Wednesday, June 16, 2010

फिर पूछें कि मौत का सौदागर कौन है

शेष नारायण सिंह


(डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट से साभार )

दिसंबर १९८४ में हुए भोपाल गैस हादसे का विवाद एक बार फिर जिंदा हो गया है . राजीव गाँधी का नाम आते ही बी जे पी को लगने लगा है कि शायद बोफर्स टाइप कुछ काम बन जाए और राजनीतिक फसल में मुनाफ़ा हो . उधर दिल्ली में बैठे कांग्रेस के ज़रुरत से ज्यादा वफादार लोग राजीव के नाम को बचाने के चक्कर में उल जलूल बयान दे रहे हैं . जिन्होंने भोपाल की उस खूंखार रात को देखा है उनके लिए भोपाल गैस त्रासदी के किसी अपराधी को माफ़ कर् पाना मुश्किल है . अब भोपाल गैस काण्ड पर विधिवत राजनीति शुरू हो गयी है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन राजनीतिक किलेबंदी के चक्कर में मुद्दे से जनमत का ध्यान हटाने की कोशिश को भी बात को को हड़प लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. मुद्दा यह है कि भोपाल के इतने बड़े मामले को जिन लोगों ने मामूली कानून व्यवस्था के मामले की तरह पेश किया , वे ज़िम्मेदार हैं और उन्हें सवालों के घेरे में लिया जाना चाहिए . हादसा जिस दिन हुआ उस दिन मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री ,अर्जुन सिंह थे , उनकी जो भी ज़िम्मेदारी हो उसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिये. उन पर आरोप है कि उन्होंने युनियन कार्बाइड के मुखिया को देश से भाग जाने में मदद की. लेकिन इस मामले में इस से बहुत बड़े बड़े घपले हुए हैं . उन पर भी नज़र डाली जानी चाहिए और सब को कटघरे में लाया जाना चाहिए जिस से भविष्य में कोई भी नेता या अधिकारी इस तरह के काम करने से डरे . भोपाल गैस काण्ड में बहुत सारे आयाम हैं. यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि दंड संहिता की धाराओं को हल्का किसने किया , लोगों के पुनर्वास के काम में ढिलाई किसने बरती , एक अभियुक्त को तत्कालीन गृह मंत्री और राष्ट्रपति के पास कौन लेकर गया और क्यों यह मुलाक़ात करवाई गयी. उस वक़्त के ताक़तवर लोगों की क्या भूमिका थी . यह सब ऐसे सवाल हैं जिनकी जांच करने से आगे की बात साफ़ करने में मदद मिलेगी. लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती. दिसंबर ८४ से लेकर आजतक इस मामले में बहुत सारे लोग आये हैं. उसमें भोपाल के जिला प्रशासन के वे अधिकारी हैं जिन्होंने मामले को हल्का किया . इसमें पुलिस का रोल है , मुकामी न्यायपालिका का रोल हैं , मुकामी नेताओं का रोल है. सब की पड़ताल की जानी चाहिए . और इस तरह से अर्जुन सिंह के बाद जो लोग भी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री हुए हों सबसे पूछ ताछ की जानी चाहिए . अगर ऐसा हुआ तो पिछले २५ वर्षों के हर मुख्य मंत्री की जवाबदेही और ज़िम्मेदारी तय की जा सकेगी और आने वाले दौर में मुख्य मंत्री मनमानीकरने से बाज़ आयेगें. हाँ अगर कांग्रेस के उस वक़्त के मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री को सूली पर चढ़ाना है तो मीडिया में जिस तरह का काम चल रहा है , उसे जारी रखा जा सकता है लेकिन अगर सही बात को सामने लाना है तो मीडिया के लिए भी लाजिम है कि वह सारी बातों को बहस के घेरे में लाये और बात को आगे बढाए. भारत के कानून ऐसे हैं कि वह यह सुनिश्चित करने के अवसर देते हैं कि किसी के साथ अन्याय न हो . इसके लिए कभी भी किसी मुक़दमे में दुबारा जांच की जा सकती है . इस बात की भी जांच की जानी चाहिए कि क्या अर्जुन सिंह के बाद से लेकर अब तक किसी मुख्य मंत्री ने जांच के बारे में कोई जानकारी ली क्योंकि जनता के प्रतिनधि के रूप में चुने गए हर मुख्यमंत्री का यह कि वह जनता के हितों के कस्टोडियन के रूप में काम करे.इसलिए यह ज़रूरी है कि कि दिग्विजय सिंह , मोतीलाल वोरा, उमा भारती , कैलाश जोशी. सुन्दर लाल पटवा ,राजीव गाँधी, वी पी सिंह , पी वी नरसिंह राव, एच डी देवेगोड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, और मनमोहन सिंह की भूमिका की भी जांच कर लेनी छाहिये . मीडिया को भी चौकन्ना रहने की ज़रुरत है कि वह बी जे पी की ओर से एजेंडा फिक्स कर रहे लोगों की बात को भी ध्यान में रखें लेकिन बी जे पी वालों को बचाने की कोशिशों का भी पर्दा फाश करें. ताज़ा खबर यह है कि मौत के सौदागर वाली बहस भी शुरू हो गयी है . और गुजरात २००२ के लिए ज़िम्मेदार नेता ने पूछना शुरू कर दिया है कि मौत का सौदागर कौन है . उन नेता जी को भी यह बताने की ज़रुरत है कि मौत का सौदागर वह होता है जो अपनी निगरानी में हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारे . वे खुद तय कर लें कि उस सांचे में कौन फिट बैठता है.

