शेष
नारायण सिंह
राजस्थान
में एक भयानक बीमारी ने दस्तक दे दी है . ज़ीका वाइरस के 55 मामले सामने आये हैं .
यह एक खतरनाक विषाणु है जिसका सही इलाज
अभी विकसित नहीं हुआ है . अभी अंदाज़ से ही लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है . राजस्थान से जो सरकारी आंकड़े आ रहे हैं
उसके हिसाब से स्थिति चिंताजनक चुकी है . यह
आंकड़े केवल राजधानी जयपुर से लिए गए हैं. केंद्र
सरकार की एक टीम ने वहां जाकर यह आंकडे एकत्र किया और नतीजे डरावने हो चुके हैं . यह
जानना ज़रूरी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वाइरस के बारे में के कहता
है . जीका वाइरस मूल रूप से एडीज मच्छर के काटने से फैलता है . यह मच्छर दिन में
ही काटता है . इसके लक्षण पहले बहुत ही
साधारण दीखते हैं. मामूली बुखार ,खुजली, कंजक्टीवाइटिस,मांश पेशियों और जोड़ों
में दर्द और सरदर्द बीमारी के शुरुआती लक्ष्ण हैं . गर्भवती महिलाओं में यह बहुत
ही खतरनाक हो सकता है .जीका से ग्रस्त माहिला के गर्भ में पल रहा शिशु माइक्रोसेफाली
से पीड़ित हो सकता है. यानी जब वह पैदा होगा तो उसका सर अपेक्षाकृत बहुत छोटा होगा .इसके
अलावा कई बार गर्भपात या समय से पूर्व जन्म भी हो सकता है. न्यूरोलाजी से सम्बंधित
बीमारियाँ भी इस विषाणु के कारण हो सकती
हैं .. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेताया है कि जी बी सिंड्रोम का कारण भी जीका
वाइरस बन सकता है . जी बी सिंड्रोम एक ऐसा
रोग है जो मरीज़ के शरीर की मांशपेशियों को लगातार कामजोर करता रहता है और
एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि शरीर के अंगों का हिलना डुलना भी बंद हो जाता है .
जीका वाइरस की
जानकारी का सबसे पुराना उदहारण १९४७ का है
जब उगांडा में यह विषाणु बंदरों में पाया गया था . १९५२ में पहली बार इस के लक्षण
उगांडा और नाइजीरिया में इंसानों में देखे गए थे . बाद में तो १९६० से १९८० के बीच
अफ्रीका और लातीनी अमरीका में जीका के बहुत सारे मामले पकड़ में आये .२००७ में बहुत
बड़े पैमाने पर यह बीमारी लातीनी अमरीका के
द्वीप याप में फ़ैल गयी थी प्रशांत महासागर के देशों में जीका वाइरस के संक्रमण के
बहुत सारे मामलों का पता चला .२०१५ में ब्राजील में खुजली की महामारी का पता चला
जिसको बाद में जीका का संक्रमण माना गया . उसी साल इसको जी बी सिंड्रोम का कारण भी
माना गया .अब तो मामला बहुत बढ़ गया है. अब तक ८६ देशों में जीका वाइरस आपना ज़हर
फैला चुका है .
अब तक जीका वाइरस
से सम्बंधित जितनी बीमारियों का पता चला है उनमें जी बी सिंड्रोम सबसे खतरनाक है .
करीब तीन साल पहले हमारे एक मित्र की पत्नी को पांव में कुछ कमजोरी महसूस हुयी.
लखनऊ के पाश गोमती नगर इलाके में रहते हैं. उनके एक पुराने सहपाठी लखनऊ मेडिकल कालेज में न्यूरोलाजी
विभाग में बड़े डाक्टर के रूप में तैनात थे
. उनके पास ले जाया गया. उन्होंने देखते ही कहा कि शायद जी बी सिंड्रोम है . वहां पूरी
सुविधाएं नहीं थीं लिहाज़ा लखनऊ के एस जी
पी जी आई रिफर कर दिया . वहां के डाक्टर भी दोस्त थे . उसके बाद यह लोग घर आ गए और
सोचा कि खाना खाकर पी जी आई चले जायेंगें
.इस बीच पीजी आई वाले डाक्टर का फोन आया कि अभीतक आप लोग आये नहीं . कहाँ हैं. जब
उनको बताया गाया कि लंच करके आते हैं तो
वे चिल्लाने लगे और डांटा कि तुंरत आओ वरना बहुत देर हो जायेगी . बहरहाल जो आधे घंटे की देरी हुई थी ,उसका नतीजा यह हुआ कि मरीज़ के
शरीर की ज़्यादातर मांसपेशियाँ प्रभावित हो चुकी थीं और उनको ठीक होने में ढाई साल
लग गए. पति पत्नी दोनों ही बड़े अफसर थे इसलिए खर्च नहीं हुआ लेकिन अगर मुफ्त इलाज़ की
सुविधा न रही होती तो आर्थिक रूप से भी बहुत
मुश्किल हुई होती.
