Thursday, May 10, 2018

कर्नाटक विधानसभा चुनाव: बीजेपी और कांग्रेस ,दोनों का भविष्य इस चुनाव पर निर्भर करेगा



शेष नारायण सिंह

 ( An article written on 11 April, at the very initial stge of campaign)
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कर्नाटक विधान सभा चुनाव पर देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है . नई बात यह है कि चुनाव में अब डर्टी ट्रिक्स वाले भी सक्रिय हो गए हैं . आज खबर आई है कि व्हाट्स अप ग्रुपों में  एक लिस्ट जारी की गयी जिसमें विधान सभा के चुनावों के कांग्रेसी उम्मीदवारों की जानकारी थी. बाद में पता चला कि कांग्रेस  के नेताओं को पता ही नहीं था कि ऐसी कोई लिस्ट जारी की गई है . लिस्ट आस्कर फर्नांडीज़ के नाम से जारी की गयी है ,जबकि आस्कर फर्नांडीज़ दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती हैं और कोई भी लिस्ट जारी करने की स्थिति में नहीं हैं. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने तुरंत ट्वीट करके इस लिस्ट को फर्जी बताया . इसके पहले एक अजीबोगरीब चिट्ठी इंटेलिजेंस  विभाग की तरफ से भी आई थी, कुल  मिलाकर चुनाव अब बहुत ही दिलचस्प दौर में पंहुच गया है . कांग्रेस और बीजेपी ,दोनों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का विषय है. कांग्रेस को  एक टिकाऊ  राजनीतिक पार्टी के रूप में अपना अस्तित्व बचाने के लिए राज्य की सत्ता बचाना ज़रूरी है जबकि बीजेपी के लिए कर्नाटक जीतना इसलिए ज़रूरी है कि अगर यहाँ हार गए तो २०१९ की उनकी मंजिल खासी मुश्किल हो जायेगी .कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान लगभग पूरी तरह से राज्य के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया के हाथ में है. हालांकि राहुल गांधी भी कर्नाटक चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं . राज्य के अन्य कांग्रेसी नेता सिद्दरमैया के सहायक के रूप में ही  नज़र आ रहे  हैं. बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा को उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को नज़रंदाज़ करके दोबारा पार्टी में शामिल किया था. उम्मीद यह थी कि बीजेपी के चुनाव का ज़िम्मा उनको दिया जाएगा लेकिन उनसे शुरुआती गलती हो गयी . बीजेपी से हटने के बाद उन्होंने जिस कर्नाटक जनता पक्ष की स्थापना की थी ,उसमें ज्यादातर उनके बीजेपी वाले साथी ही थे. सब ने बीजेपी के उम्मीदवारों को जमकर  कोसा था . जब अमित शाह ने दुबारा बी एस येदुरप्पा को बीजेपी में भर्ती किया तो वे सारे लोग उनके साथ आये और येदुरप्पा ने उन लोगों को ज्यादा महत्व देने की कोशिश की . बीजेपी के मुकामी नेताओं ने उनको स्वीकार नहीं किया . नतीजा यह हुआ कि कर्नाटक में  बीजेपी में एकता नहीं हो सकी. लिंगायतों को अल्संख्यक का दरजा देने की सिद्दारमैया की राजनीति ने येदुरप्पा की बात और बिगाड़  दी .उनको भारतीय जनता  पार्टी के लिए उतना उपयोगी नहीं रहने दिया  जितना सोचकर आमित शाह उनको  वापस लाये थे . नतीजतन विधान सभा चुनाव के प्रचार की कमान स्वयम अमित शाहको संभालनी पडी. आज कर्नाटक का चुनाव वास्तव में अमित शाह बनाम सिद्दरमैया ही हो गया है .
इस विधान सभा चुनाव को इसी सन्दर्भ में देखना पडेगा . जैसा कि आम तौर पर होता है कर्नाटक विधानसभा का चुनाव भी जातियों के जोड़तोड़ का चुनाव ही  है . दोनों ही दल नए जाति समीकरणों को शक्ल देने में लगे हैं . २००७ के चुनाव में बी एस येदुरप्पा  को लिंगायतों का धुआंधार  समर्थन मिला था जिसके बाद वे मुख्यमंत्री बने थे लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप के चलते उनको गद्दी छोडनी पडी. २०१३ में जब पुराने समाजवादी ,सिद्दरमैया कांग्रेस की तरफ से राज्य के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पहले दिन से ही  २०१८ का चुनाव जीतने की तैयारी शुरू कर दी . दलितों के लाभ के लिए मुख्यमंत्री ने पहले बजट में  ही  बहुत सारी योजनायें लागू कर दी थीं . बाद में उसको और बढ़ा दिया गया . .आज से साल भर पहले दलितों के लिए बड़े पैमाने पर लाभ देने वाली स्कीमों की  घोषणा की गयी  . सरकारी संस्थाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे दलित छात्रों को मुफ्त में लैपटाप तो पहले से ही था , उस सुविधा को   निजी स्कूल कालेजों में पढने वाले  दलित छात्रों के लिए भी कर दिया गया .दलित छात्रों को चौथाई कीमत पर बस पास मिलते थे अब  बस पास बिलकुल मुफ्त में मिल रहा है  . दलित जाति के लोग ट्रैक्टर या टैक्सी खरीदने पर  दो लाख रूपये की सब्सिडी  पाते थे ,उसे  तीन लाख कर दिया गया. . ठेके  पर काम करने वाले गरीब मजदूरों , पौरकार्मिकों आदि  को रहने लायक घर बनाने के लिए  दो लाख रूपये का अनुदान मिलता था ,उसे चार लाख कर दिया गया दलितों के कल्याण के लिए सिद्दरमैया ने अपने शासन के  चार वर्षों में करीब पचपन हज़ार करोड़ रूपये खर्च करवा दिया था .चुनावी  साल में  करीब अट्ठाईस हज़ार करोड़ रूपये की अतिरिक्त  व्यवस्था कर दी गयी .

