Wednesday, December 23, 2020

गद्दी से चिपके रहने के चक्कर में डोनाल्ड ट्रंप ने लोकतंत्र का भारी नुकसान किया

 

शेष नारायण सिंह

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव में बुरी  तरह से  हार चुके  हैं लेकिन उन्होंने अभी उम्मीद नहीं  छोड़ी है . उन्होंने अमरीका  के पांच बैटिलग्राउंड राज्यों में चुनावी  धांधली के मुक़दमे दायर करवाए थे लेकिन उनके पक्ष में कहीं  से  फैसला नहीं आया .विस्कसिन राज्य का  फैसला आज ही आया है . न्यायपालिका से बहुत उम्मीद थी क्योंकि उन्होंने फेडरल सुप्रीम कोर्ट में एक जज हड़बड़ी  में इसी योजना के तहत भर्ती किया था कि ज़रूरत पड़ने पर उनके पक्ष में  फैसला आ जाएगा लेकिन उन्हें वहां भी हार  ही मिली. अमरीका में सभी राज्यों के अलग अलग चुनावी क़ानून होते हैं और अलग तरह की न्याय प्रणाली  होती है . मसलन अमरीका के पचास राज्यों में से 37 राज्यों में जज भी चुनाव लड़कर पदासीन होते हैं . वे बाकायदा पार्टी के टिकट पर चुनकर आते हैं . ट्रंप की नवीनतम हार विस्कासिन राज्य में हुई है .  वहां के जिस जज ने उनके खिलाफ फैसला दिया है वह ट्रंप की पार्टी ,रिपब्लिकन पार्टी के टिकट पर चुनकर आया था . जब उसने कानून के हिसाब से सही फैसला दे दिया तो ट्रम्प महोदय उसको भी गाली देने लगे. उसके खिलाफ ट्वीट किया और उनके अंधभक्तों ने उसके खिलाफ ट्रोल अभियान शुरू कर दिया . अब लगता है कि वे अपनी हार को न्यायपालिका की मदद से जीत में बदलवाने की उम्मीद छोड़ चुके हैं . लेकिन अभी भी जुटे हुए हैं.  14 दिसंबर को  विभिन्न राज्यों के निर्वाचकों ने वोट डाले  जिसमें नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनकी साथी कमला हैरिस को 306 वोट मिले जबकि डोनाल्ड ट्रंप और उनके साथी माइक पेंस को 232 वोट मिले. उसके बाद ज़्यादातर अमरीकियों ने यह मान लिया कि डोनाल्ड ट्रंप  हार चुके हैं लेकिन ट्रंप ने  कोर्ट के फैसलों के सहारे चुनावी नतीजों को पलट देने की उम्मीद को जिंदा रखा . अब सब गड़बड़ हो गयी  है .न्यायपालिका ने उनको साफ़ बता दिया है कि उनकी सनक के आधार पर फैसला नहीं दिया  जा सकता , कानून ही  किसी भी फैसले की बुनियाद होता है .

