शेष नारायण सिंह 
पुणे की जर्मन बेकरी के विस्फोट के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने मुंह की खाई है .राज्य के पुलिस महानिदेशक,डी शिवनंदन  ने बयान दे दिया है कि जर्मन बेकरी केस में पुलिस का काम बिलकुल गलत ढर्रे पर चल रहा था और अब तक जो कुछ भी जांच हुई है उसका केस से कोई मतलब नहीं है. जांच को फिर से करना  होगा .जांच का काम ए टी एस  को दिया गया था . राज्य के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी ने ऐलानियाँ कहा है कि अब तक की जांच को कूड़े दान के हवाले करके नए सिरे से तफ्तीश होगी . उन्होंने अखबार वालों को बताया कि ए टी एस को केस का ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा,वैज्ञानिक तरीके से सबूत हटाना पड़ेगा और तब उन लोगों के एपह्चान करनी पड़ेगी जो जर्मन बेकरी काण्ड के लिए वास्तव में ज़िम्मेदार हैं . यानी अब तक पुलिस ने जो भी किया  उसमें पेशागत ईमानदारी बिलकुल नहीं है , .इस बात की जांच की जानी चाहिए कि  जिन लोगों को भी पुलिस ने पकड़ रखा था ,उनके खिलाफ केस क्यों  बनाया गया. वैसे भी महाराष्ट्र  पुलिस आजकल तरह तरह के गैरकानूनी काम के सिलसिले में ख़बरों में  है . उनके एक इन्स्पेक्टर को  गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उसने सुपारी लेकर एक बिल्डर को जान से मारने की कोशिश की थी. ऐसे और भी बहुत से मामले सामने आ चुके हैं जिसमें पुलिस के तथा कथित  इनकाउंटर  स्पेशलिस्टों ने  निरीह  लोगों को मौत के घाट उतार दिया था .जर्मन बेकरी का मामला थोडा पेचीदा है. जिस आदमी के बारे में सर्वोच्च पुलिस अधिकारी ने न बताया है कि  उसके खिलाफ कोई मामला नहीं है , जब उसे ए टी एस वालों ने पकड़ा था तो क्या माहौल था उस पर  नज़र डाल लेने से पुलिस की मानसिकता ठीक से समझ में आ जायेगी. 
पुणे की जर्मन बेकरी में करीब  ४ महीने  पहले हुए धमाके  में १७ लोग मारे गए थे . पुलिस ने अब्दुल समद उर्फ़ भटकल नाम के एक आदमी को २४ मई को कर्णाटक में जाकर पकड़ लिया था . यह समद इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य  यासीन भटकल नाम के आदमी का भाई है .तो क्या पुलिस किसी प्रतिबंधित संगठन के सदस्य के भाई को बिना किसी बुनियाद के गिरफ्तार कने के लिए आज़ाद है .  अब्दुल समद की  गिरफ्तारी के बाद तो माहौल ही बदल गया . पुलिस ने दावा किया कि जर्मन बेकरी में लगे क्लोज़ सर्किट  टी वी की तस्वीरें देखने के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी और वास्तव में जो आदमी बेकरी के अन्दर बम रख रहा था , वह भटकल ही है और उसे  गिरफ्तार  करके  ए टी एस वालों ने बड़ी वाह वाही बटोरी थी. हद तो तब हो गयी जब केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने महाराष्ट्र ए टी एस को सार्वजनिक रूप  से बधाई दी.और कहा कि कि समद जर्मन बेकरी धमाके का एक प्रमुख संदिग्ध है और उसको पकड़ कर  पुलिस  ने बहुत बड़ा काम किया है . आज जब पुलिस ने खुद ही यह स्वीकार कर लिया है कि उसके खिलाफ कोई केस नहीं है तो समद  के नागरिक अधिकारों का मलीदा बनाने वालों के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए . किसी भी आतंकवादी मामले में किसी भी मुसलमान कोपकड़ लेने की पुलिस की मानसिकता का इलाज़ किये जाने की ज़रुरत है . समद को गलत तरीके से हिरासत में ले लेने का  यह कोई इकलौता मामला नहीं है . मुंबई में ही ऐसे कई नौजवान बंद हैं जनके ऊपर पोटा का केस बनाकर पुलिस ने पकड़ लिया था लेकिन बाद में पता चला कि  उन पर कोई मामला ही नहीं था . इन हालात कोदुरुस्त  करने की ज़रुरत है . जब से गुजरात में नरेंद्र मोदी का राज आया है , वहां की पुलिस अपने राजनीतिक आका को खुश करने के लिए किसी भी मुसलमान को पकड़ लेती है और उसे प्रताड़ना  देकर छोड़ देती है . गुजरात पुलिस ने मुंबई की लड़की इशरत जहां को भी इसी तरह के मामले में पकड़ा था और  बाद में फर्जी मुठभेड़ दिखा कर मारा डाला था. उसी मामले में पुलिस वाले आजकल जेल की हवा खा रहे हैं . . लेकिन वह तब संभव हुआ अजब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा . 
ज़रुरत  इस बात की है कि शक़ की बिना पर लोगों को गिरफ्तार करने की पुलिस की ताक़त की कानूनी समीक्षा की जाए. वरना मुंबई और गुजरात की जेलों में ऐसे सैकड़ों मुसलमान बंद हैं जिनके ऊपर जो दफाएँ लगाई गयी  हैं उन में कहीं  तीन साल ,तो कहीं  ७ साल की सज़ा होती है लेकिन यह  लडके पिछले ८-१० साल से बंद हैं और बाद में उन्हें बाइज्ज़त बरी कर दिया जाएगा. . यह न्याय व्यवस्था की  एक बड़ी कमी है और  इस पर फ़ौरन सिविल सोसाइटी , मीडिया और राजनीतिक बिरादरी की नज़र पड़नी चाहिए . और अंग्रेजों के वक़्त की  नज़रबंदी  की पुलिस की ताक़त को कम करके देश को एक सभ्य प्रशासन देने की कोशिश करनी चाहिए
 
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