Saturday, October 27, 2018

पिंजरे के तोता काण्ड के बाद सी बी आई सबसे बड़ा सवालिया निशान



शेष नारायण सिंह 

सी बी आई की विश्वसनीयता पर ज़बरदस्त सवालिया  निशान लग गया है . संस्था के  दूसरे नम्बर पर पदासीन अधिकारी राकेश अस्थाना के उपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं और उनपर एफ आई आर भी  दर्ज हो गयी है . उनकी  टीम के एक सदस्य को सी बी आई ने  गिरफ्तार या कोर्ट ने भी गंभीर पाया है इसलिए उनको  हफ्ते भर के लिए   सी बी आई की हिरासत में दे दिया है . राकेश अस्थाना को भी डर था  कि कहीं वे भी गिरफ्तार न हो जाएँ इसलिए वे दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी लेकर पंहुंच गए और गिरफ्तारी पर एक हफ्ते की रोक लगवाने में सफल हो गए .  अस्थाना ने भी अपने बॉस अलोक वर्मा पर गंभीर आरोप लगाए हैं  लेकिन उनके आरोप अभी एफ आई आर में नहीं बदले गए हैं . उन्होंने  कैबिनेट सचिव को चिट्ठी लिखकर अपनी शिकायतों से अवगत कराया है . उन्होंने अपनी शिकायती  चिट्ठी में यह भी आरोप लगाया है कि उनके  करीबी कुछ व्यापारियों और उद्योगपतियों के यहाँ वड़ोदरा में ,वैमनस्य के चलते सी बी आई निदेशक,आलोक वर्मा  ने दबिश दिलवाई है और उनकी जांच करवा रहे हैं . जबकि सी बी आई का कहना है कि वह दबिश जांच का हिस्सा  है क्योंकि जांच में पता चला है कि  राकेश  अस्थाना ने उन व्यापारियों से  अपनी बेटी की शादी में आर्थिक मदद ली है जो कि भ्रष्टाचार के दायरे में आता है .हाई  कोर्ट से राकेश अस्थाना अपने खिलाफ दायर एफ आई आर को रद्द करवाने में तो सफल नहीं हुए लेकिन उनकी गिरफ्तारी की संभावना को देखते हुए हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी पर एक  हफ्ते  की लगा दी लेकिन जाँच जारी रहेगी . सी बी आई ने राकेश अस्थाना से उनके काम को तो तभी छीन लिया जब उनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गयी थी .

देश की सबसे विश्वसनीय ,आपराधिक जांच संस्था में इस तरह के माहौल  से  सरकार की छवि को ज़बरदस्त नुक्सान हुआ है . नुक्सान  को कुछ कम करने की कोशिश सरकार की तरफ से हो रही है . राकेश अस्थाना तो अब अभियुक्त हो गए हैं निदेशक आलोक वर्मा भी विवाद के घेरे में आ गए हैं . शायद इसीलिये सरकार ने उनको भी कुछ दिन आराम करने को कह दिया है . और उनके मातहत काम करने वाले एक अतिरिक्त  निदेशक,. एम नागेश्वर राव को सी बी आई के निदेशक का काम देखने के लिए आदेश जारी  कर दिया  है . इसके पहले सी बी आई ने बहुत ही संक्षिप्त आदेश में कहा  था  कि विशेष निदेशक श्री राकेश अस्थाना को उनके सुपर्वाइज़री काम से तुरंत
मुक्त किया जाता है . श्री अस्थाना १९८४  बीच के गुजरात कैडर के अधिकारी हैं और सरकार को उनकी योग्यता पर बहुत भरोसा था . शायद इसीलिये उनके  पास राजनीतिक रूप से बहुत ही संवेदनशील मामलों की जांच का ज़िम्मा था .अब वे उन सब कार्यों से अलग कर दिए गए हैं. आगस्टा वेस्टलैंड हेलीकाप्टर केस,विजय  मल्लया केसकोयला घोटाले से सम्बंधित केसराबर्ट वाड्रा केस,भूपिंदर हुड्डा केस और दयानिधि मारण केस जैसे  मामलों की जांच  उनकी ही निगरानी में हो रही थी. अब वह सब कुछ खतम हो गया है क्योंकि इतने गंभीर आरोपों के बाद वह सारी जांच किसी अन्य अधिकारी को सौंपी जा सकती है . .

