Thursday, January 9, 2020

बंटवारा एक दर्द है जिसको सियासत चमकाने के लिए नहीं कुरेदा जाना चाहिए



शेष नारायण सिंह

नागरिकता संशोधन एक्ट २०१९ पास हो गया , राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी , गज़ट में भी छप गया और अब वह कानून बन गया . लेकिन उसके बाद देश के  पूर्वोत्तर राज्यों में भारी उथल पुथल है . इस कानून से नाराज़गी है.  असम में आबादी का एक बड़ा हिस्सा बगावत की राह पर है . त्रिपुरा में इंटरनेट बंद कर दिया गया है और पूरे राज्य में निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी है.  विदेशों में भी चर्चा है . मौजूदा सरकार के दोस्त समझे जाने वाले अमरीका के धार्मिक आजादी से सम्बंधित कमीशन ने बयान जारी किया है  जिसके अनुसार ” नागरिकता संशोशन विधेयक गलत दिशा में एक खतरनाक मोड़ है . यह भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के बहुलतावाद के खिलाफ है . उस संविधान में धर्म के परवाह किये बिना सब को कानून की नज़र में बराबरी की गारंटी दी गयी है ."  अपने विदेश मंत्रालय  ने अमरीका से आये इस बयान  को गलत बताया है .भारत के पड़ोसी और दोस्त बंगलादेश की सरकार ने भी इस कानून पर एतराज किया है और अपना विरोध दर्ज कराने के लिए उनके दो मंत्रियों ने अपनी भारत यात्रा को रद्द कर दिया है . इस विधेयक में जो खामियां हैं उनपर तो संसद में और पूरे देश में बहस चल ही रही है लेकिन जो  असम और अन्य राज्यों में  विरोध है , लगता है कि सरकार को उसका अनुमान नहीं था.
  
इस कानून को पास करवाने  के लिए लोकसभा में हुयी बहस के दौरान भारत के १९४७ में हुए बंटवारे पर भी खूब  चर्चा हुयी . संसद में दोनों सदनों में गृहमंत्री पर गलतबयानी का आरोप लगाया गया.  जब उन्होंने लोकसभा में कहा कि ,' आपको मालूम है कि यह बिल लाना क्यों ज़रूरी है ? " उन्होंने जवाब भी खुद ही दिया और कहा कि ,' अगर कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर देश का बंटवारा न  किया होता ,तो इस बिल को लाने की ज़रूरत ही न पड़ती . कांग्रेस ने देश को धार्मिक आधार पर विभाजित किया "  सदन में मौजूद कांग्रेस के शशि थरूर ने उनके इस दावे का ज़बरदस्त विरोध किया . उन्होंने कहा कि धार्मिक आधार पर देश के बंटवारे का समर्थन जिन्नाह ने किया था . धार्मिक आधार पर  देश की स्थापना आइडिया ऑफ़ पाकिस्तान है जबकि आइडिया ऑफ़ इण्डिया में एक  ऐसे मुल्क का तसव्वुर किया गया था जिसका स्थाई भाव धार्मिक बहुलता होगी . इतिहास को मालूम है कि तत्कालीन  हिन्दू महासभा के नेता वी डी सावरकर ने  भी उसी टू नेशन सिद्धांत  का ज़बरदस्त समर्थन किया था . सावरकर ने अंग्रेजों की वफादारी के चक्कर में  १९३७ में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष के रूप में पार्टी के अहमदाबाद अधिवेशन में  जोर देकर कहा था कि हिन्दू और मुसलमान दोनों अलग अलग राष्ट्र ( Nation ) हैं .इसलिए अगर किसी को धार्मिक आधार पर बंटवारे  के लिए गुनहगार माना जाएगा तो उसमें मुहम्मद अली  जिन्ना और विनायक दामोदर सावरकर के नाम ही सरे-फेहरिस्त होंगे .यह भी सच है  कि कांग्रेस ने कभी भी धार्मिक आधार पर बंटवारे का समर्थन नहीं किया . पाकिस्तान की स्थापना का आधार धार्मिक था लेकिन भारत में धर्मनिरपेक्षता ही राज्य का धर्म स्वीकार की गयी . संविधान की प्रस्तावना में साफ़ साफ़ लिखा  है कि  ," हमभारत के लोगभारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्नसमाजवादी ,पंथनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिएतथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिकआर्थिक और राजनीतिक न्यायविचारअभिव्यक्तिविश्वासधर्म और उपासना की स्वतंत्रताप्रतिष्ठा और अवसर की समताप्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में,व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वालीबन्धुता बढ़ाने के लिए,दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमीसंवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्वारा इस संविधान को अंगीकृतअधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।भारत की  आज़ादी की लड़ाई की यही विरासत है ..
  
धार्मिक आधार पर बंटवारे के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराने की गृहमंत्री अमित शाह की  बात को उनकी पार्टी के सबसे बुज़ुर्ग नेता ,लाल कृष्ण आडवाणी के सहयोगी सुधीन्द्र  कुलकर्णी ने भी गलत बताया है .  उन्होंने तो बहुत ही आक्रामक भाषा में  ट्वीट किया और कहा कि संसद के इतिहास में किसी मंत्री ने इतना बड़ा सफ़ेद झूठ कभी नहीं बोला क्योंकि कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर देश के बंटवारे की बात तो दूर इस विचार को स्वीकार भी नहीं किया . डॉ राम मनोहर लोहिया ने भी लिखा है कि जिस जनसंघ ( बीजेपी का पूर्व अवतार ) के लोग अखंड भारत के सबसे बड़े पैरोकार बनते हैं उनके पूर्वजों ने मुस्लिम लीग और ब्रिटेन को भारत का बंटवारा करने में मदद पंहुचाई है . डॉ बी आर आंबेडकर ने भी कहा था कि जिन्नाह और सावरकर एक  दूसरे के खिलाफ बोलते हैं लेकिन दो राष्ट्र सिद्धांत के मामले में दोनों एक दूसरे के साथ हैं . इसलिए कांग्रेस को किसी कीमत पर  धार्मिक आधार पर बंटवारे का दोषी नहीं माना जा सकता है .

