शेष नारायण सिंह
( मूल लेख दैनिक जागरण में छप चुका है )
मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ गए थे क्योंकि पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया ने स्वीकार कर लिया था कि मुंबई पर हुआ हमला पाकिस्तानी आतंक के सबसे बड़े सरगना, हाफ़िज़ मुहम्मद सईद की निगरानी में हुआ था. भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया और पाकिस्तानी आतंक के नेटवर्क को तबाह करने की बात की लेकिन पाकिस्तान मानने को तैयार नहीं था . बहरहाल बात धीरे धीरे बढ़ती रही और पाकिस्तान और भारत पर अमरीकी दबाव बढ़ता रहा . भारत इस बात पर अडिग रहा कि जब तक मुंबई के हमलावरों को पकड़ा नहीं जाता भारत कोई बात नहीं करेगा . पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में भी नेताओं को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश को करना ज़रूरी माना जाता है . शायद इसीलिये पाकिस्तानी हुक्मरान बातचीत के लिए जोर देते रहे .इस पृष्ठभूमि में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की बातचीत हुई लेकिन भारतीय विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को भारत की कीमत पर कोई फायदा उठाने का कोई मौक़ा नहीं दिया.
भारत के विदेशमंत्री, एस एम कृष्णा की इस्लामाबाद यात्रा सही मायनों में ऐतिहासिक है . ख़ासकर दिन भर चली बात चीत के बात प्रेस से जो वार्ता हुई वह बहुत दिनों तक याद रखी जायगी. . भारतीय विदेश मंत्री ने बिना लाग लपेट के बात की और साफ़ कर दिया कि भारत एक बड़ा मुल्क है और पाकिस्तानी नेताओं को उस से बराबरी करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए . कूटनीति की दुनिया अजीब है . उसमें तरह तरह के शब्दों के अलग अर्थ निकाले जाते हैं . विदेश मत्रालय के अधिकारियों को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि वे ऐसा ड्राफ्ट बनाएं जिस से अलग अलग मुल्कों में वक्तव्य की अलग अलग व्याख्या की जा सके .मसलन जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि बलोचिस्तान में अस्थिरता के मुद्दे को भारत के गृह मंत्री के सामने उठाया गया था और उनकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक थी. उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने साफ़ कह दिया था कि बलोचिस्तान में उन्हें कोई रूचि नहीं है . अब यहाँ इसका सन्दर्भ समझ लेने की ज़रुरत है . दरअसल बात चीत में भारतीय गृह मंत्री ने कहा रहा होगा कि बलोचिस्तान उनके विदेश मंत्रालय का विषय है , इसलिए वह उनकी रूचि का विषय नहीं है . अब अगर बात यहीं ख़त्म हो गयी होती तो पाकिस्तानी विदेश विभाग अपनी जनता को बताता कि भारत से बलोचिस्तान के मुद्दे पर बात हो गयी है . भूमिका यह है कि पूरे पाकिस्तान में सरकारी तौर पर यह प्रचार किया गया है कि बलोचिस्तान में जो बगावत जैसी हालात हैं , उसे भारत बढ़ावा दे रहा है .. और प्रेस को यह बता कर कि बात हो गयी है उसकी मनमानी व्याख्या की जा सकती थी लेकिन एस एम कृष्णा वह स्पेस देने को तैयार नहीं थे . उन्होंने साफ़ कहा कि बलोचिस्तान के मामले में पाकिस्तान जो भी कहता रहा है ,उसके लिए भरोसे लायक सबूत की मांग की गयी थी लेकिन वह तो जाने दीजिये सबूत का कोई ज़र्रा तक नहीं दिया गया . यानी पाकिस्तान की ज़मीन पर भारत के विदेश मंत्री ने ऐलान सा कर दिया कि बलोचिस्तान के मामले में भारत का नाम लेकर पाकिस्तानी शासक अपनी जनता को बेवकूफ बना रहे हैं . कृष्णा ने सीमा पार के घुसपैठ के मुद्दे को बिलकुल बेलौस तरीके से उठाया और कहा कि पिछले वर्षों में सीमापार से हो रही घुसपैठ में बढ़ोतरी हुई है . पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने गुस्से में जवाब दिया कि वे साफ़ बता देना चाहते थे कि पाकिस्तान सरकार या इंटलीजेंस एजेंसियों की नीति यह नहीं है कि वह सीमा के उस पार घुसपैठ कराये . लेकिंम अगर कुछ लोग घुसपैठ कर रहे हैं तो भारत उनसे सख्ती से निपटे , उन लोगों से सरकार का कुछ भी लेना देना नहीं है . इस पर तो पाकिस्तानी पत्रकार आग बबूला हो गए क्योंकि घुसपैठ करने वालों से पाकिस्तानी सरकार की पल्ला झाड़ने की कोशिश को कोई भी पाकिस्तानी बर्दाश्त नहीं करेगा. आखिर वे पाकिस्तानी सरकार की मर्जी से ही कश्मीर में उपद्रव करते हैं .
विदेश मंत्री की इस शैली को दोनों देशों की बदल रही अंतर राष्ट्रीय हैसियत का एक पैमाना भी माना जा सकता है . भारत-पाक संबंधों के हर विद्यार्थी को मालूम है कि पाकिस्तानी ज़मीन से भारत के खिलाफ चल रहे आतंक के तंत्र का संचालन हाफ़िज़ मुहम्मद सईद करता है . लेकिन पाकिस्तान सरकार इसको कभी सरकारी तौर पर स्वीकार नहीं करती . पत्रकार वार्ता में एस एम कृष्णा ने नफरत फैलाने वालों को लगाम लगाने की बात का भी ज़िक्र किया और कहा कि जमातुद्दावा कर सरगना , हाफ़िज़ मुहम्मद सईद के ऊपर कंट्रोल करने की ज़रुरत है . कुरेशी का चेहरा तमतमा उठा और उन्होंने हाफ़िज़ मुहम्मद सईद की तुलना भारत सरकार के गृह सचिव से कर दी. लगता है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री,शाह महमूद कुरेशी की इस बेवकूफी के लिए उन्हें पाकिस्तानी हुक्मरान के गुस्से को झेलना पडेगा. विदेश मंत्री ने केंद्र सरकार में कुछ मंत्रियों की उस कोशिश को भी ज़ोरदार झटका दिया जो विदेश मंत्री को नाकारा साबित करने के चक्कर देश मंत्रालय के मुद्दों को विदेशों में उठाते रहते हैं . गृह मंत्रालय के हवाले से जब भी पाकिस्तानी अधिकारियों ने किसी बात को साधने की कोशिश की ,तो भारत के विदेश मंत्री ने उस बात को वहीं रोक दिया और साफ़ कर दिया कि जहां तक बातचीत का सवाल है , भारत सरकार किसी को भी तैनात कर सकती है लेकिन कूटनीतिक फैसले विदेश मंत्रालय को दरकिनार करके नहीं लिए जा सकते.
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