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Monday, October 4, 2010

तबाही की कगार पर खड़े पाकिस्तान के हुक्मरान शेखचिल्ली के वारिस हैं .

शेष नारायण सिंह

पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरेशी ने एक बार फिर कश्मीर की बात अंतर राष्ट्रीय मंच पर की है . पुरानी कहावत है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है .इस बार यह कहावत पाकिस्तान की विदेश नीति के बारे में फिट बैठ रही है . पाकिस्तान आजकल तबाही के दौर से गुज़र रहा है.अमरीका और सउदी अरब से मदद न मिले तो वहां रोटी तक के लाले हैं लेकिन पाकिस्तानी फौज है कि भारत को गालियाँ देने से बाज़ नहीं आ रही है .अमरीका के राष्ट्रपति ने भी पाकिस्तान को बता दिया है कि अगर अफगान तालिबान को अपने देश में छुपने का मौक़ा दते रहे तो पाकिस्तान को अमरीकी मदद मिलना तो बंद ही हो जायेगी , उस के खिलाफ और भी सख्ती की जा सकती है .लेकिन पाकिस्तानी फौज की समस्या दूसरी है . पाकिस्तान की फौज के मौजूदा नेता वे लोग हैं जिन्होंने १९७१ में पाकिस्तानी सेना को भारत के सामने घुटने टेकते देखा था. वे बदले की आग में जल रहे हैं . उनको लगता है कि १९७१ में जिस तरह से भारत की मदद से पाकिस्तान को तोड़कर एक अलग देश बना दिया गया था, उसी तरह से पाकिस्तानी फौज कश्मीर को भी भारत से अलग कर सकती है . कल्पना की उड़ान पर रोक लगाने की किसी तरकीब का अब तक आविष्कार नहीं हुआ है ,इसलिए पाकिस्तानी फौज़ के मुखिया , अशफाक परवेज़ कयानी सोचते रहते हैं कि वे अपने देश की फौज के उस अपमान का बदला कैसे लें जो भारत ने उसे १९७१ में बुरी तरह से हराकर दिया था . हालांकि ऐशो आराम की ज़िंदगी जी रही ,पाकिस्तानी फौज़ के लिए यह बिलकुल असंभव है लेकिन किसी को अपने मन में कुछ सोचने से कौन रोक सकता है. अब पाकिस्तान को अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बहुत ही सकारात्मक सोच का परिचय देना होगा क्योंकि अगर भारत के धीरज का बाँध कहीं टूट गया तो पाकिस्तानी फौज के लिए बहुत ज्यादा परेशानी खडी हो सकती है .क्योंकि अमरीका की कृपा पर पल रही पाकिस्तानी फौज को सी आई ए के निदेशक पनेटा ने साफ़ बता दिया है कि आफर उत्तर पाकिस्तान में छुपे हुए तालिबान और अल-कायदा के आतंकियों को फ़ौरन काबू न किया गया तो उनके काम में पाकिस्तानी हुकूमत की साझेदारी पक्की मान ली जायेगी. यह धमकी बहुत ही सख्त है . अफगानिस्तान में बुरी तरह फंस गए अमरीका के लिए वहां से जल्द से जल्द निकला भागना सबसे बड़ी प्राथमिकता है लेकिन पाकिस्तान की मिलीभगत की वजह से सब गड़बड़ हो रहा है .पाकिस्तान के उत्तरी इलाकों में अमरीकी सेना का काम पूरी तरह से सी आई ए के हाथ में है.इस काम के लिए वहां अमरीकी सैनिक नहीं लगाए गए हैं . पाकिस्तान और अफगानिस्तान के वे नागरिक काम कर रहे हैं जिन्होंने सी आई ए की नौकरी स्वीकार कर ली है .इस में अमरीकी नागरिकों के मारे जाने का ख़तरा पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया है . दूसरी अहम बात यह है कि सी आई ए की तरफ से काम करने वाले यह लड़ाके जो हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं वह अमरीकी फौज़ ने ही दिया है. इन हथियारों में ड्रोन भी शामिल हैं जो बिना किसी सैनिक की जान को ख़तरा बने ,अन्दर तक घुस कर मार करते हैं. पाकिस्तानी फौज को यह सब पसंद नहीं आ रहा है क्योंकि वह तो तालिबान आतंकियों की सरपरस्त है और उसे अमरीका को डराने के लिए तालिबान को हमेशा सुरक्षित रखना चाहती है . शायद इसीलिए भारत और अमरीका की नयी दोस्ती को पंचर करने के उद्देश्य से पाकिस्तानी फौज़ ने शाह महमूद कुरेशी को डांट कर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दा उठवाया है . लेकिन अब इस बन्दरघुडकी को न तो अमरीका गंभीरता से लेता है और न ही भारत . अब सारी दुनिया को मालूम है कि भारत एक उभरती हुई महाशक्ति है जबकि पाकिस्तान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है . इसीलिए पिछले २ महीने में सी आई ए ने पाकिस्तानी सेना के एतराज़ की परवाह न करते हुए करीब २४ ड्रोन हमले किये हैं और खासी बड़ी संख्या में अल कायदा और तालिबान के आतंकवादियों को घेर घेर कर मारा है . जाहिर है कि यह सारे आतंकी आई एस आई के ख़ास बन्दे हैं और इनके मारे जाने का अफ़सोस सेना प्रमुख जनरल कयानी को बहुत ज्यादा होगा.

