Wednesday, August 26, 2020

राहुल गांधी ने अपने बड़े नताओं को बीजेपी का सहयोगी बताकर कालिदास की परम्परा का निर्वाह किया है


 

शेष नारायण सिंह

 

 

कांग्रेस कार्यसमिति की  बैठक में राहुल गाधी ने अपनी पार्टी को भारी नुक्सान पंहुचा दिया है . उन्होंने कह दिया कि जिन 23 लोगों ने पार्टी के ओवरहाल के लिए चिट्ठी लिखी है उनमें से कुछ लोग बीजेपी से सम्पर्क में  हैं और  सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम कर रहे हैं . चिट्ठी लिखने वालों में  से एक कपिल  सिब्बल  इस बात से बहुत नाराज़ हो गए और उन्होंने ट्वीट कर दिया कि हमेशा से ही कांग्रेस के लिए उसके हित में लड़ते रहे हैं और तीस वर्षों से कांग्रेस का ही साथ दिया है . उधर गुलाम नबी आज़ाद ने कह दिया कि अगर राहुल  गांधी के आरोप सही पाए गए तो वे इस्तीफा  दे देंगे. राहुल गांधी के कथित बयान के बाद दो बड़े कांग्रेस  नेताओं के बयान आ जाने के बाद कांग्रेस में डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू हो गयी और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कपिल सिब्बल के ट्वीट का जवाब दिया और कहा कि राहुल  गांधी के हवाले से जो बात मीडिया में कही जा रही है वह डिसइन्फार्मेशन की साज़िश है . राहुल गांधी ने इस तरह का एक शब्द भी नहीं कहा है . हर मिनट रंग बदल रही कांग्रेस की खबरों के बीच कापिल सिब्बल का एक और बयान आ गया जिसमें उन्होंने कहा कि राहुल  गांधी ने उनको बताया  है कि  ऐसा उन्होंने कुछ नहीं कहा .सिब्बल ने उसके बाद अपना ट्वीट वापस ले लिया है . बहरहाल जो भी हो 23 नेताओं की चिट्ठी के बाद कांग्रेस बहुत  बड़े संकट में है .

 

राहुल गांधी ने कपिल सिब्बल से तो कह दिया कि ऐसा उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन उसी मीटिंग में मौजूद गुलाम नबी आज़ाद से कुछ नहीं कहा . ऐसा लगता है कि राहुल गांधी और उनके परिवार का गुस्सा गुलाम नबी आज़ाद से ज़्यादा है .  कपिल सिब्बल एक बहुत ही सफल वकील हैं . वे अपनी वकालत से कांग्रेस नेताओं को प्रभावित करने के बाद कांग्रेस में गए हैं . उन्होंने बहुत सारे मुक़दमों में कांग्रेस और  सोनिया गांधी के परिवार की मदद की है .  लेकिन गुलाम नबी आज़ाद  कांग्रेस की डायरेक्ट भर्ती वाले नेताओं में  शामिल  हैं . उनको संजय  गांधी ने कांग्रेस में इंदिरा गांधी के जीवन काल में शामिल किया था . वे अपने राज्य से चुनाव जीतने की स्थिति में कभी नहीं थे . कभी महाराष्ट्र तो कभी आंध्र प्रदेश से चुनाव लड़ाए गए . जब लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके तो कांग्रेस के प्रभाव वाले अलग अलग राज्यों से राज्य सभा में लाये गए . जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी बनाए गए .उनकी पूरी  राजनीतिक यात्रा में संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कृपा का योगदान है .आज भी गुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस पार्टी की तरफ से राज्यसभा में नेता हैं और उसी के बल पर वे   विपक्ष के नेता भी हैं . नेता विपक्ष को कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं मिलती हैं . जिस राज्यसभा में वे विपक्ष के नेता हैं उसमें डॉ मनमोहन सिंह , ए के अंटनी  जैसे  नेता भी हैं .ऐसा लगता है कि राहुल गांधी उनके बगावती तेवर से खासे नाराज़ थे . और उसी  रौ में वे यह सब बोल गए . कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में मौजूद गुलाम नबी आज़ाद ने तो इस्तीफे की पेशकश भी कर  दी .लेकिन दिल्ली के सत्ता के गलियारों में यह बात बहुत जोर शोर से चल रही है इतनी बड़ी बात हो जाने के बाद उनको इस्तीफे की पेशकश नहीं सीधे इस्तीफ़ा दे देना चाहिए क्योंकि जिन लोगों की कृपा से वे अपने  पद पर  हैं , वे नाराज़ हैं तो उनके पद पर बने रहने का कोई औचित्य  नहीं है .

