Thursday, December 17, 2020

सही अर्थों में चौधरी देवीलाल के वारिस हैं दुष्यंत चौटाला


 

शेष नारायण सिंह

 

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला  भारी दबाव में आ गए थे  हैं और सरकार से बहार होने की संभावना बनने लगी थी .  खेती से सम्बंधित नए कानूनों के  बनने के बाद वे बड़ी दुविधा में थे . दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर  डटे किसान मूल रूप से पंजाब और हरियाणा  के रहने वाले हैं . दुष्यंत चौटाला हरियाणा में चौ. देवीलाल की राजनीतिक विरासत के दावेदार के रूप में  पहचाने जाते हैं .उनके परदादा देवीलाल ने आज से नब्बे साल पहले १९३० में किसानों के कल्याण के लिए आज़ादी की लड़ाई में शामिल होकर अपने आपको अविभाजित पंजाब की किसान राजनीति के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित कर दिया था . १९४७ में देश के बंटवारे के बाद भी वे पंजाब की राजनीति में  किसानों के कल्याण के लिए संघर्ष करते रहे . वे आज़ादी की लड़ाई के महत्वपूर्ण कार्यकर्ता थे , लेकिन आज़ादी के बाद भी वे किसानों के लिए आंदोलन करते हुए जेल   गए थे . १९५२ में भारतीय पंजाब की पहली विधानसभा के सदस्य चुने  गए थे और जीवन भर किसानों के मुद्दों पर सरकार के बाहर और अंदर  रहकर राजनीति करते रहे .उनके वारिस दुष्यंत चौटाला की सरकार ने किसानों पर पानी की तोपें चलाईं और उनको सरकार के उपमुख्यमंत्री के रूप में चुप रहने को मजबूर होना पड़ा. सरकार उनकी नही है .वे सरकार में इसलिए शामिल हुए हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को बहुमत लायक सीटें  नहीं मिलीं तो दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से समझौता करके सरकार बनानी पडी. किसान आन्दोलन में वे चुप रहने का विकल्प नहीं अपना सकते थे इसलिए उन्होंने अब बयान दे दिया है कि  अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को खतरा होगा तो वह इस्तीफा दे देंगे।

 

लेकिन दुष्यंत चौटाला का यह बयान इस बात को सुनिश्चित करता है  कि हरियाणा की सरकार  और उनकी गद्दी को कोई ख़तरा नहीं है क्योंकि  केंद्र सरकार ने बार बार कहा है कि  कृषि की उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मौजूदा व्यवस्था लागू रहेगी . इस आश्वासन के बाद वे खुश हो गए और उन्होंने  कहा कि अब आंदोलन समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि सरकार ने एमएसपी और अन्य मांगों पर लिखित आश्वासन देने की बात कह दी है . उन्होंने पत्रकारों से कहा, ''जब लिखित आश्वासन आ गया  है तो मुद्दे को आगे ले जाने की जरूरत नहीं है। सरकार का यह आश्वासन दुष्यंत चौटाला के लिए बड़ी राहत है क्योंकि वे राज्य की मनोहरलाल खट्टर सरकार से हटने के लिए विपक्ष और हरियाणा के कुछ किसान नेताओं  का दबाव झेल  रहे थे .सरकार में बने रहने के लिए उन्होंने अपने परदादा चौधरी देवीलाल हवाला देते हुए उन्होंने दावा किया कि , “ वे कहा करते थे कि सरकार किसानों की बात तब सुनती है जब सरकार में उनकी हिस्सेदारी होती है। हम और हमारी पार्टी किसानों की चिंताओं को सरकार के सामने रख रहे हैं। “

 

दुष्यंत चौटाला पर सरकार से हटने का दबाव  विपक्ष और किसान संगठनों के अलावा अपनी पार्टी के  विधायकों की तरह से भी आ रहा था . उनकी पार्टी  जेजेपी के कुछ  विधायकों द्वारा किसान आन्दोलन को समर्थन दिए जाने के बाद से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे लेकिन  अब उन अटकलों पर विराम लग  गया  है . दुष्यत चौटाला ने सरकार में बने रहने के लिए ज़रूरी तर्क विकसित कर लिया है । हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भी जेजेपी विधायकों के किसान समर्थक बयानों बाद कुछ चिंतित हो गए थे लेकिन दुष्यंत चौटाला की तरफ से सरकार में बने  रहने के संकेत आने के बाद उन्होंने दावा किया कि राज्य में भाजपा-जेजेपी का गठबंधन मजबूत है और जेजेपी के कुछ विधायकों द्वारा किसानों के विरोध प्रदर्शन का खुल कर समर्थन करने के बावजूद कहीं से भी कोई समस्या नहीं है।

 

