शेष नारायण सिंह
आज हमारे दोस्त डाक्टर एस बी सिंह का जन्मदिन है . उनको मैंने फेसबुक पर 'जन्मदिन मुबारक ' कह दिया है . डाक्टर साहेब का पूरा नाम समर बहादुर सिंह है लेकिन इलाहाबाद में उनको उनके अंग्रेज़ी नाम से ही आम तौर पर जाना जाता है . इस सन्दर्भ में एक संस्मरण का उल्लेख करने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ . हुआ यह कि मेरे हाई स्कूल के सहपाठी , राम अभिलाख वर्मा को १९७४ में बैंक आफ इण्डिया में बड़ी सरकारी नौकरी मिल गयी . कानपूर में तैनाती हुयी . उनके काका इत्तफाक से कानपुर गए तो सोचा कि भतीजे से मिल लें . पता लिखा हुआ था सो पंहुंच गए. बैंक में जाकर गार्ड से पूछा कि राम अभिलाख वर्मा से मिलना है . उसने कहा कि इस नाम का यहाँ कोई नहीं है . निराश हुए . लौट रहे थे कि एकाएक वर्मा साहेब दिख गए . उन्होंने गार्ड से कहा कि वो सामने तो खड़े हैं और तुम मना कर रहे हो . गार्ड ने कहा कि उनका नाम तो आर ए वर्मा है. बहरहाल वे मिले और चाय पीते वक़्त उनसे पूछा कि ," कहो भईया नोकरिया पाए के बाद तोहार नाव भी बदल ग का ?" .
इसलिए आज डॉ एस बी सिंह को उनके जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई . समर बहादुर सिंह को उनके जन्मदिन की बधाई . डाक्टर साहब भारत के चोटी के होमियोपैथिक फिजीशियन हैं , इलाहाबाद में विराजते हैं और महंगाई के इस दौर में आज भी उनकी फीस बहुत कम है . बेहद लोकप्रिय हैं , इसके बावजूद भी डाक्टरी सलाह और दवाइयों की कीमत बहुत कम रखी हुयी है . इलाहाबाद में कई जगहों पर उनकी क्लिनिक है . बहुत नाम है , उनकी सफलता और लम्बी उम्र के लिए मैं दुआ करता हूँ .
आज उनके जन्मदिन पर पिछले पचपन वर्षों की तरह तरह की तस्वीरें सामने से गुज़र रही हैं . मेरे गाँव के बगल का गाँव है उनका . आज भी यह गाँव ऐसे गाँवों में शुमार होता है जिसके पास से विकास बचकर निकल गया है . उनके गाँव के अन्दर अभी तक पक्की सड़क नहीं गयी है . पिछली कई सरकारों में कई मंत्री उनके मित्र रहे हैं लेकिन गाँव की तिकड़मी राजनीति ने सड़क नहीं बनने दिया .आज भी जिले के कलेक्टर साहेब उनके दोस्त हैं लेकिन गाँव के घुरहू प्रसाद या निरवाहू राम के आगे किसी की नहीं चलती .
उनके पिताजी ठाकुर केश नारायण सिंह अंग्रेजों के ज़माने के अंग्रेज़ी मास्टर थे . सुल्तानपुर जिले के एक नामी मिडिल स्कूल , लम्भुआ में उन्होंने कई पीढ़ियों को अंग्रेज़ी पढ़ाया था . उस ग्रामीण अंचल में जिसने भी उनसे ध्यान से अंग्रेज़ी पढ़ ली , वह आज भी अंग्रेज़ी बोलता मिल जाएगा . अपने पिता जी की साइकिल पर बैठकर अपने डाक्टर साहेब लम्भुआ पढने जाया करते थे . मुझसे तीन साल छोटे हैं . मैंने हाई स्कूल के बाद जौनपुर के टी डी कालेज में इंटरमीडिएट में नाम लिखाया था . हमारे गाँव से बहुत दूर था लेकिन कालेज अच्छा था . मास्टर साहेब ने अपने बेटे को भी नवीं कक्षा में वहीं दाखिल करवा दिया और मुझको उनका गार्जियन तैनात कर दिया . तब से आज तक मैं उनका गार्जियन हूँ . कई बार सभा समाज में मेरी इज्ज़त बहुत बढ़ जाती है जब लोगों को पता लगता है कि मैं डाक्टर एस बी सिंह को जानता हूँ .