चारों तरफ से निराश होने के बाद अब  ट्रंप को उम्मीद है कि जब 6 जनवरी को अमरीकी संसद में वोटों  की गिनती होगी तो उनके पक्ष में फैसला आ जाएगा . उनकी इस उम्मीद का भी कोई आधार  नहीं है क्योंकि उनकी पार्टी के ही सदस्य मिच मैकानिल सेनेट  के मेजारिटी लीडर हैं.उन्होंने 14  दिसम्बर के वोट के बाद जो बाइडेन को बधाई दे दी .इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने ट्रंप को हराने वाले जो बाइडेन को नया राष्ट्रपति स्वीकार कर लिया है . ज़ाहिर है वे 6  जनवरी को सेनेट में ट्रंप के समर्थकों के साथ नहीं खड़े होंगे . अमरीका में इस बात की बड़ी चर्चा है कि ट्रंप सेनेट में हल्ला गुल्ला करवाकर चुनाव की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश करेंगे.  लेकिन उन्हीं की पार्टी के ताक़तवर नेता और मेजारिटी लीडर मिच मैकानिल के साथ न होने से वहां भी किसी ख़ास सफलता की उम्मीद नहीं  है . सेनेट में गिनती के बाद ट्रंप के एक और सहयोगी के उनके खिलाफ जाने की उम्मीद जताई जा रही है . अमरीकी  सेनेट की  बैठकों के पीठासीन अधिकारी देश के उपराष्ट्रपति होते हैं . अपने भारत में भी उपराष्ट्रपति ही राज्य सभा के अध्यक्ष होते हैं. जब 6 जनवरी को सेनेट में वोटों की गिनती होगी तो अपने  संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करते हुए , उपराष्ट्रपति माइक पेंस नतीजों की घोषणा करेंगे . उसके बाद ट्रंप के पास कोई रास्ता नहीं  बचेगा . लेकिन इस सब के बाद भी  20 जनवरी  2021 को  अगर वे व्हाइट हाउस को खाली नहीं कर देते  तो उनको मार्शल ज़बरदस्ती वहां से निकाल देगा . उसके बाद उनको वहीं व्हाइट हाउस के पड़ोस में बने ट्रंप होटल में जाकर सामान रखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा .

डोनाल्ड ट्रंप के इस रवैये के बाद बाकी दुनिया में लोकतंत्र के अस्तित्व के बारे में शक होने  लगा है . सवाल यह  है कि अगर अमरीका जैसे देश में जहां पब्लिक ओपिनियन पूरी तरह से जागरूक है , मीडिया निष्पक्ष है , सरकार की संस्थाएं न्याय की  सीमा में रहकर काम  कर रही हैं , सेना में राजनीति का  दखल बिलकुल नहीं है और वहां का राष्ट्रपति चुनाव हार जाने के बाद भी गद्दी से चिपके रहने की जिद पर  अड़ा हुआ है  तो एशिया और अफ्रीका के उन देशों का क्या होगा जहां  अभी भी ज़्यादातर शासक सत्ता में बने रहने के लिए तरह तरह के  तिकड़म करते रहते हैं . जहाँ तक ट्रंप की बात है  उनको तो जाना  ही पडेगा लेकिन एशिया और अफ्रीका के देशों में लोकतंत्र के अस्तित्व पर शंका के बादल घूमने  लगे हैं. अभी यह बात भी  समझ में नहीं आ रही है कि जिन सात करोड़ लोगों ने ट्रंप को चुनाव में वोट दिया था, वे अभी भी उनको जीता हुआ क्यों मानते हैं और ट्रंप के उस प्रलाप को गंभीरता से ले रहे हैं जिसमें वे कहते हैं कि  राष्ट्रपति पद उनका  ही थी लेकिन  विपक्ष ने उसको चुरा लिया है . वे लोग हर उस व्यक्ति के खिलाफ बोलना या  लिखना शुरू कर देते हैं जो अमरीकी  राष्ट्रपति चुनाव में निष्पक्ष होने की कोशिश करता है . इस सिलसिले में डेमोक्रेटिक पार्टी, अमरीकी न्यायपालिका, विभिन्न राज्यों की सरकारें , सच्चाई बोलने वाले  रिपब्लिकन तो  ट्रंप के भक्तों के निशाने पर थे ही, मीडिया के खिलाफ भी विधिवत अभियान चलाया जा रहा है . एक अमरीकी भक्त की फेसबुक वाल पर यह लिखा है .लिखते हैं , ” अगर  देशद्रोही मीडिया ट्रम्प के दावे को निराधार मानता  है तो  उनके दावों को रिपोर्ट क्यों कर रहे हैं ? ऐसा लगता है कि बहुत से पत्रकार अगर जेल जाने से बच गए तो उनको फिर से पत्रकारिता पढने के लिए स्कूल में दाखिल होना पड़ेगा “ ट्रंप के भक्तों के यह दावे बहुत ही डरावने  हैं लेकिन साथ ही यह साफ़ कर देते हैं कि भक्त चाहे जहां हों, उतने ही मूर्ख होते  हैं.

