Thursday, July 9, 2020

अर्धसत्य के आधार पर सरकार को घेरने की राहुल गांधी की कोशिश मुंह के बल औंधे पडी



शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली, १८ जून .कांग्रेस के नेता ,राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला है .  विपक्ष के नेता के रूप में सरकार से सवाल पूछना उनका अधिकार है लेकिन अगर गलत  तथ्यों के आधार पर सवाल पूछे जायेंगे तो राहुल  गांधी ही जगहंसाई  होगी . इस बार भी वही हुआ है . उन्होंने सरकार से सवाल पूछा है कि गलवान घाटी में हमारे सैनिकों को निहत्था क्यों भेजा गया . सूचना क्रान्ति के इस दौर में सरकार के जवाब का इंतज़ार किये बिना  देश के लोग  ट्विटर और फेसबुक पर आ गए और उनको बताना शुरू कर दिया कि सेनाओं के पास हथियार होते हैं लेकिन १९९६ और २००५ में भारत और चीन के बीच इस तरह का समझौता हुआ है जिसके तहत एल ए सी के दो किलोमीटर के घेरे में कोई भी बन्दूक आदि नहीं चलाई जा सकती . वहां पर दोनों ही पक्षों को 'peace and tranquillity' बनाये रखना ज़रूरी होता है .इसीलिये जब विवाद हुआ तो हमारे सैनिकों ने किसी भी तरह के आग्नेयास्त्र का प्रयोग नहीं  किया .  १९९६ के 'peace and tranquillity'है समझौते में साफ़ साफ़ लिखा  है कि ,' एल ए सी के दो किलोमीटर के अन्दर कोई भी पक्ष गोली नहीं चलाएगा ,किसी  तरह का विस्फोट नहीं करेगा .  आमने सामने की मुठभेड़ की स्थिति में सैनिकों को आत्म नियंत्रण रखना पडेगा ." यही बात केंद्र सरकार में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी ट्वीट के ज़रिये राहुल गांधी को बताया दिया . गौरतलब है कि यह समझौता जब हुआ तो भारत के प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा थे और उनकी सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. राजीव गांधी की हत्या के बाद पी वी नरसिम्हाराव कांग्रेस  अध्यक्ष बनाए गए थे . हुआ यह था कि पी वी नरसिम्हाराव राजीव  गांधी के सलाहकारों से परेशान हो गए थे और १९९१ के चुनाव में उनको टिकट भी नहीं दिया गया था. वे अपना सामान  बांधकर वापस अपने  गाँव जाने की तैयारी में थे  लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद उनको दस  जनपथ ने भरोसे का आदमी माना  और कांग्रेस अध्यक्ष और गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री बना दिया गया .उन दिनों दिल्ली में चर्चा हुआ करती थी कि  नरसिम्हाराव को इसलिए लाया गया है कि वे सोनिया गांधी के  भरोसे के आदमी  हैं  . सोनिया गांधी खुद तो राजीव गांधी की हत्या के बाद शोक में थीं और कांग्रेस के प्रबंधकों को उम्मीद थी कि जब भी सोनिया गांधी कांग्रेस के नेतृत्व करने का मन बनायेंगी , नरसिम्हाराव गद्दी छोड़ देंगे. लेकिन  सोनिया गांधी ने राजनीति में शामिल होने का फैसला नहीं किया और पी वी  नरसिम्हाराव पांच साल तक पार्टी   अध्यक्ष और प्रधानमन्त्री बने रहे . अपने कार्यकाल में नरसिम्हाराव ने बहुत सारे ऐसे   फैसले भी किये जो दस जनपथ की मर्जी के खिलाफ बताये जा रहे थे . उन्होंने अपने को एक स्वतंत्र राजनेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश  भी की .यह बात सोनिया जी के समर्थकों को पसंद नहीं आई. शायद इसीलिये जब  १९९६ के चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो नरसिम्हाराव को भी हटा दिया गया . बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के नाम पर कांग्रेस ने जनता दल के नेतृत्व वाले गठबंधन की देवेगौडा सरकार को समर्थन देने का फैसला किया और कांग्रेस के अध्यक्ष पद का ज़िम्मा सीताराम केसरी  को दे दिया गया . केसरी जी को दस जनपथ की कठपुतली माना जाता था . हालांकि बाद में सीताराम केसरी से दस जनपथ नाराज़ हो गया तो उनको कांग्रेस के अध्यक्ष पद से १९९८ में हटा दिया गया .  कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में यही सीताराम केसरी एच डी देवेगौडा की सरकार को   समर्थन देने की राजनीति के मुखौटा थे . उनका हर काम  सोनिया गांधी और दस जनपथ की मंजूरी की मुहर लगने के बाद ही संपन्न किया जाता था . इसलिए चीन के साथ जिस समझौते पर देवेगौडा सरकार ने  दस्तखत किया था उसको सोनिया गांधी के समर्थन वाली सरकार ही माना जाएगा . १९९६ में जन चीन के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री जियांग जेमिन भारत ए थे तो उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से भी मुलाक़ात की थी .सितम्बर 1993 में जब भारत चीन से समझौता हुआ तो कांग्रेस की सरकार थी और तत्‍कालीन पीएम पीवी नरसिम्‍हा राव चीन भी  गए थे .२००५ में जो समझौता हुआ था उसको तो कांग्रेस की सरकार ने ही किया था और उस सरकार को सोनिया गांधी की मर्जी के बिना कोई भी फैसला लेने का अधिकार नहीं था. इसलिए राहुल गांधी को सरकार पर हमला  बोलते समय थोडा होमवर्क अवश्य कर लेना  चाहिए .

वैसे भी विदेश नीति और भारत के अन्य देशों से संबंधों के बारे में किसी पार्टी या किसी सरकार की नीति का कोई मतलब नहीं होता  . किसी भी पार्टी की  सरकार  हो लेकिन उसके देशहित में किये गए काम को सभी पार्टियां स्वीकार करती हैं और सत्ता में आने पर उसको लागू भी करती हैं.  राहुल गांधी की पार्टी की सरकारें जब भी चीन या पाकिस्तान की सरकारों के खिलाफ राष्ट्रहित में काम कर रही थीं तो उनको  समूचे विपक्ष ने समर्थन दिया था . लेकिन राहुल गांधी युद्ध की छाया में भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ  राजनीति करते हैं . उनकी बदकिस्मती  यह है कि अर्ध सत्य पर आधारित   तथ्यों को लेकर आते  हैं और अपनी किरकिरी करवाते हैं . इस बार भी वही हो रहा है .

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