शेष नारायण सिंह
कश्मीर घाटी एक बार फिर उबाल पर है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से मंगलवार को ४ बच्चों की मौत हो गयी है और करीब ७० घायल हैं . मरने वालों में ९ साल का एक लड़का और एक जवान लडकी भी है . पिछले एक महीने में सी आर पी एफ की गोलियों से चौदह लोगों की मौत हो चुकी है .ताज़ा वारदात में भी सुरक्षा का ज़िम्मा सी आर पी एफ की टुकड़ियों पर था और सरकारी बयानों में उसे बलि का बकरा बनाने की कवायद शुरू हो गयी है . लेकिन अब कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है , उसके लिए पिछले डेढ़ साल से राज कर रहे , मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हैं .कई हफ़्तों से घाटी में अवाम का विरोध चल रहा है , उसे कुचलने के लिए सरकार ने सी आर पी एफ को ज़िम्मा दिया . तंग गलियों में कायदे से स्थानीय पुलिस को भेजा जाना चाहिए क्योंकि बाहर से आये सी आर पी एफ के जवानों के सामने भाषा और मुकामी मुहल्लों के रास्तों की जानकारी की चुनौती होती है . इसलिए उन्हें परेशानी होती है लेकिन सरकार ने उन्हें लगा दिया और नौजवानों की जानें चली गयीं . राज्य और केंद्र सरकार के नेता केंद्रीय पुलिस बलों को ज़िम्मेदार ठहराने की अपनी आदत के हिसाब से पल्ला झाड़ने के मूड में थे लेकिन सूचना क्रान्ति के चलते पूरी दुनिया को सच्चाई मालूम पड़ गयी और अब नेता लोग बगलें झाँक रहे हैं . राज्य सरकार की बेशर्मी की हद तो यह है कि वे अब अपने लोगों की राजनीतिक मांगों को तबाह करने के लिए फौज की मदद की फ़रियाद कर रहे हैं . ज़ाहिर है केंद्र सरकार गली मुहल्लों से शुरू होने वाले आम आदमी के आन्दोलन को कुचलने के लिए फौज का इस्तेमाल तो नहीं करने देगी. पता चला है कि सेना की कुछ कम्पनियां उपलब्ध कराई जायेगीं जो केवल फ्लैग मार्च के काम में लाई जायेगीं . कश्मीर में हालात रोज़ बिगड़ रहे हैं . अब तक तो वहां तोड़ फोड़ में विदेशी हाथ की थियरी चला दी जाती थी लेकिन अगर ९ साल के बच्चे भी विदेशी हाथ में जा चुके हैं तो बात बहुत ही ज्यादा बिगड़ चुकी है . इस लिए केंद्र सरकार को चाहिए कि जम्मू -कश्मीर के मुख्य मंत्री को गंभीरता से लेना बंद करें और हालात को सामान्य करने केलिए सोच विचार करके काम करें.
कश्मीर में पिछले कई हफ्ते से तनाव है.उम्मीद की जा रही थी कि मामला शांत हो जाएगा लेकिन मंगलवार को हुई मौतों ने माहौल को बहुत बिगाड़ दिया. सोमवार की रात को बटमालू में पुलिस से डर कर भाग रहे एक लडके की एक नाले में गिरकर मौत हो गयी. वह लड़का उमर अब्दुल्ला सरकार के एक मंत्री से नाराज़ था और अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहा था लेकिन पुलिस ने उसे दौड़ा लिया और जान बचाने के चक्कर में वह नाले में गिर गया और मर गया. जब मंगलवार के सुबह उस लड़के का शव नाले से निकाला गया तो लोगों को बहुत तकलीफ हुई और उन्होंने अपने ग़म और गुस्से का इज़हार करने के लिए जुलूस निकाला .भीड़ को कण्ट्रोल करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई और एक लड़का मारा गया . कई घायल भी हो गए . इसके बाद तो एक के बाद एक गलती होती गयी और हालात काबू के बाहर होते गए. शाम को मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला ने बताया कि मामले की जांच की जायेगी . उन्होंने खबर दी कि जो तीन बच्चे मारे गए हैं वे भाग कर अपने घर जा रहे थे और पुलिस ने उन्हें दौड़ा कर मारा . उन्होंने कहा कि अगर वे सड़क पर मारे गए होते तो शक़ हो सकता था कि वे पत्थर फेंक रहे थे लेकिन वे तो अपने घरों में मारे गए. उन्होंने कहा कि वापस श्रीनगर जाकर वे फ़ौरन कार्रवाई करेगें और गलती करने वालों की