देवीलाल के वारिस के रूप में  किसी भी ऐसी सरकार दुष्यंत चौटाला का बने रहना बहुत कठिन था जिस पर किसान विरोधी होने के आरोप लग रहे हों. पंजाब से हरियाणा की सीमा में प्रवेश कर रहे  किसानों पर पुलिस कार्रवाई करके मनोहर लाल खट्टर ने उनके लिए मुसीबत पैदा कर दी थी लेकिन जब खट्टर को अमित शाह की तरफ से  किसानों के प्रति मानवीय व्यवहार करने की  हिदायत दे दी गयी तब हालात बदल गए . किसानों के मुद्दे पर ही पंजाब के अकाली दल ने बीजेपी का साथ छोड़ा है लेकिन उनकी  हैसियत किसी सरकार में उलटफेर कर सकने की  नहीं है . उनको तो नरेंद्र मोदी ने कृपा करके सरकार में रखा हुआ था . लेकिन दुष्यंत चौटाला को अगर सरकार छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा होता तो बीजेपी की हरियाणा सरकार के लिए परेशानी बढ़ जाती .इसलिए अब हरियाणा सरकार स्थिर है और चौधरी देवीलाल के वारिस को सरकार में बने रहने के लिए आवश्यक बहाना मिल गया है .देवीलाल ने आज़ादी के पहले वाले पंजाब , आज़ादी के बाद वाले भारतीय पंजाब और   पंजाब के विभाजन के बाद हरियाणा की राजनीति में हमेशा ही ज़बरदस्त भूमिका निभाई है..१९६६ के पहले  हरियाणा भी पंजाब  का हिस्सा था  और  हरियाणा में रहने वाले लोग नहीं चाहते थे कि वे पंजाब से  अलग हों. हरियाणा की स्थापना के लिए किसी ने कोशिश नहीं की थी बल्कि हरियाणा बन जाने के बाद इस राज्य के लोगों को नया राज्य मिलने से कोई खुशी नहीं हुयी थीबस लोगों ने नियति मानकर इसको स्वीकार कर लिया था .पंजाबी सूबे की मांग को लेकर मास्टर तारा सिंह और संत फ़तेह सिंह ने जो आन्दोलन चलाया उसी के नतीजे में उनको पंजाब का पंजाबी भाषा के बहुमत वाला इलाका  मिल गया जो  बच गया उसी में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बन गया .  नये राज्य की राजनीति में शुरू से ही देवीलाल का दबदबा रहा  है . देवीलाल अविभाजित पंजाब के नेता थेदेश के बंटवारे के  बाद जब प्रताप सिंह कैरों मुख्यमंत्री बने तो देवीलाल उनके बहुत ही करीबी थे . हरियाणा की  स्थापना के बाद वे नए राज्य के ताक़तवर नेता बन गए .  जब बी डी शर्मा और  राव बीरेंद्र सिंह के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर उठापटक शुरू हुयी तो देवीलाल की अहम भूमिका थी. दोनों की तरफ होने का अहसास देते रहे . कभी इस  पार और कभी उस पार सक्रिय रहे .  उनको मुख्यमंत्री की गद्दी तो नहीं मिली लेकिन मुख्यमंत्री बनाने  बिगाड़ने में वे बहुत सक्रिय भूमिका निभाते रहे. उन्होंने ही प्रताप सिंह कैरों से कहकर बंसीलाल को राजनीति में प्रवेश दिलवाया था लेकिन बाद में वही बंसीलाल उनके सबसे बड़े विरोधी हो गए .  बंसीलाल  को मुख्यमंत्री पद पर बी डी शर्मा गुट ने बैठाया था क्योंकि उनको उम्मीद थी कि  बंसीलाल एक कठपुतली के रूप में रहेंगें लेकिन वक़्त ने ऐसा नहीं होने दिया . बंसीलाल स्वतंत्र हो गए और देवीलाल के साथ साथ बी डी शर्मा को भी धता बताते रहे .

 

  देवीलाल  पंजाब और हरियाणा के बड़े नेता थे लेकिन गद्दी उनसे छटक जाती थी . बंसीलाल को राजनीति में उन्होंने प्रवेश दिलवाया था लेकिन उनसे पहले बंसीलाल मुख्यमंत्री बन गए . १९७७ में ६२ साल की  उम्र में वे पहली बार मुख्यमंत्री बन पाए जबकि उनके वारिस दुष्यंत चौटाला तीस साल की आयु में ही  उपमुख्यमंत्री बन  गए हैं और सत्ता के साथ रहने की कला के माहिर के रूप में उभर रहे हैं . चौ. देवीलाल  हरियाणा के लोगों में बहुत लोकप्रिय थे लेकिन कभी भी  कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए . १९७७ और १९८७ में मुख्यमंत्री बने लेकिन हर बार उनके क़रीबी लोगों ने ही उनके  साथ धोखा किया . विश्वनाथ प्रताप सिंह को  प्रधानमंत्री बनाने में उनकी भूमिका ज़बरदस्त थी . अगर उन्होने साथ न दिया होता तो   चंद्रशेखर  तो वी पी सिंह को किसी कीमत पर प्रधानमंत्री बनाने को तैयार नहीं थे . लेकिन ताऊ देवीलाल ने उनको प्रधानमंत्री बनवाया और खुद उपप्रधानमंत्री बने .बाद में  जब वीपी  सिंह ने चालाकी करनी शुरू की तो उनको  हटाने में भी अहम भूमिका निभाई और   चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनवाकर दुबारा उपप्रधानमंत्री बन गए .वे आदमी की पहचान में अक्सर गच्चा खा जाते थे . लेकिन उनके  वारिस दुष्यंत चौटाला  वक़्त की पहचान के ज्ञाता लगते हैं और मौके की नज़ाक़त के  हिसाब से काम  करते हैं . शायद इसीलिये अपने से सीनियर अपनी पार्टी के नेताओं के दबाव के बाद भी सत्ता में बने  हुए हैं और अपनी सरकार की स्थिरता को संभाले  हुए हैं .

 

No comments:

Post a Comment