Thursday, March 1, 2018

संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन के हवाले से दिल्ली सरकार को गिराना अलोकतांत्रिक होगा



शेष नारायण सिंह

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार ने अपने आपको एक मुसीबत में डाल लिया है .दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपनी मौजूदगी में अपनी ही सरकार के मुख्य सचिव के साथ अभद्रता करने वाले विधयाकों को संरक्षण देकर एक ऐसी स्थिति पैदा कर दिया है जिसको संविधानिक व्यवस्था के ब्रेकडाउन  का नाम दिया जा रहा है . संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन की स्थिति  में केंद्र सरकार के पास बहुत  सारे अधिकार आ जाते  हैं.  संविधान के अनुच्छेद ३५५ में केंद्र सरकार का यह ज़िम्मा है कि संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन की स्थिति में वह  राज्य को आतंरिक या  बाहरी  हमले या  आतंरिक गड़बड़ी की स्थिति में बचाए . ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार बाकायदा संविधान की व्यवस्था लागू रखने के लिए निर्देश भी दे सकती है. संविधान के अनुच्छेद ३६५ में व्यवस्था है कि अगर कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करती  या उनको लागू नहीं करती  और भारत के राष्ट्रपति को यह  राय बनाने का अधिकार है कि एक ऐसी स्थिति पैदा  हो गयी है जिसके बाद संविधान के अनुसार राज्य की सरकार चलाया जाना संभव नहीं है . ऐसी स्थिति आने के बाद संविधान के अनुच्छेद ३५६ लागू हो जाता है . ३५६ में ऐसी व्यवस्था है कि राष्ट्रपति महोदय सम्बंधित  राज्य के  राज्यपाल से रिपोर्ट मंगवा सकते हैं और उस रिपोर्ट के आधार पर अगर पता चले कि ऐसी हालात पैदा हो गए हैं कि राज्य सरकार को संविधान के हिसाब से चलाना असंभव हो गया है तो वे संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन  की घोषणा करके राज्य सरकर के  संचालन का ज़िम्मा अपने हाथ में ले सकते हैं .ऐसी सूरत में राष्ट्रपति राज्य सरकार की सभी शक्तियों को ले सकते हैं . राष्ट्रपति के पास यह भी अधिकार है कि वे राज्य की विधान सभा को निलंबित कर सकते  हैं या उसको भंग कर सकते हैं .३५६ लागू रहने पर राज्य के सारे विधायी कार्य देश की संसद में किये  जाने का भी प्रावधान इस अनुच्छेद में है .
मुख्य सचिव ने  पुलिस में शिकायत की है कि उनको दिल्ली राज्य के कुछ  विधायकों ने मुख्य मंत्री आवास पर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के सामने  अपमानित किया और मारा पीटा. बताया गया है कि उनको देर रात को मुख्यमंत्री आवास पर किसी काम से बुलाया गया था और मतभेद होने के बाद विधायकों ने उनके साथ धक्का मुक्की की. आम आदमी पार्टी के नेता और प्रवक्ता विधायकों को  निर्दोष बता रहे  हैं .आम आदमी पार्टी ने बाकायदा प्रेस कान्फरेंस करके बताया कि सब बीजेपी की चाल है . उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि  राज्य के मुख्य सचिव झूठ बोल रहे हैं. उनके साथ कोई मारपीट नहीं हुयी . उनकी  डाक्टरी जांच में जिन  चोटों के सबूत हैं ,वे हेराफेरी करके लिखवाये गए हैं . जब उनसे पूछा जाता  है कि जिस अस्पताल  में उनकी डाक्टरी जांच हुई थी वह दिल्ली सरकार का सरकारी अस्पताल है तो क्या अपनी सरकार  के ही डाक्टरों पर उन लोगों को भरोसा नहीं है .इसका कोई जवाब नहीं आता . वे  बताने लगते हैं कि दिल्ली में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है और मुख्य सचिव कोई भी काम नहीं कर रहे  हैं. आम आदमी  पार्टी ने यह भी आरोप लगाया  है कि मुख्य सचिव के पत्र पर जिन विधायकों  के खिलाफ कार्रवाई हुई है वे दलित और मुसलमान  हैं. इस तरह गृह मंत्रालय  ने भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया है. मुख्य सचिव का कहना है कि उनकी सरकार के तीन साल पूरा होने पर कोई सरकारी विज्ञापन  मीडिया में दिया जाना था. उस   विज्ञापन में कुछ ऐसी  बातें भी थीं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा  जारी किये गए आदेश के हिसाब से सही नही थीं .