Wednesday, August 19, 2020

उत्तर प्रदेश में ब्राहमणों को वोट बैंक बनाने की कोशिश शुरू : भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित करने के दावे


 

शेष नारायण सिंह

 

उत्तर प्रदेश में लगातार चलती  रहने वाली मूर्तियों की लड़ाई में परशुराम की मूर्ति से जुड़े मुद्दों ने नई इंट्री मारी है . उत्तर  प्रदेश में विधानसभा चुनाव २०२२ में  होंगे लेकिन लामबंदी अभी से शुरू हो गयी है . पहली बार ऐसा हो रहा है कि ब्राह्मण भी वोट बैंक की तरह माने जा रहे हैं . समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों के एक वर्ग के  आराध्य के रूप में पहचाने  जाने वाले भगवान  परशुराम की मूर्ति लगवाने की पेशकश कर दी है . पार्टी के नेता अभिषेक मिश्र को पार्टी के ब्राह्मण फेस के रूप में पेश किया जा रहा है.   आई आई एम अहमदाबाद में प्रोफेसर रहे हैं. वे काबिल व्यक्ति हैं .  ब्राह्मणों को साथ लेने का आइडिया उनका ही है . २००७ के चुनावों में समाजवादी पार्टी से नाराज़ ब्राह्मण अधिकारियों ने बहुजन समाज पार्टी को जिताने के लिया माहौल बना दिया था . उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक ख़ास बात यह  है कि सरकारी कर्मचारी और अफसर चुनावों  में खासे प्रभावी तरीके से दखल देते हैं . जहां तक बहुजन समाज पार्टी के उदय की बात है उसमें तो सरकारी अफसरों का बड़ा योगदान रहा है . बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक स्व कांशी राम ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत ही सरकारी कर्मचारियों के संगठन बनाकर की थी.उन्होंने  सवर्ण जातियों के खिलाफ दलित और पिछड़े सरकारी कर्मचारियों को एकजुट किया था. उनके आने के पहले दलित समाज का  लगभग पूरा वोट कांग्रेस को मिलता था. ब्राह्मणों का आधिपत्य कांग्रेस पार्टी में  तो शुरू से ही रहता था  . मुसलमान मतदाता उन दिनों  महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की पार्टी के साथ होते थे  इसलिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जीत बहुत ही आसान हुआ करती थी.  बाद में  डॉ  राम मनोहर लोहिया ने पिछड़ी किसान जातियों को कांग्रेस के खिलाफ लामबंद करना शुरू कर दिया तो पिछड़ी जातियों के लोग उत्तर प्रदेश में राम सेवक यादव और बिहार में कर्पूरी ठाकुर की मेहनत के कारण संसोपा में जाने लगे थे . १९६३ में कन्नौज लोकसभा के उपचुनाव में जब डॉ लोहिया खुद उम्मीदवार हुए तो उनके चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने बहुत काम  किया और मेंबर साहेब , नत्थू सिंह यादव के साथ मिलकर उस इलाके की बहुसंख्यक यादव जाति के मतदाताओं को एकजुट किया .उसके बाद जो चुनाव हुआ उसमें संसोपा ( संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ) का टिकट इटावा जिले के जसवंतनगर सीट से मुलायम सिंह  यादव को मिल गया . मुलायम सिंह चुन लिए गए और पिछड़ी जातियों के नेता बनने की दिशा में चल पड़े .तब से अब तक उनको  ब्राह्मणों ने एकजुट होकर कभी वोट नहीं दिया . लेकिन अब उनको लगने लगा है कि उनकी पार्टी को  ब्राह्मण  जातियों का वोट मिल जाएगा  शायद इसीलिये अब उन्होंने ब्राह्मणों  की जाति के प्रतीक माने जाने वाले परशुराम की मूर्ति लगवाने की पेशकश शुरू कर  दी है .

