Thursday, September 10, 2020

चीन की सीमा पर हालात गंभीर हैं लेकिन विदेशनीति के कुशल प्रबंधन से समस्या का हल निकल सकता है.


शेष नारायण सिंह

 

लदाख में भारत और चीन के विवाद बढ़ने के संकेत साफ़ नज़र आने लगे  हैं .  विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि एल ए सी के पास हालात बहुत ही गंभीर हैं .इसके हल के लिए बहुत ही गहरी राजनीतिक समझ के साथ बीतचीत की ज़रूरत है .  पिछले हफ्ते भारतीय  सैनिकों ने चीन की सेना की कुछ टुकड़ियों की आगे बढ़ने की कोशिश को नाकाम कर दिया था .केवल इतना ही नहीं पेंगांग झील के  दक्षिण में कुछ चोटियों पर क़ब्ज़ा भी कर लिया था . बताया गया था कि यह चोटियाँ सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वहां मौजूद भारतीय सैनिक   घाटी में चीनी सेना की गतिविधियों पर नज़र  रख सकते हैं . लेकिन इसके बाद तो चीन में बौखलाहट का आलम देखा  जा रहा है . चीन के सरकारी  अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में चीन ने भारत को चेतावनी  ही दे डाली है . अखबार लिखता है कि भारत ने सीमा  पर जो  व्यवहार किया है वह चीन को मंज़ूर नहीं है . चीन को इस बात पर एतराज़ है कि भारत में जनमत चीन के इरादों पर बार बार सवाल  उठा रहा है . चीन का कहना है कि भारत ने जो किया है वह दोनों देशों के बीच हुए समझौतों का उन्ल्लंघन है . भारत का जवाब चीन को देना पडेगा जिससे सीमा पैर हालात को स्थिर किया जा सके .

 चीन के धमकी भरे बयानों के बावजूद भारत राजनयिक दायरे में रहकर ही बात करना चाहता है  . विदेश मंत्री एस जयशंकर ने  इंडियन  एक्सप्रेस अखबार  के एक कार्यक्रम में बताया कि पिछले तीस वर्षों के भारत चीन संबंधों पर अगर गौर किया जाय तो सीमा पर आम तौर पर  शान्ति रही है . थोड़ी बहुत समस्याएं भी रही हैं लेकिन मुख्य रूप से शान्ति ही रही है . जिसके कारण अन्य संबंधों में भी विकास हुआ  है. विदेशमंत्री का इशारा साफ़ तौर पर भारत और चीन के बीच  व्यापार को लेकर था. पिछले तीस  वर्षों में भारत में चीन के  औद्योगिक उत्पादों की भारी खपत हुई है . चीनी कंपनियों को बहुत बड़े बड़े ठेके मिले हैं .  इस सब में चीन को खूब लाभ हुआ है . चीन की अर्थव्यवस्था आज विश्व में  अमरीका के बाद सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है . यह सफलता चीन इसलिए हासिल कर सका क्योंकि भारत के साथ उसके शान्ति के सम्बन्ध थे . विदेशमंत्री ने स्पष्ट  कहा कि ‘ सीमा पर शान्ति रखना ज़रूरी है .अगर शान्ति नहीं रहेगी तो अन्य  सम्बन्ध भी सही नहीं रहेंगे ‘ .भारत में पब्लिक की राय यह बन रही है कि अगर चीन ने सीमा पर अपनी विस्तारवादी नीतियों को जारी रखा को भारत को उसको मिल रहे अवसरों पर लगाम लगानी पड़ेगी . यह नहीं हो सकता  कि आप सीमा पर हमारे सैनिकों को मारते पीटते रहें . थोडा थोडा करके हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करते रहें और हम आपके देश की आर्थिक प्रगति में योगदान करते रहें .

