Sunday, March 11, 2018

लेनिन का विरोध बीजेपी की राजनीति है.राम विरोधी पेरियार का जयकारा लगना बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी

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शेष नारायण सिंह


देश के  कई हिस्सों में मूर्तिभंजकों का  आतंक है . अपने  बुलडोज़रों  और छेनी-हथौड़ों से वे सब कुछ नष्ट कर देना चाहते हैं . भारत का संविधानभारत की एकताभारत की आस्था और  भारत की विवधता सब कुछ उनके निशाने पर है . मूर्तिभंजन के रास्ते राजनीतिक विरोधी को अपमानित करने का खेल त्रिपुरा से शुरू हुआ और अब बंगाल होते हुए तमिलनाडु के  रास्ते उत्तर प्रदेश के मेरठ तक पंहुच चुका है . त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति ढहाई गयी बंगाल में  जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखार्जी की  मूर्ति पर कालिख पोती गयी मेरठ में भीमराव आंबेडकर की मूर्ति तोडी गयी और तमिलनाडु में   पेरियार की मूर्ति से छेड़छाड़ करके उनके अनुयायियों को औकात बताने की कोशिश की गयी .त्रिपुरा में  कम्युनिस्टों को चुनाव में हराने के बाद बीजेपी  वालों ने वहां लेनिन की मूर्ति को जेसीबी लगाकर ज़मींदोज़ कर दिया . अजीब बात यह थी कि वहां के राज्यपाल ने भी इसको उचित  ठहराने  की कोशिश की और कहा कि नई सरकार आती है तो पुरानी सरकार के कम को बदल देती है . उनकी यह बात अजीब लगी क्योंकि अभी राज्यपाल महोदय  ने नई सरकार को शपथ तक  नहीं दिलवाई थी और नई सरकार की बात कर रहे  थे. तो क्या वे उन सब लोगों को सरकार समझ रहे हैं जिन्होंने पिछली सरकार को हराने के लिए बीजेपी को वोट दिया थाक्या राज्यपाल महोदय भीड़ को ही  सरकार  मान बैठे थे . उसके बाद दिन भर बीजेपी और आर एस एस के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर त्रिपुरा के हुडदंग को उचित ठहराते रहे . उनके तर्क ऐसे थे जिनको हास्यास्पद मानना भी ज्यादती होगी . केंद्र सरकार भी बिलकुल चुप रही जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं . शायद संविधान की रक्षा की ज़िम्मेदारी के ऊपर चुनावी जीत हार का गणित भारी पड़ रहा था. लेकिन जब अगले दिन पेरियार ,आंबेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मूर्तियों से छेडछाड हो गयी तो  केंद्र सरकार की समझ में  आ गया कि मामला केवल  लेनिन तक ही नहीं है . मूर्ति भंजकों को अगर लगाम न लगाई गयी तो देश  में अराजकता फैल सकती है . कम्युनिस्ट विरोधी  वोट को एकजुट करने की  कोशिश में पेरियार और आंबेडकर के समर्थक वोट भी उनकी  पार्टी के खिलाफ जा सकते   हैं . लेनिन की मूर्ति की वारदात के बाद चुप्पी साधे केंद्र सरकार में एकाएक गतिविधियाँ तेज़ हो गईं . प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री से बात की और राज्य सरकारों को एडवाइज़री जारी कर दी गयी कि इस तरह की घटनाओं पर रोक लगायें . पेरियार की मूर्ति वाली घटना से केंद्र सरकार और बीजेपी ख़ास तौर से चिंतित नज़र आये क्योंकि अब बीजेपी  अपने आपको गरीबों ,दलितों और ओबीसी की पार्टी के रूप में प्रस्तुत कर रही  हैहर जगह ओबीसी प्रधानमंत्री की बात की जाती है .