Monday, September 17, 2018

स्वामी ओमा द अक् और अध्यात्म





शेष नारायण सिंह

एक दिन के लिए बनारस गया ,मित्र और सीनियर अम्बिकानंद सहाय के आदेश पर . हुआ यों कि उनको वहां सम्मानित होना था लेकिन कार्यक्रम के पहले ही उनको चिकनगुनिया हो गया . उन्होंने मुझसे कहा कि चले जाओ और हम चले गए .आयोजकों का कार्यक्रम तय था . वे जा नहीं सकते थे ,किसी और पत्रकार की तलाश थी जिसको अम्बिकानंद की मंजूरी दे दें. उन्होंने मुझसे कहा कि इतवार का कार्यक्रम है ,चले जाओ . सोमवार को सुबह दिल्ली  वापस आ जाना . इस तरह मैं अम्बिकानंद जी  का सम्मान लेने बनारस पंहुच गया . बाकायदा मंच पर बैठाया गया और मुझसे भी भाषण  दिलवाया गया . मैं सम्मान वम्मान नहीं लेता . दिल्ली में बयालीस साल से रहता हूँ और सम्मान देने दिलाने वाले रैकेट को सही तरीके से समझता हूँ इसलिए जब भी इस तरह के मौक़े आये कि कोई संस्था मुझे सम्मानित करना चाहती थी तो मैं  दिल्ली में सम्मान याचकों और सम्मान के धंधे में लगे हुए सत्ता के दलालों के प्रोफाइल पर बात करके मना कर दिया करता था .  बहरहाल इस बार मैं बनारस गया . एक लालच यह भी थी कि अपनी छोटी बहन से मिल लूँगा जो  वहीं अपने बेटे के पास  बनारस में ही थी और बीमार हो गयी थी . भाई से मिले कई महीने हो गए थे . उनको भी वहीं बुला लिया . सबसे भेंट मुलाक़ात हो गयी . हाँ  वहां जिस सम्मलेन में मैं गया था , वहां जाकर बहुत अच्छा लगा . मुझे लगता है कि वहां जाने का फैसला करके  बहुत अच्छा किया .

बनारस के एक आध्यात्मिक संगठन का आयोजन था,   स्वामी ओमा द अक्  नाम के सन्यासी  की विचारधारा को केंद्र में रखकर यह संगठन बनाया गया है . जाने के पहले मैंने  यू ट्यूब पर उनके भाषण आदि सुने. इतनी बात मुक़म्मल हो गयी कि स्वामी जी बहुत ही कुशल वक्ता  हैं . वहां जाकर मैं मशीनी तरीके से कार्यक्रम में पंहुच गया . वहां मौजूद विद्वानों का जो लाइन अप था, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ . बनारस के शायर स्व सुलेमान आसिफ को समर्पित कार्यक्रम में एक से एक विद्वान लोगों के भाषण हुए , सभी धर्मों के लोग वहां मौजूद थे . कई विद्वानों को सम्मानित किया गया . सबके भाषण हुए , मैं प्रभावित होना शुरू  हो गया . और जब स्वामी ओमा द  अक् का भाषण हुआ तो मैं बहुत प्रभावित हो गया .
उन्होंने साफ़ कहा कि वे हिन्दू धर्म नहीं सनातन धर्म मानते  हैं, ईश्वर का जो रूप अलग अलग धर्मों में वर्णित है उसपर चर्चा की . ईश्वर को एक सांचे में बांध देने की बात को चुनौती दी. उन्होंने इस्लाम के ईश्वर पर चर्चा की, ईसाई धर्म ग्रन्थ, बाइबिल वाले  ईश्वर की चर्चा की और पूछा कि हम क्यों आपकी आज्ञा से ईश्वर की अवधारणा को स्वीकार करूं? ईशनिंदा के कानून के सहारे अपने अपने ईश्वर को स्थापित करने और ज़बरदस्ती उसको सम्मान दिलाने की बात पर एतराज़ किया और धर्म की जो धर्म दर्शन पर आधारित व्याख्या है उसको ही तार्किक और वैज्ञानिक सोच  बताया. मुझे लगा कि यह स्वामी लीक से हटकर है . सच सको सच कहने की शक्ति से मैं बहुत प्रभावित हुआ . बिना किसी लाग लपेट के सच के तत्व को कह देने की कला में स्वामी जी पारंगत हैं .. एक घंटे तक उनका भाषण  चला .  धर्मं ,अध्यात्म और नीतिशास्त्र की बहुत सारी मान्यताएँ सवालों की ज़द  में  ले ली गयीं . अब मैं पूरी तरह से प्रभावित हो चुका था. मैंने तय किया है कि अगली बार जब स्वामी जी से मिलने जाऊंगा तो अपने दर्शनशास्त्र के शिक्षक डॉ अरुण कुमार सिंह को लेकर जाऊँगा . उनकी उपस्थिति में स्वामी जी से चर्चा करूंगा  तो आनंद और उपयोगी हो जाएगा .
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर स्वामी ओमा की जानकारी से मैं बहुत प्रभावित हुआ . उन्होंने कहा कि हज़रत मूसा के समय से यह सोच राजाओं के लिए एक उपयोगी हथियार बना हुआ है . राष्ट्रवाद के बारे में उनकी इनसाइट से मैं बहुत प्रभावित हुआ .उन्होंने साफ़ कहा कि राजा के हाथ में धर्म का सञ्चालन नहीं होना चाहिए लेकिन धर्म  को सर्वोच्च साबित करने  के लिए धर्म के  ठेकेदार राजा का इस्तेमाल करते रहे हैं . उन्होंने बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध के बारे में वैज्ञानिक तरीके से बात की . स्वतंत्र मनुष्य को धम्मम शरणम् गच्छामि के दायरे में लपेट लेने की बात को बहुत ही अच्छी तरह समझाया . महात्मा बुद्ध के धर्म का बाद के राजाओं द्वारा किस तरह से दुरुपयोग किया गया ,इस पर भी एकदम  सटीक बात की . उन्होंने सम्राट अशोक द्वारा बुद्ध धर्म में किये गए व्यावहारिक   विषयांतर को भी  विधिवत समझाया .
करीब एक  घंटे तक चले उनके प्रवचन के बाद भी और अधिक सुनने की इच्छा बनी ही रही . इसलिए तय किया है कि फिर जाउंगा और इस बार अपने गुरु को भी लेकर जाऊँगा . उस गुरु को जिसने मुझे मूर्तिभंजक बनना  सिखाया . उसके बाद मन में हैं कि स्वामी ओमा द  अक् के  बारे में विस्तार से लिखूंगा .


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