चीन को इस मानसिकता से  बाहर आना पडेगा . विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बताया कि 1993 से अब तक चीन के साथ  सीमा प्रबंधन के बारे में कई समझौते हुए  हैं. जिनके अनुसार यह तय कर दिया गया है कि  एल ए सी पर दोनों ही देश कम से  कम सैनिक तैनात करेंगें  . दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में सैनिकों के आचरण और उनके अनुशासन के बारे में भी बाकायदा नियम तय कर दिए गए हैं . लेकिन मई के बाद से चीन इन समझौतों की परवाह नहीं कर रहा  है .जिसके चलते हालात गंभीर  हैं और विदेशमंत्री ने दावा किया कि  स्थिति को ढर्रे पर  लाने के लिए दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर बहुत ही गंभीर बातचीत होनी चाहिए . मास्को में इसी हफ्ते होने वाली शंघाई सहयोग संगठन ( एस सी ओ ) की बैठक में जब  विदेश मंत्री चीन के मंत्री से मिलेंगे तो इसी बुनियाद के आधार पर बातचीत होने की संभावना है .विदेशमंत्री ने साफ़ कहा कि व्यावहारिकता का तकाज़ा है कि चीन के साथ विवाद को घटाने के लिए बातचीत की जाय

लेकिन इस बीच चीन का रुख गैरजिम्मेदाराना  है .ग्लोबल  टाइम्स में लिखा है कि,” हम भारत को गंभीर चेतवानी देते हैं.  आपने  रेखा पार की है . आपकी सेना ने रेखा पार की है .आपकी राष्ट्रवादी पब्लिक ओपिनियन ने रेखा पार की है आपकी चीन नीति ने रेखा पार की है .आप अति आत्मविश्वास के कारण पी एल ए ( चीनी सेना ) और चीनी अवाम को चुनौती  दे रहे हैं .”

चीन की यह भाषा किसी भी स्वाभिमानी देश को स्वीकार नहीं  होगी लेकिन लगता  है कि यह चीनी विदेशनीति के प्रबंधकों ने अपनी जनता को संबोधित किया है . विदेशमंत्री के रुख से लगता है कि जब दोनों देशों के मंत्री मास्को में आमने सामने होंगे तो भावनात्मक मुद्दों पर बात नहीं होगी बल्कि गंभीर कूटनीतिक भाषा और शैली में बात की जायेगी .चीन का यह भी आरोप है कि अपनी पब्लिक ओपिनियन को  भारत टीवी समाचारों के ज़रिये चीन के लोगों के खिलाफ भड़काता रहता है . राष्ट्रवाद  की जो धारा टीवी समाचारों में बहती  रहती है उससे दोनों देशों का नुक्सान होता है . ग्लोबल टाइम्स के लेख में सवाल किया  गया है कि पेंगांग झील के पास  किसी चोटी पर अगर  क़ब्ज़ा कर लिया  गया है तो इसका आधुनिक सैनिक संघर्ष में क्या फायदा होगा . उसका दावा है कि चीन के पास भारत से ज्यादा मारक हथियार हैं . अगर समझौतों के बाहर का रास्ता अख्तियार किया गया तो स्थिति बिगड़ जायेगी . चीन ने  भारत की राष्ट्रवादी ताक़तों को संबोधित करते हुए कहा है कि अगर भारत और चीन की सेनायें समझौतों से हटकर कोई काम करेंगीं तो नतीजे ठीक  नहीं होंगे.

चीन की बहुत सारी कम्पनियां भारत में काम कर रही हैं .  पब्लिक ओपिनियन के दबाव में उनके करीब तीन सौ एप्प बंद कर दिए  गए हैं . ज़ाहिर है कि चीन को इससे आर्थिक घाटा हो रहा है इसलिए उसके निशाने पर राष्ट्रवादी जनमत के दबाव को हवा देने वाले टीवी न्यूज़ चैनल हैं. लेकिन भारत को भी यह सोचना पडेगा कि अगर दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनती है तो सबका नुक्सान होगा .इसलिए विदेशनीति का प्रबंधन विदेशमंत्रालय और सरकार को ही करना चाहिए . समाचार संगठनों को दोनों देशों के बीच के तनाव को बढ़ाने की स्थिति पैदा करने से बचना चाहिए .

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