यह सारा कार्य योजनाबद्ध तरीके से किया गया . अब तक माना जाता था कि कर्नाटक में वोक्कालिगा और लिंगायत,संख्या के हिसाब से  प्रभावशाली जातियां हैं . . लेकिन चुनाव के नतीजों में  यह नज़र नहीं आता था.  सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री सिद्दिरमैया  ने २०१५ में जाति के आधार पर जनगणना करवाई . इस जनगणना के नतीजे सार्वजनिक नहीं किये जाने थे लेकिन कुछ पत्रकारों को जानकारी लीक कर  दी गयी . सिद्दिरामैया की जाति के लोगों की संख्या ४३ लाख यानी करीब ७ प्रतिशत बतायी गयी .यह जानकारी अब पब्लिक डोमेन में आ गयी है जिसको सही माना जा रहा है. इस नई जानकारी के  बाद कर्नाटक की चुनावी राजनीति का हिसाब किताब बिलकुल नए सिरे से शुरू हो गया है .नई जानकारी के बाद लिंगायत ९.८ प्रतिशत और वोक्कालिगा ८.१६ प्रतिशत रह गए हैं .  कुरुबा ७.१ प्रतिशत ,मुसलमान १२.५ प्रतिशत ,  दलित २५ प्रतिशत ( अनुसूचित  जाती १८ प्रतिशत और अनुसूचित जन जाति ७ प्रतिशत ) और ब्राह्मण २.१ प्रतिशत की संख्या में राज्य में रहते हैं .
अब तक कर्नाटक में माना जाता था कि लिंगायतों की संख्या १७ प्रतिशत है और वोक्कालिगा १२ प्रतिशत हैं . इन आंकड़ों को कहाँ से निकाला गया ,यह किसी को पता नहीं था. जाति आधारित जनगणना देश में १९३१ में हुई थी .शायद यह जानकारी वहीं से आई हो लेकिन तब से अब  तक हालात बदल गए हैं .यही आंकड़े चल रहे थे और सारा चुनावी विमर्श इसी पर केन्द्रित हुआ करता था  . नए आंकड़ों के आने के बाद सारे समीकरण बदल गए हैं .  इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं लेकिन यह भी सच है कि दलित  नेता इस बाद को बहुत पहले से कहते  रहे हैं . दावा किया जाता रहा है कि अहिन्दा ( अल्पसंख्यक,हिन्दुलिदा यानी ओबीसी  और दलित )  वर्ग एक ज़बरदस्त समूह है . जानकार मानते हैं  कि  समाजवादी सिद्दिरामैया ने चुनावी फायदे के लिए अहिन्दा का गठन गुप्त रूप से करवाया  है . मुसलमान , दलित और  सिद्दिरामैया की अपनी जाति कुरुबा मिलकर करीब ४४ प्रतिशत की आबादी बनते हैं .  जोकि मुख्यमंत्री के लिए बहुत उत्साह का कारण हो सकता है .दलितों के लिए बहुत बड़ी योजनाओं के पीछे यही नए आंकड़े काम कर रहे बताये जा रहे हैं  .