ज़िम्मेदारी फिक्स करेगें . कहने में यह बात बहुत अच्छी है लेकिन ज़िम्मेदारी फिक्स करने के लिए कहीं दूर जाने की ज़रुरत नहीं है . जम्मू-कश्मीर की मौजूदा हालात के लिए सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार मुख्यमंत्री खुद हैं . डेढ़ साल पहले संपन्न हुए चुनाव में जनता ने जिस तरह से आतंकवादियों की मर्जी को ठोकर मार कर कांग्रेस और नेशनल कांफेरेंस को सत्ता सौंप दी थी , उसे आगे बढाने की ज़रुरत थी लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री ने सब कुछ बिगाड़ कर रख दिया . जम्मू-कश्मीर में कुछ भी होता है तो उमर अब्दुल्ला फ़ौरन राष्ट्र विरोधी ताक़तों को जिम्मेवार बात देते हैं . उनकी डिक्शनरी में राष्ट्र विरोधी ताक़तों का मतलब हुर्रियत से है. वे हुर्रियत के खिलाफ प्वाइंट स्कोर करने से कभी बाज़ नहीं आते. जबकि केंद्र सरकार की नज़र में कश्मीर में जो भी गड़बड़ होती है , उसके लिए लश्कर-ए-तय्यबा ज़िम्मेदार पाया जाता हैं . लेकिन उमर अब्दुल्ला और पी चिदंबरम की बदकिस्मती यह है कि उनकी बात में शायद आंशिक सच्चाई हो सकती है लेकिन उसे पूरा सच मानने की गलती नहीं की जा सकती. पूरा सच यह है कि जम्मू-कश्मीर में २००८ में हुए विधान सभा चुनाव के दौरान जो सकारात्मक रुख था , वह ख़त्म हो गया है. राज्य सरकार की विश्वसनीयता रसातल पंहुच चुकी है . घाटी में सबको मालूम है कि सुरक्षा बलों को शूट ऐट साईट के आदेश दिए जा चुके हैं .लोग यह भी जानते हैं कि जिस तरह से राज्य सरकार की नाकामी को छुपाने के लिए जो भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उनको रौंद डालने का हुक्म दिया जा चुका है .नतीजा यह है कि राज्य के किसी भी हिस्से में लोकतंत्र नाम की चीज़ नहीं है हालांकि वहां एक ऐसी सरकार है जो बाकायदा चुन कर राज कर रही हैं . इसका सीधा कारण यह है कि मौजूदा मुख्य मंत्री के ऊपर घाटी में कोई भी विश्वास नहीं करता . सिविल सोसाइटी के लोग बहुत ही चिंतित हैं . और मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इस मामले में अपना रुख साफ़ करे . क्या केंद्र सरकार को नहीं मालूम है कि इतने संवेदनशील इलाके में बहुत ही पेचीदा समस्या का हल करने का तरीका लाठी गोली कभी नहीं हो सकती है . सच्चाई यह है कि अगर फ़ौरन से पहले इस काम को न किया गया तो बात रोज़ ही बिगड़ती जायेगी. कश्मीर में विदेशी हाथ और राष्ट्र विरोधी ताक़तों का राग अलाप रहे नेताओं को यह साफ़ बताना होगा कि ९ साल का बच्चा किन कारणों से राष्ट्र द्रोही बनता है . गौर करने की बात यह है कि यह वही लोग हैं जिन्होंने अभी डेढ़ साल पहले कश्मीर और केंद्र के नेताओं का विश्वास किया था और पाकिस्तान के इशारे पर चल रहे अलगाव वादी लोगों के आन्दोलन को फटकार दिया था . आज उन्हीं लोगों की जायज चिंताओं को यह सरकार बन्दूक की भाषा में समझाने की कोशिश कर रही है.
सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि देश की राजनीति के शिखर पर बैठे लोगों की तरफ से भी किसी तरह की दिलाशा नहीं दी जा रही है . केंद्रीय गृह मंत्री खुले आप इस तरह की बात कर रहे हैं जिस से कश्मीरी अवाम अलग थलग पड़ता जा रहा है . जिनके खिलाफ गोलियां चलाई जा रही हैं वे निहत्थे नागरिक हैं . सवाल यह है कि क्या भारत की जनता की जायज नाराज़गी दूर करने के लिए और कोई तरीका नहीं है.कश्मीर में चल रहे सरकारी वहशीपन का कोई जवाब नहीं है. इस वक़्त ज़रुरत इस बात की है कि कश्मीर घाटी में मुसीबत झेल रहे लोगों के साथ सहानुभूति जताई जाए और उनके ऊपर चल रही गोलियों पर लगाम लगाई जाए. अगर ऐसा न हुआ तो हमारे मौजूदा हुक्मरान को आने वाली नस्लें कभी नहीं माफ़ करेगीं . .
