Thursday, October 11, 2018

गुजरात से हिंदी भाषी मजदूरों का पलायन बहुत ही खतरनाक संकेत है




शेष नारायण सिंह






गुजरात से भाग रहे लोग वहां रोजी रोटी की तलाश में गए  थे. अब उनको भागना पड़ रहा है . जो तस्वीरें सामने आ रही हैं , उनसे साफ़ पता चलता है कि वहां मजदूरी की तलाश में गए लोगों पर संकट है . किसी अपराधी मानसिकता के आदमी ने एक दुधमुंही बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना दिया . इस जघन्य काम को करने के पीछे उस नीच की मानसिकता की निंदा की जानी चाहिए . उसको सज़ा दी जानी चाहिए लेकिन यह सज़ा उसको कानून के तहत दी जानी चाहिए . इस तरह की देश के अलग अलग राज्यों में घटनाएं हो रही हैंऔर अदालतें सज़ा भी दे रही हैं . फास्ट ट्रैक कोर्ट बना दिए गए  हैं और अपराधी को ऐसी सज़ा दी जा रही है जो अन्य संभावित अपराधियों के मन में दहशत भी पैदा कर रही है . गुजरात में बच्ची के साथ हुयी दरिन्दगी की सज़ा देने का जो काम सरकार और न्याय व्यवस्था को करना चाहिए था , वह  काम गली मोहल्ले के गुंडे कर रहे हैं . एक गैर गुजराती की नीच हरकत की सज़ा हर उस आदमी को दी जा रही है जो गुजरात में उत्तर प्रदेश ,बिहार  और मध्य प्रदेश से आकर  काम कर रहा है . सरकार खामोश है , कुछ नहीं कर रही  है. राजनीति की चाकर बन चुकी गुजरात पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है . पुलिस के एक आला अफसर ने तो गलत बयानी भी कर दी है . उन्होंने फरमाया कि लोग डर के मारे नहीं भाग रहे हैं , वे अपने गाँव छठ पूजा के लिए जा रहे हैं . अभी छठ पूजा में एक महीने से ज्यादा का समय बाकी है. जो लोग भाग रहे हैं उनसे जब स्टेशनों पर कुछ रिपोर्टरों ने बात की तो पता  लगा कि उन लोगों ने छठ  पूजा में अपने गाँव वापस जाने के लिए टिकट बुक करवा लिया था लेकिन वह तो अक्टूबर के अंत का  कन्फर्म टिकट है. अभी तो डर के कारण ही भाग रहे हैं .
गुजरात से उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का पलायन बहुत सारे सवाल खड़े कर रहा है . टीवी की बहसों में सत्ताधारी पार्टी के वफादार पत्रकार तो इस के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं . उनका तर्क है कि कांग्रेस के टिकट पर एम एल ए का चुनाव जीतकर आया , अल्पेश ठाकोर नाम का एक व्यक्ति लोगों को भड़का रहा है  जिसके कारण लोग हिंसक होकर बिहारी मजदूरों को मार पीट रहे  हैं . इस तर्क में कई लोच हैं . सबसे बड़ा लोचा तो यही कि जो अल्पेश ठाकोर एक चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस के चरणों में लेट गया था वह इतना ताक़तवर कब हो गया कि उसके भड़काने से गुजरात का नौजवान हथियार लेकर मैदान में आ गया और बिहारियों को डरा धमका कर भगाने लगा . यह तर्क सही नहीं है .  इस तर्क में तार्किक दोष भी हैं .अगर अल्पेश ठाकोर के भड़काने से ऐसी हालात पैदा हो गयी हैं कि गुजरात की सरकार बेचारी लग रही है तो यह शर्म की बात है . सरकार की एजेंसियों को चाहिए कि अल्पेश ठाकोर को गिरफ्तार करेंउस पर मुक़दमा कायम करें और उसको काबू में करके उसकी भड़का सकने की ताकत को नाकाम कर दें . लेकिन सरकार ऐसा कुछ नहीं कर  रही है . यह सरकार राज करने की अपनी वैधनिकता को  गँवा चुकी है क्योंकि गुजरात में  जो हालात है उससे साफ़ पता चलता है कि वहां संवैधानिक मशीनरी  फेल हो गयी है. संविधान और राजनीति का कोई भी जानकार  बता देगा कि संवैधानिक को लागू न करवा पाने की स्थिति में अनुच्छेद ३५५ और और ३५६ लगाकर राज्य सरकार को बर्खास्त करके केंद्र  का शासन लागू कर दिया जाता है . जो गुजरात में हो  रहा है वह तो संविधान के मौलिक अधिकारों की खिल्ली उड़ाने जैसा काम है .
