Sunday, September 12, 2010

एक बार फिर पीपली लाइव बन गया दिल्ली का मीडिया

शेष नारायण सिंह

दिल्ली में बाढ़ का पानी कम होना शुरू हो गया है . यमुना नदी में इस साल अपेक्षाकृत ज्यादा पानी आ गया था . और उस ज्यादा पानी के चलते तरह तरह की चर्चाएँ शुरू हो गयी थी. इस सीज़न में ज़्यादातर नदियों में बाढ़ आती है लेकिन इस बार दिल्ली में यमुना नदी में आई बाढ़ को बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा. उसके कई कारण हैं . सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि मानसून सीज़न के ख़त्म होते ही दिल्ली में कामनवेल्थ खेल आयोजित किये गए हैं . कुछ आलसी और गैरजिम्मेदार कांग्रेसी नेताओं की वजह से इन खेलों की तैयारी अपने समय से नहीं हो पायी है . अब तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही हैं और घूसजीवी अफसरों और कांग्रेसियों की चांदी है . खेलों की तैयारी से सम्बंधित सब कुछ अब जिस रफ़्तार से हांका जा रहा है, उसमें धन की कोई कीमत नहीं रह गयी है . भाई लोग जम कर लूट रहे हैं . डेंगू, स्वाइन फ़्लू, और वाइरल बुखार का ख़तरा बना हुआ है .ज़्यादातर अफसरों और नेताओं की ईमानदारी सवालों के घेरे में है और उनकी विश्वसनीयता पर तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं . लेकिन इस सारी प्रक्रिया में सबसे ज़्यादा सवाल मीडिया पर उठ रहा है . एक बड़े मीडिया घराने पर तो यह भी आरोप लग चुका है कि उस के अखबार ने कामनवेल्थ खेलों की पब्लिसिटी के ठेके के लिए कोशिश की थी लेकिन जब नहीं मिला तो आयोजन समिति के प्रमुख को औकात बताने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया.और कामनवेल्थ खेलों पर आरोपों की झड़ी लगा दी. मीडिया कंपनी पर आरोप इतने गंभीर पत्रकार ने अपने लेख में लगाया है कि उस मीडिया कंपनी सहित किसी के इभी हिम्मत उसका खंडन करने की नहीं है . बहर हाल आजकल टेलीविज़न के खबर देने वाले चैनलों ने बाढ़ को अपनी कवरेज के रेंज में ले लिया है . और बाढ़ का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया कि दूर दूर से लोग घबडा कर दिल्ली में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को फोन करने लगे और पूरी दुनिया में प्रचार हो गया कि दिल्ली बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गई है . लेकिन यह सच नहीं था . दिल्ली के कुछ निचले इलाकों में पानी आ गया था . वहां रहने वालों की ज़िंदगी दूभर हो गयी थी लेकिन पूरी दिल्ली बाढ़ की चपेट में हो , ऐसा कभी नहीं था . लेकिन टी वी न्यूज़ वालों ने कुछ इस तरह का माहौल बनाया कि दुनिया की समझ में आ गया कि दिल्ली बाढ़ के लिहाज़ से एक खतरनाक शहर है . . इस सारे गडबडझाले में आंशिक सत्य , अर्ध सत्य और असत्य का भी सहारा लिया गया. सबसे अजीब बात तो यह थी कि दिन रात टी वी चैनलों में खबर आती रही कि हरियाणा के हथिनी कुंड बैराज से पता नहीं कितने लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाने वाला है जिसके बाद दिल्ली में हालात बहुत बिगड़ जायेगें . इस में आंशिक सत्य , अर्ध सत्य और असत्य सब कुछ है . सचाई यह है कि इन खबरों के पैदा होने के लिए जो लोग भी जिम्मेवार थे , उन्होंने होम वर्क नहीं किया था . उन्हें पता होना चाहिए था कि किसी भी बैराज से पानी छोड़ा या रोका नहीं जा सकता .बैराज बाँध की तरह ऊंचे नहीं होते .इसलिए पानी को बांधों की तरह रोका नहीं जा सकता .सकता अगर बैराज के गेट न खोले जाएँ तो पाने एअपने आप छलक कर बहने लगता है .बैराज नदी की तलहटी से नदी में बह रहे पानी की सतह पानी रोकने का इंतज़ाम है . इसलिए जब नदी में ज़रुरत से ज्यादा पानी आ जाता है तो वह अपने आप बैराज की दीवार के ऊपर बह जाता है . बैराज कोई बाँध नहीं है जिसमें पानी को रोका जा सके . जबकि बाँध में पानी को रोका भी जाता है और बाकायदा कंट्रोल किया जाता है . हथिनी कुंड के पानी की रिपोर्टिंग में यह बुनियादी गलती है . टेलिविज़न के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से जब इस विषय पर चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आजकल रिपोर्टर बिना तैयारी के ही आ जाते हैं और अपने ज्ञान को अपडेट नहीं करते . जब उन्हें बताया गया कि यह तो आपका ही ज़िम्मा है तो बगलें झांकने लगे. अपनी टी वी पत्रकारिता के वे दिन याद आ गये जब एक अतिग्यानी और मालिक की कृपापात्र पत्रकार ने मेरे ऊपर दबाव डाल कर यह कहलवाने की कोशिश की थी कि पी एल ओ एक आतंकवादी संगठन है .किसी तरह जान बचाई थी . एक बार मुझे लगभग स्वीकार करना पड़ गया था कि चीन की राजधानी शंघाई है , बीजिंग नहीं क्योंकि इसी पत्रकार ने तर्क दिया कि उसने दोनों ही शहरों को देखा है और शंघाई बड़ा और अच्छा शहर है . . उस संकट की घड़ी में आज के एक नामी चैनल के मुखिया भी उसी न्यूज़ रूम में आला अफसर थे, और उन्होंने मेरी जान बचाई थी और कहा था कि चलो अगर शेष जी इतनी जिद कर रहे हैं तो बीजिंग को ही राजधानी मान लेते हैं . बाद में उन्होंने ही ऊपर तक बात करके मुसीबत से छुटकारा दिलवाया था .जब मैंने पीपली लाइव देखा तो मुझे यह घटना बरबस याद हो गयी क्योंकि उस फिल्म की निदेशक, भी उसी दौर में उसी न्यूज़ रूम में इस तरह के ज्ञानी पत्रकारों से मुखातिब होती रहती थी. मुराद यह है कि टी वी पत्रकारिता एक गंभीर काम है और न्यूज़ रूम में काम करने वाले सभी लोगों की जानकारी और क्षमता को मिलाकर टी वी न्यूज़ प्रस्तुत की जानी चाहिए . अगर ऐसा हो सके तो देश और समाज का बहुत भला होगा लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बार बार की गलतियों के बाद भी ऐसा नहीं हो रहा है. और एक बार फिर मीडिया गाफिल पाया गया है .कोशिश की जानी चाहिए कि टी वी के पत्रकार पीपली लाइव को हमेशा नज़र में रखें और अपने आपको मजाक का विषय न बनने दें .

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