शैल चतुर्वेदी बड़े खूबसूरत चौबे थे . सिनेमा में काम के चक्कर में बंबई गए . पढ़े लिखे थे तो लिखना पढ़ना भी चलता रहा . हीरो लायक चेहरा और अभिनय था . उन्होंने अपने एक संस्मरण में धर्मयुग में लिखा था कि जब उन्होंने स्व मोतीलाल की फिल्म ढोलक पांचवीं बार देखी थी तो उनके बाबू जी ने उनकी पीठ पर ढोलक और सर पर पखावज बजाने का अभ्यास किया था . गोया वे इंसान फ़िल्मी थे. लेकिन बंबई में अभिनय का काम नहीं मिला . लिख पढ़कर रोटी कमाते रहे. जब उम्र चढ़ने लगी और सर के बाल अलविदा करने लगे तो उन्होंने सोचा कि ' तजहु आस निज निज गृह जाहू ' वाली स्थिति आ गयी है . वापस चलें लेकिन तब तक धर्मवीर भारती उनसे खूब लिखवाने लगे थे . लोगों ने दिलासा दिया कि जमे रहो ,बाद में बाप या चाचा के रोल में काम आओगे. जमे रहे और 'कक्काजी कहिन' और ' चमेली की शादी ' में अविस्मरणीय भूमिका निभाई .
अगर किसी मित्र के पास उनके बारे में ज्यादा जानकारी हो शेयर किया जाये ,एक बहुत ही महत्वपूर्ण कलाकार के बारे में बातें सार्वजनिक डोमेन में आ जायेंगी.
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