यह बहुत ही गंभीर मामला है . संविधान के मौलिक अधिकारों वाले  खंड में  अनुच्छेद १९ में यह प्रावधान है कि देश के सभी नागरिक भारत के किसी भी  हिस्से में जा सकते हैं ( अनुच्छेद 19 (1) (d) ,भारत के किसी भी हिस्से में निवास कर सकते हैं और वहां बस सकते हैं (19 (1) (e) , कोई भी  रोज़गार कर सकते हैं और कोई भी कामउद्योग या व्यापार कर सकते हैं .(19) (1) (g) .इसके अलावा जिस तरह से गुजरात से लोगों को धमकाया जा रहा  है .उसमें संविधान के अनुच्छेद १५ की भी अनदेखी हो रही है . उसमें साफ़ लिखा है कि किसी भी भारतीय नागरिक के खिलाफ धर्म , जातिसेक्सजन्मस्थान के कारण भेदभाव नहीं किया जा सकता है . गुजरात में जो भी हो रहा है वह सीधे तौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश से आये लोगों को घेरने की साजिश का  हिस्सा  है. अनुच्छेद  २१ की भी अवहेलना हो  रही है .इस अनुच्छेद में लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार और उसकी निजी  स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है . बिहारियों से मारपीट कर रही भीड़ इन दोनों ही अधिकारों को छीन रही  है. इस तरह  से संविधान की खुले आम अवहेलना हो रही है और राज्य सरकार  संविधान की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर रही है . केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह इस स्थिति को समझे और राज्य सरकार को उसका कर्तव्य पालन करने के लिए बाध्य करे. संवैधानिक मशीनरी के फेल होने पर केंद्र सरकार की मंत्रिपरिषद  माननीय  राष्ट्रपति जी को राज्य सरकार को बर्खास्त करने की सलाह दे सकती है और संविधान के अनुसार वह सलाह राष्ट्रपति जी को माननी ही पड़ेगी.लेकिन ऐसा कुछ भी होता दिख नहीं रहा है .
एक  हफ्ते से गुजरात में संविधान की धज्जियां उडाई जा रही हैं और सरकार की तरफ से राजनीतिक रूप से असुविधाजनक कुछ लोगों की गिरफ्तारी के अलावा कुछ नहीं हुआ है. . होना यह चाहिए था कि राज्य सरकार हुकूमत के इकबाल को बहाल करती और जो लोग भी बिहारी मजदूरों को मार पीट रहे हैं उनके मन में कानून का डर पैदा होता और स्थिति सामान्य हो जाती . जिस तरह से  स्पष्ट बहुमत वाली राज्य सरकार अकर्मण्य बन कर  बैठी है उससे तो लगता  है कि गुंडों और राज्य सरकार की  मिलीभगत है . अगर यह संभवाना सच है तो बहुत बुरा  है. आरोप लग रहे हैं कि एक  कांग्रेसी एम एल ए को ज़िम्मेदार बताकार उत्तर प्रदेशबिहार और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बदनाम करने की किसी  साज़िश के मद्दे नज़र सरकार कोई कार्रवाई  नहीं कर रही है . अगर यह  सच है तो बहुत बुरा है . सरकार को मालूम होना चाहिए कि अगर आपने सही तरीके से अपना फ़र्ज़ नहीं  निभाया तो आपकी सरकार की वैधता पर तो सवाल उठते ही हैं ,चुनाव में भी गैरजिम्मेदार पार्टी को भारी नुक्सान उठाना पड़ता है .इस सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश में २०१३ में हुए मुज़फ्फरनगर दंगे से सबक सीखना किसी भी सरकार और राजनीतिक पार्टी के लिए उपयोगी होगा. सितम्बर २०१३ में उत्तर प्रदेश में बिलकुल ताज़ा सरकार थी . कुल  सवा साल पहले अखिलेश यादव ने शपथ ली थी. उनके पास अनुभव नहीं था . वे अपने पिता और उनके मित्रों पर बहुत भरोसा करते थे . इसी बीच मुज़फ्फरनगर में दंगा हो गया. अब तो खैर सब जानते हैं कि दंगा पूर्व नियोजित था . मुसलमानों का राजनीतिक प्रबंधन उनके पिता जी के एक मित्र कर  रहे. उनको अंदाज़ ही नहीं लगा कि मेरठ और मुज़फ्फर नगर के कुछ गुंडा टाइप समाज विरोधी तत्व सोशल मीडिया पर भड़काऊ तस्वीरें डालकर साम्प्रदायिक माहौल बना रहे थे . उन्होंने सरकार की तरफ से दंगे को रोकने की कोई कोशिश नहीं होने दी  अपने कुछ गुंडों को सक्रिय कर दिया . बताते हैं कि उनको उम्मीद थी कि मुसलमानों में जो थोडा बहुत मायावती की पार्टी की तरफ का झुकाव देखा जा रहा था ,वह दंगे के बाद उनकी पार्टी के साथ एकजुट हो जाएगा . सारे मुस्लिम  वोट उनकी पार्टी को मिल जायेंगें . दंगे  के बाद कई अफसरों से बात हुयी . सब का यही कहना था कि अगर सरकार की तरफ से कोई अड़चन न होती तो सोशल मीडिया पर ज़हर उड़ेल रहे गुंडों को काबू कर लिया गया होता और दंगा किसी कीमत पर न होता. लेकिन दंगा हुआ . सरकार की तरफ से ढिलाई हुयी और नतीजा सबके सामने है . हालांकि उसी दंगे के  बाद अखिलेश यादव ने अपने पिताजी के मित्रों को नज़रंदाज़ करना शुरू कर दिया था और बाद में ठीक शासन चलाया लेकिन सरकार की नाकामी का नुक्सान उनकी पार्टी को २०१४ में भी हुआ और २०१७ में भी . इसलिए सामाजिक अशांति की हालात के बाद राजनीतिक लाभ की उम्मीद लगाए गुजरात के हुक्मरानों को पता होना चाहिए कि जनता अशांति को बर्दाश्त नहीं करती . अगर सरकारें अपना फ़र्ज़ सही  तरीके से नहीं निभातीं  तो उनकी पार्टी को उसकी कीमत देनी पड़ती है .  

