Wednesday, December 2, 2020

संयुक्त राष्ट्र में भारत का ऐलान - आतंकवाद दुनिया का सबसे बड़ा संकट


 

शेष नारायण सिंह

 

दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे के 75 साल पूरे हो गए .इस अवसर पर संयुक्त राष्‍ट्र में एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया .  सदस्य देशों ने अपनी बातें रखीं .भारत की तरफ से कहा गया कि दूसरा विश्वयुद्ध वास्तव में  आतंकवाद का नतीजा था .भारत की तरफ से कहा गया कि आतंकवाद दुनिया के समक्ष एक बड़ा संकट है। इस संकट को हराने के लिए वैश्विक एकजुटता और इसके खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की जरूरत है। समकालीन दुनिया में आतंकवाद युद्ध शुरू करने के एक प्रेरक और साधन के रूप में उभरा है। ज़रूरत इस बात की है कि सभी देश  संयुक्‍त राष्‍ट्र की मूल मान्यताओं के प्रति एक  बार फिर समर्पण करने का संकल्प लें .वास्तव में संयुक्‍त राष्‍ट्र का गठन ही युद्ध के खिलाफ विश्वजनमत का ऐलान था .संयुक्त राष्ट्र का एक प्रमुख लक्ष्य  यह भी था कि बाद  की पीढि़यों को युद्ध के संकट से बचाया जा सके। आतंकवाद आज की दुनिया में युद्ध छेड़ने का एक साधन है . इसको तबाह करने के  लिए सभी देशों को एकजुट होना पडेगा . 

 

 मानवता के इतिहास में इंसानी आतंक को समझने के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध एक अवसर देता है .जर्मनी के तानाशाह हिटलर और इटली के मुसोलिनी ने पूरे यूरोप में  ,उनके  सहयोगी जापान के शासक ने एशिया में आतंक का राज कायम करने की कोशिश की .थी  लेकिन विश्व की न्यायप्रिय जनता ने उनको पराजित किया . इंग्लैण्ड, फ्रांस सहित यूरोप के अन्य देशों में हिटलरी आतंक का डंका बज रहा था . उन दिनों यूरोप के ज्यादातर देशों में राजाओं का शासन था . अमरीका में लोकतंत्र की व्यवस्था थी . दूसरे विश्वयुद्ध में अमरीका  प्रमुख भूमिका अदा कर रहा था.  सब ने मिलकर आतंकवादी हिटलर की तानाशाही सोच को हराया और दुनिया को आतंक के राज से मुक्त किया . उसके बाद पूरी  दुनिया में लोकतंत्र की बयार बहने लगी थी . इंगलैंड के लोकतंत्र को ज़्यादातर देशों ने अपनाया . लिबरल डेमोक्रेटिक सोच और राजनीति का माहौल बना . दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बहुत सारे देशों  को आजादी नसीब हुई. एशिया और अफ्रीका के कई देश आज़ाद हुए और ज्यादातर देशों में लोकतंत्र की शासन प्रणाली कायम करने की कोशिश की गयी . किसी के एक व्यक्ति की तानाशाही की संस्कृति को तिरस्कार की नज़र से  देखा जाने लगा. लेकिन वह बहुत दिन नहीं चला . कुछ देशों में लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति बनने वाले लोगों ने अपने परिवार को ही सत्ता देने की कोशिश शुरू कर दिया . उनके परिवारों ने सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के तरह  तरह के हथकंडे अपनाए .. रूस में तो कम्युनिस्ट क्रान्ति 1917 में ही आ चुकी थी लेकिन चीन जैसे देशों में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सर्वहारा की सत्ता कायम हुई लेकिन देखा यह गया कि पार्टी का सर्वोच्च व्यक्ति इतनी ताकत इकट्ठी कर लेता था कि वह मनमानी करने लगता था . चीन में माओत्से तुंग ने यही किया . बाद के चीनी शासकों ने भी यही किया और उनके मौजूदा शासक का आलम तो यह  है कि उसने अपने आपको आजीवन राष्ट्रपति बना लिया  है . यही तानाशाही है , यही आतंकवाद है .  ऐसा इलसिए संभव हो सका क्योंकि विश्वजनमत कमज़ोर पड़ रहा था. विश्वयुद्ध ख़त्म  होने के कुछ अरसा  ही  में शीतयुद्ध शुरू हो गया . अमरीका अपना   प्रभाव क्षेत्र बढाने के लिए अपने विश्वासपात्र तानाशाहों को आगे बढाने लगा. अमरीका की इसी  प्रवृत्ति के कारण दुनिया के कई देशों में तानाशाही और आतंक की खेती होने लगी. पाकिस्तान, अल-कायदा, तालिबान, सद्दाम  हुसैन आदि अमरीकी स्वार्थों की सोच की उपज हैं .

 

आज लोकतन्त्र को सबसे खतरा  आतंकवादी संगठनों से है . जैश-ए-मोहम्म्द ,लश्कर-ए-तैयबा,  हिजबुल मुजाहिदीन , इंडियन मुजाहिदीन, अल कायदा ,हक्कानी नेटवर्क ,तहरीक-ए-तालिबान ,हरकत-उल-मुजाहिदीन ,इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन लोकतंत्र को ख़त्म करने की साज़िश हमेशा रचते रहते हैं . भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विशेष सत्र में आतंकवाद को ख़त्म करने की जो अपील की है ,वह इन जैसे संगठनों को निष्क्रिय करने की अपील है . यह सारे  संगठन पूरी  दुनिया में एक ख़ास तरह की हुकूमत कायम करना चाहते  हैं और  उनका धर्म इस तरह का निजामे-मुस्तफा  स्थापित कारने की  प्रेरणा देता  है . यह सारे  संगठन मूल रूप से आतंकवादी  हैं और अपने अलावा किसी की नहीं सुनते . जब यह ताक़तवर हो जाते हैं तो यह हिटलर भी बन सकते हैं और स्टालिन भी . यह सभी किसी न किसी आदर्श का चोगा ओढ़े रहते हैं लेकिन मूलरूप से लोकतंत्र के दुश्मन होते हैं . जब  ताकतवर हो जाते हैं तो पूरी दुनिया को कब्जे में लेना चाहते हैं . अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट का यही सपना है . ज़रूरत इस बात की है अपनी मनमानी करने वाले कहीं भी  हों उनका  विरोध किया जाए , उनको निष्क्रिय किया जाय.  हिटलर के आतंकवाद के नक्शे क़दम पर आजकल  तुर्की का शासक एर्दोगन भी चल  रहा है . वह भी खलीफा बनने  के सपने देख रहा है और दुनिया भर के  इस्लामी आतंकवादियों को समर्थन दे रहा है . उसपर भी लगाम लगाना ज़रूरी है .यह सारी जमाते लोकतन्त्र के काम करने वाली जमाते  हैं . संयुक्त राष्ट्र में हुए विशेष अधिवेशन का यही सन्देश है 

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