पाकिस्तानी फ़ौज को लगा कि अब भारत की सेना के  सामने आत्मसमर्पण  करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है तो टिक्का खान खुद भी भाग गया और उसने अपने खास लोगों को भी भगा दिया . ढाका के आसपास तैनात सेना ने पाकिस्तानी जनरल  नियाजी की अगुवाई में भारतीय ले. जनरल जगजीत सिंह अरोरा के सामने समर्पण किया .

शेख मुजीब की मृत्यु के बाद काफी दिन तक फ़ौज ने बंगालदेश की सत्ता को अपने कब्जे में रखा .बाद में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने फ़ौज को राजनीतिक तरीके से शिकस्त दी और  वहां लोकशाही की स्थापना हुई . शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना ने फौजी हुकूमत का सपना देखने वालों  को बंगालदेश में उसकी औकात पर रखा  हुआ है और बे नागरिक प्रशासन को मजबूती देने की कोशिश शुरू लगातार कर रही हैं ..बंगलादेश का गठन इंसानी हौसलों की फ़तेह का एक बेमिसाल उदाहरण है..जब से शेख मुजीब ने ऐलान किया था कि पाकिस्तानी फौजी हुकूमत से सहयोग नहीं किया जाएगाउसी वक्त से पाकिस्तानी फौज ने पूर्वी पाकिस्तान में दमनचक्र शुरू कर दिया था. सारा राजकाज सेना के हवाले कर दिया गया था और वहां फौज ने वे सारे अत्याचार कियेजिनकी कल्पना की जा सकती है .. .आतंक का राज कायम कर रखा था सेना ने .. लोगों को पकड़ पकड़ कर मार रहे थे पाकिस्तानी फौजी. लेकिन बंगलादेशी नौजवान भी किसी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं था. जिस समाज में बलात्कार पीड़ित महिलाओं को तिरस्कार की नज़र से देखा जाता था उसी समाज में स्वतंत्र बंगलादेश की स्थापना के बाद पूरे देश का नौजवान उन लड़कियों से शादी करके उन्हें सामान्य जीवन देने के लिए आगे आया.  बलात्कार करने वाली  पाकिस्तानी फौज सबसे खूंखार हाथियार बलात्कार ही थी लेकिन वहां के नौजवानों ने उसी हथियार को भोथरा कर दिया.जिन लोगों ने उस दौर में बंगलादेशी युवकों का जज्बा देखा है वे जानते हैं कि इंसानी हौसले पाकिस्तानी फौज़ जैसी खूंखार ताक़त को भी शून्य पर ला कर खड़ा कर सकते हैं .. . बंगलादेश की स्थापना में भारत और उस वक़्त की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी का बड़ा योगदान है. इंदिरा गांधी को उस वक़्त के पाकिस्तान के संरक्षक अमरीका से ज़बरदस्त पंगा लेना पडा था .  पाकिस्तानी फौज के  सभी हथियार अमरीका ने ही दे रखा था. जब बंगलादेश की आजादी  बिलकुल साफ़ नजर आ रही थी उस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड  निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी कीसिंजर ने अमरीका की सेना के सातवें  बेड़े के विमानवाहक जहाज , इंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में स्थापित कर दिया  था. भारत की सेना को धमकाने की कोशिश की जा  रही थी . लेकिन जब अमरीका को सी आई ए की इंटेलिजेंस से पता लगा कि तत्कालीन भारतीय रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम ने  सेना के एक  ऐसे आत्मघाती दस्ते का गठन कर दिया था जो अमरीकी नौसेना के सबसे बड़े अभियान को ही बरबाद करने की योजना बना चुका था  , तो उनका विमान  वाहक जहाज, इंटरप्राइज़  वापस अपने सातवें बेड़े में जा मिला . पाकिस्तानी  फौज की हार  हुई बंगलादेश की स्थापना हो गयी . भारत का बंगलादेश की स्थापना में बड़ा योगदान है क्योंकि  अगर भारत का समर्थन न मिला होता तो शायद बंगलादेश का गठन अलग तरीके से हुआ होता..

लेकिन यह बात भी सच है कि अपनी स्थापना के इन 50  वर्षों में बंगलादेश ने बहुत सारी मुसीबतें देखी हैं . अभी वहां लोकशाही की जड़ें बहुत ही कमज़ोर हैं..शेख हसीना एक मज़बूतदूरदर्शी और समझदार नेता तो हैं  और 2004 से लगातार  प्रधानमंत्री पद पर हैं  .उनकी अगुवाई में बांगलादेश की अर्थव्यवस्था आज बहुत ही सही तरीके से चल रही है . देश की प्रति व्यक्ति आय भारत से  अधिक  है .  कोरोना के चलते जो अमरीकी और यूरोपीय कम्पनियां चीन से अपने कारखाने हटा रही हैं उनमें से कई बंगलादेश में अपने कारखाने  लगा रही हैं . इस सब के बाद भी  लोकशाही के खिलाफ काम करने वाली वे शक्तियां उनको उखाड़ फेंकने के लिए अभी तक जोर मार रही हैं जिन्होंने बंगलादेश की स्थापना का विरोध किया था या उनके परिवार को ही ख़त्म कर दिया था . उन शक्तियों में जमाते-इस्लामी प्रमुख है . उन लोगों को  बंगलादेश में  इस्लामी शासन कायम  करने की बहुत जल्दी है . शेख हसीना धार्मिक आधार पर सत्ता की स्थापना की पक्षधर नहीं हैं . वे शेख मुजीबुर्रहमान के सपनों के हिसाब से सोनार  बांगला की कल्पना को साकार  करने में लगी हुई   हैं.  शेख हसीना  पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध की पक्षधर हैं और  उनके नेतृत्व में बंगलादेश सही कूटनीतिक अर्थों में भारत का मित्र  देश है . आज शेख हसीना को भारत की मदद की वैसी ज़रूरत नहीं है जैसी १९७१ में थी लेकिन आपसी सम्मान का रिश्ता बनाने की कोशिश करना चाहिए . भारत में या पश्चिम बंगाल में अगर हिन्दू राष्ट्र की बात की जायेगी तो बंगलादेश जैसे एक बेहतरीन दोस्त की लोकतांत्रिक नेता पर भी अवाम का दबाव  बढेगा और भारत से दोस्ती पर संकट  की स्थिति आ जायेगी इसलिए देश में धर्मनिरपेक्षता के निजाम पर सत्ताधारी नेताओं को हमला करने से बाज आना चाहिए ..

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