Tuesday, June 8, 2010

काकोरी के शहीदों की शान को सलामत रखना होगा

शेष नारायण सिंह

भारत की आज़ादी के इतिहास में काकोरी नाम सोने के अक्षरों में लिखा गया है .और काकोरी के शहीदों में ठाकुर रोशन सिंह का नाम बहुत ही इज्ज़त से लिया जाता है . वे काकोरी केस के उन बहादुरों में से थे जिनको फांसी की सज़ा सुनायी गयी थी. काकोरी के केस की मूल योजना पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने बनायी थी.उनके साथियों में अशफाकुल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिरी, दुर्गा भाभी ,शचीन्द्र बख्शी ,चन्द्रशेखर आज़ाद , केशव चक्रवर्ती ,शचीन्द्र नाथ सान्याल, मन्मथ नाथ गुप्ता आदि थे. हालांकि बताया जाता है कि इन लोगों ने अपने आन्दोलन की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लखनऊ जाती हुई रेल गाडी को लूट लिया था जिसमें ब्रितानी सरकार का खजाना रखा हुआ था लेकिन सच्चाई यह है कि गांधी जी के असहयोग आन्दोलन के वापस लिए जाने के बाद जो शिथिलता आ गयी थी , उसे फिर से जीवित करना इन नौजवानों का उद्देश्य था . काकोरी में खजाना लूटे जाने के बाद अंग्रेजों को अंदाज़ लग गया था कि अब भारत की आजादी को रोक पाना मुश्किल है . जो दरिया झूम के उट्ठे थे उन्हें रोक पाना अंग्रेजों के बस की बात नहीं थी. . इन नौजवानों के अदालती डिफेंस के लिए जो कमेटी बनी, उसकी अध्यक्षता खुद मोती लाल नेहरू कर रहे थे . इसका मतलब यह लगाया गया कि इन बहादुरों को महात्मा गाँधी का समर्थन भी मिला हुआ है . यानी पूरे देश की जनता इनके साथ है . अंग्रेज़ी हुकूमत की चूलें हिल गयी थी लेकिन उसने पूरी सख्ती दिखाई और चार लोगों को फांसी की सज़ा दी गयी जबकि बाकी साथियों को आजीवन कारावास की सज़ा मिली. मौत की सज़ा पाने वालों में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खां, राजेंद्र लाहिरी और रोशन सिंह थे. देश की आज़ादी की शान के लिए यह चारों नौजवान फांसी के तख्ते पर चढ़े थे. इतिहास कारों का एक वर्ग इनके योगदान को कम करके आंकता है लेकिन सही बात यह है कि इनकी शहादत के बाद देश में तूफ़ान आ गया था और जब महात्मा गाँधी ने १९३०में सम्पूर्ण आज़ादी की बात की तो अंग्रेजों के कुछ पिट्ठू संगठनों के अलावा बाकी पूरा देश आज़ादी के साथ था, गाँधी के साथ था और अंग्रेजोंके खिलाफ था. जेलों में हिन्दुस्तानी अवाम को ठूंस दिया गया .सभी संगठनों के लोग जेलों में थे. जिन संगठनों के मुखिया जेल नहीं गए उन्हें अंग्रेजों के खैरख्वाह के रूप में आज भी पहचाना जाता है .
एक दुखद खबर आई है कि ठाकुर रोशन सिंह का पौत्र उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में एक धोखाधड़ी के केस में पकड़ लिया गया है . उसके ऊपर यह भी आरोप है कि उसने एक दलित महिला को धोखा देकर उसका यौन शोषण भी किया . भारत की आज़ादी के लड़ाई का नेतृत्व महात्मा गाँधी ने किया था लेकिन रोशन सिंह जैसे लोगों का उसमें कम योगदान नहीं है और उनका ही वंशज जब दलित के शोषण और धोखा धडी का काम करता है तो यह इस बात का संकेत हैं कि हमारी व्यवस्था में कहीं कुछ बहुत ही गड़बड़ हो गयी है . आरोप है कि रोशन के पौत्र ने एक दलित महिला से झूठ बोलकर शादी की और जब सच्चाई का पता उस महिला को चला तो उसने नाराज़गी ज़ाहिर की. रोशन सिंह के पौत्र ने उसे गाली दी और मारा पीटा अगर यह आरोप सच है तो बात बहुत बिगड़ चुकी है . उत्तर प्रदेश में समाज की भलाई की चिंता करने वालों को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ..क्योंकि अगर श्हहीद रोशन सिंह के परिवार के लोगों में भी सामाजिक बराबरी की भावना नहीं रह गयी है तो ज़ाहिर है पिछले साठ वर्षों में देश ने बहुत कुछ खो दिया है . जो व्यक्ति मुल्क की आज़ादी के लिए फांसी पर झूल गया हो उसके परिवार में अगर दलितों का उत्पीडन करने वाला मौजूद है तो यह संस्कार रोशन सिंह के तो नहीं है . निश्चित रूप से समाज और सरकार ने यह हालात पैदा किये हैं . सरकार इस लिए कि आजकल लगभग सब कुछ सरकार के हवाले है . सामाजिक परिवर्तन के लिए भी अब राजनीतिक आन्दोलन नहीं चलते, बस सरकारी अनुदान के सहारे सामाजिक परिवर्तन की गाडी चल रही है .
ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश में नौजवानों को जीवन मूल्यों की सही शिक्षा नहीं दी जा रही है . इसका एक कारण तो यह है कि पूरे राज्य में ग्रामीण इलाकों में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं . बच्चों को शिक्षा नहीं दे रहे हैं . मजबूरी में यह बच्चे उन स्कूलों में जाते हैं जो निजी हाथों में हैं ,. उन स्कूलों में संचालकों की विचारधारा की घुट्टी पिलाई जाती है . ज़्यादातर स्कूलों में पाठ्यक्रम ऐसे हैं जो सामंती-साम्प्रदायिक रंग में रंगे हुए हैं . एक सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर जिलों में आर एस एस वालों ने सरस्वती शिशु मंदिर खोल रखे हैं . जहाँ पूरी तरह से सामंती माहौल है . वहां सांप्रदायिक पाठ्यक्रम भी है . उन स्कूलों में पढने वाले बच्चों को यह तो बताया जाता है कि सावरकर या गोलवलकर कितने महान थे लेकिन यह नहीं बताया जाता कि अशफाकुल्ला खान ने इस देश के आज़ादी के ;लिए अपनी कुर्बानी दी थी. ज़ाहिर है सामंती सोच की शिक्षा से ऐसे ही नौजवान समाज में आयेगें जैसा महान क्रांतिकारी रोशन सिंह का पौत्र है . सरकार और समाज को फ़ौरन संभालना होगा वरना आज़ादी के लिए दी गयी कुर्बानियां बेकार चली जायेंगीं और देश में एक ऐसा समाज कायम हो जाएगा जिसकी सामाजिक सोच सामंती होगी या साम्प्रदायिक होगी. सभी लोगों को इस बात की चिंता करनी चाहिए कि हमारी आजादी की विरासत की हिफाज़त हो