पता नहीं क्यों हमारे हुक्मरान  मुल्क के बंटवारे की बात को राजनीतिक स्वार्थ के लिए आज 72 साल बाद भी छेड़ते रहते हैं . पाकिस्तान की स्थापना भारत की एक बड़ी आबादी के लिए दर्द की एक तकलीफदेह कहानी  भी है . जहां तक  दक्षिण एशिया के मुसलमानों की बात है उनेक साथ तो हर  स्तर पर धोखा  हुआ है.  1947 के पहले के अविभाजित भारत में रहने वाले मुसलमानों को बेवक़ूफ़ बना कर पाकिस्तान की स्थापना की गयी थी. आखिर तकमुहम्मद अली जिन्ना ने यह नहीं बताया था कि पाकिस्तान की सीमा कहाँ होगी. क्योंकि अगर वे सच्चाई बता देते तो अवध और पंजाब के ज़मींदार मुसलमान अपनी खेती बारी छोड़ने को तैयार न होते और पाकिस्तान की अवधारणा ही खटाई में पड़ जाती. पाकिस्तान का बनना एक ऐसी राजनीतिक चाल थी जिसने आम आदमी को हक्का-बक्का छोड़ दिया था. इसके पहले कि उस वक़्त के भारत की जनता यह तय कर पाती कि उसके साथ क्या हुआ हैअंग्रेजों की शातिराना राजनीति और कांग्रेस और जिन्नाह वाली मुस्लिम लीग के  नेताओं की अदूरदर्शिता का नतीजा था कि अंग्रेजों की पसंद के हिसाब से मुल्क बँट गया.  मुसलामनों ने बंटवारे का दर्द सबसे ज़्यादा झेला है क्योंकि  हिन्दू और  सिख तो अपने परिवारों के साथ भारत आ गए लेकिन मुसलमानों के तो परिवार ही बंट गए .इस मजमून का उद्देश्य उस दर्द को और बढ़ाना नहीं है. हाँ यह याद करना ज़रूरी है कि पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति चाहे जो हो, 1947 के बाद सरहद के इस पार बहुत सारे मुसलमानों के घरों के आँगन में पाकिस्तान बन गया है और वह अभी तक तकलीफ देता है . दुनिया मानती है कि 1947 में भारत का विभाजन एक गलत फैसला था . बाद में तो बँटवारे के सबसे बड़े मसीहामुहम्मद अली जिन्ना भी मानने लगे थे कि पाकिस्तान बनवाकर उन्होंने गलती की ..विख्यात इतिहासकार अलेक्स वोन टुंजेलमान ने अपनी किताब , " इन्डियन समर, : द सीक्रेट हिस्टरी ऑफ़ द एंड ऑफ़ ऐन एम्पायर (Indian Summer: The Secret History of the End of an Empire.) "  में लिखा  है कि अपने आखिरी वक्त में जिन्ना ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से कहा था कि पाकिस्तान बनाना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी बेवकूफी है। अगर मुझे मौका मिला तो मैं दिल्ली जाकर जवाहरलाल से कह दूंगा कि गलतियां भूल जाओ और हम फिर से दोस्तों की तरह रहें.  लेकिन यह मौक़ा कभी नहीं मिला . वैसे भी पछताने से इतिहास के फैसले नहीं बदलते ..

जब जिन्नाह ने आवाहन किया कि पाकिस्तान में मुसलमानों को नौकरी दी जायेगी तो नौकरी की लालच में उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिलों से नौजवान कराची चले गए थे .यहाँ उनका भरा पूरा परिवार था लेकिन बंटवारे के पूरी तरह से लागू हो जाने के बाद वे लोग वहां से कभी लौट नहीं पाए . उनके घर वालों ने वर्षों के इंतज़ार के बाद अपनी ज़िंदगी को नए सिरे से जीने का फैसला किया लेकिन उसकी तकलीफ अब तक है..आज भी जब कोई बेटीजो पाकिस्तान में बसे अपने परिवार के लोगों में ब्याह दी जाती है जब भारत मायके आती है तो उसकी माँ उसके घर आने की खुशी का इस डर के मारे नहीं इज़हार कर पाती कि बच्ची एक दिन चली जायेगी. और वह बीमार हो जाती है . उसी बीमार माँ की बात वास्तव में असली बात है . नेताओं को शौक़ है तो वे भारत और पाकिस्तान बनाए रखेंराज करें ,सार्वजनिक संपत्ति की लूट करेंजो चाहे करें लेकिन दोनों ही मुल्कों के आम आदमी को आपस में मिलने जुलने की आज़ादी तो दें. अगर ऐसा हो गया तो पाकिस्तान और हिन्दुतान सरहद पर तो होगा संयुक्त राष्ट्र में होगाकामनवेल्थ में होगा लेकिन हमारे मुल्क के बहुत सारे आंगनों में जो पाकिस्तान बन गया है वह ध्वस्त हो जाएगा.फिर कोई माँ इसलिए नहीं बीमार होगी कि उसकी पाकिस्तान में ब्याही बेटी वापस चली जायेगी . वह माँ जब चाहेगी ,अपनी बेटी से मिल सकेगी. इसलिए  राजनेताओं से गुजारिश की जानी चाहिए कि राजनीतिक प्वाइंट बनाने के लिए  बंटवारे के घाव को बार बार न  कुरेदें .

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