Tuesday, October 23, 2018

सरदार पटेल ने आर एस एस पर कभी भरोसा नहीं किया


शेष नारायण सिंह
सरदार पटेल की बहुत बड़ी मूर्ति नर्मदा जिले के केवड़िया में लग चुकी है . ३१ अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर उसको पब्लिक के देखने के लिए खोल दिया जाएगा . चीन से बनकर आयी मूर्ति अमरीका की स्टेचू आफ लिबर्टी से भी ऊंची है .सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस मूर्ति में सरदार पटेल की शक्ल किसी और की लगती है . लेकिन उससे मूर्ति स्थापित करने वालों को बहुत फर्क नहीं पड़ता ..  सरदार पटेल देश की आजादी की लड़ाई के प्रमुख योद्धा थे जबकि वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के मूल संगठन , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई भी नेता १९२० से १९४७ तक चले देश की आजादी के आन्दोलन में शामिल नहीं था .उस दौर के उनके दो बड़े नेता, के बी हेडगेवार और एम एस गोलवलकर कभी भी  आज़ादी की कोशिश कर रहे  किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए ,कभी जेल नहीं गए , कभी अंग्रेजों के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया और जब देश आज़ाद हो गया तो उसकी भी आलोचना की .लेकिन देश आज़ाद हुआ और महात्मा गांधी उस आज़ादी की लड़ाई के सर्वमान्य नेता था. महात्मा गांधी कांग्रेस के नेता थे और १९२५ में कांग्रेस के बेलगाम कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके थे . लेकिन देश की सत्ता में आने के बाद तो अपने किसी ऐसे नेता की ज़रूरत होती ही है  जो आज़ादी की लड़ाई का हीरो रहा हो. शायद  इसलिए जब बीजेपी पहली बार सत्ता में आई तो पार्टी ने पूरी गंभीरता से काबिल पुरखों की तालश शुरू कर दी .  हालांकि एक बार पहले भी  महात्मा गांधी को अपनाने की कोशिश की गयी थी. भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के साथ ही पार्टी ने मुंबई में 28 दिसंबर 1980 को आयोजित पने पहले ही अधिवेशन में अपने पांच आदर्शों में से एक गांधियन सोशलिज्म  को निर्धारित किया था .लेकिन जब बीजेपी 1985 में लोकसभा की दो सीटों पर सिमट गयी तो गांधी जी से अपने आपको दूर  कर लिया गया . १९९८ में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आने के बाद तो महात्मा गांधी को पूरी तरह से अपना लेने का कार्यक्रम फोकस में आ गया . महात्मा गांधी और आर एस एस के बीच इतनी  दूरियां  थीं जिनको कि महात्मा जी के जीवन काल और उसके बाद भी  भरा नहीं जा सका।अंग्रेज़ी  राज  के  बारे में महात्मा गांधी और आर एस एस में बहुत भारी मतभेद था। 1925 से लेकर 1947 तक आर एस एस को अंग्रेजों के सहयोगी के रूप में देखा जाता है . शायद इसीलिये जब 1942 में भारत छोडो का नारा देने के बाद देश के सभी नेता जेलों में ठूंस दिए गए थे तो आर एस एस के सरसंघचालक एम एस गोलवलकर सहित उनके सभी नेता जेलों के बाहर थे और  अपना सांस्कृतिक काम चला रहे थे . फिर भी  दोबारा महात्मा गांधी को अपनाने की कोशिश आर एस एस ने पूरी गंभीरता के साथ 1997 को 2 अक्टूबर  को शुरू किया . अक्टूबर की एक सभा में आर एस एस के तत्कालीन सरसंघचालक  प्रो.राजेन्द्र सिंह( रज्जू भैया) ने महात्मा गांधी की बहुत तारीफ़ की . उस सभा में बीजेपी के तत्कालीन दोनों बड़े नेता, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवानी भी मौजूद थे। राजेन्द्र सिंह ने कहा कि  गांधीजी भारतमाता  के चमकते हुए नवरत्नों में से एक थे और अफ़सोस जताया कि  उनको सरकार ने भारत रत्न की उपाधि तो नहीं दी लेकिन  वे लोगों की नज़र में सम्मान के पात्र थे। सार्वजनिक मंच से महात्मा गांधी की  प्रशंसा का जो यह सिलसिला शुरू हुआ ,वह आजतक जारी है.