हाँ मैं इस बेहतरीन इंसान को जानता हूँ . मैं भगवान राम से उनकी तुलना तो कभी नहीं करूंगा लेकिन एक गुण जो तुलसीदास ने वर्णन किया है , वह उनमें है. हर्ष या विषाद की स्थितियों में यह डाक्टर बिलकुल सामान्य रहता हैं . ऐश में यादे खुदा रखते हैं और तैश में खौफे-खुदा रखते हैं . कभी भी किसी का नुक्सान नहीं करते . समर बहादुर में जो इच्छा शक्ति है वह लाजवाब है . हमारे इलाके में लड़कियों की शिक्षा को उतना महत्व नहीं दिया जाता था जितना लड़कों की शिक्षा को . उनकी पत्नी हाई स्कूल पास करके आई थीं . अपने डाक्टर ने मुझसे बताया कि आगे इनकी पढाई जारी रखना है . काफी दिक्क़तें आईं लेकिन उन्होंने अपने पिता जी से यह कहकर अनुमति ले ली कि जितना खर्च मेरी पढाई पर आप कर रहे हैं, उतने में ही हम दोनों पढ़ लेंगें . इलाहाबाद के राजापुर में घर लिया और दोनों ने उच्च शिक्षा पाई . उनकी पत्नी ने दर्शन शास्त्र में पी एच डी किया और एक बहुत अच्छे शिक्षा संस्थान से रिटायर हुयी हैं . राजापुर का उनका घर बहुत लोगों की शरणस्थली भी रह चुका है . जिन मित्रों को इलाहाबाद आने पर कहीं ठिकाना न मिला वे वहीं पधार जाया करते थे. हालांकि मैं इसका बहुत बुरा मानता था और कई बार जब इलाहाबाद जाने पर उनके घर को धर्मशाला के रूप में देखता था तो तकलीफ होती थी . उनकी पत्नी सबके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर रही होती थीं. लेकिन दोनों ही उसकी अन्य व्यवस्था होने तक उसको साथ रखते थे .
डॉ एस भी सिंह के बारे में जब मैं सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि इनका नाम हिम्मत माई होना चाहिए था . यह इंसान मेरी नज़र में इच्छाशक्ति का मानवीकृत रूप है . उल्टी से उल्टी परिस्थिति में इस आदमी को मैंने हिम्मत हारते नहीं देखा . उनकी इच्छा शक्ति ही थी कि अपने बच्चों को इलाहाबाद में रहते हुए लन्दन तक पढ़ाया और आज सभी बच्चे अपने अपने क्षेत्र में जमे हुए हैं . बड़ा बेटा बैंकर है , बेटी वैज्ञानिक है और छोटा बेटा सुप्रीम कोर्ट में वकील है . बाप का पुण्य सभी बच्चों की शख्सियत पर नज़र आता है .
हाँ मैं इस बेहतरीन इंसान को जानता हूँ . मैं भगवान राम से उनकी तुलना तो कभी नहीं करूंगा लेकिन एक गुण जो तुलसीदास ने वर्णन किया है , वह उनमें है. हर्ष या विषाद की स्थितियों में यह डाक्टर बिलकुल सामान्य रहता हैं . ऐश में यादे खुदा रखते हैं और तैश में खौफे-खुदा रखते हैं . कभी भी किसी का नुक्सान नहीं करते . समर बहादुर में जो इच्छा शक्ति है वह लाजवाब है . हमारे इलाके में लड़कियों की शिक्षा को उतना महत्व नहीं दिया जाता था जितना लड़कों की शिक्षा को . उनकी पत्नी हाई स्कूल पास करके आई थीं . अपने डाक्टर ने मुझसे बताया कि आगे इनकी पढाई जारी रखना है . काफी दिक्क़तें आईं लेकिन उन्होंने अपने पिता जी से यह कहकर अनुमति ले ली कि जितना खर्च मेरी पढाई पर आप कर रहे हैं, उतने में ही हम दोनों पढ़ लेंगें . इलाहाबाद के राजापुर में घर लिया और दोनों ने उच्च शिक्षा पाई . उनकी पत्नी ने दर्शन शास्त्र में पी एच डी किया और एक बहुत अच्छे शिक्षा संस्थान से रिटायर हुयी हैं . राजापुर का उनका घर बहुत लोगों की शरणस्थली भी रह चुका है . जिन मित्रों को इलाहाबाद आने पर कहीं ठिकाना न मिला वे वहीं पधार जाया करते थे. हालांकि मैं इसका बहुत बुरा मानता था और कई बार जब इलाहाबाद जाने पर उनके घर को धर्मशाला के रूप में देखता था तो तकलीफ होती थी . उनकी पत्नी सबके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर रही होती थीं. लेकिन दोनों ही उसकी अन्य व्यवस्था होने तक उसको साथ रखते थे .
डॉ एस भी सिंह के बारे में जब मैं सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि इनका नाम हिम्मत माई होना चाहिए था . यह इंसान मेरी नज़र में इच्छाशक्ति का मानवीकृत रूप है . उल्टी से उल्टी परिस्थिति में इस आदमी को मैंने हिम्मत हारते नहीं देखा . उनकी इच्छा शक्ति ही थी कि अपने बच्चों को इलाहाबाद में रहते हुए लन्दन तक पढ़ाया और आज सभी बच्चे अपने अपने क्षेत्र में जमे हुए हैं . बड़ा बेटा बैंकर है , बेटी वैज्ञानिक है और छोटा बेटा सुप्रीम कोर्ट में वकील है . बाप का पुण्य सभी बच्चों की शख्सियत पर नज़र आता है .
मैं तुम्हारे जन्मदिन पर भावुक हो गया हूँ डाक्टर. लम्बी ,बहुत लम्बी उम्र की दुआ करता हूँ . जैसे ग़ालिब ने रानी विक्टोरिया की लम्बी उम्र की दुआ की थी. उनका ही शे'र आपकी नज़र है ,
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार
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