Thursday, January 9, 2020

जे एन यू से जवाब आया है कि सिर पर पड़ने वाली गुंडों की लाठी का जवाब बहस से देगें, खंडन मंडन से देंगे।




शेष नारायण सिंह 

याद आया, डॉ जयशंकर यही वह यूनिवर्सिटी है न जिसने हर हमले को बातचीत से भोथरा बनाया था। तुम्हारे छात्रजीवन में ही इन्हीं छात्रावासों के मेस में सारी रात चलने वाली बहसों से इंदिरा गांधी की इमरजेंसी निजाम को तहस नहस किया गया था। जब घायल सिर और हाथ पर पट्टी बांधे आइशी घोष ने ऐलान किया कि लाठी डंडे का जवाब अहिंसा से दिया जाएगा तो क्या आपको नहीं लगा कि वह आपके क्लास की कोई लड़की है जो एल-3 के कमरे में हो रही किसी बहस में अपने जज़्बे का ऐलान कर रही है और आपकी यूनिवर्सिटी का घोषणापत्र पढ़ रही है।
यह वही यूनिवर्सिटी है जिसने बहुत सारे गरीब और अमीर माँ बापों के बच्चों को इंसानी बुलंदियों की इज़्ज़त करने की तमीज़ सिखाई थी।
और निर्मला सीतारमण, यह वही यूनिवर्सिटी है जहां किसी से भी मतभेद को लाठी से नहीं बातचीत से सुलझाया जाता था। क्या आपको याद है कि जे एन यू का कैम्पस किसी भी लड़की के लिए मां की गोद से भी ज़्यादा सुरक्षित माना जाता था। क्या आपको याद है जब भी किसी ने किसी student, कर्मचारी या शिक्षक के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया तो उसके खिलाफ पूरी यूनिवर्सिटी लामबंद हो जाती थी।
उसी कैम्पस में कल गुंडों ने आपके सेंटर के लड़के लड़कियों की हड्डियों का चूरमा बनाया और आप लोग मजबूर हैं और न्याय के लिए पहल नहीं कर पा रहे हैं।
जे एन यू की शान के लिए डेढ़ साल तक जेल में रहने वाले डी पी त्रिपाठी के शरीर को हम अभी कल अग्नि को समर्पित करके आए हैं और आज ही आपके कैम्पस में गुंडों ने तीन घंटे तक खूंरेजी की।
मन में तो आपके भी तकलीफ होगी ही।

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