महात्मा गांधी की विरासत का वारिस बनने  की  संघ की  मुहिम  के बीच कुछ ऐसे भी मुकाम आये  जिस से उनके अभियान को भारी घाटा हुआ। आडवानी समेत सभी बड़े नेताओं ने बार बार यह कहा था कि जब महात्मा गांधी की हत्या हुयी तो नाथूराम गोडसे आर एस एस का सदस्य नहीं था .यह बात तकनीकी आधार पर सही है लेकिन गांधी जी  की हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सज़ा  काट कर लौटे  नाथू राम गोडसे के भाई ,गोपाल गोडसे ने दूसरी बात बताकर उनकी मंशा फेल कर दिया . उन्होंने अंग्रेज़ी पत्रिका " फ्रंटलाइन " को दिए गए एक इंटरव्यू में बताया कि आडवानी  और बीजेपी के अन्य नेता उनसे दूरी  नहीं  बना सकते। . उन्होंने कहा कि " हम सभी भाई आर एस एस में थे। नाथूराम, दत्तात्रेय , मैं और गोविन्द सभी आर एस एस में थे। आप कह सकते हैं  की हमारा पालन पोषण अपने घर में न होकर आर एस एस में हुआ। . वह हमारे लिए एक परिवार जैसा था।  . नाथूराम आर एस एस के बौद्धिक कार्यवाह बन गए थे।। उन्होंने ( नाथूराम ने ) अपने बयान में यह कहा था कि  उन्होंने आर एस एस छोड़ दिया था . ऐसा उन्होंने  इसलिए कहा क्योंकि महात्मा गांधी की हत्या के बाद गोलवलकर और आर एस एस वाले बहुत परेशानी  में पड़  गए थे। लेकिन उन्होंने कभी भी आर एस एस छोड़ा नहीं था "
अपने संगठन को गांधी का करीबी बताने के चक्कर में नवम्बर 1990 में बीजेपी के तत्कालीन महासचिव कृष्ण लाल शर्मा ने प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर को एक पत्र लिखकर बताया कि  27 जुलाई 1937 को हरिजन सेवक  में एक लेख लिखा था जिसमें महात्मा गांधी ने रामजन्म भूमि के बारे में उन्हीं बातों को सही ठहराया था जिसको अब आर एस एस सही बताता  है . उन्होंने यह भी दावा किया कि महात्मा गांधी के हिंदी साप्ताहिक की वह प्रति उन्होंने देखी थी जिसमें यह बात लिखी गयी थी। . यह खबर अंग्रेज़ी अखबार टाइम्स आफ इण्डिया में छपी भी थी . लेकिन कुछ दिन बाद टाइम्स आफ इण्डिया की रिसर्च टीम ने यह  खबर छापी कि  कृष्ण लाल शर्मा का बयान सही नहीं है क्योंकि महात्मा गांधी ने ऐसा कोई  लेख लिखा ही नहीं था . सच्चाई यह है की 27 जुलाई 1937 को हरिजन सेवक का कोई अंक ही नहीं छपा था . 1937 में उस साप्ताहिक अखबार का अंक 24 जुलाई और 31 जुलाई को छपा था। 
सरदार पटेल को अपना बनाने की कोशिश तब  शुरू हुयी जब लाल कृष्ण आडवानी ने अपने आपको लौहपुरुष कहलवाना शुरू किया . लेकिन इतिहास को मालूम है कि  सरदार पटेल आर.एस.एस. और उसके तत्कालीन मुखिया गोलवलकर को बिलकुल नापसंद करते थे। यहां तक कि गांधी जी की हत्या के मुकदमे के बाद गिरफ्तार किए गए एम.एस. गोलवलकर को सरदार पटेल ने तब रिहा किया जब उन्होंने एक अंडरटेकिंग दी कि आगे से वे और उनका संगठन हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएंगे।
उस अंडरटेकिंग के मुख्य बिंदु ये हैं:-आर.एस.एस. एक लिखित संविधान बनाएगा जो प्रकाशित किया जायेगाहिंसा और रहस्यात्मकता को छोड़ना होगासांस्कृतिक काम तक ही सीमित रहेगाभारत के संविधान और तिरंगे झंडे के प्रति वफादारी रखेगा और अपने संगठन का लोकतंत्रीकरण करेगा। (पटेल -ए-लाइफ पृष्ठ 497, लेखक राजमोहन गांधी प्रकाशक-नवजीवन पब्लिशिंग हाउस, 2001) आर.एस.एस. वाले अब इस अंडरटेकिंग को माफीनामा नहीं मानते लेकिन उन दिनों सब यही जानते थे कि गोलवलकर की रिहाई माफी मांगने के बाद ही हुई थी।बहरहाल हम इसे अंडरटेकिंग ही कहेंगे। इस अंडरटेकिंग को देकर सरदार पटेल से रिहाई मांगने वाला संगठन यह दावा कैसे कर सकता है कि सरदार उसके अपने बंदे थे। सरदार पटेल को अपनाने की कोशिशों को उस वक्त भी बड़ा झटका लगा जब लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री बने और उन्होंने वे कागजात देखे जिसमें बहुत सारी ऐसी सूचनाएं दर्ज हैं जो अभी सार्वजनिक नहीं की गई है। जब 1947 में सरदार पटेल ने गृहमंत्री के रूप में काम करना शुरू किया तो उन्होंने कुछ लोगों की पहचान अंग्रेजों के मित्र के रूप में की थी। इसमें कम्युनिस्ट थे जो कि 1942 में अंग्रेजों के खैरख्वाह बन गए थे।सरदार पटेल इन्हें शक की निगाह से देखते थे। लिहाजा इन पर उनके विशेष आदेश पर इंटेलीजेंस ब्यूरो की ओर से सर्विलांस रखा जा रहा था। पूरे देश में बहुत सारे ऐसे लोग थे जिनकी अंग्रेज भक्ति की वजह से सरदार पटेल उन पर नजर रख रहे थे। कम्युनिस्टों के अलावा इसमें अंग्रेजों के वफादार राजे महाराजे थे। लेकिन सबसे बड़ी संख्या आर.एस.एस. वालों की थीजो शक के घेरे में आए लोगों की कुल संख्या का 40 प्रतिशत थे।
गौर करने की बात यह है कि महात्मा जी की हत्या के पहले हीसरदार पटेल आर.एस.एस. को भरोसे लायक संगठन मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन आजकल तो बीजेपी के नेता ऐसा कहते हैं जैसे सरदार पटेल उनकी अपनी पार्टी के सदस्य थे . अहमदाबाद में उनकी मूर्ति लगना उसी कार्यक्रम का एक हिस्सा हो सकता है.

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