समाजवादी पार्टी की  तरफ से  परशुराम की मूर्ति लगवाने की बात समझने के लिए जो उनके औपचारिक बयान आ रहे हैं ,उससे बात समझ में नहीं आई . समाजवादी पार्टी के एक बड़े नेता से बात करने पर थोडा बहुत सुराग लगा है . उनका कहना है कि जिस  तरह से समाजवादी पार्टी की सरकारें रहने पर जनरल माहौल बन गया था कि सारकार यादवों के हित में काम करती है उसी तरह से पिछले तीन साल से  उत्तर प्रदेश के गाँवों में माना जाने लगा है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ठाकुरों की सरकार है . राज्य में इन दो बड़ी जातियों में जिस तरह का आपसी विरोध का माहौल है उसी के मद्दे नज़र्र यह सोचा गया कि ब्राहमणों को साथ लेने की कोशिश की जाय. इस सवाल के जवाब में कि ब्राह्मण तो हमेशा से कभी कांग्रेस को तो कभी बीजेपी को वोट देता रहा है . वह अगर बीजेपी से नाराज़ भी होगा तो कांग्रेस में जाएगा . या अगर कांग्रेस में नहीं जाता तो २००७ में मायावती की मदद करके उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा चुका है उन्होंने कहा कि माहौल बहुत बदल चुका है . राज्य में अब यह आम तौर पर माना जाता है कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती अब बीजेपी के खिलाफ कोई सख्त क़दम नहीं उठाएंगी . ताज़ा उदाहरण राजस्थान का है जहां उन्होंने वह हर काम किया जो बीजेपी के फायदे के लिए था . उत्तर प्रदेश में भी  बाहुजन समाज पार्टी की ज्यादातर जिला इकाइयां निष्क्रिय  हैं . इसलिए बीजेपी की उत्तर प्रदेश सरकार को हटाने के उद्देश्य से वोट देने वाली जमातें बसपा को वोट नहीं देंगीं . जहां तक कांग्रेस की बात है उसने अपने आपको इतना कमज़ोर कर लिया है कि अब उसके किसी तरह के विकल्प बनने की संभावना पर जनता तो विश्वास नहीं ही करते , खुद कांग्रेसी नेताओं को भी विश्वास नहीं है .जाता ही कि उसके बाद केंद्रीय  की है .

समाजवादी पार्टी की घोषणा होते ही मायावती ने  तुरंत वार किया और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की कि परशुराम जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाय .वे  कहती हैं कि अगर योगी सरकार ऐसा न किया तो सत्ता में आने पर वे छुट्टी की घोषणा खुद कर देंगीं .मायावती इतने पर ही नहीं रुकीं उन्होंने एक ट्वीट के  ज़रिये कहा कि  'मुझे मीडिया के माध्यम से यह पता चला है कि बीजेपी ने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो उनकी सरकार श्री परशुराम की भव्य प्रतिमा स्थापित करेगी। अगर ऐसा होता हैतो हमारी पार्टी विरोध नहीं करेगी बल्कि उसका स्वागत करेगी। बीजेपी सरकार को ऐसा करने में देर नहीं करनी चाहिए। मुझे लगता है कि उन्हें इसे जल्द पूरा करना चाहिए।' समाजवादी पार्टी की ओर से भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कही गई थी तो बीएसपी ने उससे बड़ी मूर्ति का दावा कर दिया। उधर  कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के मित्र और कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद ने ट्वीट के माध्यम से कहा कि  'जन-जन की आस्था के प्रतीक भगवान परशुराम जी जयंती पर वर्षो से चला आ रहा राजकीय अवकाश जो अब उ.प्र.में निरस्त है। ‘   कांग्रेस भी मूर्ति की राजनीति मेंबाक़यादा शामिल हो गयी है .

पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी  को ब्राहमण समाज का समर्थन मिल रहा है .उनको भी इस राजनीति से चिंता होना स्वाभाविक है . विपक्ष को आड़े हाथों लिया और उनके नेता केशव प्रसाद मौर्य ने  कहा कि कांग्रेस और एसपी-बीएसपी के पास अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है . इसलिये अब  पार्टी परशुराम की मूर्ति की बात करके मुद्दों से बहक रही है .

 

समाजवादी पार्टी के आदर्श पुरुष डॉ राम मनोहर लोहिया भी मूर्ति पूजा के खिलाफ थे और बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद डॉ बी आर आंबेडकर ने भी मूर्तिपूजा का समर्थन कभी  नहीं किया .  महात्मा बुद्ध ने तो पशुवध और पूजे जाने  लायक ईश्वर की  अवधारणा खिलाफ ही बौद्ध धर्म की स्थापना की थी .वे मूर्ति पूजा के भी खिलाफ थे उनके निर्वाण के पांच शताब्दी बाद उनके मत से हटकर नए बौद्ध  धर्म का अविष्कार करने की कोशिश में महायान वालों ने मूर्ति पूजा की बात की . भरहुत और साँची की के पास के टीलों की खुदाइयों में पहली बार मूर्त्तियां मिलने के साक्ष्य हैं  वरना मूल बौद्ध धर्म में तो मूर्ति की कोई बात ही नहीं थी.

आज उन्हीं लोहिया और आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वाले मूर्तियाँ लगाकर वोट लेने और वोट बैंक को संबोधित करने की  कोशिश कर रहे हैं .

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