Monday, December 28, 2020

कांग्रेस नेता के रूप में राहुल गांधी अक्सर गैरजिम्मेदार काम करते रहते हैं

 

 


शेष नारायण सिंह

कांग्रेस के  आला नेता   राहुल गांधी फिर विदेश यात्रा पर चले गए . अक्सर जाते रहते हैं लेकिन इस  बार उनकी विदेश यात्रा बहुत बड़ी उत्सुकता का विषय बनी हुयी है . कांग्रेस की  स्थापना के 135 साल पूरे होने पर   कांग्रेस पार्टी ने एक  बड़े आयोजन की योजना बनाई थी लेकिन कार्यक्रम के ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी विदेश निकल लिए . कांग्रेस ने इस बार  स्थापना दिवस को बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला इसलिए किया था  कि  दिल्ली की सीमा पर आन्दोलन कर रहे किसानों की समस्याओं को बड़ा मुद्दा बनाना चाहती थी लेकिन पार्टी की योजना धरी की धरी रह गयी और कांग्रेस का आला अफसर यूरोप निकल गया .आज स्थिति यह है कि किसानों का मुद्दा तो पीछे चला गया और आज छोटे बड़े सभी कांग्रेसियों के एक ही सवाल पूछा  जा रहा है कि उनका सबसे बड़ा नेता कहाँ है. कुछ  कांग्रेसियों के अलावा साधारण कांग्रेसी चुप रहने  में ही भलाई समझ रहा है . दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में आज जब झंडा फहराया जा रहा था तो प्रियंका गांधी से जब पत्रकारों ने उनके  भाई और आला नेता , राहुल गांधी के बारे में पूछा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था . बेचारी चुपचाप चली गयीं क्योंकि इस सवाल का क्या जवाब देतीं कि  कांग्रेस के कैलेण्डर में सबसे मह्त्वपूर्ण तारीख के ठीक एक दिन पहले उनके भाई साहब कहाँ  चले  गए हैं . राहुल गांधी के क़रीबी और कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला अपनी शैली में सवालों के जवाब दे रहे हैं कि राहुल गांधी किसी निजी यात्रा पर विदेश चले  गए हैं .

 कांग्रेस ने नई कृषि नीति के खिलाफ आन्दोलन कर रहे  किसानों के साथ अपने आपको जोड़ने की पूरी कोशिश की है . राहुल खुद राष्ट्रपति के यहाँ गए , दो करोड़ किसानों से दस्तखत करवाकर ट्रक में लादे हुए कागजों को मीडिया के सामने पेश किया . हमेशा ही किसानों के साथ सहानुभूति के बयान दिए लेकिन जब किसानों की एक बार फिर केंद्र सरकार से 29 दिसंबर को बात होने वाली  है तो   कांग्रेस पार्टी फिर से रक्षात्मक मुद्रा में आने के लिए मज़बूत कर दी गयी  है . अब कोई भी कांगेसी नेता कोई भी बात करने की कोशिश करेगा तो उससे राहुल गांधी के बारे में ही सवाल पूछा जाएगा . ज़ाहिर है कांग्रेस के सामने अपने कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज करने का एक अवसर था  और उसको राहुल  गांधी के विदेश यात्रा के मोह की बलिबेदी पर कुर्बान करना पडा है .

2004 में राहुल गांधी  कांग्रेस पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल हुए थे .2013 में कांगेस के जयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस की दरबारी संस्कृति  के मठाधीशों ने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनवा लिया था . उसी के साथ ही चुनावों में कांग्रेस  पार्टी के  कमज़ोर पड़ने का सिलसिला शुरू  हो गया था . उसके बाद से पार्टी  में उन नेताओं का वर्चस्व बढना शुरू हो गया  जो लुटियन बंगलो ज़ोन की शोभा बढाते हैं  . इनमें से ज्यादातर ज़मीनी मजबूती के कारण नेता नहीं बने हैं . इन सब पर इंदिरा गांधी परिवार की कृपा बरसती रही है और  उसी के इनाम के रूप में यह लोग राजनीतिक सत्ता का लाभ  उठाते  रहते हैं. उसी के साथ ज़मीनी नेताओं को  दरकिनार किये जाने का सिलसिला भी  शुरू हो गया .राहुल गांधी के  नेतृत्व में  कांग्रेस पार्टी में ऐसे लोग बड़े नेता बने बैठे हैं जिसमें कभी पूरे भारत के गाँवों और शहरों से आये  जनाधार वाले नेता कांग्रेस के नीतिगत फैसले लिया करते  थे. .2013 में  संपन्न हुये  जयपुर की चिन्तन शिविर में जब राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया  उसी दिन से जनाधार वाले नेताओं का  पत्ता कटना शुरू हो गया था .यह अलग बात है कि राहुल गांधी ने उस शिविर में जो बातें कहीं थीं अगर वे लागू हो  गई होतीं तो  कांग्रेस की दिशा  ही बदल गयी  होती. कांग्रेस के उपाध्यक्ष रूप में राहुल गांधी के नाम की घोषणा होने के बाद उन्होंने जयपुर  चिंतन शिविर की समापन सभा में कहा था कि “ हम टिकट की बात करते हैंजमीन पे हमारा कार्यकर्ता काम करता है यहां हमारे डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बैठे हैंब्लॉक प्रेसिडेंट्स हैं ब्लॉक कमेटीज हैं डिस्ट्रिक्ट कमेटीज हैं उनसे पूछा नहीं जाता  हैं .टिकट के समय उनसे नहीं पूछा जातासंगठन से नहीं पूछा जाताऊपर से डिसीजन लिया जाता है .भइया इसको टिकट मिलना चाहिएहोता क्या है दूसरे दलों के लोग आ जाते हैं चुनाव के पहले आ जाते हैं,  चुनाव हार जाते हैं और फिर चले जाते हैं और हमारा कार्यकर्ता कहता है भइयावो ऊपर देखता है चुनाव से पहले ऊपर देखता हैऊपर से पैराशूट गिरता है धड़ाक! नेता आता हैदूसरी पार्टी से आता है चुनाव लड़ता है फिर हवाई जहाज में उड़ के चला जाता है।

