Thursday, July 9, 2020

स्व पुदई तिवारी की याद आषाढ़ में ज़रूर आती है


शेष नारायण सिंह


 जब भी  मानसून की पहली झमाझम बारिश होती है , मुझको अपने गाँव के आदरणीय बुज़ुर्ग स्व. पुदई तिवारी की बहुत याद आती  है. वे हमारे बाबू के मित्र थे और हमारे गाँव के मानिंद किसान थे .  उनका सरकारी नाम तो राम  सेवक तिवारी था लेकिन हर जगह उनको पुदई तिवारी नाम से ही पहचाना जाता था. यह लोग हन्या तिवारी हैं और ब्राह्मणों की   अगली   कतार के  माने जाते हैं .  .
एक कहावत है कि "तेरह  कातिक तीन अषाढ़ " .जब बारिश के पानी के सहारे खेती होती थीट्यूब वेल नहीं थे रबी में जौ  गेहूं ,मटर की सिचाई कुओं के पानी या तालाब के पानी से होती थी तब इस कहावत का बहुत मतलब होता  था . आम तौर पर अद्रा लगते ही मानसून की बारिश शुरू हो जाती थी ,और वह बारिश झूमकर होती थी. खेतों में पानी भर जाता था .ताल तलैया भी पानी से भर जाते थे . आम तौर पर आद्रा नक्षत्र जून के अंतिम सप्ताह में २२ जून के आसपास  लगता था. आषाढ़ के महीने में लगने वाले अद्रा को मानसून की आमद की घंटी भी माना जाता  था. चैत की दंवाई के बाद दशहरे के करीब एक महीने पहले  किसानों के हलवाहे अगर कहीं और काम करना चाहते थे तो अपने   किसान  को नोटिस  दे देते थे. दशहरे के दिन ही नए हलवाहे काम संभाल लेते थे . मानसून आने के साथ ही तीन दिन के अन्दर धान की बुवाई पूरी हो जाती है. इसीलिये  आषाढ़ के तीन दिन किसान के लिए  बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं . अगर इन तीन दिनों में कोई अड़चन आ गयी तो  आषाढी खेती की मुख्य फसल धान की कोई पैदावार नहीं मिलती थी .
ऐसे में ही 1965 में ऐन आद्रा के दिन हमारा बैल मर गया . हमारे हलवाहे दूलम थे . वे रोते हुए आये.  हम चारों भाई बहन भी बहुत दुखी थे. आषाढ़ में नया बैल खरीदे जाने में  भी थोड़ा समय तो लग ही जाता . वैसे भी आषाढ़  शुरुआत में कोई भी बैल बेचता नहीं था.  यह शाम की घटना है .रात में  झूमकर पानी बरसा. खेतों में पानी भर गया . उन दिनों धान की बुवाई के लिए पानी से भरे खेत में  ही हल चलाये जाते थे . पानी सूखने के पहले बीज खेत में पद जाना चाहिए होता था . सुबह खेतों में हल चलना था . लेकिन हमारे यहाँ तो बैल ही नहीं था.  सवेरे हमारे दूलम दौड़ते हुए आये और माई को बताया कि अपने खेत में  पुदई तिवारी  के हल चल रहे हैं . तिवारी जी हमारे  बाबू के हमउम्र भी थे और दोस्त भी थे. हुआ यह था कि  सारे गाँव  को पता चल गया था कि हमारे बैल नहीं हैं  लिहाजा हमारी धान की  बुवाई की सम्भावना  बिलकुल  नहीं थी. बाद में  रोपाई की जा सकती थी लेकिन तब तक धान की नहीं जड़हन की रोपाई का रिवाज़ था .अद्रा की पहली बारिश में लोग अपने अपने खेत में धान की बुवाई करते हैं . सब कर रहे थे लेकिन पुदई तिवारी ने अपने खेतों को दरकिनार करके हमारे खेत में अपने हल भेज दिया था . ज़ाहिर है , यह दोस्ती निभाने के चक्कर में  उनको घाटा हुआ होगा लेकिन उनकी शख्सियत की बुलंदी ही थी कि उन्होंने अपने दोस्त को  प्राथमिकता दी.
हमारे घर में  जब भी कोई परेशानी आती थी , तिवारी जी खड़े रहते थे . हमारे गाँव में सबसे अधिक ज़मीन उनके ही पास थी .  खेती के बल पर ही  शान से रहते थे . उनके बड़े बेटे , राम मिलन तिवारी मुझ उम्र में  बड़े हैं . जब मैं छठवीं में पढने गया  तो वे दसवीं जमात में थे  . स्कूल में  जब भी कोई मुझे परेशान करता , वे तुरंत उसको धमका देते थे . हाई स्कूल के  इम्तिहान के दौरान मैं बहुत बीमार हो गया . राम मिलन के रिश्तेदार और उनके हम उम्र माननीय उमाकांत मिश्र  के घर पर मैं रात में जाकर पढाई करता था .  बहुत मदद की उन्होंने .  किस्मत ऐसी थी कि परीक्षा  शुरू होने के एक महीने पहले मैं बीमार हो गया.   टायफायड हो गया था.  जिस दिन  इम्तिहान का पहला पर्चा था उसके तीन दिन पहले   मैं ठीक होकर  घर आया . सबको उम्मीद थी कि मैं उस साल इम्तिहान नहीं दूंगा  लेकिन मेरे पिताजी ने कहा कि जब आ गए  हैं तो इम्तिहान दे देना चाहिए . बेलहरी में मेरा कालेज थी. वहीं सेंटर भी था . नदी पार करके जाना होता था . मैं साइकिल चलाने  की स्थिति में नहीं था.  पैदल भी चलना पहाड़ था लेकिन बाबू ने फैसला  कर लिया और पुदई तिवारी ने मुझे पालकी पर   बैठाकर परीक्षा केंद्र तक भेजवा दिया .  
मेरे बचपन की जो यादें हैं उनमें एक है कि उनके घर जब  जब भी मैं  गया  , दही खाकर ज़रूर आया .  रात भर उपरी की आग में पके बादामी रंग के दूध की दही आज भी यादों में  ताजा है.  अब वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अब भी उनके यहाँ जाता हूँ तो उनके बेटे पंडित राम मिलन के साथ बैठकर दही ज़रूर खाता हूँ .इस बार पंडित उमाकांत मिश्र के साथ गया था ,  भरपेट दही खाया और अपने बचपन की सुनहरी यादों में  डुबकी  लगाता रहा .
जब  भी हमारे यहाँ कोई संकट  आता था तो जो लोग सबसे पहले पंहुचते थे उनमें तिवारी जी का नाम   सबसे ऊपर है . अब वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके बेटे पं राम मिलन तिवारी अभी भी मुझे अपना सगा मानते हैं.  उनको आज के साठ साल पहले का हमारे परिवार का दुर्दिन याद है .  इसलिए जब हमारे  बच्चों के बारे में सुनते  हैं तो बहुत ही खुश होते हैं . अपने बच्चों को उन्होंने बहुत ही अच्छी  शिक्षा दिलवाई है और बच्चे जीवन में बहुत  अच्छा कर रहे  हैं. 

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