Thursday, September 2, 2010

हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है ,हिन्दू धर्म एक महान धर्म

शेष नारायण सिंह

हिन्दुओं का ठेकेदार बनने की आर एस एस और उसके मातहत संगठनों की कोशिश को चुनौती मिल रही है. भगवान् राम के नाम पर राजनीति खेल कर सत्ता तक पंहुचने वाली बी जे पी के लिए और कोई तरकीब तलाशनी पड़ सकती है क्योंकि कांग्रेस की नयी लीडरशिप हिन्दू धर्म के प्रतीकों पर बी जे पी के एकाधिकार को मंज़ूर करने को तैयार नहीं है . कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने साफ़ कहा है कि हिन्दू धर्म पर किसी राजनीतिक पार्टी के एकाधिकार के सिद्धांत को वे बिलकुल नहीं स्वीकार करते. दिग्विजय सिंह एक मंजे हुए राजनीतिक नेता हैं , इसलिए यह उम्मीद करना कि वे अपनी निजी राय बता रहे थे, ठीक नहीं होगा. यह उनकी पार्टी की ही राय है .दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक रूप से भी कहा और मुझे जोर देकर बताया कि भगवा रंग बहुत हे एपवित्र रंग है और उसे किसी के पार्टी की संपत्ति मानने की बात का मैं विरोध करता हूँ . उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्था के बल पर मैं राजनीतिक फसल काटने के पक्ष में नहीं हूँ और न ही किसी पार्टी को यह अवसर देना चाहता हूँ . उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म पर हर हिन्दू का बराबर का अधिकार है और उसके नाम पर आर एस एस और बी जे पी वालों को राजनीति नहीं करने दी जायेगी . दिग्विजय सिंह ने कहा कि हिन्दू महासभा के पूर्व अध्यक्ष , वी डी सावरकर ने हिन्दुत्व नाम की राजनीतिक विचारधारा की स्थापना की थी . जिसके बल पर वे राजनीतिक सपने देखते थे, अगर आर एस एस वाले चाहें तो उसको अपना सकते हैं , उन्होंने साफ़ कहा कि वे हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म और हिंदुत्व में फर्क है.

कांग्रेस पार्टी में इस ताज़ा सोच पर काम होना शुरू हो गया है . मुंबई में एक गैर राजनीतिक सभा में दिग्विजय सिंह दिन भर बैठे रहे जिसमें वे खुद केसरिया साफा बंधे हुए थे . अखिल भारतीय क्षत्रिय फेडरेशन के दूसरे सम्मलेन में उन्होंने छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप की वीरता का गुणगान किया और दावा किया कि वे खुद क्षत्रिय हैं और अपने महान पूर्वज क्षत्रियों का सम्मान काना उनका बहुत ही पवित्र कर्त्तव्य है . दिग्विजय सिंह का यह पैंतरा संघ की राजनीति की चूल ढीली करने की हैसियत रखता है .मुंबई में अगर कांग्रेस का एक बड़ा नेता डंके की चोट पर शिवाजी के सम्मान में भाषण दे रहा है कि तो शिवाजी का वारिस बनकर राजनीतिक दुकानदारी करने वालों के लिए मुश्किल खडी हो सकती है . संघी राजनीति की अजीब मुश्किल है . उनके पास बीसवीं सदी में तो कोई ऐसा हीरो था नहीं जो आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुआ हो . या उनके किसी नेता को आज़ादी के लिए लड़ते हुए एक दिन के लिए भी जेल जाना पड़ा हो . इसलिए यह लोग ऐतिहासिक महापुरुषों से अपने आपको जोड़ कर उनका वारिस बनने की बात करते रहते हैं . महाराणा प्रताप और शिवाजी की वंदना संघी राजनीति की इसी मजबूरी के चलते की जाती है . यह कोशिश इन लोगों ने 1986 के बाद जोर शोर से शुरू कर दी थी .हिन्दुत्व वादियों को अस्सी के दशक में सफलता इसलिए मिली कि उस वक़्त की बड़ी पार्टियों ने राम जन्मभूमि की इनकी राजनीति का विरोध बहुत ही गैर जिम्मेदाराना तरीके से किया . उत्तर प्रदेश और केंद्र में बहुत मजबूती के साथ राजनीति के शिखर पर बैठी कांग्रेस ने भी संघ परिवार , ख़ास कर विश्व हिन्दू परिषद् को राम के नाम पर एकाधिकार के खेल में वाक ओवर दे दिया. शायद ऐसा इसलिए हुआ कि उस वक़्त के कांग्रेस के मुखिया राजीव गांधी के पास योग्य सलाहकारों की कमी थी. अरुण नेहरू, अरुण सिंह टाइप लोग उनके सलाहकार थे , जिन बेचारों को राजनीति की बारीकियों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि तीन चौथाई बहुमत वाली कांग्रेस चुनाव हार गयी और दो सीट जीतकर आई बी जे पी ने दिल्ली में विश्वनाथ प्रताप सिंह की कठपुतली सरकार बनवा दी. फिर तो आर एस एस की हिंदुत्व का ठेकेदार बनने की कोशिश शुरू हो गयी और कांग्रेस और बाकी राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता, राम का नाम आते ही बी जे पी का ज़िक्र करने लगे. और बी जे पी को भगवान राम की पार्टी बनने का मौक़ा मिल गया . यह काम बी जे पी और उसके मालिक आर एस एस की मर्जी के हिसाब से हो रहा था यही उनकी योजना थी .जिसका फायदा बी जे पी को हुआ . लेकिन अब सोनिया गांधी के राज में कांग्रेस में ज़्यादातर फैसले सोच विचार कर लिए जा रहे हैं . राजीव गांधी की तरह दोस्तों की बात को राष्टीय राजनीति पर नहीं थोपा जा रहा है. जिसका नतीजा यह है कि एक सोची समझी रण नीति के तहत बी जे पी ,शिव सेना और बाकी साम्प्रदायिक पार्टियों को उनके साम्प्रदायिक रंग में रंगे मुहावरों से खारिज किया जा रहा है . और अगर कांग्रेस अपनी इस योजना में सफल हो गयी तो और बी जे पी की उस कोशिश को जिसके तहत वह हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में अपने को स्लाट कर रही थी , नाकाम कर दिया तो इस देश की राजनीति का भला तो होगा ही, आर एस एस को नए सिरे से महापुरुषों की खोज करनी पड़ेगी