इसके पहले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने  जो आरोप लगाए थे वे भी अगर सच हुए तो बहुत ही गंभीर माने जायेंगे . उन्होंने  कोई  कानूनी प्रक्रिया दर्ज नहीं कराई थी लेकिन  कैबिनेट सचिव को एक शिकायती पत्र लिखा था . वह पत्र टाप सीक्रेट था और उसमें भी कुछ तो वही मामले थे जिनकी जाँच में वे खुद फंस गए हैं . २४ अगस्त को कैबिनेट सचिव प्रदीप कुमार सिन्हा को लिखे गए अपने पत्र में राकेश  अस्थाना ने लिखा था कि उनके पास सी बी आई निदेशक के बारे में बहुत ही गंभीर जानकारी  है . लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि उनकी जांच मैं कर सकूं इसलिए सारी सूचना मैं आप तक पंहुचा रहा हूँ . उन्होंने आरोप लगाया कि लालू यादव केस में उनके ऊपर दबाव बनाया गया था . करीब एक दर्ज़न मामलों में उन्होंने अपने बॉस को लपेटने की कोशिश उस  चिट्ठी में  की थी लेकिन शायद अस्थाना को मालूम नहीं था कि उनके खिलाफ बाकायदा जांच चल रही थी और सी बी आई ने उनके कथित कदाचार के बारे में   मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी करवा दिया था . उनके ऊपर पांच करोड़ रूपये की रिश्वत मांगने का आरोप  है जिसमें से  करीब तीन करोड़ तो उनके लोगों को दिया भी जा चुका है. उनके मातहत काम करने वाले  डिप्टी एस पी के ऊपर उनको बचाने के लिए अभियुक्त का बयान  बदलने के लिए दबाव डालने का भी आरोप था  ऐसी हालत में एक बात बिलकुल साफ़ है कि देश की सबसे महत्वपूर्ण जांच एजेंसी सी बी आई की ख्याति पूरी तरह से शक में आच्छादित है . कांग्रेस मौजूदा सरकार पर  संस्थाओं  को खतम करने के आरोप लगाती रही है . इस काण्ड ने उनके आरोप को निश्चित रूप से  सही साबित कारने की दिशा में स्पष्ट संकेत दे दिया  है .   यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस सी बी आई के दबाव का इस्तेमाल करके विपक्षी राजनेताओं को मजबूर  किये जाने के आरोप लगते रहे हैं ,वह अपने अधिकारियों के भ्रष्टाचार  के आरोपों के बादल से कैसे बाहर आती है.
सी बी आई   के जीवन काल में कई बार ऐसे विवाद आये हैं जब वह  बहुत ही  परेशानी में पड़ती रही है. कर्नल स्लीमन ने ठगों का अंत करने के लिए जिस संस्था की बुनियाद अंग्रेजों के समय में डाली थी बाद में वही सी बी आई की पूर्ववर्ती संस्था बनी. सी बी आई की  विश्वसनीयता पर कभी भी कोई आंच  नहीं आई थी लेकिन इमरजेंसी में सत्तर के  दशक में इसके पहले दुरुपयोग की कहानियाँ सामने आनी शुरू हुईं. बाद में तो संजय गांधी ने सन अस्सी में कांग्रेस की दुबारा वापसी के बाद उन अफसरों के खिलाफ जांच करवाई ,उनको प्रताड़ित किया और अन्य  तरीकों से भी कष्ट दिया जिन्होंने जनता पार्टी के समय में उनकी इमरजेंसी की  कारस्तानियों की जांच की थी.
