Thursday, April 19, 2012

संसद की याचिका समिति के पास संकटमोचक होने की शक्ति होती है

शेष नारायण सिंह

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा निशान भारत की संसद है . एक अजीब बात है कि संसद के काम काज के बारे में बहुत लोगों को मालूम ही नहीं रहता . अपनी संसद में कमेटी सिस्टम लागू है . बहुत सारी समितियां हैं . जिनका काम संसद के काम और उसकी प्रभाव को मज़बूत करना है . पिछले दिनों अन्ना हजारे के भूख हड़ताल एक दौरान ऐसे कई अवसर आये जब सरकार या सा मीडिया ने अन्ना हजारे की टीम की तरफ से बनाए गए लोकपाल बिल को संसद की स्थायी समिति के विचार के लिए भेजने की बात की गयी तो अन्ना के साथी भड़क उठते थे. उनको लगता था कि सरकार उस विषय को टालने के लिए बिल को स्थायी समिति के पास भेज रही थी लेकिन जब इस विषय पर चर्चा हुई तो पता लगा कि स्थायी समिति के पास कितनी ताक़त होती है .

संसद की स्थायी समितियों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है . संसद के प्रति सरकार की ज्यादा जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संसद में कमेटी सिस्टम की व्यवस्था लागू की गयी. १९८९ में पहली बार तीन कमेटियां बनायी गयीं. मकसद यह था कि किसी भी बिल के संसद में पेश होने से पहले उसकी विधिवत विवेचना की जाये और जब सभी पार्टियों की सदस्यता वाली समिति उसे मंजूरी दे तब संसद के सामने मामले को विचार के लिए प्रस्तुत किया जाए. इन कमेटियों का मुख्य काम सरकार के कामकाज की गंभीर विवेचना करना और संसद के प्रति सम्बंधित मंत्रालय कोपूरी तरह से जवाबदेह बनाना है . ,सम्बंधित मंत्रालय या विभाग की बजट मांगों पर पहले स्थायी समिति में चर्चा होती है और वहां पर जानकारों की राय तक ली जा सकती है .उस विभाग से सम्बंधित बिल भी सबसे पहले उस मंत्रालय की स्थायी समिति के पास जाता है . कमेटी का लाभ यह है कि सदन में पेश होने के पहले बिल की पूरी तरह से जांच हो चुकी होती है और हर पार्टी उसमें अपना राजनीतिक योगदान कर चुकी होती है . ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार वहां मनमानी कर ले क्योंकि कमेटी का गठन ही सरकार को ज्यादा ज़िम्मेदार ठहराने के लिए किया जाता है .सभी पार्टियों के सदस्य इन कमेटियों के सदस्य होते हैं इसलिए सरकार के काम काज की इनकी बैठकों में बाकायदा जांच की जाती है . स्थायी समिति के पास इतनी ताक़त होती है कि किसी भी सरकारी बिल को रद्दी की टोकरी में भी डाल सकती और सरकार को निर्देश दे सकती है कि वह बिल को दुबारा बना कर लाये.

इसी तरह से संसद में और भी बहुत सारी समितियां हैं जिनके बारे में विद्धिवत जानकारी नहीं है. राज्य सभा के डिप्टी चेयरमैन , के रहमान खां ने एक मुलाक़ात में बताया कि संसद की याचिका समिति के पास भी बहुत ताक़त होती है . उन्होंने बताया कि याचिका समिति यानी पेटीशन कमेटी के पास देश भर किसी भी मसले पर जांच करने का अधिकार है . उन्होंने कहा कि याचिका समिति के पास वह ताक़त भी होती है कि अगर उसका इस्तेमाल ठीक से किया जाए तो लोग अदालतों में पी आई एल ( जनहित याचिका ) दाखिल करना भूल जायेगें.उन्होंने बताया कि संसद के दोनों ही सदनों की अपनी याचिका समिति है और दोनों के पास एक जैसे ही अधिकार हैं . याचिका समित में कोई भी मामला विचार के लिए याचिका के रूप में भेजा जा सकता है . संसद सदस्यों के पास तो यह अधिकार होता ही है ,देश का कोई भी नागरिक याचिका समिति के सामने अपनी फारियाद पेश कर सकता है .

