शेष नारायण सिंह
15 अगस्त का प्रधानमंत्री का लाल किले की प्राचीर से दिया गया भाषण बहुत ही महत्वपूर्ण होता है . उस भाषण से देश और दुनिया को अनुमान लग जाता है कि भारत की नीतियां किस दिशा में जाने वाली हैं . इस बार भी प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को कई नए सन्देश दिए . कोरोना के संकट काल में उनका या संबोधन एक नए तरह का संबोधन है . हर साल जैसी भीड़ नहीं थी. स्कूल के बच्चों को इस बार नहीं बुलाया गया था . मेहमानों की संख्या भी कम थी .प्रधानमंत्री एक घंटा और 27 मिनट बोले और लगभग सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को कवर किया . चीन और पाकिस्तान को चेतावनी बिलकुल स्पष्ट शब्दों में दे दी गयी कि भारत की सीमाओं से छेड़छाड़ करने के कोशिश की तो मुश्किल होगी , उन्होंने साफ़ कहा कि एल ए सी और एल ओ सी की हिफाज़त हमारे वीर सैनिक पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं . उन्होंने चीन के लदाख में घुसने की कोशिशों को पहले भी विस्तारवाद का नाम दिया था . आज लाल किले से पूरी दुनिया को बता दिया कि चीन अब विस्तारवाद के पर्यायवाची के रूप में देखा जायेगा . ठीक उसी तरह से जैसे आतंकवाद शब्द का प्रयोग होते ही पाकिस्तान की तरफ संकेत हो जाता है . प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भारत आतंकवाद और विस्तारवाद ,दोनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है . सीमाओं की सुरक्षा के बारे में उन्होंने एक बहुत अच्छी बात यह कही कि सीमावर्ती इलाकों में एन सी सी के कैडेटों की बहुत बड़ी संख्या को थलसेना, नौसेना और वायुसेना के लोग विशेष रूप से ट्रेनिंग देंगें और वे सीमाओं की सुरक्षा के लिए ज़रूरी तैयारियों में मदद देंगे. इन कैडेटों में एक तिहाई लड़कियों को शामिल किया जाएगा. लड़कियों और महिलाओं को विकास यात्रा में तो शामिल किया ही जा चुका है. देश की सीमाओं की रक्षा के लिए इतने बड़े पैमाने पार लड़कियों को शामिल करने की पहल निश्चित रूप से एक अग्रगामी क़दम है .
इस बार के लाल किले के प्रधानमंत्री के भाषण में कुछ ऐसी बातें हैं जिनका असर बहुत दूर तलक जाएगा . कोरोना के संकट के दौर में यह भाषण हुआ है . कोरोना की वैक्सीन की तैयारी के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया और देश को सूचित किया कि तीन प्रयोगशालाओं की वैक्सीन ट्रायल के स्तर पर बहुत आगे पंहुच चुकी हैं और वैज्ञानिकों की मंजूरी मिलते ही उनको देश के हर व्यक्ति तक पंहुचाया जा सकेगा . यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि अभी तक वैक्सीन के मामले में भारत हमेशा से ही दूसरे देशों के शोध के सहारे ही रहता रहा है . जन स्वास्थ्य के सम्बन्ध में आज नरेंद्र मोदी ने जो घोषणा की है वह क्रांतिकारी मानी जायेगी . उन्होंने नैशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की बात की . इसके तहत देश की पूरी आबादी को कवर कर लिया जाएगा . जिस तरह से देश के हर व्यक्ति के पास आधार कार्ड है उसी तरह से सबके पास एक हेल्थ पहचान कार्ड होगा. जिसमें टेक्नोलोजी की मदद से उस व्यक्ति के स्वास्थ्य और बीमारी से सम्बंधित सारी जानकारी होगी. यह बहुत बड़ी बात है . स्वास्थ्य के बारे में अब तक लागू की गयी सभी स्कीमों को अगर इस हेल्थ कार्ड से मिला दिया गया तो लोगों के स्वास्थ्य प्रबंधन में बहुत ही सुभीता होगा. ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधा एक बड़ी समस्या है .प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि डेढ़ लाख गाँवों में वेलनेस सेंटर की स्थापना का काम शुरू किया जा चुका है . यानी देश के पचीस प्रतिशत गाँवों में यह सुविधा हो जायेगी . सरकार का लक्ष्य देश के सभी छः लाख गाँवों में यह सुविधा पंहुचा देने का है . इसमें संचार टेक्नोलोजी की प्रमुख भूमिका होने वाली है . उसकी भी व्यवस्था कर ली गयी है .अगले एक हज़ार दिन के अंदर देश के सभी छः लाख गाँवों को आप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया जायेगा ज्सिएक बाद दिल्ली जैसी संचार व्यवस्था देश के सुदूर गाँवों में भी लागू कर दी जायेगी .
