Sunday, April 1, 2012

हथियारों के दलाल और उनके कारिंदे जनरल के खिलाफ लामबंद हो गए हैं .

शेष नारायण सिंह

जनरल वी के सिंह के खिलाफ नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में बहुत सारे लोग लाठी भांज रहे थे. बाद में उनकी संख्या कुछ कम हुई. जनरल वी के सिंह को हटाने के लिए दिल्ली में सक्रिय हथियार दलालों की लाबी बहुत तेज़ काम कर रही थी. राजधानी में यही लाबी सबसे ताक़तवर मानी जाती है .नई दिल्ली के हथियार दलालों ने ही कुमार नारायण नाम के हथियारों के एक दलाल को जेल में डलवा दिया था क्योंकि वह विरोधी पार्टी का था और उसके दुश्मन उससे मज़बूत थे. इस हथियार लाबी की ताक़त इतनी है कि वह किसी को भी प्रभावित कर सकती है . ज़्यादातर मामलों में तो पता भी नहीं चलता और ईमानदार आदमी भी दलालों के इस गिरोह का शिकार हो जाता है . जब मीडिया पर एकाधिकार का ज़माना था और सरकारी रेडियो और टेलिविज़न ही हुआ करते थी तो अखबारों की खबरें किसी भी हालत में हथियारों के दलालों के खिलाफ नहीं जा सकती थीं . जब से प्राइवेट टेलिविज़न चैनल आये हैं , हथियारों के दलालों के गिरोह खबरों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं . नतीजा यह है कि इनके कारनामे सार्वजनिक चर्चा का विषय बन जा रहे हैं . जनरल वी के सिंह के खिलाफ भी जो अभियान चला , वह अब खंड खंड हो रहा है. जनरल ने १४ करोड़ रूपये के घूस वाले अपने इंटरव्यू में हिन्दू अखबार की संवाददाता, विद्या सुब्रमनियम को बताया था कि फौज के नाम पर दलाली करने वाले आदर्श घोटाले वाला गिरोह उनके पीछे पडा हुआ है और उसी गैंग के लोग उन्हें बदनाम करने पर आमादा है . सवाल यह उठता है कि अगर उस गिरोह वाले जनरल के पीछे पड़े हैं तो प्रेस क्लब में लोग उनके खिलाफ इतना क्यों हैं, मेरे वे पत्रकार मित्र जिनकी ईमानदारी पर कभी कोई सवाल नहीं उठाये गए, वे क्यों जनरल के खिलाफ हैं . वे अफसर जनरल को क्यों गरिया रहे हैं जिनकी ईमानदारी की कहानियां दिल्ली में उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं . वे नेता क्यों जनरल को बर्खास्त करने की बात कर रहे हैं जो आम तौर पर बहुत ही कड़क माने जाते हैं और जिनको कभी कोई भी दलाल बेवक़ूफ़ नहीं बना सकता .
इन सारे सवालों का एक ही जवाब है. वह जवाब यह है कि हथियारों के दलालों ने जनरल वी के सिंह को निपटाने की योजना बहुत ही ठीक से बना रखी थी. इन लोगों ने मीडिया में अपने कुछ ख़ास लोगों के बीच बहुत दिनों से जनरल वी के सिंह के खिलाफ खुसुर पुसुर चला रखा था . जनरल को कुछ नहीं मालूम था. नौकरशाही में भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हथियारों के दलालों के लिए काम करते हैं . तो मीडिया में मौजूद हथियार दलाल लाबी के ख़ास लोगों ने ईमानदार पत्रकारों को संभाला और उन्हें जनरल की काल्पनिक कमियों की जानकारी दी. इन ईमानदार पत्रकारों ने नेताओं को अंदर की खबर देने के चक्कर में उन्हें बता दिया कि सेना प्रमुख बिलकुल बेकार आदमी है . इस बीच प्रधानमंत्री को लिखा गया एक रूटीन पत्र इन्हीं दलालों के एजेंटों ने लीक कर दिया . ब्रिक्स सम्मेलन की टाइमिंग भी दलालों ने ही मैनेज की . और भी बहुत सारी बातें हुईं और जनरल वी के सिंह एक जिद्दी इंसान के रूप में पेश कर दिए गए. आज तो हद ही हो गयी . अखबार में एक ऐसे आदमी का बयान छपा है जो कई पीढ़ियों से सत्ता के गलियारों में सक्रिय है . यह आदमी कहता है कि जनरल को ज़बस्दस्ती छुट्टी पर भेज दो .

जानकार बताते हैं कि अगर जनरल वी के सिंह ने सेना के कुछ बड़े अफसरों द्वारा किये गए फौज की सुखना वाली ज़मीन के घोटाले का पर्दाफाश न किया होता या आदर्श घोटाले को बेनकाब न किया होता , या हथियारों की दलाली में लगे लोगों को मनमानी करने दी होती तो नई दिल्ली के पावर ब्रोकर उन्हें घेरने की कोशिश न करते. इन पावर ब्रोकरों के हाथ बहुत लम्बे होते हैं और बहुत सारे लोगों को पता भी नहीं लगता कि यह उनको कब इस्तेमाल कर लेते हैं . बहरहाल संतोष इस बात का है कि जनरल वी के सिंह ने वह काम किया जो कभी टी एन शेषन ने किया था और अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना दिल्ली के स्वार्थी लोगों को उनकी औकात पर ला दिया . इस दिशा में आज का विद्या सुब्रमनियम का वह लेख बहुत काम आएगा जिसमें उन्होंने लिखा है कि जनरल बेदाग़ है

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