जी बी सिंड्रोम का
अनुसंधान फ्रांस के दो महान डाक्टरों ने
किया था . उनके नाम के आधार पर ही इस बीमारी का नाम पड़ा है . इसमें शरीर का
इम्यून सिस्टम ही मांसपेशियों को कमज़ोर करने
लगता है . शुरू में तकलीफ हाथ और पाँव में होती है उसके बाद शरीर के ऊपरी हिस्से में कमजोरी आती है . एक स्थिति
ऐसी आ जाती है जब फेफड़ों की नसें भी जवाब
देने लगती हैं और उसके बाद सांस लेना असंभव हो जाता है . और यह सब केवल कुछ घंटों में हो जाता है.
इस पृष्ठभूमि में
जीका वाइरस को देखने की ज़रूरत है . अब तो यह पक्का हो गया है कि यह वाइरस मच्छर के काटने से शरीर में प्रवेश करता है इसलिए उम्मीद है कि मच्छरों पर काबू करके इसको बढ़ने से रोका
जा सकता है. हालांकि शुरू तो गरीब इलाकों में होता है लेकिन मच्छरों को रोका तो जा
नहीं सकता है . और संपन्न इलाकों में भी
फैलने की आशंका बनी हुयी रहती है इसलिए उम्मीद है कि सरकारी तौर पर इसको काबू करने के सारे उपाय किये
जायेंगें . राजस्थान में अभी खून के जो नमूने मिले हैं ,वे शास्त्री नगर और सिंधी
कैम्प से लिए गए हैं . यहाँ से लाये गए
मच्छरों में विषाणु का मिलना कन्फर्म
हो चुका है . वहां मच्छर मारने के सरकारी अभियान शुरू किये जा चुके हैं .
जो लोग बीमारी की चपेट में आ गए हैं उनके लिए
इलाज़ का विशेष इंतज़ाम किया जा चुका है . लोगों में जानकारी बढाने के लिए भी
प्रयास किये जा रहे हैं .
भारत में यह जीका
वाइरस का प्रादुर्भाव अपेक्षाकृत नया है. जनवरी २०१७ में पहली बार जीका वाइरस का
पता अहमदाबाद में चला था उसी साल तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में भी जीका का संक्रमण देखा गया था . लेकिन इनको
कंट्रोल कर लिया गया था .शायद इसलिए कि मामला बाहुत छोटा था लेकिन जयपुर का केस अलग हैं . वहां बात बहुत बढ़ गयी है और अभी तो पता नहीं वहां जीका का विस्तार कितना है
.इसके लिए सरकार को युद्ध स्तर पर जुट जाना चाहिए . दिल्ली में ढाई साल पहले हुई सफाईकर्मियों
की हड़ताल का नतीजा दिल्ली और आस पास के लोग भोग चुके हैं. २०१६ में दिल्ली की केजरीवाल सरकार और
बीजेपी के कंट्रोल वाले नगर निगम के झगड़े में सफाई कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला
था. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए हड़ताल को हवा दे
रहे थे . नतीजा यह हुआ कि सफाई कर्मियों की तीन महीने से अधिक समय तक हड़ताल चली .
सडकों पर कूड़े का अम्बार लग गया और बहुत बड़े पैमाने पर मच्छरों की ब्रीडिंग हुई. दिल्ली ,नॉएडा
,फरीदाबाद, गाजियाबाद और गुरुग्राम में
बहुत बड़े पैमाने पर चिकनगुनिया, डेंगी और मलेरिया फैला . लेकिन दुर्भाग्य यह है कि नेता लोग कोई सबक नहीं लेते. इस साल भी
सफाई कर्मचारियों की हड़ताल हो रही है .
सवाल यह है कि जब मच्छरों के काटने से इतनी खतरनाक
बीमारियाँ फ़ैल रही हैं और उनको सफाई करके
कंट्रोल किया जा सकता है तो सरकारें क्यों नहीं करतीं.ज़ाहिर है राजनीति में भ्रष्ट
और गैरजिम्मेदार किस्म के लोग हैं और अब समय आ गया है जब इन लोगों पर लगाम लगाया जाना ज़रूरी हो गया है .
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