आँखें अन्धी हों तो मनुष्य देख नहीं पाता लेकिन अगर मन में अँधियारा हो तो
ReplyDelete- देखते हुए भी समझ नहीं पाता,
- समझते हुए भी कह नहीं पाता,
- कहते हुए सही रह नहीं पाता,
और झूठ के सृजन से बच नहीं पाता।
यह तो पता नहीं कि आप लोगों के एजेंडे क्या हैं लेकिन इन मासूम, निहथ्थे और लोकतांत्रिक लोगों द्वारा जब कश्मीरी पंडितों पर अत्याचारों की कृपा की गई, उस समय आप लोगों की मेधा पर जो ताले जड़े थे, वे आज तक टूट नहीं पाए हैं।
आप लोग धन्य हैं ! आप को धिक्कार है !!
माननीय राव जी ,
ReplyDeleteबहुत लिखा था और आज तक लिखता हूँ . कश्मीर में जो लोग असली मुसीबत की जड़ हैं उनको तो ले जाकर आपके नेता कंदहार में छोड़ आते हैं . ९-९ साल के बच्चों को मार कर उन्हें आतंकवादी कहते हैं . आपकी भाषा से मुझे शक़ हो रहा है कि आप किसी संगठन के एजेंट हैं . जिसे आप लोग कंदहार पंहुचा कर आये थे , वही तो कश्मीर में सारी मुसीबत फैला रहा है . हाफ़िज़ मुहम्मद सईद उतना ही खूंखार है जितना ओसामा बिन लादेन लेकिन हाफ़िज़ मुहम्मद सईद का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे आपके नेता. क्या आप लोग सरकारी पार्टियों यानी कांगेस और बी जे पी के एजे मनाये बिना कोई सही बात कहने से डरते हैं .आप लोग और कांग्रेसी , अमरीका के समर्थक तो हैं , क्यों नहीं उसका प्रभाव इस्तेमाल करके हाफ़िज़ सईद को पकड़वा देते , वही तो भारत के खिलाफ सारी मुसीबत की जड़ है . और सुनो , धिक्कार अपने आप को दो , क्योंकि आपका दिमाग गुलाम है .
नग्न सचाई पर आप की बिलबिलाहट में आप के पूर्वग्रह खुल कर सामने आ गए। यही तो वे ताले हैं जो स्वतंत्र चिंतन मनन की प्रवृत्ति पर जड़े हैं।
ReplyDeleteमहोदय, दिमाग किसका गुलाम है - यह तो आप की पोस्ट और भन्नाहट को देख कर कोई भी वह शख्स बता देगा जो खुद किसी विचारधारा का ग़ुलाम नही है। आप लोगों की प्रोपेगेंडा की रीति अब किसी को प्रभावित नहीं करती । लोग हक़ीकत जानते हैं और समझते हैं।
@ आप के नेता और कंदहार - बस हँसी आ रही है। आप लोग अपने साधारणीकरणों से कब बाहर आएँगे?
@ सरकारी पार्टियों यानी कांगेस और बी जे पी - ज़रा अ-सरकारी पार्टियों के नाम भी गिना दीजिए।
@ सही बात कहने से डरते हैं - जगे ज़मीर वाले किसी से नहीं डरते।
...
आप वाकई धन्य हैं ।
गिरिजेश बाबू ,
ReplyDeleteमेरी बिलबिलाहट ? मैंने आपको आइना दिखाया है . आप यानी उन लोगों को जो आप जैसे लोगों को स्पांसर करते हैं . अपनी मूर्खता को अपना जगा ज़मीर कहते हैं आप . आपकी मौजूदा सोच की पूर्वज थी जम्मू की प्रजा परिषद जिसने कश्मीर के राजा की चापलूसी करने के चक्कर में पाकिस्तान में विलय की बात भी की थी. कश्मीर की पूरी आबादी को आतंकवादी बताने वाले आप ही लोग वहां अशांति के एजेंट हैं . आप लोग कहीं प्रजा परिषद् नाम धारण कर लेते हैं और कहीं लश्कर-ए-तय्यबा . मकसद केवल अमरीकी हितों की साधन है आप लोगों की ज़िन्दगी का. आप थोडा वक़्त निकाल कर बलराज पुरी की कश्मीर के बारे में लिखी किताब पढ़ लीजिये . थोड़ी सच्चाई समझ में आ जायेगी. हाँ ,एक और ज़रूरी बात . जिन सत्ता प्रतिष्टानों की गुलामी आप कर रहे हैं , उन लोगों को छोड़ दीजिये क्योंकि वे आप को इस्तेमाल करके फेंक देगें फिर आप बिलबिलाते फिरेगें.