संसद के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने का अधिकार काफी पहले से रहा है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। संसद के नियमों के तहत देश के सभी नागरिकों को याचिका देने का अधिकार है लेकिन उसके लिए कुछ शर्ते हैं . इन शर्तों को पूरा कने वाली कोई भी याचिका संसद में विचार के लिए स्वीकार की जा सकती है .मसलन , ऐसे किसी मामले में याचिका नहीं दी जा सकती जो किसी विधेयक का विषय हो और संसद के विचाराधीन हो . इसके अलावा भारत सरकार से संबंधित जनहित के किसी भी विषय पर याचिका लाई जा सकती है .हाँ , जो मामले न्यायालय में विचाराधीन हों या जिनके लिए केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून या नियम के हिसाब से याचिका कर्ता को सहूलियत मिल सकती हो, उन विषयों पर याचिका समिति में अर्जी नहीं दी जा सकती.ज़ाहिर है जहां नियम क़ानून को तोड़कर कोई ऐसा काम किया जा रहा हो वहां याचिका समिति संकटमोचक का काम करती है . मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि जिन मामलों में आम तौर पर लोग पी आई एल करते हैं उन मामलों में याचिका समिति में दरखास्त दी जा सकती है . के रहमान खां ने बताया कि याचिका समिति वास्तव में आम आदमी के लिए ज्यादा उपयोगी है . क्योंकि यहाँ कोई खर्च नहीं होता और किसी तरह का वकील वगैरह नहीं करना होता.संसद को भेजी जाने वाली याचिका या तो किसी भी सदन के महासचिव के पास सीधे भेजी जा सकती है या किसी संसद सदस्य से प्रतिहस्ताक्षरित करवा कर याचिकाकर्ता की ओर से संसद में पेश किया जा सकता हाई . याचिका समिति के पास जो भी याचिका पंहुचेगी उसकी जाँच अवश्य की जाती है .याचिका समिति की सिफारिशें संसद के सम्बंधित सदन के सामने एक रिपोर्ट के रूप में पेश की जाती है . रिपोर्ट की कापी जिस मंत्रालय या विभाग से सम्बंधित मामला होता है ,उसके पास कार्रवाई के लिए भेजा जाता है .यह ज़रूरी है कि सरकार का विभाग याचिका समिति की रिपोर्ट पर जो भी कार्रवाई करेगा ,उसके बारे में याचिका समिति को बाकायदा जानकारी देगा . अगर तुरंत कोई कार्रवाई नहीं हो सकती तो विभाग का अधिकारी याचिका समिति के सचिव को बताएगा कि वह रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई करने की योजना बना रहा है .यह सूचना याचिका समिति के सचिव की ओर से समिति के सामने विचार के लिए पेश की जायेगी . अगर कार्रवायी से समिति संतुष्ट नहीं है तो सरकार के मंत्रालय या विभाग को संतोषजनक काम करने को कहेगी . यानी इस समिति के पास इतनी ताक़त है जो केंद्र सरकार जैसे मज़बूत संगठन को न्याय करने के लिए बाध्य कर सकती है . अगर याचिका समिति इस बात से संतुष्ट है कि सरकार की तरफ से ज़िम्मेदारी से काम नहीं किया जा रहा है तो सरकार के लिए संसद में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है .इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई मामला एक बार याचिका समिति के सामने आ गया तो वह उस पर तब तक निगरानी रखेगी जब तक कि समस्या का हल न निकल आये.
इस तरह से हम देखते हैं कि संसद की याचिका समिति के पास ऐसे पावर हैं जिनके चलते हमारी लोकतंत्रीय व्यवस्था को और भी मज़बूत बनाया जा सकता है और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की जा सकती है .

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