7 comments:

  1. सर, अच्छी खबर है कि एक कांग्रेसी नेता जिसने माना कि वो भी हिंदू है. सर,कांग्रेस में कई और नेता है जो दबी जुबान से अयोध्या मंदिर बनने का समर्थन करते हैं लेकिन खुलकर कुछ बोल नहीं पाते.दिग्विजय सिंह को अब कांग्रेस को छोड़कर सीधे मंदिर निर्माण के अभियान से जुड़ जाना चाहिए.क्यों कि आज भी वो उसी पार्टी के नेता है.जिसकी आजीवन अध्यक्ष का कहना है कि न राम थे न रामाय़ण थी.दिग्विजय सिंह को जाकर मैडम से पूछना चाहिए कि कोई मरने के बाद कैसे जिंदा हो सकता है जैसा कि प्रभू ईशू के बारे में कहा जाता है.
    मुझे तो एक आशंका और हो रही है कि कहीं 1930 की तरह कांग्रेस फिर से हिंदू कार्ड खेलने की तैयारी में तो नहीं है क्यों कि कांग्रेस की ये चाल हमेशा देश को विभाजन की ओर ले जाती है.

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  2. मानस, कोई कांग्रेसी हिन्दुत्व में नहीं जा रहा है . वे तो हिन्दुत्ववादी पार्टियों की उस कोशिश पर हमला बोल रहे हैं जो हिन्दू धर्म जैसे महान धर्म को संघी हिंदुत्व की संकीर्णता में बांधना चाहते हैं .दिग्विजय सिंह ने साफ़ कहा था कि वे सावरकर वाले हिन्दुत्व को खारिज करते हैं . इसका मतलब यह हुआ कि हिंदुत्व के नाम पर अब राजनीतिक मोबिलाइज़ेशन नहीं हो सकेगा.

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  3. congress ka ek ghatak kesaria hoo chuka hai wo kabhi bhee alag ho sakata hai congress party main bhee hinduwadi leader maujad hai aur ek baat aur congress kai jhanda main bhee uper ka rang kesaria hai 1/3,congress to pahela sai hi bhagawa hai ----------????????

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  4. सर, इस्लाम एक राजनीतिक विचारधारा बनकर इस देश में आया थी.इसको मानने वाले आक्रमणकारी थे. वो भारत को लूटना तो चाहते ही थे साथ ही तलवार के दम पर अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना उनकी नीति का हिस्सा थी.अगर हिंदुओं ने सिर्फ अपनी रक्षा के लिए एक विचारधार बनाकर और उसके झंडे तले संगठित होकर सिर्फ वंदे मातरम, राम मंदिर, का विरोध कर रहे कुछ लोंगो का प्रतिरोध मात्र कर रहे है.तो उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है.हिंदुत्व की विचारधारा भारत को सिर्फ सपेरों का देश कहने वालों का विरोध करती है तो क्या गलत करती है.

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  5. शेष जी मेरी टिप्पणी पब्लिश करने में आपको डर क्यों लगता है?
    क्या मैं गाली-गलौज करता हूं? :) या कहीं ऐसा तो नहीं कि मानस "सर-सर" करके बात करता है इसलिये उसकी टिप्पणी पब्लिश हो जाती है? :) :) क्या अंकल, ऐसी भी क्या खुन्नस है भाजपा-संघ से कि उसके पक्ष में लिखने वाले की टिप्पणी ही रिजेक्ट कर दो…
    तानाशाह और फ़ासिस्ट तो संघ वालों को कहते हैं आप… :)

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  6. rss wale aur bjp wale hindu dharnisht nahi hai..vo hindu dharam mai prachalit vidhi vidhan ka nishta poorvak palan nahi karte vo puja path tirth snan mai apna samay nahi bitate...lekin apne lakshay ki prapti ke liye vo sare hindu prateeko ka prayog karte hai...vo hindu dharam ki baat nahi karte vo hindu rashtra ki sthapna karna chahte hai...ye rashtra bnega jub koi chitpawan brahman chakrwarti smrat hoga...ye har vo tarika apnate hai jis se har hindu ko apne jhande ke niche la paye...ye seekh mili hai inko rajnitik guru md.ali jinnah se...unka bhi kahna ye tha muslim hai to muslim leage mai ana hai...lekin 1925 se hindu ko apne jhande ke niche bulate rahe rss...abhi tak saflta to dur rahi rss ne har chunao mai hindu mai bikhrao karke seato ke liye hinduo ko hi na jane kitna gumrah kar diya....MUJEEB RIZVI

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