उफ! कितने गहरे पूर्वग्रह हैं ! कदम कदम पर झाँकी बिखरी पड़ी है:
ReplyDelete- आइना उन लोगों को जो आप जैसे लोगों को स्पांसर करते हैं
- मूर्खता को अपना जगा ज़मीर
- मौजूदा सोच की पूर्वज थी जम्मू की प्रजा परिषद
- कश्मीर के राजा की चापलूसी करने के चक्कर
- अशांति के एजेंट
- कहीं प्रजा परिषद् नाम धारण कर लेते हैं और कहीं लश्कर-ए-तय्यबा
- मकसद केवल अमरीकी हितों की साधन
- सत्ता प्रतिष्टानों की गुलामी
- इस्तेमाल करके फेंक देगें
ज़रा सुझाइए तो कैसे:
- कश्मीरी पंडित वापस घाटी में जायँ
- कैसे उनके टूटे उपासना गृह दुबारा बनें और उन पर से ज़िहादियों का कब्जा हटे
- कैसे उनके कब्ज़ा किए हुए घर दुबारा उन्हें वापस मिलें
- कैसे पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगाने तो दूर उनके बारे में [भोली, निर्दोष, निहथ्थी, बेचारी कश्मीरी अवाम जिसमें से पंडित ग़ायब हैं]सोचें भी न
क़िताब का नाम और प्रकाशक तो आप ने बताया नहीं लेकिन मैं आप को लिंक देता हूँ, ज़रा इस पर प्रस्तुत पोस्टों को पढ़ लीजिए। सामग्री कम लगे तो बताइएगा। अंग्रेजी से समस्या हो तो ऑनलाइन अनुवाद की सहायता ले सकते हैं। हाँ, काठ का चश्मा उतार कर पढ़िएगा, बिना किसी वैचारिक आग्रह के, विशुद्ध मानवीयता के साथ -http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/|
आप को यहाँ भी एजेंट, सत्ता के ग़ुलाम वगैरह न नज़र आने लगें इसलिए कहा है कि काठ का चश्मा उतार कर पढ़िएगा।
इसके लिए मेरा आज का आलेख पढ़िए . अभी पोस्ट कर रहा हूँ . अमरीकी-पाकिस्तानी-जिहादी आतंकवाद पर लगाम लगाकर
ReplyDeleteथोड़ा रुक कर महराज! पहले उस साइट को देख समझ लीजिए।
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ReplyDeleteराव बाबू,
ReplyDeleteआप मुझे जानते नहीं हैं. कश्मीरी पंडितों के पक्ष की लड़ाई में मैं १९८१ से शामिल हूँ . और आप नानी के ननिहाल की तारीफ़ कर रहे हैं . बस मेरा एक आग्रह है कि आप जैसे लोग यह मान लें कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता और हिन्दू भी आतंकवादी हो सकता है . इसी पोस्ट के बगल में मेरी आर एस एस वाली पोस्ट भी लगी है . आतंकवाद कहीं भी उसका विरोध करना चाहिए , वरना अमरीका की तरह पछताना पडेगा.
प्रसन्नता हुई कि आप कश्मीरी पंडितों के पक्ष की लड़ाई में १९८१ से शामिल हैं।
ReplyDelete@ नानी के ननिहाल की तारीफ - सुन्दर प्रयोग ! :) लेकिन बहुत बार लोगों को अपनी खूबियाँ ही याद नहीं आतीं, याद दिलाना पड़ता है।
एक और पूर्वग्रह झलकता है इस शब्द समूह में - "आप जैसे लोग" । आगे की सीख तो बस मानने से ही निकली है। उसके आगे आर एस एस का प्रयोग सब कुछ सिद्ध कर देता है। मान्यवर ! मैं संघी नही हूँ । आतंकवादी तो कोई भी हो सकता है - आप सही कह रहे हैं। ब्लॉगजगत में ही जाने कितने बिखरे पड़े हैं।
गिरिजेश जी