यह भावपूर्ण भाषण देने के बाद राहुल गांधी ने वही काम शुरू कर दिया जिसकी उन्होंने भरपूर शिकायत की थी . उनके जयपुर भाषण से कांग्रेसियों में उम्मीद बंधी थी कि कांग्रेस को एक ऐसा नेता मिल गया  है जो अगर  सत्ता में रहा तो कांग्रेस पार्टी के  आम कार्यकर्ता  को पहचान दिलवाएगा .और  अगर  विपक्ष में रहा तो  ज़मीनी सच्चाइयां बाहर आयेंगीं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ .राहुल गांधी ने जो फैसले लिए उनसे कांग्रेस को  बहुत नुक्सान ही हुआ . पंजाब में अमरिंदर सिंह की मर्जी के खिलाफ किसी बाजवा जी को अध्यक्ष बनाया , हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ अशोक तंवर को चार्ज दे दिया . वे बाद में बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते पाए गए . मध्यप्रदेश में सोनिया गांधी की पसंद दिग्विजय सिंह को दरकिनार करने के  चक्कर में  ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे किया , वही सिंधिया  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की  सरकार के पतन के कारण बने . मुंबई कांग्रेस के मुख्य मतदाता  उत्तर भारतीय , दलित और अल्पसंख्यक हुआ करते थे लेकिन वहां पूर्व शिवसैनिक संजय निरुपम को  अध्यक्ष बनाकर पार्टी को बहुत  पीछे धकेल दिया . उत्तर प्रदेश का चार्ज किन्हीं मधुसूदन मिस्त्री को दे दिया जिनके जीवन का  सबसे बड़ा राजनीतिक काम यह था कि वे वडोदरा में एक बार किसी बिजली के खम्बे पर चढ़कर वे नरेंद्र मोदी का कोई पोस्टर सफलता पूर्वक उतार चुके थे .नैशनल हेराल्ड जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन के अखबार को ख़त्म करके निजी संपत्ति बनाने की कोशिश की . सबसे बड़ी बात यह कि उनके उपाध्यक्ष बनने के साथ ही  नरेंद्र मोदी गुजरात को छोड़कर  राष्ट्रीय राजनीति में आये . कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी के प्रचार में सबसे बड़ा योगदान राहुल गांधी का ही रहता रहा है क्यंकि वे ऐसा कुछ ज़रूर  बोलते या करते रहे हैं जिससे  बीजेपी को  कांग्रेस की धुनाई करने का अवसर  मिल जाता है .

आज कांग्रेस के स्थापना दिवस पर विदेश के लिए उड़नछू हो कर  जो काम राहुल गांधी ने किया है ,वह उनके लिए कोई नई बात नहीं है .जब से वे कांग्रेस के कर्ताधर्ता बने हैं तब से यही कर रहे हैं. लेकिन दिल्ली में उनके परिवार की गणेश परिक्रमा करने वाले नेता उनके काम को सही  ठहराते रहते  हैं . प्रियंका गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड्गे तक सभी नेता राहुल गांधी के स्थापना दिवस पर गायब रहने की बात से  शर्मिंदा नज़र आये . लेकिन यह सच्चाई है कि राहुल गांधी ऐसे काम करते रहते हैं जिससे उनकी पार्टी के बड़े नताओं से कोई जवाब देते नहीं बनता .

 

 

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