Monday, January 17, 2011

किसी लेख पर विद्वान् विश्लेषक और लेखक वीरेन्द्र जैन की टिप्पणी

वीरेन्द्र जैन्

विष्णु बैरागीजी इस नेट की दुनिया में साम्प्रदाय्क संगठन के कुछ लोग अपने सैकड़ों छद्म नाम बना कर गालियां देने का यह काम ठेके पर कर रहे हैं और वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। तर्क वहां दिया जा सकता है जहाँ लोग ज्ञान पिपासु हों, यहाँ तो मुकुट बिहारी सरोज के शब्दों में कहा जा सकता है-

बन्द किवार किये बैठे हैं, अब आये कोई समझाने
इसलिए इनमें से अगर कोई अज्ञानी भी है तो जीसस के शब्दों में यही कहा जा सकता है कि हे प्रभु इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं

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