शेष नारायण सिंह
कर्नाटक चुनाव में जीत बीजेपी के लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर पार्टी वहां चुनाव हार गयी तो २०१९ बहुत मुश्किल हो जाएगा . यह चुनाव कांग्रेस के लिए उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि अगर कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता गँवा दी तो राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में उसके अस्तित्व पर संकट आ जायगा . राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता तो बनी रहेगी लेकिन पार्टी में बड़े पैमाने पर मुसीबतें आ खडी होंगी . इसीलिये कांग्रेस ने कर्नाटक में सारी ताकत झोंक दी है . सिद्दरमैया के पास चुनाव की कमान है और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी उनकी ही बात मान रहे हैं . मुख्यमंत्री सिद्दरमैया पिछले तीन साल से चुनाव जीतने के लिए कमर कस चुके हैं . अहिन्दा आन्दोलन को बहुत मज़बूत कर दिया है . बीजेपी के सबसे मज़बूत वोट बैंक , लिंगायतों को अपनी तरफ करने की तुरुप चाल चल दी है , बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बी एस येदुरप्पा की पोजीशन बहुत कमज़ोर हो गयी है. लिंगायतों के सबसे बड़े राजनीतिक नेता के रूप में उनकी पहचान थी लेकिन लिंगायत मतावलंबियों को अल्पसंख्यक घोषित किये जाने की मांग को सरकार की नीति बनाकर मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने उनको बिलकुल कमज़ोर कर दिया है . अब सिद्दरमैया ,लिंगायत मठों के सम्मानित आचार्यों के प्रिय बने घूम रहे हैं और बीजेपी आलाकमान के नेतृत्व में येदुरप्पा को बहुत ही हल्का कर दिया है . बात यहाँ तक बिगड़ गयी है कि उनके बेटे को पार्टी ने टिकट नहीं दिया और इसकी जानकारी येदुरप्पा को अंतिम क्षणों में मिली. उनके साथ प्रधानमंत्री मंच साझा नहीं कर रहे हैं . बताया गया है कि उनकी पंद्रह चुनाव सभाओं में येदुरप्पा केवल एक में ही मौजूद रह सकेंगें . येदुरप्पा की सलाह पर बेल्लारी रेड्डी बंधुओं को पार्टी में लिया गया था ,उनके परिवार के लोगों को टिकट दिया गया . वे लोग अपना चुनाव तो जीत सकते हैं लेकिन बीजेपी की राष्ट्रीय छवि को उनके कारण बहुत नुक्सान पंहुच रहा है . ऐसे माहौल में कर्नाटक में घूम रहे किसी भी रिपोर्टर को साफ नज़र आ जायेगा कि बीजेपी बैकफुट पर खेल रही है .बीजेपी को उम्मीद थी कि जे डी ( एस ) के साथ मायावती के समझौते के बाद दलितों के काफी वोट कट जायेंगे लेकिन वह भी होता नहीं दिख रहा है .दलितों के नए नेता, जिग्नेश मेवानी कर्नाटक के शहरों और गांवों में घूम रहे हैं और बीजेपी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं . मायावती से जे डी (एस ) के सहयोग से होने वाले समीकरण को उन्होंने बिगाड़ दिया है . उनके अलावा फिल्म अभिनेता ,प्रकाश राज भी बीजेपी का भारी नुकसान कर रहे हैं . इन दोनों के प्रचार से बीजेपी के नेताओं में चिंता है . कर्नाटक के बीजेपी नेतृत्व को पता है कि प्रकाश राज और जिग्नेश मेवानी की जोड़ी उनका बहुत नुक्सान कर रही है . इसलिए पार्टी ने चुनाव आयोग से अपील किया है कि इन दोनों को १२ मई तक राज्य में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया जाए . हालांकि इस बात की सम्भावना नहीं है कि चुनाव आयोग बीजेपी की इस बात को स्वीकार करेगा लेकिन चुनाव आयोग से अपील करके राज्य बीजेपी के नेताओं से यह बात बहुत ही ज़ोरदार तरीके से ऐलान कर दिया है कि वे चुनाव मैदान में कमज़ोर पड़ रहे हैं .