3 comments:

  1. उस वक्त के मुख्यमंत्री, कानून मंत्री, पुलिस अधिकारी और प्रधान मंत्री पर मुख्य आरोप लगता है । बाकी तो फिर इस बात के दोषी हैं कि उन्होने यह मामला दुबारा से क्यूं नही खोला । बहुत अधिक लोगों की जांच का मतलब है कि धागे को ऐसा उलझाना कि उसका सिरा ही न मिले । वह सही नही होगा ।

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  2. हमें नहीं लगता कि कांग्रेस का कोई भी मुख्यमंत्री इतना मजबूत होता है कि वह इस तरह के फैसले ले सके जो अर्जुन सिंह ने इस केश में लिया | अर्जुन सिंह ने तो एंडरसन को सिर्फ दिल्ली ही भेजा था उसके बाद तो वह बिना केंद्र सरकार के कहीं नहीं जा सकता था |
    बेशक अर्जुन सिंह इस मामले में दोषी है पर इस मुद्दे की जिम्मेदारी से तत्कालीन केंद्र सरकार भी बच नहीं सकती | अर्जुन सिंह इस खेल में हमें तो सिर्फ प्यादे ही नजर आ रहे है |

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  3. शेषनारायण जी "बड़े पत्रकार" हैं… कहते हैं… "मौत का सौदागर वह होता है जो अपनी निगरानी में हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारे…"

    यानी खुद ही जज भी बन गये…। सारी घृणा, सारा अपमान, सारी उपेक्षा सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी के नाम…। क्योंकि गुजरात 2002 से पहले न कभी दंगे हुए और न कभी होंगे…?

    सज्जन कुमार, टाइटलर को गले लगाया जायेगा, "जब बड़ा पेड़ गिरता है…" टाइप के मासूम बयान देने वाले राजीव भी मासूम बने रहेंगे, अब तो सीधे-सीधे भोपाल के दोषी हैं राजीव गाँधी, क्योंकि केन्द्र सरकार ने ही कहा था कि एण्डरसन को सुरक्षित वापस भेज देंगे। इसी प्रकार मुम्बई के दंगों के लिये भी सिर्फ़ शिवसेना ही जिम्मेदार है सुधाकरराव नाईक नहीं…।

    अब नक्सलवाद, महंगाई, इत्यादि के लिये भी भाजपा को जिम्मेदार ठहराने वाला कोई एंगल खोजकर लाईये ना सिंह साहब… बड़े आभारी रहेंगे… (आपके आका) :)

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