ओबीसी और दलित वोटों को अपनी तरफ लाने की बड़ी योजना पर काम हो रहा है . ऐसे माहौल में अगर  पेरियार और आंबेडकर के अपमान को नज़रंदाज़ किया गया तो मुश्किल हो सकती  है . पेरियार के मामले में तो बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के एक नेता ने ही फेसबुक पर लिख दिया था कि त्रिपुरा  में लेनिन की मूर्ति ढहाना सही था ,उसके बाद तामिलनाडू में पेरियार का वही हाल किया जाएगा . उन नेता  की फेसबुक पोस्ट के सामने आते ही पेरियार की मूर्ति पर हमला हो गया . जिन दो  लोगों को पकड़ा गया उमें एक बीजेपी का कार्यकार्ता भी है . उसके बाद उस नेता ने फेसबुक पोस्ट तो हटा लिया लेकिन तब तक  नुक्सान  हो चुका था,  कर्नाटक में  बीजेपी  को रोकने के अभियान में जुटे सिद्दरमैया ने बात को तूल दे दिया था .
लेनिन की मूर्ति का अपमान तो बीजेपी का एजेंडा हो सकता है लेकिन पेरियार और आंबेडकर का अपमान पार्टी पर भारी  पड़ सकता है . पेरियार को  दलित और पिछड़ी जातियों के योद्धा के रूप में देखा जाता है . करीब  एक सौ साल पहले तमिलनाडु में शुरू हुए पिछड़ों और दलितों के आत्मसम्मान आन्दोलन  के वे जनक माने  जाते हैं . उनको अपमानित करने की कोई भी कोशिश बीजेपी को दक्षिण में तो नुक्सान  पंहुचायेगी हीबाकी देश में भी  भारी पड़ सकती है . पेरियार ब्राह्मणवादी  व्यवस्था के घोर विरोधी थे नास्तिक थे और ब्राह्मणों को आर्यों की संतान और उत्तर भारतीय मानते थे . तमिलनाडु में कोने कोने में उनकी मूर्तियाँ लगी हैं  . उनमें से  एक मूर्ति पर  जो अभिलेख लिखा है ,उसपर  भारी विवाद हो  चुका है .लिखा है ," कहीं कोई ईश्वर नहीं हैजिसने ईश्वर की रचना की वह बेवकूफ था ,जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है  और जो उसकी पूजा करता है वह जंगली है ." इस अभिलेख के खिलाफ  इमरजेंसी के दौरान मद्रास हाई कोर्ट में एक मुक़दमा दाखिल हुआ था लेकिन अदालत ने पेटीशन को खारिज कर दिया . कोर्ट ने कहा कि पेरियार की मूर्तियों पर उनके  कथन को लिखने में कोई गलती नहीं है .  २०१२ में भी पेरियार की मूर्ति स्कूलों में लगाये जाने के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में एक मुक़दमा आया  था. इस मुकदमे में भी फैसला पेरियार की मूर्तियों के पक्ष में ही था . माननीय हाई कोर्ट ने संविधान के बुनियादी कर्तव्यों वाले अनुच्छेद ५१ ए( एच) का हवाला  दिया और फैसला   सुना दिया . आदेश में लिखा है कि ,"  स्कूल में पेरियार की मूर्ति लगाने से बच्चे अपने आप नास्तिक नहीं हो  जायेंगे . इस तरह के व्यक्ति के दर्शन को समझने से बच्चों को वैज्ञानिक सोच ,मानवता,और सवाल पूछने की भावना  विकसित करने का मौक़ा लगेगा . "

