(मूल लेख दैनिक जागरण में छपा है )
शेष नारायण सिंह 
बीजिंग से मिल रही ख़बरों के अनुसार चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ब्लैकमेल  करने के लिए पाकिस्तान के साथ परमाणु समझौता करने की चाल चलने का मन बना लिया है . पाकिस्तान की जो आर्थिक हालात हैं उसमें उसे किसी  परमाणु समझौते की नहीं राजनीतिक स्थिरता की ज़रुरत है लेकिन फौजी जनरलों के हुक्म के गुलाम राष्ट्रपति ज़रदारी और प्रधानमंत्री गीलानी से सही तरह से राज चलाने की उम्मीद करना भी  बेमतलब है . चीन और पाकिस्तान के बीच परमाणु समझौते की सम्भावना  बहुत ज्यादा बढ़ गयी है . चीन के नए व्यवहार से लगता है कि वह  भारत के साथ वही पचास के दशक वाला खेल खेलने वाला है . पिछले साल भारत और चीन  के संबंधों में एक बार फिर सुधार आना शुरू हुआ था जब  दिसंबर  में  प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और चीनी प्रधान मंत्री वेन जिबाओ  जलवायु सम्मलेन में मिले थे. उसके बाद भारत की राष्ट्रपति , प्रतिभा पाटिल चीन की यात्रा पर भी हो आयीं. दोनों ही पक्षों से अच्छी अच्छी बातें हो रही हैं . हालांकि तर्ज हिन्दी-चीनी भाई-भाई वाला तो नहीं है लेकिन सुधार के लक्षण साफ़ नज़र आ रहे हैं . वैसे भी नए भूराजनीतिक माहौल में चीन और भारत को मालूम है कि आपस में दोस्ती के संकेत देने पड़ेगें . लेकिन एक नयी  कूटनीतिक चाल करवट लेती नज़र आने लगी है . चीन की तरफ से ऐसी खबरें आ रही हैं कि वह पाकिस्तान  से वैसी ही  परमाणु संधि करना चाह रहा है जैसी भारत और अमरीका के बीच हुई है. पाकिस्तान बहुत दिनों से अमरीका पर दबाव डाल रहा है कि अमरीका उसके साथ भी भारत की तरह का समझौता करे. पाकिस्तान को मुगालता है कि वह चीन की तरफ परमाणु दोस्ती का हाथ बढ़ा कर अमरीका को ब्लैकमेल कर सकता है लेकिन अब तक मिले संकेतों से साफ़ लगता है कि अमरीकी विदेश विभाग पाकिस्तान के सामने ब्लैकमेल होने को तैयार नहीं है . अमरीका जानता है कि पाकिस्तान के रोज़मर्रा के खर्च भी उसकी मदद के बिना नहीं चल सकते. और चीन या अन्य किसी देश की यह  मंशा नहीं है कि वह पाकिस्तानी हुक्मरान की रोटी पानी का खर्च दे . इस लिए पाकिस्तान और चीन की परमाणु कूटनीति की भनक लगने के बाद अमरीकी सेना और विदेश नीति के मझोले दर्जे के अधिकारियों ने पाकिस्तान के सर्वोच्च अधिकारियों को बता दिया है कि अगर चीन से परमाणु समझौता किया तो ठीक नहीं होगा . ज़ाहिर है कि पाकिस्तान के लिए चीन से दोस्ती बढ़ा कर  भारत को चिढाने में तो  कोई ख़ास परेशानी नहीं होगी  लेकिन पाकिस्तान को मालूम है कि अमरीका से पंगा लेना उसकी औकात के बाहर है .. हालांकि चीन को मज़ा आ रहा है कि वह पाकिस्तान के बहाने अमरीका और भारत दोनों को ही परेशानी में डालने की स्थिति में है . चीनी राजनयिक जानते हैं कि अगर पाकिस्तान ने चीन से परमाणु समझौता  कर लिया तो अमरीका की जनता पाकिस्तान को मिलने वाली अमरीकी सहायता को जारी नहीं रखने देगी. इस से पाकिस्तान को परेशानी  होगी और वह चीन पर पहले से भी ज्यादा  निर्भर हो जाएगा . उस स्थिति में पाक्सितान का इस्तेमाल भारत को बन्दर घुडकी देने  के लिए और भी बेहतर  तरीके से किया जा सकेगा.
चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तानी  सेनाध्यक्ष , जनरल परवेज़ अशफाक कियानी ने सारी ताक़त लगा दी है कि उनकी इस यात्रा के दौरान ही पाक-चीन परमाणु समझौते की घोषणा हो जाए लेकिन लगता है कि अमरीका के दबाव के चलते ,चीन इस घोषणा को कुछ वक़्त के लिए स्थगित कर सकता है . पिछले कुछ हफ़्तों से चीन की राजधानी से इस  तरह के संकेत मिलने शुरू हुए हैं .कि वह पाकिस्तान को भारत से बराबर साबित करने की कोशिश में पाकिस्तान से परमाणु समझौता कर सकता है .लेकिन भारत सरकार ने भी चीन को आगाह कर दिया है कि अगर वह पाकिस्तान से परमाणु समझौता करता है तो दोनों देशों के सुधर रहे रिश्तों पर उलटा असर पड़ सकता है . . इस बात के भी ज़ोरदार संकेत हैं कि चीन अब भारत से रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहा है.विदेश मंत्रालय में सर्वोच्च स्तर  पर ऐसे लोग विद्यामान हैं जो चीन को अच्छी तरह से समझते  हैं , विदेश सचिव निरुपमा राव और उनके पूर्व वर्ती शिव शंकर मेनन चीनी मामलों के अच्छे जानकार माने जाते हैं . ज़ाहिर है चीन से रिश्ते सुधारने की पहल के पीछे खूब सोची विचारी नीति काम कर रही है लेकिन चीन से आ  रहे संकेतों के मद्दे-नज़र यह ख़तरा तो बना ही हुआ है कि चीन पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की अपनी रणनीति में परमाणु आयाम भी जोड़ देगा. चीन की इस नीति को गम्भीरता  से लेने की ज़रूरत इसलिए भी है  कि चीन के परमाणु ऊर्जा विभाग और पाकिस्तान  के परमाणु ऊर्जा आयोग के बीच सारी बात चीत हो चुकी है . आर्थिक और व्यापारिक पहलू पर गौर किया जा चुका है  . अब राजनीतिक हरी झंडी का इंतज़ार है . जो दोनों देशों एक सरकारों के सर्वोच्च  स्तर पर तय होना है  .जहां  तक पाकिस्तान का सवाल है उनका सर्वोच्च राजनीतिक और सैनिक अधिकारी जनरल कियानी ही हैं . ज़रदारी और गीलानी को वैसे भी  जनरल कियानी की मर्जी के  खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं है लेकिन चीन में   भारत और अमरीकी रिश्तों पर  पड़ने वाले नफ़ा -नुकसान का जायज़ा  लिया जा रहा है और उसके बाद ही कोई फैसला होगा. जहां तक पाकिस्तान का सवाल है  वहां कूटनीतिक प्रशासन के जानकार बिलकुल नहीं है . वहां फौज की मर्जी ही चलती है
 
No comments:
Post a Comment