प्रधानमंत्री के भाषण का स्थाई भाव आत्मनिर्भर भारत ही रहा . उन्होंने रक्षामंत्री के कुछ दिन पहले किये गए वायदे का ज़िक्र किया जिसके तहत एक सौ से ऊपर रक्षा उपकरणों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है . इसका भावार्थ यह हुआ कि अपनी ज़रूरत के लिए तो भारत का रक्षा उद्योग हथियार आदि का निर्माण करेगा ही , एशिया और अफ्रीका के जो देश अभी यूरोप और अमरीका से रक्षा के सामान की खरीद करते हैं वे भारत से आयात कर सकेंगे . इसी सन्दर्भ में उन्होंने एक नई बात भी कही. उन्होंने देश में कई साल पहले मेक इन इण्डिया की स्कीम की नीति लागू की थी . आज उन्होंने ऐलान किया कि अब मेक फॉर द वर्ल्ड का नीति लागू की जायेगी . यह नीति बहुत ही सामयिक है .. चीन ने पूरी दुनिया को कोरोना के संकट में डालकर यूरोप और अमरीका के लगभग सभी बड़े उद्योगों और सरकारों को नाराज़ कर दिया है . विकसित देशों में महंगी मजदूरी से बचने के लिए ज्यादातर बड़ी और मझोली कम्पनियां अपने उत्पादन का मैनुफैक्चरिंग बेस चीन में ही रखती चली आ रही हैं . लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति और गैरज़िम्मेदार डिप्लोमेसी के चलते वहां से हटाना चाहती हैं . बड़ी संख्या में कारखाने चीन से हटकर वियतनाम, दक्षिण कोरिया और ताइवान में काम करना शुरू भी कर चुके हैं . भारत सरकार की कोशिश है कि चीन से हटने वाली बड़ी कम्पनियां भारत में मैनुफैक्चरिंग बेस स्थापित करें . सरकार ने इसके लिए तैयारी भी पूरी कर ली है . श्रम कानूनों में सुधार , बैंकिंग व्यवस्था में सुधान, इंश्योरेंस में सुधार सब पहले ही हो चुका है . आज प्रधानमंत्री ने जब बात के लिए आवाहन किया कि मेक फॉर इण्डिया तो ठीक है लेकिन अब मेक फॉर वर्ल्ड का समय आ गया है ,तो वे चीन से देशों के विमुख होने की वैश्विक राजनीति को एक दिशा दे रहे थे और उसमें भारत के लिए स्थान सुनिश्चित करने की बात कर रहे थे. “ सामर्थ्य मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रम मूलं वैभवं “ का जो मंत्र उन्होंने अपने भाषण में कहा उसका तात्पर्य यही है . यानी ताकत ही आज़ादी के मूल में है और मेहनत से ही वैभव आता है .
विदेशनीति में भारत की प्राथमिकता पड़ोसियों से अच्छे सम्बन्ध की रही है. पाकिस्तान और चीन से भी अच्छे सम्बन्ध बनाने की पूरी कोशिश की जाती रही है लेकिन उन दोनों ही देशों की प्राथमिकताएं कुछ अलग ही नज़र आती हैं . प्रधानमंत्री ने आज पड़ोसी देश की एक नयी परिभाषा दी. उन्होंने कहा कि भौगोलिक सीमा से लगे हुए देश तो पड़ोसी होते ही हैं ,जिनसे दिल मिलता है वे भी पड़ोसी होते हैं . उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम एशिया के देशों को भी अब से पड़ोसी माना जाएगा और उनको एक्सटेंडेड नेबरहुड की श्रेणी में रखा जाएगा . पिछले पांच वर्षों में भारत ने पश्चिम एशिया के देशों से जो दोस्ती के सम्बन्ध बनाए हैं वह बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इस विस्तृत पड़ोसी की अवधारणा में अब तक पाकिस्तान के मददगार रहे साउदी अरब को भी शामिल किया गया है. साउदी अरब ने पिछले दिनों कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को फटकार कर यह साबित भी कर दिया है कि वह भारत से दोस्ती को महत्व देता है . प्रधानमंत्री के एक्सटेंडेड नेबरहुड के सिद्धांत में उनका मेक फॉर वर्ल्ड का विज़न सही बैठता है . पश्चिम एशिया के देश यूरोप और अमरीका से बहुत ही ज़्यादा सामान मंगाते हैं . मेक फॉर वर्ल्ड की नीति के हिसाब से उनकी ज़रूरतों को भी ध्यान में रखा जा सकता है.
कोरोना संकट ने एक बात साफ़ कर दिया कि भारत खाद्य सामग्री के उत्पादन में न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि वह विदेशों में भी अन्न भेज सकता है .लेकिन अनाज की एक राज्य से दूसरे राज्य की आवाजाही पर ही रोक लगी हुयी थी . उन्होंने कहा कि खेती की पैदावार के आवाजाही पर जो रोक लगी हुई थी वह ख़त्म कर दी गयी है और अब देश में किसान अपने उत्पादन को कहीं भी बेच सकता है . उसके अलावा विदेशों में भी कृषि उपज को भेजने में अब कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी . यह किसानों के लिए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही बड़ा क़दम है. ग्रामीण भारत में इससे बहुत बड़ा फर्क पड़ने वाला है. इस तरह से कहा जा सकता है कि लाल किले की प्राचीर से दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण की धमक चीन और पाकिस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया में महसूस की जायेगी .देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण सन्देश है .
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