Saturday, January 15, 2011

यू पी में मुसलमानों के वोटों के चक्कर में हैं कई पार्टियां

शेष नारायण सिंह

केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार कभी भी हो सकता है . कुछ मंत्रियोंकी छुट्टी की भी चर्चा है,हालांकि फोकस नयी भर्तियों पर ही ज्यादा है . कुछ मंत्रियों के विभाग भी बदले जायेगें. अगले दो वर्षों में कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं . जानकार बताते हैं कि यह विस्तार आगामी चुनावों को ध्यान में रख कर किया जाएगा ,इसलिए राजनीतिक प्रबंधन मंत्रिमंडल की फेरबदल का स्थायी भाव होगा. मायावती ने उत्तर प्रदेश विधान सभा के उम्मीदवारों की सूची जारी करके राज्य की राजनीति की रफ़्तार को तेज़ कर दिया है . उत्तर प्रदेश में दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है .बीजेपी की शुरुआती कोशिश तो साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिये चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की थी लेकिन अब लगता है कि उनकी रणनीति भी बदल गयी है . खबर है कि अपेक्षाकृत उदार विचारों वाले राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश की कमान दी जाने वाली है . उनके मुख्य सहयोगी के रूप में मुख्तार अब्बास नकवी को रखे जाने की संभावना है. बीजेपी मूल रूप से नरेंद्र मोदी और वरुण गांधी टाइप खूंखार लोगों को आगे करके उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाहती थी लेकिन नीतीश कुमार ने साफ़ बता दिया कि अगर इन अतिवादी छवि के लोगों को आगे किया गया तो यू पी में बीजेपी को एन डी ए का कवर नहीं मिलेगा . ,वहां बीजेपी के रूप में ही उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना पड़ेगा. बिहार में नीतीश कुमार की सफलता के बाद मुसलमानों और पिछड़ों में उन्हें एक उदार नेता के रूप में देखा जाने लगा है . लगता है कि बीजेपी उनकी छवि को इस्तेमाल करके कुछ चुनावी मजबूती के चक्कर में है . केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस विस्तार में राजनीति की इन बारीकियों को भी ध्यान में रखा जाएगा, ऐसा अन्दर की बात जानने वालों का दावा है .
उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीति को डिजाइन करने वालों को मालूम रहता है कि आधे से ज्यादा सीटों पर राज्य का मुसलमानों की निर्णायक भूमिका रहती है . इसलिए बीजेपी के अलावा बाकी तीनों पार्टियां , बहुजन समाज पार्टी ,समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की कोशिश है कि मुसलमानों को साथ रखने की जुगत भिडाई जाए. पिछले क़रीब २० साल से उत्तर प्रदेश का मुसलमान मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को वोट देता रहा है लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं हुआ . मुसलमान ने बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस दोनों को वोट दिया .उसकी नज़र में जो बीजेपी को हराने की स्थिति में था , वही मुस्लिम वोटों का हक़दार बना . उसके बाद भी मुलायम सिंह यादव ने कई राजनीतिक गलतियाँ कीं. एक तो अमर सिंह को पार्टी से निकाल कर उन्होंने अपने लिए एक मुफ्त का दुश्मन खड़ा कर लिया . अमर सिंह की मदद से पीस पार्टी ने राज्य के पूर्वी हिस्से में मुलायम सिंह को कहीं भी जीतने लायक नहीं छोड़ा है . दूसरी बड़ी गलती मुलायम सिंह यादव ने यह की कि उन्होंने आज़म खां को फिर से पार्टी में भर्ती कर लिया . जिसकी वजह से बड़ी संख्या में मुसलमान उनसे दूर चला गया . आज़म खां ने अपने व्यवहार से बहुत बड़ी संख्या में मुसलमानों को नाराज़ कर रखा है . उनकी राजनीतिक ताक़त का पता २००९ के लोकसभा चुनावों में चल गया था जब उनके अपने विधान सभा क्षेत्र में जयाप्रदा भारी वोटों से विजयी रही थीं जबकि आज़म खां ने उनको हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था .. ज़ाहिर है कि आज़म खां के साथ अब राज्य का मुसलमान नहीं है . इसका मातलब यह हुआ कि मुसलमानों के वोटों की दावेदारी में मुलायम सिंह बहुत पीछे छूट गए हैं . वे अब उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं के प्रिय पात्र नहीं रहे.