ReplyDeleteयह जानकर संतोष हुआ कि आप संघी नहीं हैं. तो फिर आप संघी किताबें पढ़ लीजिये . गोलवलकर की विचार नवनीत और नेशनहुड वाली दूसरी किताब जिसमें हिटलर को महान बताया गया है . तो आप संघी सोच से बचकर रहेगें. और दूसरी बात -- बलराज पुरी के बारे में सब कुछ जान लीजिये क्योंकि कश्मीर पर काम करने वाला अगर पुरी साहब को नहीं जानता तो चिंता का विषय है . मेरे पास उनकी कालजयी किताब है ,शायद आउट ऑफ़ प्रिंट है .अगर कभी दिल्ली आना हो तो बताइये फोटोकापी दे दूंगा . कश्मीर को समझने के लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच १९५२-५३ में हुए पत्र व्यवहार को पढना भी ज़रूरी है . दीन दयाल उपाध्याय जब जनसंघ के महामंत्री थे , तब उन्होंने उसे एक किताब की शक्ल में छपवाया था . वह भी शायद आउट ऑफ़ प्रिंट है .. हार्वर्ड विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में है. उसकी फोटो कापी मेरे पास है . अगर आप सही अर्थों में कश्मीरी अवाम ( हिन्दू और मुस्लिम दोनों ) के लिए चिंतित हैं तो उसकी कापी भी आपको दे सकता हूँ . और हमेशा ध्यान रखिये कि कश्मीर में न हिन्दू साम्प्रदायिक था और न ही मुसलमान . प्रजा परिषद् वालों ने हिन्दुओं को और पाकिस्तानी जिहादियों ने मुसलमानों को साम्रदायिक बनाया . आपको मालूम है कि जब कश्मीर को मुग़ल सम्राट ,अकबर ने १५८६ में अपने कब्जे में ले लिया , तब से ही कश्मीरी,( पंडित और मुसलमान ) ,अपने को गुलाम मानता था . ३६१ साल बाद जब १९४७ कश्मीर के राजा हरि सिंह से आज़ादी मिली तब जाकर कश्मीरियों ने अपने आपको आज़ाद माना . इसी आज़ादी की भावना को तंग नज़र भारतीय नेताओं ने सम्मान नहीं दिया . कश्मीरी अवाम में वही भावना जगाने की ज़रुरत है जिस से वह भारत के साथ रह कर अपने को आज़ाद माने . तंग नज़री से कम नहीं चलेगा.
@ कश्मीर में न हिन्दू साम्प्रदायिक था और न ही मुसलमान . प्रजा परिषद् वालों ने हिन्दुओं को और पाकिस्तानी जिहादियों ने मुसलमानों को साम्रदायिक बनाया . आपको मालूम है कि कश्मीर को मुग़ल सम्राट ,अकबर ने १५८६ में अपने कब्जे में ले लिया.
ReplyDeleteयह तथ्य मुझे पता है :)आगे की नेहरूवादी गड़बड़ी भी पता है।
@ कश्मीरी अवाम में वही भावना जगाने की ज़रुरत है जिस से वह भारत के साथ रह कर अपने को आज़ाद माने . तंग नज़री से कम नहीं चलेगा.
इतिहास को थोड़ा और पीछे लेकर जायँ तो मगध, कोशल, लाट, बज्जि, चोल, चेर, पांड्य आदि 'देशों' के वासियों में भी वही भावना जगाने की ज़रूरत पड़ेगी जिससे वह भारत के साथ रह कर अपने को आज़ाद मानें। दुर्भाग्य से कश्मीर में आज़ादी को का मतलब अलगाव है। अन्यथा भारत का कौन नागरिक अपने को आज़ाद नहीं समझता ? ऐसी कौन सी समस्याएँ हैं जिन्हें भारत के अन्य नागरिक नहीं झेल रहे ?
अलग से आज़ादी का क्या मतलब? अलगाववादी सोच को उदारवादी विचारों का प्रोत्साहन न मिले यही ठीक है। कश्मीर को भारत के साथ पूरी तरह से जोड़ने की आवश्यकता है न कि विशिष्टता के आवरण में अलहदा पोसने की। ठीक है कि इतिहास अभी नया है लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी असम्भव नहीं।
आप अपने सम्पर्क सूत्र ई मेल में भेज दीजिए। फोटोकॉपी करा कर मैं मँगा लूँगा। दिल्ली में मेरे सम्पर्क हैं।
पुरी साहब की किताब का नाम आप ने अभी तक नहीं बताया। हो सकता है कि मुझे यहीं मिल जाय। हो सकता है मैंने पढ़ी हो और मुझे लेखक का नाम ही न याद हो।
आप साफ़ साफ़ लिखें की आप चाहते क्या हैं ? क्या कश्मीरी मुस्लिमों की पाकिस्तान में विलय या अलगाववाद की बात मान ली जाए? क्योंकि अधिकतर कश्मीरी नेता स्वायत्तता, पाकिस्तान में विलय या नये इस्लामिक मुल्क से कम पर कुछ मानाने को राज़ी नहीं हैं. क्या भारत को इनकी मांग मान लेनी चाहिए?
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