 पलायन एक बड़ी समस्या है . उत्तर प्रदेश , बिहार ,राजस्थान और मध्यप्रदेश की सरकारों को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि उनके ही राज्य से लोग गुजरातपंजाब , हरियाणा ,महाराष्ट्र या कर्नाटक  में रोज़गार की तलाश में क्यों जाते हैं . कोई भी गुजराती आदमी उत्तर प्रदेश या बिहार में काम की तलाश में नहीं आता . इसका कारण  यह है कि  इन राज्यों में गैर ज़िम्मेदार सरकारों ने रोज़गार के अवसर ही नहीं पैदा किये . गंगा जी के आसपास का क्षेत्र जितना उपजाऊ है उतना उपजाऊ इलाका  कहीं नहीं है लेकिन चूंकि सरकारों ने उद्योग सृजन या रोज़गार का माहौल नहीं बनाया इसलिए यहाँ का आदमी उन राज्यों में मजदूरी करने के लिए अभिशप्त है जहां के नेताओं ने विकास को प्राथमिकता दी है .इसलिए इन राज्यों में जो भी सरकारें हैं या आने वाली हैं सबका कर्त्तव्य है कि अपनी मानव संपदा को अपने ही राज्य में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने के लिये नीतियाँ बनाएं और अपने लोगों को अन्य राज्यों के गुंडों से पिटने  से बचाएं .दूसरी तरफ ,किसी अन्य राज्य के लोगों को अपने यहाँ से भागने को मजबूर करने वाले नेताओं को शायद यह भी मालूम नहीं है कि वे इस तरह के काम करके देश की  सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता को भरी नुक्सान पंहुचा रहे हैं . इसलिये केंद्र सरकार का ज़िम्मा है कि वह गुजरात की सरकार को आगाह  करे कि बिगड़ते हालात पर फ़ौरन काबू करें वरना देर हो जायेगी और एक राज्य की सरकार अदूरदर्शिता का खामियाजा पूरे देश को उठाना पडेगा .


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