इस सारे घालमेल में  कर्नाटक का सिद्दरमैया बनाम अमित शाह चुनाव परवान चढ़ रहा है. सारा समीकरण जातियों के इर्द-गिर्द मंडरा रहा है. बीजेपी लिंगायत-वोक्कलिगा-ब्राह्मण समीकरण को अपनी बुनियाद मानती रही है लेकिन अब हालत बदल गए हैं . जातियों के अनुपात की नई जानकारी के बाद सिद्दरमैया की कोशिश  है कि बीजेपी के मज़बूत लिंगायत वोट बैंक को तोड़ दिया जाए . इसमें उनको सफलता भी मिल चुकी है .  बीजेपी के नेता भी चुपचाप नहीं  बैठे हैं . उन्होंने भी अपनी रणनीति बदल दी है .अब अमित शाहलिंगायत-दलित -ब्राह्मण समीकरण बैठाने में लगे हैं . उनको मालूम है कि सारे दलित वोट उनको नहीं मिलेंगें लेकिन वे करीब बीस प्रतिशत  दलित वोट अपनी तरफ करने का प्रयास कर रहे हैं. .इसके साथ ही वे वोक्कलिगा वोट भी साथ लेने की कोशिश  कर रहे हैं . एच डी देवेगौडा की पार्टी जनता दल सेकुलर के वोट बैंक को साथ लेना बीजेपी की इस बार की प्रमुख रणनीति का हिस्सा है . इसी सिलसिले में अमित शाह वोक्कलिगा वर्ग के प्रमुख मठ  आदिचुनचुन गिरि  भी  हो आये  हैं ..
बीजेपी की तरफ से प्रयास किया जा रहा है कि  सिद्दरमैया के शासन काल की कमियाँ गिनाकर भी उन मतदाताओं को साथ ले लिया जाय जो मौजूदा सरकार से किसी भी कारण से नाराज़  हैं . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का भी पूरा इस्तेमाल किया जाने वाला है क्योंकि पूर्वोत्तर भारत और गुजरात के चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम और अमित शाह की मेहनत ने चुनाव के अंतिम नतीजों  को निश्चित रूप से प्रभावित किया था.

कर्नाटक का चुनाव मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच है लेकिन जानत दल एस की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी. यदि किसी कारण से भी त्रिशंकु विधान सभा हुयी तो पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौडा की कृपा से ही सरकार बनेगी . जो भी हो ऐसा पहली बार हो रहा है कि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के नतीजों पर देश की भावी राजनीति दिशा तय करने का ज़िम्मा आ गया है. अगर कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में  सफल हो जाती है तो उसकी भावी राजनीति के लिए यह संजीवनी  साबित होगा . कांग्रेस की यह संजीवनी बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बुरा समाचार होगा . इसलिए दोनों ही  बड़ी पार्टियों ने अपना सब कुछ  दांव पर लगा दिया है .

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