पेरियार की राजनीतिक और सामाजिक मान्यताएं आम तौर पर मूर्ति भंजक श्रेणी में ही आयेंगी . उनको स्वीकार कर पाना हिन्दुकेंद्रित राजनीतिक दलों के बस का नहीं है . अपनी  राजनीति को धर्मनिरपेक्ष और समावेशी बताने वाली कांग्रेस पार्टी  तमिलनाडु में  सत्ता से पैदल हो गयी . जवाहरलाल नेहरू के दौर में तो तमिलनाडु में कांग्रेस की सरकार बनती रही लेकिन उनकी मृत्यु के बाद हुए पहले आम चुनाव में ही कांग्रेस वहां से सदा के लिए विदा कर दी गयी. पेरियार   तो चुनावी राजनीति से हमेशा बाहर रहे लेकिन उनके शिष्य , सी एन अन्नादुराई ने द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम की स्थापना करके कांग्रेस को तमिलनाडु से  स्थाई   रूप से विदा कर दिया .कांग्रेस के लिए किसी ऐसी राजनीति में शामिल होना संभव नहीं  था जो महात्मा गांधी को उत्तर भारत के हितों  के प्रतिनिधि के रूप में देखती हो. और उनको सम्मान न देती हो.दक्षिण भारत में बीजेपी वह स्थान लेना चाहती है जो कांग्रेस के पास नेहरू-शास्त्री युग तक तो थी लेकिन बाद में  खिसक गयी. बीजेपी के आज के सर्वोच्च नेता  , नरेंद्र मोदी  हैं, वे खुद ओबीसी समुदाय के हैं. उनके लिए दक्षिण भारत के दलित और ओबीसी बहुल राजनीतिक मतदाताओं में पैठ बनाना संभव  है लेकिन यह भी तय है कि  दक्षिण भारत में  पेरियार के खिलाफ बयान देकर या उनको अपमानित करके वोट की उम्मीद करना बहुत दूर की कौड़ी है .  इसीलिये बीजेपी के  तमिलनाडु के नेता, एच राजा ने पार्टी का भारी नुक्सान किया है . शायद इसीलिये कुछ मिनटों के अन्दर  प्रधानमंत्री , बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री की राय को मीडिया के ज़रिये प्रचारित प्रसारित किया गया . जल्दी इसलिए भी की गयी कि  एच राजा के बयान से तो शायद उतना नुक्सान नहीं हुआ था  लेकिन दिन रात टीवी चैनलों पर ज्ञान दे  रहे पार्टी   प्रवक्ताओं ने बात को और भी बिगाड़ दिया . पार्टी को उम्मीद है कि ओबीसी और दलित भारतीयों की नज़र में सम्मानित पेरियार के अपमान से हुए नुक्सान पर काबू पा लिया जाएगा . 
पेरियार के राजनीतिक विचार ऐसे हैं जो किसी भी उत्तर भारतीय  राजनीतिक नेता के लिए पचा पाना असंभव है .  देश की राजनीतिक चर्चा जातियों के इर्द गिर्द घूमती है . उन्होंने कहा  था कि बहुत ही शातिर और बहुत ही कम  संख्या  के लोगों ने समाज पर आधिपत्य बनाये रखने के लिए जाति की संस्था की स्थापना की  है . उन्होंने कहा  कि दक्षिण भारत में जाति प्रथा , आर्यों  की देन है .वे आर्यों को हेय दृष्टि से देखते थे. कहते थे कि  जब उत्तर से ब्राह्मण लोग तमिलनाडु आए तो उन्होंने ही जातिप्रथा की स्थापना की . ब्राह्मणवाद के वे घोर विरोधी थे . वे सारी धार्मिक कुरीतियों को ब्राह्मणों की देन मानते थे और हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म के घोर विरोधी थे .उन्होंने इस्लाम की आलोचना कभी नहीं की .ऐसे व्यक्ति को स्वीकार कर पाना  बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं होगा .  अब तक बीजेपी वाले पेरियार की धुनाई करते  थे लेकिन जब दक्षिण भारत में नींव जमानी है तो उनका विरोध संभव नहीं है .
पेरियार कहते थे कि हिन्दू   धर्म की स्थापना और प्रचार प्रसार  ब्राह्मणों को सुपीरियर साबित करने के लिए किया गया है . हिन्दू धर्म को वे ब्राह्मण अधिनायकवाद का धर्म मानते थे. १९५५ में उन्होंने सार्वजनिक रूप से भगवान राम की तस्वीरें जलाई थीं . उन्होंने राम और कृष्ण की तस्वीरों को जूतों से पिटवाया था . उनका कहना था कि यह दोनों ही उत्तर भारतीय देवता  हैं जो द्रविड़ों को शूद्र मानते हैं. यह जवाहरलाल नेहरू का ज़माना था और वे राजनीतिक हानि लाभ का लेखा जोखा किये बिना काम करते थे . उनके  सुझाव पर ही राज्य की कांग्रेस सरकार ने पेरियार को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था.  जब उनकी मृत्यु हुयी तो १९७३ में तमिलनाडु में उनके चेलों की सरकार थी .हफ्ते पूरे राज्य में सभा सेमीनार होते रहे . उनके बाद उनकी पत्नी मनिअम्मा ने द्रविड़ कजगम का काम संभाला और मद्रास में भगवान राम ,सीता  और लक्ष्मण के पुतले जलाए . उनका तर्क था कि उत्तर भारत में   रावण,कुम्भकर्ण और इन्द्रजीत के पुतले जलाकर तमिलों का अपमान किया जाता है .
इस  तरह की राजनीति को अपनाना बीजेपी के  लिए बहुत मुश्किल है लेकिन उनका विरोध करके तो दक्षिण भारत में राजनीतिक  सपने ही नहीं देखे जा सकते .पेरियार का प्रभाव सभी द्रविड़ नेताओं पर है. उनकी विचारधारा को  द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम के संस्थापक ,सी एन अन्नादुराई तो मानते ही थे ,करूणानिधि, एम जी रामचंद्रन,से लेकर आज के द्रविड़ राजनीति के सभी नेता मानते है .
इस तरह से साफ़ देखा जा सकता है कि बीजेपी वाले लेनिन को विदेशी कहकर तो पार पा सकते  हैं लेकिन  अगर उनके समर्थक पेरियार और आंबेडकर को अपमानित करेंगे तो सारे भारत की राजनीतिक पार्टी बनने के सपने धरे रह जायेंगे .

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