बीजेपी के खिलाफ मज़बूत राजनीतिक ताक़त के रूप में मुसलमानों की नज़र राज्य में बी एस पी और कांग्रेस पर पड़ रही है. मायावती पहले से ही वरुण गाँधी टाइप लोगों को जेल की हवा खिलाकर इस दिशा में पहल कर चुकी हैं . लेकिन कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी की मुस्लिम बहुल इलाकों की यात्राओं के अलावा कोई पहल नहीं हुई है. सच्चर कमेटी जिस से कांग्रेस को बहुत उम्मीद थी ,वह कहीं लागू ही नहीं हुई है . मुसलमानों के बच्चों के लिए वजीफे का काम भी रफ़्तार नहीं पकड़ सका. अल्पसंख्यक मंत्रालय ने उस दिशा में ज़रूरी पहल ही नहीं की..मंत्रिमंडल का विस्तार एक ऐसा मौक़ा है जब कांग्रेस मुसलमानों में यह सन्देश दे सकती है कि वह कौम को क़ाबिले एहतराम मानती है . मोहसिना किदवई उत्तरप्रदेश के राजनीतिक मुसलमानों की सबसे सीनियर नेता हैं . उन्हें अगर सम्मान दिया गया तो कुछ मुसलमान कांग्रेस को विकल्प मान सकते हैं . ज़फर अली नकवी भी सांसद हैं . उनकी वजह से भी देहाती इलाकों में मुसलमानों को बताया जा सकता है कि कांग्रेस उन्हें गंभीरता से लेती है . अभी उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच से केवल सलमान खुर्शीद मंत्रिमंडल में हैं . एक तो आम मुसलमान उन्हें यू पी वाला मानता ही नहीं क्योंकि वे अपने पुरखों का नाम लेकर उत्तर प्रदेश में केवल चुनाव लड़ने जाते हैं . दूसरी बात जो उनको मुसलमान नेता कभी नहीं बनने देगी , वह अल्पसंख्यक मंत्रालय में उनकी काम करने या यूं कहिये कि काम न करने की योग्यता है .मुसलमानों के लिए इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय को उन्होंने जिस तरह से चलाया है वह किसी की तारीफ़ का हक़दार नहीं बन सका.
ऐसी हालात में अगर कांग्रेस ने मुसलमानों का दिल जीतने के लिए कुछ कारगर क़दम नहीं उठाती तो उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव बीजेपी बनाम बहुजन समाज पार्टी हो जाएगा . . ज़ाहिर है ऐसा होने पर मुसलमान बहुजन समाज पार्टी के साथ होगा. हाँ, अगर कांग्रेस ने मुसलमान के पक्ष में फ़ौरन कोई बड़ा सन्देश दे दिया तो कांग्रेस भी मुख्य लड़ाई में आ सकती है . अगर विधान सभा में कांग्रेस ने अपनी धमाकेदार मौजूदगी दर्ज करा दी तो लोकसभा २०१४ में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक मज़बूत ताक़त बन सकेगी . जिसके लिए राहुल गाँधी और दिग्विजय सिंह खासी मेहनत कर रहे हैं

1 comment:

  1. sahi kaha Shesh Ji... Salman Khursheed ke kaam na karne ki wajah se to musalman narazz hi hoga. aur congree ko badi mehnat karne ki zaroorat hai. musalman ko sirf vote bank ki tarah istemal kar ke ab woh kaam nahin chala sakti

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