पाकिस्तान में भयानक बाढ़ के बाद बहुत कुछ तबाह हो गया है . गरीब आदमी दाने दाने को मुहताज है . राजनीतिक और धार्मिक नेता, जो भी विदेशी मदद मिलती है ,उसकी लूट मचाये हुए हैं . पाकिस्तानी फौज द्वारा सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लेने की आशंका हमेशा बनी रहती है . इस बीच पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष और फौजी तानाशाह , जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी वापस आकर राजनीति राजनीति खेलने की धमकी दे दी है . जनरल मुशर्रफ की धमकी को अगर पाकिस्तान गंभीरता से नहीं लेगा तो उसके सामने बड़ी मुश्किल पेश आयेगी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि परवेज़ मुशर्रफ के चाहने वाले पाकिस्तानी फौज़ में बड़ी संख्या में मौजूद हैं. हालांकि मौजूदा जनरल उन्हें आसानी से सत्ता हथियाने नहीं देगा लेकिन उनकी कोशिश भी पाकिस्तान में अस्थिरता का माहौल बना सकती है . ऐसी हालत में पाकिस्तानी सरकार कई मोर्चों पर एक साथ लड़ती नज़र आ रही है . यह पाकिस्तानी जनता और हुकूमत के हित में होगा कि वह भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढाए और उसे दुश्मन की तरह पेश करना बंद कर दे. सरकार के इस एक क़दम से पाकिस्तान की बहुत सारी मुसीबतें कम हो जायेगी. पाकिस्तान में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो मानते हैं कि अगर भारत का सक्रिय सहयोग मिल जाए तो बाढ़ के नरक से जूझ रहे पाकिस्तानी लोगों को बहुत बड़ी राहत मिल जायगी. लेकिन फौज का भारत के प्रति नफरत का रवैया इस मामले में आड़े आ रहा है . उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात की गंभीरता के मद्दे-नज़र पाकिस्तानी शासकों को सद्बुद्धि मिलेगी और वे अपने देश को बचाने में भारत का सहयोग लें .