इसलिए  सरकार के लिए उस   विज्ञापन को जारी करना संभव  नहीं था .इसी बात पर कहासुनी हो गयी और उनके अगल  बगल बैठे दोनों विधयाकों ने हाथ उठा दिया . राशन आदि के बारे में कोई बात नहीं हुई .ऐसा लगता है कि राशन वाली बात का आविष्कार किया गया है क्योंकि शायद मुख्यमंत्री और उनके साथियों को यह अंदाज़ नहीं रहा होगा कि  मामला ऐसा रुख ले लेगा कि मुख्य सचिव बात को पब्लिक डोमेन में ला देंगें . राशन की बात,  तो लगता  है इस वारदात से हो गए नुक्सान को कंट्रोल करने के लिए ही चलाई गयी है .बहरहाल अब कोशिश यह हो रही है कि पानी को इतना गन्दला कर दिया  जाए कि सच्चाई कहीं बहुत नीचे दब जाए और मुख्य सचिव को झूठा साबित करके अपने विधायकों को दण्डित होने से बचा लिया  जाए.
लेकिन बात विधायकों को सज़ा से बचाने से बहुत आगे जा चुकी है .सबको मालूम है कि केंद्र सरकार को चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी ,अरविन्द केजरीवाल की  दिल्ली विधान सभा के चुनाव में हुई भारी भरकम जीत से बहुत परेशान है . वह उनको किसी भी कीमत पर औकातबोध कराने के चक्कर में रहती है . इसी कड़ी में लगता है कि अब वह दिल्ली की  अरविन्द केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने के विकल्पों पर काम कर रही है .
 खबर  है कि दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने गृहमंत्रालय के पास दिल्ली सरकार की मौजूदा स्थिति के बारे में रिपोर्ट भी दी है . मुख्य सचिव के साथ हुई वारदात में जो आपराधिक कार्य है उसके बारे में तो दिल्ली पुलिस जांच कर रही है जबकि आई ए एस अधिकारी के साथ हुई मारपीट और  अफसरों के काम  कर सकने के माहौल से सम्बंधित हालात पर गृहमंत्रालय की नज़र है .  उपराज्यपाल की रिपोर्ट में अगर  संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन की बात कही  गयी होगी तो केंद्र सरकार के पास  निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करने के अधिकार हैं . इस बात की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र की सरकार यह क़दम उठा भी सकती है .. आम आदमी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं . अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार ने उनको मौक़ा भी दे दिया है . जहां तक केंद्र की बीजेपी सरकार का अब तक का रिकार्ड है ,उससे तो बिलकुल साफ़ है कि वह आम आदमी पार्टी को परेशान करने का कोई भी अवसर छोड़ने वाली नहीं है .
केंद्र सरकार के लिए भी यह  इम्तिहान का वक़्त है . संविधान के अनुसार वह एक निर्वाचित सरकार को बर्खास्त तो कर सकती है लेकिन क्या ऐसा करना उसके लिए और देश के लिए नैतिक कार्य माना जाएगा . जहां तक दिल्ली भाजपा के मुकामी नेताओं की बात है ,वे तो पूरे जोशो खरोश के साथ लगे हुए हैं कि किसी तरह से दिल्ली की  विधान सभा का जल्दी से जल्दी चुनाव हो और दिल्ली भाजपा  पिछले  चुनाव में हुई अपनी हार का बदला चुकाए . केंद्र में भी कई नेता इस तरह की बात करते पाए जाते हैं . अपने  चुनावी  गणित को ठीक करने के लिए ऐसा करना तकनीकी रूप से तो संभव है लेकिन  यह संविधान की वास्तविक मंशा को लागू करने के एतबार से सही क़दम नहीं माना जाएगा.  इस बात में शक नहीं है कि मुख्यमंत्री की   मौजूदगी में  उनकी पार्टी के ही विधायाकों  ने राज्य सरकार के  सबसे बड़े अफसर की पिटाई करके बहुत ही मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है लेकिन क्या और विकल्प उपलब्ध नहीं हैं . क्योंकि संविधान का अनुच्छेद ३५६  राह चलते नहीं लगाया जा सकता . उसको तभी लगाया जाना चाहिए जब राज्य सरकार के  संचालन की और कोई सूरत न बची हो. संविधान में केंद्र सरकार को देश की लोकशाही की रक्षा करने का सबसे  ज़रूरी प्रावधान है . किसी असुविधाजनक नेता या उसकी सरकार को सबक सिखाने का अधिकार संविधान नहीं देता इसलिए संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन वाला विकल्प इस्तेमाल करने के पहले केंद्र सरकार को सौ बार सोचना चाहिए .

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