दूसरा युद्ध समाप्त होने के बाद जर्मन, जापान और इटली के सभी सैनिक बतौर युद्धबंदी पकड़ लिए गए थे. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के सभी अफसर और सैनिक भी बर्मा, मलाया, सिंगापुर आदि जगहों से युद्धबंदी बना लिए गए थे. उन सैनिकों के ऊपर अंग्रेजों ने बाकायदा मुक़दमा चलाया . भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने INA डिफेंस कमेटी बनाकर इन युद्धबंदियों की मदद की . जब उन पर मुक़दमा चला तो कांग्रेस की इस कमेटी की ओर से आज़ाद हिन्द फौज के सैनकों की पैरवी करने के लिए जो बड़े वकील को पेश हुए उनमें भूलाभाई देसाई , जवाहरलाल नेहरू, आसफ अली ,कैलाश नाथ काटजू और तेज़ बहादुर सप्रू प्रमुख थे . जवाहरलाल नेहरू ने आज़ाद हिन्द फौज के युद्धबंदियों के पक्ष में वकील के रूप में भी काम किया और एक राजनेता के रूप में भी अपने भाषणों में बार बार अँगरेज़ सरकार को चेतावनी दी कि आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की तरह व्यवहार किया जाए क्योंकि वे अपने देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे जबकि जर्मनी, जापान आदि की सेनायें अन्य देशों पर हमला करने के लिए लड़ रही थीं. बाकी लोग तो वकील का काम करते रहे थे लेकिन जवाहरलाल ने वकालत का काम १९२६ में ही छोड़ दिया था और उसके बीस साल बाद लाल किले में अपने दोस्त सुभाष चन्द्र बोस के साथियों के बचाव पक्ष के वकील के रूप में पेश हुए थे.
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