Saturday, July 31, 2010

ब्रिटेन की चेतावनी ----- पाकिस्तान के आतंकवाद से दुनिया को ख़तरा

शेष नारायण सिंह

भारत की यात्रा पर आये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में जो कुछ कहा उस से साफ़ है कि ब्रिटेन अब भारत और पाकिस्तान को एक तराजू में रखने की मानसिकता से बाहर आ चुका है . अब तक ब्रिटेन सहित अन्य पूजीवादी ,साम्राज्यवादी देश भारत और पाकिस्तान को बराबर मानने की ग्रंथि के शिकार थे. अब हालात बदल चुके हैं . यह कोई अहसान नहीं है . दुनिया के विकसित देशों को मालूम है कि भारत एक विकासमान देश है जबकि पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसने पिछले साठ वर्षों की गलत आर्थिक,राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का पालन करके अपने आपको ऐसे मुकाम पर पंहुचा दिया है जहां से उसके एक राष्ट्र के रूप में बचे रहने की संभावना बहुत कम है . इसलिए अब भारत और पाकिस्तान के बारे में बात करते हुए पश्चिम के बड़े देश हाइफन इस्तेमाल करना बंद कर चुके हैं . ब्रिटिश प्रधान मंत्री डेविड केमरून की भारत यात्रा इस मामले में भी ऐतिहासिक है कि वह अब अपने देश को भारत के मित्र के रूप में पेश करके खुश हैं . प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के साथ उनकी पत्रकार वार्ता को देख कर लगता है कि ब्रिटेन अब पाकिस्तान से दूरी बनाकार रखना चाहता है . ब्रिटेन भी पहले जैसा ताक़तवर देश नहीं रहा . उनकी अर्थ व्यवस्था में विदेशों से आने वाले छात्रों के पैसों का ख़ासा योगदान रहता है . भारत में शिक्षा को जो मह्त्व दिया जा रहा है ,उसके मद्देनज़र दोनों देशों के बीच हुए शिक्षा के समझौते में ब्रिटेन का ज्यादा हित है . व्यापार और रक्षा के समझौतों में भी ब्रिटेन का ही फायदा होगा और उसकी अर्थ व्यवस्था को बल मिलेगा . इस तरह अब साफ़ नज़र आने लगा है कि साठ वर्षों में हालात यहाँ तक बदल गए हैं कि कभी भारत पर राज करने वाला ब्रिटेन अब अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए भारत की ओर देखता है . लेकिन पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं है . पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कुछ भी मज़बूत नहीं है . आजकल तो उनका खर्च तक विदेशी सहायता से चल रहा है . अगर अमरीका और सउदी अरब से दान मिलना बंद हो जाये तो पाकिस्तानी आबादी का बड़ा हिस्सा भूखों मरने को मजबूर हो जाएगा. भारत से मिल रहे सहयोग के बदले ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने भारत की पक्षधरता की बात की . उन्होने भारत को सुरक्षा परिषद् में शामिल करने की बात की और पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद को भारत , अफगानिस्तान और लन्दन के लिए ख़तरा बताया और पाकिस्तानी मदद से चलाये जा रहे आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम में अपने आप को शामिल कर लिया . उन्होंने साफ़ कहा कि इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान के अन्दर इस तरह के आतंकवादी संगठन मौजूद हों जो पाकिस्तान के अन्दर भी आतंक फैलाएं और भारत और अफगानिस्तान को आतंक का निशाना बनाएं. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की कोशिश है कि वह पाकिस्तान को इस बात के लिए उत्साहित करे कि वह लश्कर-ए-तय्यबा और तालिबान से मुकाबला कर सके.उन्होंने कहा कि अगले हफ्ते वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति से इन विषयों पर बातचीत करेगें.भारत के प्रधानमंत्री ने भी इस बात से सहमति जताई और कहा कि उन्हें उम्मीद है पाकिस्तानी विदेश मंत्री, शाह महमूद कुरेशी भारत की यात्रा पर आने का निमंत्रण स्वीकार करेगें.जिस से देर सबेर बातचीत का सिलसिला शुरू किया जा सके.उन्होंने शाह महमूद कुरेशी की आचरण पर भी टिप्पणी की .

पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताने की ब्रिटिश प्रधानमंत्री की बात को पाकिस्तान ने पसंद नहीं किया है . उनके हुक्मरान की समस्या यह है कि वे अभी भी अपनी जनता को बताते रहते हैं कि भारत और पाकिस्तान बाकी दुनिया की नज़र में बराबर की हैसियत वाले मुल्क हैं लेकिन अब सच्चाई सब के सामने आ चुकी है . अमरीका के ख़ास रह चुके पाकिस्तान को अमरीकी रुख में बदलाव भी नागवार गुज़र रहा है . लेकिन अब कोई भी देश पाकिस्तान को इज्ज़त से देखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता. पाकिस्तान एक ऐसा देश हैं जहां सबसे ज्यादा खेती आतंकवाद की होती है और पिछले तीस वर्षों से वह आतंकवाद को सरकारी नीति के रूप में चला रहा है. अगर पाकिस्तान की इस बात को मान भी लिया जाए कि ब्रिटेन उसे भारत के बराबर माने तो उसके बाद क्या होगा . पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था इतनी जर्जर है कि जो देश भी उस से सम्बन्ध बनाएगा उसे पाकिस्तान की आर्थिक सहायता करनी पड़ेगी . अगर शिक्षा या संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग हुआ तो पाकिस्तान से छात्रों के रूप में कितने आतंकवादी ब्रिटेन पंहुच जायेगें, इसका अंदाज़ कोई नहीं लगा सकता .इस लिए पाकिस्तान के शासकों को चाहिए कि वे वास्तविकता को स्वीकार करें और भारत समेत बाकी दुनिया से सहायता मांगें और अपने देश में मौजूद आतंकवाद को ख़त्म करें . बाकी दुनिया को यह मुगालता भी नहीं रखना चाहिए पाकिस्तान में लोकतंत्र कायम हो चुका है . वास्तव में वहां सत्ता फौज के हाथ में ही है . हालांकि विदेशों से सहायता झटकने के लिए फौज ने सिविलियन सरकार को बैठा रखा है लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि फौज के आला अफसर ,शाह महमूद कुरैशी जैसे गैर ज़िम्मेदार नेताओं को लगाम दें. जहां तक भारत से बराबरी की बात है ,उसे हमेशा के लिए भूल जाएँ क्योंकि भारत ने विकास की जो मंजिलें तय की हैं वह पाकिस्तान के लिए सपने जैसा है . पाकिस्तान को सच्चाई को स्वीकार करने की शक्ति विकसित करनी चाहिए