5 comments:

  1. क्या आपने कभी किसी सरस्वती शिशु मंदिर और किसी मदरसे के नजदीक से देखा है... एक अच्छे मुद्दे का प्रारम्भ कर वापस उसी मुद्दे पर... एक इतने अधिक पढ़े लिखे और विद्वान विचारक के लेख का ऐसा अन्त...

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  2. क्या आपने कभी किसी सरस्वती शिशु मंदिर और किसी मदरसे के नजदीक से देखा है... एक अच्छे मुद्दे का प्रारम्भ कर वापस उसी मुद्दे पर... एक इतने अधिक पढ़े लिखे और विद्वान विचारक के लेख का ऐसा अन्त...

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  3. सरस्वती शिशु मन्दिरों की अब क्या स्थिति है, नहीं मालूम। लेकिन अपने समय की पढ़ाई की तुलना आज की पढ़ाई और शिक्षकों से करता हूँ तो पाता हूँ कि उनकी गुणवत्ता के आगे आज के महँगे स्कूल भी नहीं ठहरते।
    शिक्षक ग़रीबी में रहते थे और सबका सम्मान पाते थे । हाँ, अशफाक उल्ला खान पर गर्व करना हमें सिखाया गया था। शनिवार की साप्ताहिक महापुरुष परिचय शृंखला में अशफाक, अब्दुल हमीद आदि भी होते थे। कृपया इस तरह की अफवाहें न फैलाएँ। ...
    हाँ, मैं संघी नहीं हूँ।

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  4. सर,आपसे मैं भी सहमत नही हूं.मैने पूरी स्कूल की शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में और विद्यामंदिर में पाई है वहां अशफाक उल्ला खां और वीर अब्दुल हमीद ही नहीं साल भर वार्षिक कैलेंडर में सभी महापुरुषों के बीच डॉ.कलाम को जगह दी गई थी.वहां हमेशा यही सिखाया गया राष्ट्र से सर्वोपरि कोई धर्म, जाति और व्यक्ति नही है.वहीं जब इलाहाबाद पढ़ने गया तो क्रिश्चियन कॉलेज में एक बार क्लास में मां सरस्वती की फोटो लगाने पर वहां के प्रिंसिपल और दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष को ऐतराज था.

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