शेष नारायण सिंह 
 कश्मीर की हालात के बारे  में केंद्र सरकार का ताज़ा रुख  स्वागत योग्य है . बहुत वर्षों बाद केंद्र सरकार के नेता  कश्मीर समस्या के बारे में  शुतुरमुर्गी नीति से बाहर निकल पाए हैं . उम्मीद की जानी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर की दो दिन की यात्रा पर गया सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर की समस्या को सही परिप्रेक्ष्य में रखने में मील का पत्थर साबित होगा..यह अलग बात है कि बी जे पी ने इस अवसर पर भी राजनीति खेलने की कोशिश की लेकिन आज पूरे देश में  कश्मीर समस्या का हल खोजने का माहौल बन चुका है . लगभग सभी चाहते हैं कि कश्मीर समस्या में पाकिस्तान की दखलंदाजी ख़त्म हो. देश में जागरूक जनमत को मालूम है कि कश्मीर समस्या को पैदा करने में सबसे ज्यादा योगदान बी जे पी का ही है . १९४७ में प्रजा परिषद ने कश्मीर के राजा का उस वक़्त भी साथ दिया था जब वह भारत से अलग रहना चाहता था . उस वक़्त भी प्रजा परिषद्  राजा के साथ थी जब वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान से मिलना चाहता था.बाद में यही प्रजापरिषद जम्मू-कश्मीर में जनसंघ की  शाखा बन गयी. इसी  प्रजपरिषद के नेताओं ने डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का इस्तेमाल शेख अब्दुल्ला के खिलाफ किया था. और अब इसी प्रजापरिषद् की वारिस पार्टी  बी जे पी ने कश्मीर समस्या के हल के  लिए की जा रही सर्वदलीय पहल में अडंगा डालने की कोशिश की है . इसी पार्टी के मौजूदा नेता , अरुण नेहरू और जगमोहन ने जम्मू-कश्मीर की हालात को सबसे ज्यादा बिगाड़ा  है , यह बात राजनीति शास्त्र का बहुत मामूली जानकार भी बता देगा. जम्मू-कश्मीर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में  वहां पंहुची सुषमा स्वराज ने  भी हालात को बिगाड़ने  में अपनी पार्टी की लाइन के हिसाब से भूमिका निभाई. सुषमा स्वराज ने खबरों में बने रहने के चक्कर में  असदुद्दीन ओवैसी,सीताराम येचुरी , राम विलास पासवान आदि की उस कोशिश का विरोध किया जिसमें जम्मू कश्मीर में मुसीबत  की जड़ , हुर्रियत नेताओं से संपर्क साधा गया  था.देखा गया है कि  सुषमा स्वराज सहित लगभग सभी बी जे पी नेताओं की इच्छा रहती है कि वे ही सबके ध्यान का केंद्र बने रहें. शायद इसी चक्कर में उन्होंने  अलगाववादी नेताओं से हुई मुलाक़ात को विवाद के घेरे में लाकर अखबारी सुर्ख़ियों में अपना नाम दर्ज करवाया होगा. लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि कश्मीर की हालत पर सरकारी अफसरों  या नेशनल कान्फरेंस के नेताओं की  रिपोर्ट को सच मान कर फैसले लेना गलत था . सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल की यात्रा  पिछले  ३० साल से जो हो रहा है उसे राष्ट्रहित की कसौटी पर जांचने का यह एक अहम प्रयास है . किसी भी लोकतंत्र  के लिए  यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण  है कि सरकार के नीतिगत  फैसलों में राजनीतिक बिरादरी के इनपुट का अहम रोल हो . कश्मीर के सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद जयप्रकाश नारायण ने इस दिशा में  कोशिश की थी और उसका नतीजा भी निकला था . १९७७ का चुनाव  कश्मीर में हुए अब तक  के चुनावों में सबसे पारदर्शी चुनाव माना जाता है . लेकिन १९८० में दोबारा इंदिरा गाँधी की वापसी के बाद सब कुछ खराब हो गया . पता नहीं किस सोच के तहत इंदिरा गाँधी ने  अरुण नेहरू को कश्मीर के मामले में खुली छूट दे दी थी और उनके साथ  मिलकर जगमोहन जैसे उनके सलाहकारों ने कश्मीर की राजनीति का मलीदा बना दिया और पाकिस्तान को दखल देने के अवसर उपलब्ध करवाए.  . नतीजा सबके सामने है . एक मुकाम तो यह भी आया कि  भारत के गृहमंत्री की बेटी  को भी आतंकवादियों ने अगवा कर लिया. हालात दिन ब दिन खराब होते गए. आज स्थिति यह है कि कश्मीर से वहां के पंडितों को आतंकवादियों ने भगा दिया है  और आतंकवादियों की मनमानी चल रही है . उनको घेर कर भारत की सोच का हिस्सा बनाने की इस  राजनीतिक कोशिश का स्वागत किया जाना चाहिए . लेकिन बी जे पी यहाँ भी राजनीतिक  बडबोलेपन से  बाज़ नहीं आ रही है . बी जे पी को  कश्मीर के सन्दर्भ में अपनी  सोच की ओवर हालिंग करनी चाहिए  वरना अगर कश्मीर में कुछ भी उल्टा सीधा हुआ तो आने वाली नस्लें  उसके लिए बी जे पी और उसकी  तरह की सोच वालों को ज़िम्मेदार ठहरायेगी .  ठीक उसी तरह जैसे आज हर समझदार आदमी कश्मीर की हालात बिगाड़ने के लिए प्रजापरिषद , जनसंघ  और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को ज़िम्मेदार मानता है . 
इस बार कश्मीर के मसले को ठीक करने की पहल में राजनीति के साथ साथ  कूटनीतिक पहल भी हो रही है . पाकिस्तानी संसद में एक गैरजिम्मेदार प्रस्ताव पारित हुआ था जिसमें जम्मू-कश्मीर के मामले  में गैरज़रूरी हस्तक्षेप की बू आ  रही थी . भारत सरकार ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है . विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता  ने एक बयान में सरकार की मंशा साफ़ कर दी है . प्रवक्ता ने  बताया कि ' हमने पाकिस्तान की कौमी असेम्बली और सेनेट में पास किये गए प्रस्ताव को देखा है . हम उसे सिरे से खारिज करते हैं ..पाकिस्तान का जम्मू-कश्मीर के मामलों में कोई रोल नहीं है .क्योंकि कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है वह भारत का आतंरिक मामला है.'.विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने  बताया कि पाकिस्तान को चाहिए कि वह अपने देश में संविधान लागू करे और जम्मू-कश्मीर का जो इलाका पाकिस्तान के गैर कानूनी कब्जे में  है ,  वहां लोकतंत्र की स्थापना करे , आतंकवाद को अपने देश से ख़त्म करे और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर सहित बाकी इलाकों में मानवाधिकारों की बहाली करे . पाकिस्तान की  हालत आजकल बहुत खराब हैं . आतंकवाद, घूस , बे-ईमानी , फौज की मनमानी , गरीबी जैसे संकट से गुज़र  रहे पाकिस्तान के नेताओं को चाहिए कि वे अपने देश में इंसान की इज़्ज़त करने की कोई तरकीब शुरू करें . कुदरत ने भी   पाकिस्तान को घेर  लिया है . इस साल वहां आई बाढ़ ने  पाकिस्तानी समाज को तहस नहस कर दिया है लेकिन घूस की गिज़ा खाकर सत्ता के केंद्र में बैठे पाकिस्तानी नेता भारत के मामलों में टांग अडाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं .  भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों ने कश्मीर के प्रति जो सकारात्मक  रुख अपनाया है , उसके  बाद तो लगता है कि कश्मीरी जनता  एक बार अपने आप को  फिर भारत का हिस्सा मानने में गर्व महसूस करेगी
 
कारगिल अलग होना नहीं चाहता, लेह-लद्दाख भी स्वायत्तता नहीं चाहते, जम्मू क्षेत्र तो खैर हिन्दू बहुल है और वह भी अलगाव नहीं चाहता… सिर्फ़ एक छोटे से हिस्से कश्मीर को लेकर इतना सिरदर्द क्यों है यह "सेकुलरों" के समझने वाली बात है। बशर्ते समझने की इच्छा हो… :)
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