इस बीच ट्रंप के कुछ काम  ऐसे संकेत देने लगे हैं कि वे राष्ट्रपति पद छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं. अमरीका में यह रिवाज़ है कि राष्ट्रपति अपराधियों को माफी दे देता है .जिसको माफी मिल जाती है उसके ऊपर उसी केस में  दोबारा मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है . रिचर्ड निक्सन सत्तर के दशक में अमरीका के राष्ट्रपति थे . उन्होंने तरह तरह के अपराध किये थे . उनके ऊपर वाटरगेट स्कैंडल के कारण महाभियोग की तैयारी हो चुकी थी . लेकिन उन्होंने अपने उपराष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड से सौदा किया कि वे इस्तीफ़ा दे देंगें और अमरीका के संविधान के अनुसार फोर्ड बिना कोई चुनाव लडे राष्ट्रपति बन जायेगें . उसके बदले में उनको  राष्ट्रपति के रूप में रिचर्ड  निक्सन के अपराधों के लिए माफी देनी पड़ेगी. ऐसा ही हुआ और फोर्ड अगस्त 1974 से जनवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे . अब ट्रंप ने भी अपने ख़ास लोगों को माफी देने का सिलसिला शुरू कर दिया है . अंधाधुंध माफी देने के चक्कर में वे ऐसे अपराधियों को भी माफी दे रहे हैं जिनके अपराध जघन्य हैं और कुछ मामलों में तो अपराधी ने अपने जुर्म को कोर्ट के सामने कबूल भी कर लिया है .

इन माफियों के सिलसिले में सबसे ज़रूरी बिंदु है कि क्या राष्ट्रपति ऐसे अपराधों के  लिए भी माफी दे सकते हैं जो अपराध हुए ही न हों. जानकर बताते हैं कि ट्रंप और उनके क़रीबी लोगों ने इतने अपराध किए हैं कि उनके ऊपर मुक़दमा चलना तो तय  है . इमकान  है कि कानून अपना काम करेगा और अगर कानून इमानदारी से काम करता है तो ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप  ,दामाद और उनके सबसे करीबी वकील रूडी जुलियानी पर मुक़दमा ज़रूर चलेगा. अभी इन लोगों पर मुकदमा दायर नहीं हुआ है . बहस इसी विषय पर हो रही है कि क्या राष्ट्रपति एडवांस में  किसी को माफी दे सकते हैं . एक कानूनी चर्चा और भी हो रही है कि क्या राष्ट्रपति अपने आपको माफ़ कर सकते हैं . उनके ऊपर तो कई केस दर्ज भी हैं . रिचर्ड  निक्सन ने तो अपने आप को माफ़ नहीं किया था क्योंकि माफी लेने के लिए उन्होंने अपने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाकर माफी  हासिल की थी. बहरहाल राष्ट्रपति ट्रंप की माफी देने की कारस्तानी के बाद लोगों को लग रहा है कि लगता है कि ट्रंप को  भी इस बात का एहसास हो चुका है कि उनको अब तो जाना ही पडेगा और पद से हटने के बाद उनको मुक़दमों का सामना भी करना पड़ेगा . अगर उनकी खुद को दी गयी माफी को जायज़ भी  मान लिया जाएगा तो भी राष्ट्रपति की माफी केवल उन्हीं मामलों के  लिए होती है जो  फेडरल न्याय क्षेत्र में होते हों. राज्यों के  मामलों के लिए राष्ट्रपति किसी को माफी नहीं दे सकते . डोनाल्ड ट्रंप के ऊपर न्यूयॉर्क राज्य में टैक्स चोरी के  कुछ मामले दर्ज हैं . उनमें किसी माफी का प्रावधान नहीं है. जी भी हो बीस जनवरी के बाद तो ट्रंप को जाना ही होगा लेकिन उसके  पहले उन्होंने बेशर्मी की सभी सीमाएं पार कर ली हैं .

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