ज़ाहिर है बीजेपी के लिए कर्नाटक का चुनाव बहुत ही मुश्किल चुनाव है. येदुरप्पा के अनुपयोगी होने के बाद राज्य स्तर का कोई नेता नहीं है जिसके सहारे चुनाव जीता जा सके.अनंत कुमार दिल्ली की बीजेपी सरकार में केंद्र में मंत्री रहते हैं लकिन राज्य में उनका क़द कोई ख़ास वज़न नहीं रखता . ईश्वरप्पा भी ऐसे नेता नहीं हैं जो खुद चुनावी जीत की गाडी का इंजन बन सकें . ऐसी हालत में अमित शाह ने खुद ही यह ज़िम्मा अपने ऊपर लिया हुआ है .इतने मुश्किल चुनाव में भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जीत की तैयारी शुरू कर दी है. वे स्वयम हर जिले में जा रहे हैं . चुनाव क्षेत्रों में खुद प्रचार कर रहे हैं , मुकामी नेताओं से संपर्क में हैं और विरोधियों को अपने साथ करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं . अमित शाह ने साफ़ कर दिया है कि चुनाव जीतने के लिए जातियों का समीकरण सही होना चाहिए , रणनीति में कोई चूक नहीं होनी चाहिए और कार्यकर्ताओं में उत्साह होना चाहिए . इसी लाइन पर वे उत्तर प्रदेश के २०१४और २०१७ के चुनाव को जीत कर आए हैं . जिन्होंने उनको इन चुनावों का सञ्चालन करते देखा है वे जानते हैं कि अमित शाह चुनाव की बारीक से बारीक बात को बहुत गंभीरता से लेते हैं . अभी पिछले साल गुजरात विधान सभा के बहुत मुश्किल चुनाव को उन्होंने मेहनत और रणनीति के बल पर जीता है. इस चुनाव की कमान भी अब उनके ही हाथ में है और अब उसका असर दिखने भी लगा है .
बीजेपी में हर आदमी को मालूम है कि नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर चुनाव जीता जा सकता है . शुरू में तो यह चर्चा थी कि कर्नाटक के चुनाव में हार की सम्भावना के मद्दे नज़र प्रधानमंत्री को इस चुनाव में प्रचार से दूर रखा जाएगा लेकिन नई योजना के तहत प्रधानमंत्री १५ चुनाव सभाओं में भाषण कर रहे हैं . प्रधानमंत्री अभी भी मतदाता को अपने तरफ आकर्षित करते हैं और पिछले पांच साल में बार बार देखा गया है कि उनकी बातों का विश्वास किया जाता है . शहरी मध्य वर्ग में तो उनको पसंद करने वालों की संख्या घटी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी उनकी बात मानकर वोट देने वालों की बड़ी संख्या है .इसलिए जानकर बता रहे हैं कि अब चुनावी माहौल बीजेपी के पक्ष में होना शुरू हो जायेगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा बीजेपी में एक और चुनाव जितवाने वाला नेता है . पार्टी ने कर्नाटक चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को स्टार के तौर पर लगा दिया है . उनकी ३५ सभाएं लगाई गयी हैं . हासन ,उत्तर कन्नड़, दक्षिण कन्नड़ ,चिकमगलूर, शिवमोगा ,दावणगेरे ,बेलगावी आदि जिलों में योगी आदित्यनाथ सघन प्रचार करेंगे. इन जिलों में नाथ पंथियों का बहुत प्रभाव है और सारे देश के नाथ पंथी योगी आदित्यनाथ को अपना पूज्य मानते हैं . योगी आदित्य नाथ खुद नाथ सम्प्रदाय के सबसे प्रमुख मठों में से एक , गोरक्षनाथ मंदिर एवं मठ के महंत हैं .कर्नाटक में भी शैव मतावलम्बियों में गोरखनाथ मंदिर का बहुत सम्मान है. यहाँ के शैवों में योगी आदित्यनाथ का महत्व ज़्यादा ही है क्योंकि उन्होंने ही कदली श्री योगेश्वर मठ के नए राजा यानी मठाधिपति की नियुक्ति में अहम भूमिका निभाई थी . योगी आदित्यनाथ, नाथ पंथ की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारत वर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में त्र्यम्बकेश्वर के ज्योतिर्लिंग में हुयी उस सभा के प्रमख थे जिसने योगी निर्मल नाथ को बारह बर्षों के लिए राजा नियुक्त किया था.
. ऐसा लगता है कि अगर प्रकाश राज के जस्टआस्किंग फाउन्डेशन की बात आगे बढ़ी तो नौजवानों को दंगे आदि के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा और दंगा करवाकर राजनीति करने वाले नेताओं की कीमत वोट के बाज़ार में घटेगी . ऐसी परिस्थिति में शैव मतावलंबियों के नाथ पंथ के सबसे बड़े महंत की बात मानकर वोट मिलने की संभावना अधिक मानी जायेगी . इसी कोशिश में योगी को कर्नाटक में लगा दिया गया है .
योगी आदित्यनाथ के धर्म के प्रभाव का इस्तेमाल बीजेपी वाले गुजरात और त्रिपुरा में भी कर चुके हैं . गुजरात चुनाव में सौराष्ट्र में बीजेपी की हालत बहुत ही खराब थी , वहां भी बड़ी संख्या में सीटें उसके हाथ आई क्योंकि सौराष्ट्र के सभी जिलों की कमज़ोर सीटों पर योगी आदित्यनाथ ने प्रचार किया था .. कर्नाटक में फिलहाल तो हवा बीजेपी के खिलाफ है ऐसी हालत में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी-शाह-योगी की टीम एक हारी हुयी बाज़ी को अपने पक्ष में कर सकती है.
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