 

23 नेताओं की चिट्ठी और उसके बाद बुलाई गयी कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद कांग्रेस में बहुत कुछ बदलने वाला  है. सबसे बड़ा सवाल तो राहुल  गांधी की नेतृत्व क्षमता  का ही होगा.इस  बात में दो राय नहीं है कि जिन 23 लोगों ने चिट्ठी लिखी है उसमें से हरियाणा के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के अलावा  सभी नेता लुटियन बंगलो ज़ोन की शान बढाने वाले नेता ही हैं  . इनमें से ज्यादातर ज़मीनी मजबूती के कारण नेता नहीं बने हैं . इन सब पर इंदिरा गांधी परिवार की कृपा बरसती रही है और  उसी कारण यह लोग राजनीतिक सत्ता का लाभ  उठाते  रहते हैं. अजीब बात यह है कि उस कांग्रेस पार्टी में ऐसे लोग नेता हैं जिसमें कभी पूरे भारत के गाँवों और शहरों से आये  जननेता कांग्रेस के फैसले लिया करते  थे. हालांकि जन नेताओं की इज्ज़त  पार्टी में इंदिरा गांधी के संजय गांधी के प्रभाव वाले युग से ही समाप्त होने लगी थी लेकिन 2013 में  संपन्न हुये  जयपुर की चिन्तन शिविर में जब राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया  उसी दिन से यह काम तेज़ी पकड गया . हालांकि उन्होंने उस शिविर में जो बातें कहीं थीं अगर वे लागू हो  गई होतीं तो  कांग्रेस की दिशा  ही बदल गयी  होती. कांग्रेस के उपाध्यक्ष रूप में राहुल गांधी के नाम की घोषणा होने के बाद उन्होंने जयपुर  चिंतन शिविर की समापन सभा में कहा था कि “ हम टिकट की बात करते हैंजमीन पे हमारा कार्यकर्ता काम करता है यहां हमारे डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बैठे हैंब्लॉक प्रेसिडेंट्स हैं ब्लॉक कमेटीज हैं डिस्ट्रिक्ट कमेटीज हैं उनसे पूछा नहीं जाता  हैं .टिकट के समय उनसे नहीं पूछा जातासंगठन से नहीं पूछा जाताऊपर से डिसीजन लिया जाता है .भइया इसको टिकट मिलना चाहिएहोता क्या है दूसरे दलों के लोग आ जाते हैं चुनाव के पहले आ जाते हैं,  चुनाव हार जाते हैं और फिर चले जाते हैं और हमारा कार्यकर्ता कहता है भइयावो ऊपर देखता है चुनाव से पहले ऊपर देखता हैऊपर से पैराशूट गिरता है धड़ाक! नेता आता हैदूसरी पार्टी से आता है चुनाव लड़ता है फिर हवाई जहाज में उड़ के चला जाता है।“ 

लोगों में उम्मीद बंधी थी कि कांग्रेस को एक ऐसा नेता मिल गया  है जो अगर  सत्ता में रहा तो कांग्रेस पार्टी के  आम कार्यकर्ता  को पहचान दिलवाएगा .और  अगर  विपक्ष में रहा तो  ज़मीनी सच्चाइयां बाहर आयेंगीं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ .राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे लेकिन सारे  फैसले वे ही लेते थे .उन्होंने जो फैसले लिए उनसे कांग्रेस को  बहुत नुक्सान ही हुआ . पंजाब में अमरिंदर सिंह की मर्जी के खिलाफ किसी बाजवा जी को अध्यक्ष बनाया , हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ अशोक तंवर को चार्ज दे दिया . वे बाद में बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते पाए गए . मध्यप्रदेश में सोनिया गांधी की पसंद दिग्विजय सिंह को दरकिनार करने के  चक्कर में  ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे किया , मुंबई कांग्रेस के मुख्य मतदाता  उत्तर भारतीय , दलित और अल्पसंख्यक हुआ करते थे लेकिन वहां पूर्व शिवसैनिक संजय निरुपम को  अध्यक्ष बनाकर पार्टी को बहुत  पीछे धकेल दिया . उत्तर प्रदेश का चार्ज किन्हीं मधुसूदन मिस्त्री को दे दिया जिनके जीवन का  सबसे बड़ा राजनीतिक काम यह था कि वे वडोदरा में एक बार किसी बिजली के खम्बे पर चढ़कर वे नरेंद्र मोदी का कोई पोस्टर सफलता पूर्वक उतार चुके थे .नैशनल हेराल्ड जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन के अखबार को ख़त्म करके निजी संपत्ति बनाने की कोशिश की . सबसे बड़ी बात यह कि उनके उपाध्यक्ष बनने के साथ ही  नरेंद्र मोदी गुजरात को छोड़कर  राष्ट्रीय राजनीति में आये . कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी के प्रचार में सबसे बड़ा योगदान राहुल गांधी का ही रहता रहा है क्यंकि वे ऐसा कुछ ज़रूर  बोलते या करते रहे हैं जिससे  बीजेपी को  कांग्रेस की धुनाई करने का अवसर  मिल जाता है .

कांग्रेस कार्यसमिति में अपने  23 नेताओं के पत्र को  बीजेपी के लाभ के लिए लिखा गया पत्र बताकर राहुल गांधी ने अपनी उसी  परम्परा को एक बार फिर बुलंदी दी  है जिसके लिए बीजेपी के नेता लोग उनका एहसान मानते हैं .उनका आज का बयान भी उसी कालिदासीय  श्रृंखला का कारनामा माना जाएगा  जिसमें महाकवि  कालिदास जिस डाल पर  बैठे थे उसी को काट रहे थे . अपनी पार्टी के बड़े नताओं के बारे में आक्रामक बयान देकर राहुल गांधी ने अपनी पार्टी का जो नुकसान किया  है उसका आकलन  होने में समय लगेगा .

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