Saturday, July 18, 2020

नेल्सन मंडेला का जन्मदिन आज़ादी की इच्छा रखने वालों के लिए त्यौहार का दिन है




शेष नारायण सिंह

आज  ( 18 जुलाई ) नेल्सन मंडेला का जन्मदिन है . सत्तर   के दशक में दुनिया  भर के छात्रावासों के बहुत सारे कमरों में उनका पोस्टर लगा रहता था. साउथ अफ्रीका की आज़ादी की लड़ाई के लिए वे 27 साल जेलों में रहे. उस दौर में पूरी दुनिया के नौजवान उनको हीरो मानते थे . साउथ अफ्रीका का पूरा मुल्क बहुत वर्षों तक श्वेत अल्पसंख्यकों के आतंक को झेलता रहा  था . अमरीका और ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सत्ता की मदद से आतंक का राज कायम हुआ और चलता रहा . पूरा देश आज़ादी की मांग को लेकर मैदान में आ गया था  . उनके सर्वोच्च नेता नेल्सन मंडेला को २७ साल तक जेल में रखा गया और जब आज़ादी मिली तो पूरा मुल्क खुशी में झूम उठा . नेल्सन मंडेला शुरू में तो हिंसा की बात करते थे लेकिन बाद में  महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति को ही अपने संघर्ष  का आधार बनाया . वे गांधी को प्रेरणा स्रोत मानते थे .

 यह आज़ादी आसानी से नहीं मिली थी . उसके पीछे अफ्रीकी अवाम का दशकों तक चला  संघर्ष था. उस आजादी के नेता निश्चित रूप से नेल्सन  मंडेला थे .मंडेला के ऊपर अफ्रीकी अस्मिता और सम्मान के लिए लड़ रहे नेताओं वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन का बहुत प्रभाव पड़ा था .उन दिनों अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यकों का शासन था . दक्षिण अफ्रीका की स्थति भारत से अलग थी क्योंकि  भारत में जो अँगरेज़ आये थे , वे यहाँ शासन करने के लिए नियमित रूप से आते थे और वापस  चले जाते थे लेकिन दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने बाकायदा नागरिकता ले ली थी और  उसको अपना देश मानकर  हुकूमत करते थे .  वहां के स्थानीय लोगों को श्वेत अंग्रेजों के अधीन लगभग  गुलामों की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था . दक्षिण अफ्रीका में   रंगभेद के आधार पर राज कायम किया गया था .  इसी रंगभेद के शासन के विरोध के लिए वहां अफ्रीकी नैशनल कांग्रेस की स्थापना की गयी थी .1944 में मंडेला  अफ़्रीकन नैशनल कांग्रेस में शामिल हो गये . कांग्रेस का एक आनुषंगिक  संगठन, अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग ,बना जिसकी शुरुआत में मंडेला ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था  1947 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग के सचिव बन गए .

 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के सिलसिले  में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और  1964 को उन्हें आजीवन कारावास  की सजा सुनायी गयीथी . उसी सज़ा के साथ साथ ही यह तय हो गया कि नेल्सन मंडेला की तकलीफ सह  सकने की हिम्मत अगले 27 तक श्वेत शास्स्कों को बहुत  तकलीफ देने वाली है . उनके नाम का सहारा लेकर देश में और दुनिया भर में आज़ादी पसंद अवाम दाक्षिण अफ्रीका की आज़ादी के साथ हो गयी. इंगलैंड , अमरीका सहित कुछ  साम्राज्यवादी देशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका के  श्वेत शासकों का कहीं कोई पुछत्तर नहीं था .27 साल तक जेलों में रहने के बाद जब  1990 को उनको रिहा किया गया तो देश में आजादी की आमद की दस्तक साफ़ सुनी जा रही थी . उन्होंने सत्ता संभाली और आपसी सौहार्द्र की बुनियाद पर सत्ता चलाने की कोशिश की .उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की कल्पना की थी और वही दक्षिण अफ्रीका की गवर्नेंस का स्थाई मॉडल  बना .

उनकी रिहाई के बाद ही अफीका से रंगभेद ( aprathied ) के राज की  विदाई हो चुकी थी. 1994 में आम चुनाव हुए और नेल्सन मंडेला की पार्टी अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस को  भारी बहुमत मिला. मई 1994 में मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने. 1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात उन्होंने 1999 में अफ्रीकी नैशनल कांग्रेस का अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया. दक्षिण अफ्रीका में  मंडेला को वही  सम्मान मिला जो भारत में आज़ादी के बाद महतामा गांधी को मिला था. लोग उनको  राष्ट्रपिता  मानते थे.  दक्षिण अफ्रीका में  उन्हें  ‘ मदीबा  ‘  कहते हैं.  यह वरिष्ठ लोगों के लिए आदर से लिया जाने वाला संबोधन है .  नेलसन मंडेला को दुनिया के बहुत सारे देशों ने सम्मानित किया है . उनको 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया . भारत से उनको ख़ास लगाव था . उनको भारत रत्न का सम्मान भी दिया जा चुका है .
 जब राजनीतिक आज़ादी को मुक़म्मल करने के लिए सामाजिक और आर्थिक सख्ती बरती गयी तो पूरा देश राजनीतिक नेतृत्व के साथ था. आज साउथ अफ्रीका दुनिया में एक बड़े और ताक़तवर मुल्क के रूप में पहचाना जाता है . तीसरी दुनिया के मुल्कों में सबसे ऊपर उसका नाम है क्योंकि पूरी आबादी उस आज़ादी में अपना हिस्सा मानती है . बिना किसी कोशिश के आज़ादी हासिल करने वालों में पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर है . पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना शुरू में तो कांग्रेस के साथ रहे लेकिन बाद में वे पूरी तरह से अंग्रेजों के साथ थे और महात्मा गाँधी की आज़ादी हासिल करने की कोशिश में अडंगा डाल रहे थे. बाद में जब आज़ादी मिल गयी तो अंग्रेजों ने उन्हें पाकिस्तान की जागीर इनाम के तौर पर सौंप दी. नतीजा सामने है . कुछ ही वर्षों में पाकिस्तान आन्दोलन में जिन्ना के बाद सबसे बड़े नेता और पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री ,लियाक़त अली को मौत के घाट उतार दिया गया. बाद में राष्ट्र की सरकार को ऐशो आराम का साधन मानने वाली जमातों का क़ब्ज़ा हो गया और आज पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है. ऐसे बुत सारे उदाहरण मिल जायेंगे लेकिन जिन देशों ने अपनी आज़ादी को मेहनत से जीता है उनकी अगली पीढियां अपनी आजादी की हिफाज़त बहुत ही ध्यान से करती हैं .

दक्षिण अफ्रीका की अवाम उसी बात को आगे रखकर चल रही है . आज़ादी के बाद  नेल्सन मंडेला ने खुद सत्ता की बागडोर संभाल ली थी .  वहां की श्वेत आबादी के प्रति भूमिपुत्र और भारत से गए दक्षिण अफ्रीका के नागरिकों में बहुत नाराजगी थी . एक बार तो ऐसा  लगा कि देश में   बदले की आग  सब कुछ तबाह कर देगी लेकिन मंडेला के व्यक्तित्व की  वजह से वहां शान्ति और सद्भावना का राज कायम हो गया और आज दक्षिण अफ्रीका को  दुनिया के संपन्न देशों में गिना जाता है. अफ्रीकी महाद्वीप का तो वह सर्वाद्धिक मह्त्वापून देश  माना  ही जाता है 

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