 सी बी आई के दुरुपयोग के आरोप सरकारों पर अक्सर  लगते रहे हैं लेकिन गंभीर फटकार कभी नहीं पडती थी. पहली बार सी बी आई की ख्याति को ज़बरदस्त झटका तब लगा जब २०१३ में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई को पिंजरे का तोता कह दिया . केंद्र में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार थी . सी बी आई ने कोयला घोटाले की जांच को कानून  मंत्री अश्विनी कुमार को दिखा दिया था . प्रधानमंत्री कार्यालय के दो अफसरों को भी रिपोर्ट दिखाई गयी थी . उसके बादसुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकारी अफसरों ने कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट की आत्मा बदल दी. जस्टिस आर एम लोढ़ाजस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की पीठ ने सीबीआई के तत्कालीन निदेशक रंजीत सिन्हा के हलफनामे पर गौर करने के बाद कोयला घोटाले की जांच की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया था. .कोर्ट ने कहा था कि  सीबीआई का काम जांच करना है और सच सामने लाना है . उसको मंत्रियों और अफसरों की  जी  हुजूरी नहीं करना चाहिए उसी मुक़दमे की सुनवाई के दौरान   सरकार से यह भी पूछा गया कि सरकार  क्या वो सीबीआई को स्वतंत्र करने के लिए क्या कोई कानून बना रही है। क्योंकि अगर ऐसा न किया गया तो  अदालत ही  दखल देगी। इस मामले में तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई निदेशक और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अपने पद पर बने रहने के मामले में भी कई सख्त  सवाल उठा दिए थे.
अब तक सी बी आई की विश्वसनीयता पर उठने वाले सवालों पर यह आरोप सबसे बड़ा मना जाता रहा है .उस दौर में  मुख्य विपक्षी पार्टी , बीजेपी हुआ  करती थी..  सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद बीजेपी के नेता हर मंच से इस बात को उठाया करते थे . यह मई की घटना है ,उसके चार महीने बाद ही नरेंद्र मोदी को  बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया था . उन्होंने भी अपने भाषणों में सी बी आई पर कई बार  हमला किया . उन्होंने भरोसा भी दिलाया था कि सी बी आई को बिलकुल बेदाग़ संस्था के रूप में स्थापित कर देंगे लेकिन सी बी आई के मौजूदा हालात  देखने से यह तो साफ़ लग रहा है कि सी बी आई एक बेदाग़ संस्था नहीं है .उसके अपने ही  अफसर भ्रष्टाचार की जांच की ज़द में हैं .एक और बात देखें में आ रही है कि  इस बीच सी बी आई के राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप विपक्षी पार्टियां कुछ ज़्यादा ही उठा रही हैं .डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी सी बी आई का राजनीतिक इस्तेमाल करके विपक्षी पार्टियों को कांग्रेस को राजनीतिक मदद देने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन अब तो कांग्रेस ऐलानियाँ आरोप लगा रही है कि चुनावों में उम्मीदवार उतारने के बारे में भी सरकार सी बी आई की धमकी देती रहती है .सबसे ताज़ा आरोप है कि छतीसगढ़ में चुनावी  समीकरण को प्रभावित करने के लिये भी सी बी आई के डंडे का इस्तेमाल हुआ है . हालांकि आम तौर पर सी बी आई की छवि को ध्यान में रखते हुए इन बातों पर विश्वास नहीं किया जाता  था लेकिन पिछले एक  हफ्ते में  सी बी आई के बारे में जो ख़बरें टीवी ख़बरों में आ रही हैं उनको देखते हुए तो यही लगता है किसरकार इस संस्था से कुछ भी करवा सकती है . अगर यह सच है तो देश की राजनीति और कानून के राज के लिए चिंता का विषय है . 

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